लघुकथा - पागल कोई,
लेखक - जिगर चुरूवी (शमशेर भालू खां)
पुराने समय में एक न्याय प्रिय राजा अपने राज्य में सुंदर रानी और संपन्न जनता के साथ रहता था। जनता राजा से खुश, राजा जनता से खुश।
एक दिन राजभवन में एक ज्योतिषी आया। राजकाज का भविष्य बताने के बाद ज्योतिषी ने कहा, महाराज मैं अकेले में आपको एक रहस्य की बात बताना चाहता हूं। राजा चकित हुआ, दोनों रनिवास में एकांत कक्ष में चले गए।
ज्योतिषी ने बताया कि आज से 9 दिन बाद दस बज कर ग्यारह मिनिट से बारह मिनिट तक हवा चलेगी, जिससे सभी पागल हो जाएंगे।
राजा ने रानी को बुलाया कि इसका उपाय किया जावे।
रानी ने एक मिस्त्री को बुलवा कर कांच का मकान तैयार करवाया। साथ में एक कांच की बोतल भी मंगवा कर रख ली।
समय आया, हवा चली और सब पागल हो गए। पूरे राज्य में राजा की हरकतें देख कर अफवाह फैल गई कि राजा पागल हो गए, राजा पागल हो गए। महल में जनता एकत्रित हो गई, राजा को मार कर नया राजा चुनने की मांग करने लगी। इतने में रानी महल की ड्योढी पर से पुकारने लगी कि थोड़ी देर रुकिए, अभी वैद्य जी को बुलाया है, वो राजा को ठीक कर देंगे। सब वैद्य जी का इंतजार करने लगे, कुछ समय बाद रानी ने पहले से चली हवा उस में भर कर रखी थी, राजा के मुंह पर उंडेल दी। हवा लगते ही राजा भी प्रजा की तरह उछल - कूद करने लगा। जनता ने राजा जी जिंदाबाद के नारे लगाते हुए राजा को पागलपन से निजात दिलवाने के लिए ईश्वर का धन्यवाद किया।
शिक्षा - समय एवं परिस्थिति अनुसार व्यवहार ही सामाजिकता है।
लेखन - जिगर चुरूवी (शमशेर भालू खां)
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