Friday, 16 August 2024

भारत चीन युद्ध 1962

भारत  - चीन  के मध्य युद्ध के कारण और उसके परिणाम - 

भारत चीन संबंध
चीन और भारत में हजारों वर्ष से ऐतिहासिक रूप से शांतिपूर्ण संबंध रहे हैं। चीन और भारत के बीच संबंध का लिखित प्रमाण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से मिलते हैं जब झांग कियान के मध्य एशिया (ईस्वी पूर्व 138 से 114) के अभियान के साथ बौद्ध धर्म भारत से चीन पहुंचा था। सिल्क रोड के के माध्यम से व्यापार संबंधों ने दोनों क्षेत्रों के बीच आर्थिक संपर्क स्थपित किए। चीन ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ अफीम व्यापार में भागीदार हुआ जो भारत में उगाई गई अफीम का निर्यात करती थी। भारत ने चीन से चाय, कागज और स्याही का आयात किया। ह्वेनसंग का भारत आगमन सांस्कृतिक संबंधों का परिचायक है। सन 1947 में आजादी के बाद भारत सरकार ने चीन से मैत्री संबंध स्थापित करने के प्रयास किए। जवाहर लाल नेहरु ने हिंदी चीनी - भाई - भाई का नारा दिया। चीन में कम्यूनिष्ट सरकार बनने के बाद भारत से चीन के संबंधों में खटास आना शुरू हुआ। आर्थिक उदारीकरण ने द्विपक्षीय संबंधों के महत्व को बढ़ावा दिया । वर्ष 2008 से 2021 के बीच चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा और दोनों देशों ने अपने सामरिक और सैन्य संबंधों को भी स्थिर करने का प्रयास किया। भारत का व्यापार घाटा चीन के पक्ष में है। वर्ष 2021 तक भारत में चीन निर्मित सामग्री खूब बिकती थी। भारत सरकार ने इन की बिक्री को हतोत्साहित करने हेतु प्रयास शुरु किए। आज लगभग भारत में चीनी सामान के प्रति नकारात्मक भाव हैं। व्यापार संतुलन में भारत चीन से आयात अधिक करता है और निर्यात कम। भारत चीन से मेडिकल, इलेक्ट्रिक आइटम और दवाओं का अधिक आयात करता है।

                              भारत
                                   चीन
ब्रिटिश सरकार के समय भारत का सीमा क्षेत्र

भारत चीन युद्ध (प्रथम) 1962 का कारण - 
चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के साथ - साथ तीन भागो में फैला हुआ है। यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो म्यांमार से पाकिस्तान तक विस्तृत है। इस सीमा पर कई विवाद हैं। भारत के अरुणाचल प्रदेश (नार्थ ईस्ट फार्ंटियर एजेंसी) (म्यांमार और भूटान के बीच)और अक्साई चिन (स्विटजरलैंड जितना बड़ा क्षेत्र) झिंजियांग और तिब्बत के पश्चिम में स्थित क्षेत्र है। जिस पर चीन अपना अधिकार करना चाहता है।
समकालीन चीन और भारत के बीच संबंधों में खटास का कारण सीमा विवाद रहा है इसलिए दोनों देशों के मध्य तीन सैन्य संघर्ष हुए 1962 अक्साई चीन युद्ध, 1967 में (नाथू ला और चो ला सीमा संघर्ष) तथा 1987 का सुमदोरोंग चू गतिरोध
भारत और चीन के मध्य अकसाई चीन विवाद को लेकर युद्ध 20 अक्टूबर 1962 से शुरू होकर 20 नवम्बर, 1963 तक चला। आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को सीमा माना। 1950 में चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर चीन ने दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत का का हिस्सा है। तिब्बत पर चीन का अधिकार है इसलिए अरुणाचल प्रदेश भी चीन का भाग है। 

स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने चीन से संघर्ष ना करने हेतु कई समझौते किए और सीमा ज्ञान करवाया। यह सीमा ज्ञान निम्न नामों से जाने जाते हैं - 
मैकमोहन रेखा - 
1914 में बनी मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालय क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सीमा निर्धारित करती है जो अत्यधिक ऊँचाई का पर्वतीय स्थान है जो मानचित्र में लाल रंग 👇 से दर्शित है।
इस सीमा रेखा का नाम भारत के विदेश सचिव सर विंसेंट आर्थर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया, जिनकी भारत -  तिब्बत के मध्य शिमला समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका।
मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत के मध्य सीमा रेखा है जो 1914 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के अंतर्गत अस्तित्व में आई। परंतु तिब्बत अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक जताता रहा। सन 1935 में ओलफ केरो (अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी) से अनुरोध पर 1937 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा मानचित्र पर मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमा रेखा के रूप में दर्शाया गया। हिमालय से होती हुई यह सीमा रेखा पश्चिम में भूटान से 890 KM और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 KM तक विस्तृत है। भारत के अनुसार यह रेखा चीन के साथ उसकी सीमा है। चीन 1914 के शिमला समझौते को नकारता रहा है। 1947 में तिब्बती सरकार ने मैकमोहन रेखा के दक्षिण में तिब्बती जिलों पर दावा करते हुए भारतीय विदेश मन्त्रालय को प्रस्तुत एक नोट लिखा कि अरुणाचल प्रदेश उसका हिस्सा है। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जिसे चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। चीन में 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई और उसने तिब्बत को मुक्त करवाने की घोषणा की। भारत ने मैकमोहन रेखा को वास्तविक सीमा रेखा घोषित कर तवांग क्षेत्र (1950-51) पर निर्णायक रूप से नियन्त्रण का दावा किया। 1950 के दशक में सीमा विवाद के शांत होने पर भारत - चीन के मध्य सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण हुए तो प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया। नेहरू ने कहा कि यदि चीन सीमा विवाद को आगे बढ़ाता है तो वह वार्ता को स्वीकार नहीं करेंगे। 1954 में, भारत ने विवादित क्षेत्र का नाम बदल कर नॉर्थ ईस्ट फ़्रण्टियर एजेंसी कर दिया।1962-63 के भारत-चीन युद्ध में चीनी फौजों ने कुछ समय तक इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और बाद में उसने एकतरफ़ा युद्ध विराम घोषित कर चीनी सेना मैकमहोन रेखा से पीछे हट गई। यही कारण है कि दोनो पक्षों के मध्य यह सीमारेखा विवाद का कारण बनी हुई है। 
- तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था।
- चीन

अक्साई चिन/अक्सेचिन चीन,
पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है। यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है।
                      अक्साई चीन क्षेत्र 

LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा)
वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)- 
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का पश्चिमी भाग lहिमालय क्षेत्र है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल भारत और चीन के मध्य वर्तमान सीमा रेखा है। 4,057 किलोमीटर लंबी यह सीमा रेखा भारत के जम्मू - कश्मीर से चीन अधिकृत क्षेत्र अक्साई चीन क्षेत्र को पृथक करती है।  यह लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। यह युद्ध विराम रेखा है जहां 1962 के युद्घ के बाद दोनों देशों की सेनाएँ जहाँ तैनात थी वहीं रुकी और उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा मान लिया गया। चीनी प्रधानमन्त्री झोउ एनलाई के 7 नवंबर 1959 के वक्तव्य के अनुसार LAC पूर्वी मैकडोनाल्ड लाइन से और पश्चिमी- मध्य क्षेत्र में यह जॉनसन रेखा से मेल खाती है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को 1962 के भारत - चीन युद्ध के बाद केवल पश्चिमी क्षेत्र में सीमा के लिए संदर्भित किया गया था। सन 1990 में वास्तविक सीमा का उल्लेख किया गया। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) शब्द को 1993 और 1996 में हस्ताक्षरित चीन - भारत समझौतों के अंर्तगत मान्यता दी गई। 1996 के समझौते में तय हुआ कि दोनों पक्षों की कोई भी गतिविधि वास्तविक नियंत्रण रेखा से आगे नहीं होगी। सन 1993 के समझौते के खंड 6 के अनुसार भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ शांति और स्थिरता हेतु दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का संदर्भ सीमा संबंधी मामलों पर उनके संबंधित पदों का पूर्वाग्रह नहीं है।
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है - 
1. भारत की ओर - लद्दाख और चीन की ओर तिब्बत और झिंजियांग स्वायत्त क्षेत्रों के बीच का पश्चिमी क्षेत्र। यह क्षेत्र 2020 में भारत और चीन के बीच झड़पों का स्थान रहा है।
2. भारत की ओर - उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के मध्य का  क्षेत्र जो चीन की ओर तिब्बत का स्वायत्त क्षेत्र है।
3. भारत की ओर - अरुणाचल प्रदेश और चीन की ओर तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के बीच का पूर्वी क्षेत्र जो मैकमोहन रेखा के साथ - साथ चलती है।

            झोउ एनलाई प्रधानमन्त्री चीन
          जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री भारत 

चीन की किसी भी सरकार ने मैकमोहन रेखा को कभी वैध नहीं माना। 
- 24 अक्टूबर 1959,झोउ एनलाई चीनी प्रधानमंत्री
हम उस क्षेत्र के लिए लड़ रहे हैं जहां एक घास का तिनका भी नहीं उगता। 
- पंडित जवाहरलाल नेहरू, प्रधानमंत्री भारत

मेकार्टिनी मेकडिनाल्ड रेखा 1899 - 
मैकार्टनी -मैकडोनाल्ड रेखा ब्रिटिश सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर (भारत), झिंकियांग (चीन) एवं तिब्बत क्षेत्रों के मध्य सीमा प्रस्ताव था जो सिंधु नदी और तारिम नदी (यारकंद व करकाश नदी प्रणाली की नदियों) के बेसिन में बहने वाली नदियों के मध्य जल क्षेत्र को बांटता है। यह रेखा भारत के चीन में दूत क्लाउड मैकडोनाल्ड द्वारा  1899 में प्रस्तावित की गई जिसे चीन ने अस्वीकार कर दिया। भारत सरकार ने जॉनसन अर्दाघ रेखा को सीमा रेखा का आधार बनाया।

अदार्घ जॉनसन रेखा 1865 
जॉन चार्ल्स अदार्घ द्वारा प्रस्तावित सर्वेक्षक विलियम जॉनसन द्वारा रेखित यह रेखा जम्मू कश्मीर की उत्तरपूर्वी सीमा को झिंझियांग और तिब्बत से पृथक करती है।
इन सभी सीमा समझौतों को नकार कर चीन अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन क्षेत्र पर कब्जा करना चाहता है। यही युद्ध का मुख्य कारण रहा। 

भारत-चीन युद्ध 1962 - 
हिमालय सीमा विवाद के फलस्वरूप भारत और चीन के मध्य 1962  युद्ध हुआ। वास्तव में मुख्य मुद्दा सीमा विवाद नहीं था बल्कि चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद भारत ने दलाई लामा को शरण दी जिस से चीन भड़क गया। चीन में हिंसक घटनाओं के कारण भारत ने मेकमोहन सीमा पर फॉरवर्ड नीति के अंतर्गत सैनिक चौकियाँ स्थापित की जिस पर चीन को आपत्ति थी। दोनों देशों के प्रधानमंत्री नेहरू और झोउ के मध्य वार्ता एवं पत्र व्यवहार होता रहा।
आखिरकार चीन की सेना (चाइना पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी) ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए। चीनी सेना दोनों ही मोर्चे पर उत्तम हथियार एवं तकनीक के साथ लड़ रही थी और भारतीय सेना हथियार, रसद एवं परिवहन की कमी के बावजूद लोहा ले रही थी। चीन ने पश्चिम में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर कब्ज़ा कर लिया। चीन ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा 20 नवम्बर 1962 को कब्ज़ा किए दो क्षेत्रों में से आंशिक वापसी की घोषणा कर दी। इस युद्ध काल में अरुणाचल प्रदेश के आधे से अधिक भाग पर चीनी सेना ने कब्जा कर लिया और मैकमहोन रेखा के पीछे लौट गई। यह युद्ध 4250 मीटर की ऊंचाई पर कठोर स्थानीय परिस्थितियों में लड़ा गया। इतनी ऊंचाई पर सैनिकों के लिए रसद, संचार और अन्य आवासीय कठिनाइयां सामने थीं। जलीय तट नहीं होने कर कारण नौ सेना का कोई उपयोग नहीं किया जा सका। विषम मौसम परिवर्तन के कारण दोनों ही देश वायु सेना का उपयोग भी नहीं कर पाए। अक्साई चिन ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का विशाल रेगिस्तान एवं अरुणाचल प्रदेश 7000 मीटर ऊंचा दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है। चीन के पास अत्यधिक सैनिक शक्ति विशेषकर सैन्य सिद्धांत के अनुसार प्रशिक्षित सैनिक अधिक थे और भारत के पास इस का अभाव था। थल सेना के नियम/सिद्धान्त थल सेना के 3:1 (पहाड़ी क्षेत्र में अधिक) की संख्यात्मक श्रेष्ठता के अनुसार होना चाहिए जो चीन के पास थी और इसका लाभ भी उसने उठाया। चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था। दोनों देशों के कई सैनिक माइनस 20 डिग्री से अधिक जमा देने वाली ठण्ड से मारे गए।
इस युद्ध से चीन ने पश्चिमी सेक्टर की सीमा की रक्षा की और अक्साई चिन की वास्तविक नियंत्रण बनाई। युद्ध के बाद भारत ने फॉरवर्ड नीति का परित्याग कर वास्तविक नियंत्रण रेखा वास्तविक सीमा माना।
इस युद्ध में चीन विजयी रहा परंतु पा ली परन्तु उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल हुई। विश्व के सभी देशों ने माना कि इस युद्ध में चीन हमलावर के रूप में था। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में चीन ने पाकिस्तान को समर्थन कर भारत विरोधी रुख स्पष्ट किया। 20 अक्सटूबर से 21 नवम्बर 1962 तक चले इस युद्ध में - 
भारतीय सेना की ओर से नेतृत्व जनरल बृज मोहन कौल
व प्राण नाथ थापर ने किया और चीन की ओर से कमांडर  जहाँग गुओहुआ, माओ ज़ेडोंग, लिऊ बोचेंग, लिन बिओं ने किया। युद्ध क्षेत्र में भारत के लगभग 10,000 सैनिक और चीन के 80,000 सैनिक लड़े। जिन में से भारतीय सेना के 1383 जवानों की मृत्यु, 1047 जवान घायल, 1696 जवान लापता हुए और चीन ने 3968 सैनिकों को बंदी बना लिया। जबकि चीन के 722 सैनिकों की ही मृत्यु हुई और 1697 सैनिक घायल हुए।

युद्ध के बाद भारतीय सेना में बदलाव - 
युद्ध के बाद भारतीय सेना में व्यापक बदलाव आये और भविष्य में इसी तरह के संघर्ष के लिए तैयार रहने की जरुरत महसूस की गई। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारत पर चीनी हमले की आशंका में असफल रहने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। नागरिकों में देशभक्ति की हिलोरें उठने लगी। शहीद हुए भारतीय सैनिकों के नाम पर स्मारक बनाये गए। इस युद्ध से भारत ने सबक सीखा की देश को मजबूत बनाने की जरूरत और चीन के साथ नेहरू की हिंदी चीनी भाई - भाई की विदेश नीति से एक बदलाव आया। भारत के राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने कहा नेहरू की सरकार अपरिष्कृत और तैयारी के बारे में लापरवाह थी। नेहरू ने स्वीकार किया कि भारतीय अपनी समझ की दुनिया में रह रहे थे। भारतीय नेताओं ने आक्रमणकारियों को वापस खदेड़ने पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की बजाय रक्षा मंत्रालय से कृष्ण मेनन को हटाने पर काफी प्रयास बिताया। भारतीय सेना कृष्ण मेनन के कृपापात्र को अच्छी नियुक्ति की नीतियों की वजह से विभाजित हो गयी थी और कुल मिलाकर 1962 का युद्ध भारतीयों द्वारा एक सैन्य पराजय और एक राजनीतिक आपदा के रूप में देखा गया। भारत का उपलब्ध विकल्पों नजरंदाज कर अमेरिकी सलाह पर वायु सेना का उपयोग नहीं करना भारी पड़ा। नेहरू का स्वप्न शीत युद्ध गुट की महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव में तीसरी शक्ति भारत - चीन को बनाने पर धक्का लगा। कमजोर सैन्य तैयारियों की जिम्मेदारी लेते हुए रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने इस्तीफा दे दिया। विदेशों से हथियार खरीदने के साथ हाथ स्वदेशी हथियार फेक्ट्रियां शुरू की गई। भारत सरकार ने युद्ध में भारत की अपूर्ण तैयारी के कारणों के लिए हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत आयोग का गठन किया था।

हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट
भारत - चीन युद्ध में हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने युद्ध के तुरंत बाद लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसन ब्रुक्स और भारतीय सैन्य अकादमी के कमानडेंट ब्रिगेडियर पी. एस. भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई। दोनों सैन्य अधिकारियो द्वारा रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी गई जिसे गुप्त रिपोर्ट मानकर सार्वजनिक नहीं किया गया। परंतु यह तय है कि देश ot समिति ने युद्ध में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।

राष्ट्रीय रक्षा कोष की स्थापना -
सन 1965 में भारत के प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री के अनुरोध पर हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली खान ने राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5,000 किलोग्राम सोने का दान दिया।

भारत चीन संघर्ष 1967
भारत चीन के मध्य नाथू ला युद्ध 11 सितंबर 1967 को PLA (चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) ने नाथू ला में भारतीय चौकियों पर हमला कर दिया जो 15 सितंबर 1967 तक चला। फिर PLA ने अक्टूबर 1967 में चो ला में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने हेतु हमला कर दिया जो और चार दिन बाद समाप्त हुआ। भारत और चीन के बीच चो ला और नाथू ला में 4 दिन तक युद्ध झड़पें हुई।इन झड़पों में प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी के कौशल के कारण चीन को मुंह की खानी पड़ी। इन झड़पों में भारत के 77 सैनिक मारे गए और 163 घायल हुए। चीन के लगभग 350 सैनिक मारे 400 से अधिक लापता हो गए। थोड़े दिन बाद एक ओर झड़प हुई  आठ चीनी सैनिकों और 4 भारतीय सैनिकों की जान गयी। थल सेना प्रमुख जनरल परमशिव प्रभाकर कुमारमंगलम, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और मेजर जनरल सगत सिंह की समझ बूझ से भारत को कम जनहानि उठानी पड़ी।

भारत चीन के मध्य वर्तमान संबंध
चीनी सैना  सैकड़ों बार भारतीय क्षेत्र में अवैध रूप से प्रवेश करने का प्रयास कर चुकी हैं। वर्ष 1987 में सुमदोरोंग चू गतिरोध हुआ। वर्ष 2013 में दौलत बेग ओल्डी से 30 किमी दक्षिण-पूर्व में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तीन सप्ताह तक झड़प चली। भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों द्वारा चुमार के पास दक्षिण में 250 किलोमीटर से अधिक दूरी पर सैन्य ठिकाने बना लिए को नष्ट कर दिया। LAC पर शांति और स्थाई युद्ध विराम हेतु अक्टूबर 2013 में भारत और चीन ने सीमा रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। वर्ष 2018 में दोनों देशों के मध्य भूटान-चीन सीमा पर डोकलाम पठार में झड़पें शुरू हुई। सीमा पर कई स्थानों पर सशस्त्र गतिरोध और झड़पें बढ़ी हैं। वर्ष 2020 में गलवान घाटी की झड़प मे 20 भारतीय और कई चीनी सैनिक मारे गए। दोनों देशों ने के चीन-भारत झड़पों के बीच सीमा क्षेत्रों में लगातार निगरानी हेतु सैन्य बुनियादी ढांचे की स्थापना की है।
चीन की सेना कभी डोकलाम तो कभी अन्य स्थान पर प्रतिदिन घुसपैठ करती रहती है और भारत विरोधी मुहिम के अंतर्गत पूर्वी क्षेत्र में अलगाववादी शक्तियों का समर्थन, पोषण और सहयोग करती है।
चीन भारत के विरुद्ध लड़ने हेतु पकिस्तान की सहायता करता है, जबकि भारत पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापना हेतु हमेशा पंचशील के सिद्धांत पर चलता है।
                     डोकलम विवाद
शमशेर भालू खान 
9587243963

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