भोपाल गैस त्रासदी -
भारत के मध्य प्रदेश के शहर भोपाल के निकट वर्ष 1979 में UCIL यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने का निर्माण हुआ जहाँ पर मिथाइल आइसो साइनाइट नामक पदार्थ से कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई।
2 दिसंबर 1984 को भोपाल की यूनियन कार्बाइन कंपनी की फैक्ट्री में बन रही जहरीली गैस मेंथोल आइसो साइनाइड (MIC) (कीटनाशक बनाने का अवयव) लीक हो कर भोपाल शहर में फैल गई। हवा में फैले इस जहर ने वो तांडव मचाया कि उसके घाव आज तक हरे हैं। 2 दिसम्बर की रात को टैन्क संख्या E - 690 में पानी भर जाने के कारण अत्यधिक दबाव और ताप (अंदरूनी भाग 200 डिग्री) के कारण प्रेसर नहीं झेल पाया और पचास मिनिट में तीस मेट्रिक टन विषैली गैस का रिसाव हो गया। इन विषैली गैसों ने वायु प्रवाह के अनुसार भोपाल के दक्षिण - पूर्वी भाग को अधिक प्रभावित किया। गैस ने बादल की तरह पूरे शहर को ढंक लिया, अधिकांश लोगों की दम घुटने से मृत्यु हो गई। इस आवरण में मिक के साथ फोस्जीन, हाइड्रोजन - सायनाइड, कार्बन मोनो - ऑक्साइड, हायड्रोजन - क्लोराइड आदि के कण पाये गये। इस घटना को मानव समाज में औद्योगिकरण में कारण त्रासदी के रूप में याद किया जाता है जिस के मानव जीवन पर दीर्घकालीन प्रभाव आज भी मिल जाते हैं।
गैस रिसाव के प्रभाव -
इस रिसाव के कारण स्वतन्त्र एजेंसी रिपोर्ट्स के अनुसार 15000 से अधिक लोग जान से हाथ धो बैठे। कंपनी के आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 2259 और मध्यप्रदेश सरकार ने 3787 लोगों की मृत्यु की पुष्टि की। लगभग 8000 लोगों की मौत दो सप्ताह के भीतर हो गई थी और साल भर में और 12000 लोग मारे गए।
वर्ष 2006 में सरकार द्वारा दिए गए शपथ पत्र में माना गया कि रिसाव के कारण कुल मिलाकर 558125 लोग (2,00,000 बच्चे और 3,000 गर्भवती महिलाये) सीधे - सीधे प्रभावित हुए व आंशिक प्रभावितों की संख्या 38478 रही। 3900 लोग पूर्णतया अपंग हो गये।
दुर्घटाना में कारण -
भोपाल गैस हादसे की जांच रिपोर्ट में पाया गया की नवम्बर 1984 से फेक्ट्री में मानक सुरक्षा बिंदुओं की अवहेलना की गई। यहां उपकरण (पाइप की सफाई करने वाले वेंट सहित) ठीक हालात में नहीं थे। समाचार पत्रों की रिपोर्टों के अनुसार कारखाने में सुरक्षा मैनुअल अंग्रेज़ी में थे और आधिकांश कामगार अंग्रेज़ी नहीं जानते थे। टैंक संख्या E - 690 में 4.5 मानक तापमान के स्थान पर 20 डिग्री तापमान पर क्षमता से अधिक MIC गैस भरी थी। मिक फ्रीजिंग प्लांट भी पॉवर बंद था।
सरकार की कार्यवाही -
हादसे की जांच CBI व CSI को सौंपी गई। काम बंद कर दिया गया। CBI कोई स्पष्ट जांच रिपोर्ट नहीं पाई। विपक्ष ने सरकार पर कम्पनी से सांठगांठ का आरोप लगाया।
भोपाल गैस काण्ड घटनाक्रम -
हवा में घुली गैस लोगों की सांस के साथ फेफड़ों में जाने से खांसी, उल्टी, आंख/नाक में जलन होने लगी। लोगों का दम घुटने लगा। 3928 लोग तुरंत मारे गए। अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लग गई। निजी संस्थान की सेवा ली गई। चिकित्सकों का अभाव था और जो थे वो इस तरह की समस्या से लड़ने हेतु प्रशिक्षित नहीं थे। चिकित्सकों की इस कमी को अन्य स्थानों से बुला कर पूरा किया गया। 1988 में भोपाल मेमोरिअल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर खोल कर गैस पीड़ितों का निशुल्क उपचार किया जाने लगा जो अनवरत है। 5 वर्ष बाद 1989 में फेक्ट्री के आसपास के पानी में गैस के जहरीले कण पाए गए। मध्य प्रदेश सरकार ने पीड़ितों हेतु एक करोड़ चालीस लाख डॉलर का सहायता पैकेज घोषित किया। सरकार ने अब तक 554895 घायल और 15310 मृत लोगों को आर्थिक अनुदान प्रदान किया।
7 दिसम्बर 1984 को यूनियन कार्बाइड कंपनी के CEO वारेन एन्डर्सन को गिरफ्तार कर तुरंत 2100 डॉलर के मुचलके पर छोड़ दिया गया।
यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूनियन कार्बाइड)
1917 में गठित यह संयुक्त राज्य अमेरिका की रसायन बनाने वाली कंपनी थी जिसमें 3800 कार्मिक कार्यरत थे। रसायन, इथिलीन वा इथिलीन यौगिक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड टेक्सास के ह्युस्टन शहर में पैट्रिक E. गॉटशाक ने शुरु की जिसका वार्षिक टर्न ओवर 7.33 अरब डॉलर है। सन 1920 में कंपनी के शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक गैस द्रवों इथेन और प्रोपेन से एथिलोन बनाने की सस्ती विधि विकसित की जिसने आधुनिक पेट्रो रसायन उद्योग को जन्म दिया। आज यूनियन कार्बाइड के पास इस उद्योग से जुड़ी सबसे उन्नत तकनीक उपकब्ध है। इस कंपनी ने अपनी शाखा भारत में 1979 में भोपाल में शुरू की जिसमें MIC मिथेल आइसो साईनाइट के उत्पादन हेतु संयंत्र स्थापित किया। भोपाल गैस त्रासदी के लिए इस कंपनी को दोषी माना गया जिसे कम्पनी ने खारिज कर दिया। 6 फ़रवरी 2001 से यूनियन कार्बाइड को डाउ केमिकल कंपनी ने खरीद लिया। डाउ ने गैस पीड़ितों के साथ समझौता करते हुए भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में मरीजों के इलाज का जिम्मा उठाना शुरू किया और वर्षों से चल रहा विवाद समाप्त हुआ।
हॉक्स नेस्ट सुरंग आपदा -
यूनियन कार्बाइड कंपनी नेतृत्व में सन 1927 से 1932 के बीच पश्चिम वर्जीनिया सुरंग परियोजना शुरू की गई। इस सुरंग के निर्माण के दौरान सिलिका खनिज मिला जिस का उत्खनन करने का काम शुरू किया गया। सिलिका का उपयोग इस्पात के वैद्युत प्रसंस्करण में होता है। कंपनी ने श्रमिकों को सुरंग निर्माण कार्य में सुरक्षा उपकरण (मास्क, कृत्रम श्वसन यंत्र आदि) उपलब्ध नहीं करवाए गए। सिलिका कण और खुदाई के समय उड़ती धूल से श्रमिकों के फेफड़े कमज़ोर हो कर उन्हें सिलिकोसिस नामक बीमारी हो गयी जिस से लगभग 500 कामगारों की मौत हो गई।
शमशेर भालू खान
9587243963
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