Monday, 19 August 2024

जल पेयजल वर्षा जल समस्या एवं समाधान

जल समस्या एवं उसका समाधान - 

रहीम खानखाना का दोहा - 
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए ना उबरे मानस मोती चुन।।

क्रांति फिल्म का गाना - 
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिस में मिला दो उसी रंग जैसा।

राजस्थानी में एक कहावत -
सौ घोड़ा सो करलिया सौ सुहागन जोय
मेवड़ा तो बरसता भला होणी हो सो होय।।

अंग्रेजी कहावत के अनुसार - 
तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जायेगा।

समस्या - 
भारत के हैदराबाद शहर और अफ्रीका के कई शहरों में भूमिगत जल समाप्त हो चुका है।
राजस्थान के कई जिलों झुंझुनूं, चूरु और सीकर में भूमिगत जल स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। झुंझुनूं के कई गांवों में ट्यूबवेल से अत्यधिक भूमिगत जल दोहन के कारण पानी सूख गया और लगभग सभी ट्यूब वेल आज निर्जन पड़े हैं। चूरु जिले के सुजानगढ़, बीदासर और रतनगढ़ में कुओं का जल स्तर गिरता जा रहा है। नागौर और चूरू के इन इलाकों में 65 HP की मोटर से 1000 फिट गहराई से पानी खींचा जा रहा है जो लगातार और नीचे जा रहा है।
इस गति से गिरते जल स्तर के कारण निकट भविष्य में पेयजल समस्या विकराल मुंह लिए खड़ी है। मैं ग्रामीण परिवेश से हूं और राजस्थान के लगभग सभी जिलों में आंदोलन के कारण प्रवास कर चुका हूं। मेरे द्वारा गांव में एक स्कूल खोला गया राउप्रावि कायमखानी बस्ती सहजूसर, जहां दानदाता से एक ट्यूबवेल बनवाया था, जो 125 फिट नीचे था। पास ही दो साल में खेतों में 10 HP क्षमता के 7 - 8 नए ट्यूबवेल बने और स्कूल का ट्यूबवेल सूख गया। नया ट्यूबवेल बनाया गया जो लगभग 200 फिट गहरा था। इसका अर्थ यह हुआ कि भूमिगत जल स्तर 2012 से 2024 के बीच 12 साल में लगभग 75 फिट गिर गया। गांव में घरेलू उपयोग हेतु बने सभी ट्यूबवेल का यही हाल है जहां जल स्तर गिर गया। ओसतन 7 फिट वार्षिक गति से यह जल स्तर गिर रहा है जो अन्य जिलों में अधिक गति से गिरता जा रहा है। शहरों में कई पेयजल हेतु बनाए गए ट्यूबवेल सूखते जा रहे हैं। राज्य सरकार ने चूरु, सीकर और झुंझुनूं को डार्क जोन में डाल दिया। अत्यधिक फसल उगाने के लिए अत्यधिक जल दोहन जी का जंजाल बनता जा रहा है।

        इंदिरा गांधी नहर हनुमानगढ़ एक दृश्य
हेड जिससे घीमी गति के पानी को गति प्रदान की जाती है।
              इंदिरा गांधी नहर बीकानेर
पंजाब से रामसर बाडमेर इंदिरा गांधी मुख्य नहर

सिंचाई जल समस्या का समाधान -
चूरु, सीकर,झुंझुनूं और नागौर राजस्थान के चार जिले हरियाणा की कुल कृषि भूमि से लगभग दो गुना है। अकेले चूरू में लगभग चार लाख वर्ग हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है, जो पानी के अभाव में निर्जन समान है। सावणी की फसल अनिश्चित मौसमी बारिश पर निर्भर यह क्षेत्र सूखे की मार से पिछड़ता जा रहा है। सरकार द्वारा किसानों को ऊंट के मुंह में जीरे जितनी आर्थिक सहायता दे कर इतिश्री कर ली जाती है। 
इस विभत्स समस्या का एक ही समाधान है शेखावाटी नहर।
चूरु, सासंद राहुल कसवां,सीकर सांसद कामरेड अमराराम, झुंझुनूं सासंद ब्रिजेंदर ओला और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने इस हेतु बार बार भारत की सब से बड़ी पंचायत ससद भवन के लोकसभा सदन में शेखावाटी नहर की मांग उठा चुके हैं।
यदि शेखावाटी नहर बनती है तो आधे भारत की अन्न समस्या का समाधान हो जायेगा। जिस प्रकार से हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर क्षेत्र में इंदिरा गांधी नहर से गेहूं, ज्वार, बाजरा, तिलहन, दलहन और गन्ने के उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। यह क्षेत्र (गंग नहर और इंदिरा गांधी नहर से पूर्व एक दम निर्जन था जहां सावन की खेती भी बहुत कम होती थी) इस उत्पादन से किसानों के साथ - साथ सरकार की समस्याओं का समाधान हुआ है। किसान अधिक सबल और शक्तिशाली हुए हैं। गंगानगर और हनुमानगढ़ में तो चावल का उत्पादन हो रहा है।
(इंदिरा गांधी नहर (मूल रूप से राजस्थान नहर ) भारत की सबसे लंबी नहर है। यह पंजाब राज्य में सतलुज और व्यास नदियों के संगम से कुछ किलोमीटर नीचे हरिके के पास हरिके बैराज से शुरू हो कर राजस्थान राज्य के उत्तर-पश्चिम में थार के रेगिस्तान के बाड़मेर तक बहती है)
उक्त चार जिलों की भूमि भी इतनी ही उर्वर है परंतु पानी नहीं होने कारण निर्जन है। मात्र 15% भूमि भूमिगत जल दोहन से सिंचित कर उत्पादन लिया जा रहा है सरकार का दायित्व है कि किसानों को शेखावाटी नहर (इंदिरा गांधी नहर, गंग नहर और अन्य नहर प्रणालियों की तरह) का निर्माण तुरंत शुरू कर देना चाहिए।
लगभग 14 लाख हेक्टेयर (56 लाख बीघा) भूमि में प्रति वर्ष 20 क्विंटल प्रति बीघा (न्यूनतम) उत्पादन पर 224 लाख क्विंटल उत्पादन होगा। जो यहां के लाखों किसानों के भाग्य को बदल देगा साथ ही सरकार पर अतिरिक्त भार कम हो जायेगा। दलहन और तिलहन के आयात से मुक्ति मिलेगी और विदेशी मुद्रा बचेगी। साथ ही अतिरिक्त उत्पादन को निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जन किया जा सकेगी।
              चूरु के किसान आंदोलन करते हुए।

इस प्रकार से शेखावाटी नहर से राजस्थान के चार बड़े जिले लाभान्वित होंगे। 5 जिले इंदिरा गांधी नहर से लाभान्वित हो रहे हैं और 12 जिले NRECP पूर्वी राजस्थान सिंचाई परियोजना से लाभान्वित होंगे। सूखे और अकाल की मार झेल रहा राजस्थान विश्व का सब से बड़ा उत्पादक क्षेत्र बन कर उभरेगा।
13 लाख हेक्टेयर भूमि चूरू,सीकर, झुंझुनूं और नागौर 
नहर निर्माण का यह कार्य नरेगा के अंतर्गत पूर्ण किया जा सकता है। नरेगा के अंतर्गत जोहड़ों/नाड़ियों की खुदाई और घास कटाई  का कार्य किया जाता है जो लगभग अनुत्पादक है। 
इस से राज्य में अचल संपत्ति का संयोजन होगा और रोजगार के साथ - साथ कई समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा।

वर्षा जल - 
                  गांवों में रास्ते अवरुद्ध 
ऊपर चित्र और वीडियो से स्पष्ट है कि बारिश का पानी रास्ते रोक देता है और बहता पानी कटाव के कारण सड़कें तोड़ देता है। गांव गाजसर चूरु इस तरह से दो बार डूब चुका है। यहां बनी डिग्गी कई बार टूट चुकी है और यहां बना राजकीय माध्यमिक विद्यालय क्षतिग्रस्त हो गया। यह विद्यालय बाद में अलग स्थान पर बनाया गया।
इसके साथ ही इस रेतीले क्षेत्र में गर्मियों के दिनों में पीने का पानी नहीं होता है। कई बार बाड़मेर जैसलमेर में रेल मार्ग द्वारा पानी की आपूर्ति की जाती है।
सदियों से पूर्वज जल संचय करते आ रहे हैं जिसे टांका या कुण्ड कहा जाता है। यदि हर घर में (गांव, शहर और कस्बे) एक टांका (कुण्ड) बना दिया जावे तो दोनों ही समस्याओं का हल संभव है।
   प्राचीन जल स्त्रोत कुण्ड (टांका) 👆 बावड़ी 👇
इस तरह से झील और तालाब भी प्राकृतिक जल को संचित कर विपत्ति के समय पेयजल के रूप में काम लिया जाता था।
टांके का यह कीवृताकार प्रारुप है जो खुली जगह पर पायतन वाले टांके हेतु परिष्कृत है। 
घरेलू टांके का डिज़ाइन आयताकार या वर्गाकार होता है जिस में छत का पानी आता है। इस हेतु घर की छत को साफ सुथरा रखा जाना अनिवार्य है।
30  फुट गहराई
20 फुट लंबाई 
09 फुट चौड़ाई 
का यह आयताकार टांका कुल 5400 घन फुट पानी का संचय करेगा। वर्ष के 365 दिनों में आम आदमी को 30 लीटर नहाने -धोने, 10 लीटर शौचालय, 05 लीटर हाथ मुंह धोने में, 02 लीटर पीने हेतु व 03 लीटर अन्य आवश्यकताओं हेतु कुल 50 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। एक परिवार में ओसतन 6 सदस्य होते हैं। गांव है तो 150 लीटर पानी पशुओं हेतु आवशय्क है। इस प्रकार से छः सदस्यों के परिवार में 300 लीटर पानी और पशुओं हेतु 150 लीटर पानी कुल 450 लीटर पानी की आवश्यकता होगी। संग्रहित जल 5400 घन फुट में (5400 X 28.32) =152928 लीटर पानी है। वर्ष के 365 दिन में 152928 ÷ 365 = 419 लीटर पानी प्रतिदिन प्राप्त होगा। ना ही भूमिगत जल का दोहन हुआ ना ही पाइप लाइन जेसे अन्य खर्च। 
इस टांके पर खर्च 
ईंट                - 10 हजार X 6 ₹प्रति ईंट= 60000 ₹
बजरी            - 200 क्विंटल = 20 हजार ₹
सीमेंट            - 10000 ₹
पत्थर की पट्टी - 10 X 20 = 200 X 90 = 16000
मजदूरी         - 15000
पाइप            - 4000
कुल             -  125000
इस राशि का नरेगा (शहरी /ग्रामीण) अभियान के अंर्तगत राज्य/ केंद्र सरकार द्वारा पुनर्भरण किया जा सकता है।
इस से सड़कों पर व्यर्थ बहते पानी की समस्या और पेयजल समस्या से छुटकारा मिल जायेगा।

न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार 
बाड़मेर के बायतु के माडपुरा बरवाला से सांचौर तक एक समुद्र की बात सामने आई है। इस समुद्र में 48 हजार खरब लीटर पानी भरा है, जो दस लाख लोगों की प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त है परंतु खारेपन के कारण पीने योग्य नहीं है। इजरायल तकनीक का उपयोग कर इसे पीने योग्य बनाया जा सकता है।

शमशेर भालू खान 
9587243963

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