Sunday, 18 August 2024

भारत पाकिस्तान युद्ध कारण एवं परिणाम

भारत पाकिस्तान युद्ध कारण एवं परिणाम 
1947 से पहले भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान एक ही राष्ट्र थे। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद पृथक -  पृथक (धर्म आधारित) राष्ट्र की मांग उठने लगी। यह मांग उठाने वाले भारत के पढ़े लिखे लोग थे। 1916 में हिंदू महासभा ने द्वि- राष्ट्र सिद्धांत का प्रस्ताव पास किया। इसी समय कांग्रेस में मोहम्मद अली जिन्ना और मदन मोहन मालवीय का पदार्पण हुआ। दोनों ही शुरुआत में तो राष्ट्रवादी विचारों के धनी थे परंतु धीरे धीरे गांधी जी के विरोधी और हिंदुस्तान - पाकिस्तान के समर्थक बन गए। 1916 के लखनउ समझौते और पूना पैक्ट के बाद स्थिति बिगड़ती चली गई। भारत विभाजन के जिम्मेदार जिन्ना और इकबाल के साथ मदन मोहन मालवीय और दामोदर सावरकर रहे। कांग्रेस ने अंतिम काल तक इसका विरोध किया।

स्वतंत्रता के बाद - 
भारत का विभाजन हो कर 14 अगस्त को पृथक पाकिस्तान का जन्म हुआ। माउंटबेटन योजना के अनुसार सेना, संसाधन और जमीन का बंटवारा हो गया। भारत ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए मुआवजे के रूप में दिए। माउंटबेटन योजना के अनुसार सभी रियासतों को तीन तरह की स्वायत्तता दी गई - 
1. स्वतंत्र अस्तित्व
2. भारत में विलय
3. पाकिस्तान में विलय
इस आधार पर सिंध, आधा पंजाब, आधा बंगाल, और सिंध के पश्चिम का भाग (अफगानिस्तान तक) ने पाकिस्तान में विलय किया। कुछ रियासत हैदराबाद, भोपाल, कश्मीर, जोधपुर, केरल आदि ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। इन सभी रियासतों का भारत में विलय किया गया।

कश्मीर पर कबाइली हमला - 
1947 में कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। वास्तव में यह कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना के जवान थे। जैसा कि अमेरिकी सेना द्वारा जारी गुप्त सूचना में बताया गया है कि अधिकांश हमलावर पाकिस्तानी सेना के जवान थे। कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी जिस पर भारत सरकार ने कुछ शर्तों के साथ कबाइलियों को खदेड़ने हेतु सेना भेजी। भारत पाकिस्तान के बीच विवाद का मुख्य कारण कश्मीर है। इसके बाद यह झड़पें चलती रही।

अमेरिका द्वारा जारी एक खुफिया टेलीग्राम
अमेरिका के द्वारा बाद मे सार्वजनिक किया गया पत्र जिसमे जम्मू और कश्मीर मे सैकड़ो पाकिस्तानी घुसपठियो के मौजूद होने की खुफिया सूचना दी गईं थी।

1965 का भारत-पाक युद्ध - 
1947 के प्रथम कश्मीर संघर्ष के बाद 5 अप्रैल1965 से 23 सितम्बर 1965 के मध्य भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्ध हुआ जो पांच माह तक चला। संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से ताशकंद समझौते के बाद समाप्त हुआ। पाकिस्तानी सेना ने जिब्राल्टर युद्ध अभियान के नाम से घुसपैठ शुरू की। यह युद्ध जल,थल और वायु सेना ने लड़ा परंतु महत्वपूर्ण भूमिका थल सेना की रही। जन. जे.एन. चौधरी थलसेनाध्यक्ष, लेफ्टि. जन. जोगिंदर ढिल्लों,  लेफ्टि. जन. हरबख्श सिंह, लेफ्टि. जन. कश्मीर सिंह कटोच, लेफ्टि. जन. पी ओ डन, ए.एम. अर्जुन सिंह
(एयर चीफ़ मार्शल) ए.डी.एम भास्कर सोमन (नौ सेना अध्यक्ष) भारत की ओर से कमांडर थे।

                   मेजर जनरल अर्जुन सिंह 
         जनरल M. मूसा खान पाकिस्तान
पाकिस्तान की ओर से मूसा खान, टिक्का खान, नूर खान और नासिर अहमद खान सेना अधिकारियों के नेतृत्व में युद्ध लड़ा गया।

सैन्य शक्ति एवं हानि - 
इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा अचानक हमला किया गया।
भारत  - सात लाख सैनिक, सात सौ से अधिक विमान, आठ सौ के करीब टैंक के साथ युद्ध लड़ा गया। भारत के लगभग तीन हजार सैनिक शहीद हुए। 200 टैंक, पिचहतर वायुयान नष्ट हुए। पाकिस्तान ने भारत के लगभग पांच सौ चालीस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारत ने पाकिस्तान के लगभग एक हजार आठ सौ चालीस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा किया।
भारत के क्ब्जे में सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्र जबकि पाकिस्तान के कब्जे में सिंध और छंब का क्षेत्र था।
पाकिस्तान - लगभग तीन लाख सैनिक, तीन सौ के करीब विमान और आठ सौ के करीब टैंक (अमेरिका से प्राप्त पैटन टैंक शामिल)। पाकिस्तान के लगभग चार हजार सैनिक, सवा सौ के करीब वायुयान, दो सौ से अधिक टैंक नष्ट हो गए।

घटनाक्रम -
भारतीय सेना का पाकिस्तानी चौकी पर कब्जा
         हाजी पीर चोटी पर भारतीय कब्जा 
स्थानीय कश्मीरी वेश भूषा में पाक सैनिकों को गिरफ्तार करती भारतीय सेना 
       लाहौर पुलिस स्टेशन पर भारतीय कब्जा 

20 मार्च 1965 को पाकिस्तानी सीमा सुरक्षा बल ने कच्छ के रण (बाड़मेर - जैसलमेर से लगा बंजर इलाका) के 3500 किलोमिटर क्षेत्र पर अपना हक जताते हुए बंटवारे हेतु झडपें शुरू कर दी जो धीरे - धीरे तेज होने लगी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री हेराल्ड विल्सन की मध्यस्थता से 01 जून 1965 को यह विवाद शांत हुआ। विवाद समाप्त करने हेतु मध्यस्थ न्यायालय की स्थापना की गई। इस न्यायालय ने में निर्णय किया कि कच्छ का 900 वर्ग किलोमीटर भू भाग पाकिस्तान को दे दिया जावे।
1967 में पाक विदेश मंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो (बाद में प्रधानमंत्री बने और इंदिरा गांधी के साथ शिमला समझौता किया) ने सेना को कश्मीर पर हमले का आदेश दिया। 1962 में भारत - चीन से युद्ध में हार चुका था और अभी भी चीन से संघर्ष चल रहा था। मौके का फायदा उठाने के लिए भुट्टो, जनरल याह्या खान और टिक्का खान ने कश्मीर की जनता को पाकिस्तान के समर्थन में लेने (आजाद कश्मीर में शामिल होने की मंशा) हेतु पाकिस्तानी सैनिको को घुसपैठियों के भेष में गुप्त सैनिक अभियान ऑपरेशन जिब्राल्टर के रूप में भेजना शुरू किया। ऑपरेशन जिब्राल्टर का का उद्देश्य कश्मीर की जनता में भारत के विरुद्ध विद्रोह भड़काना और भारतीय संचार तंत्र एवं परिवहन व्यवस्था को नष्ट करना था। भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को पहचान कर खदेड़ दिया और ऑपरेशन जिब्राल्टर को विफल हो गया। 1965 के अगस्त माह में पाकिस्तानी सैनिकों ने भेष बदल कर कश्मीर पर हमला किया और नियंत्रण रेखा पार कर कश्मीर में प्रवेश कर लिया। भारतीय सेना ने 15 अगस्त को इन्हें नियंत्रण रेखा से धकेल दिया। युद्ध शुरू हुआ और भारतीय सेना ने पाकिस्तान के तीन ठिकानो पर कब्जा कर लिया। उधर पाकिस्तानी सेना ने टिथवाल, उरी और पुंछ की ओर बढ़त बनाई। 18 अगस्त से पाकिस्तानी सेना कमजोर पड़ने लगी। भारतीय सेना की टुकड़ियों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आठ किलोमीटर अंदर हाजी पीर चोटी पर कब्जा कर जिब्राल्टर के घुशपेतियों का रास्ता बंद कर दिया। भारतीय सेना पाकिस्तानी कश्मीर के शहर मुजफ्फराबाद तक ना पहुंच सके इस हेतु उसने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। 01 सितम्बर 1965 सुबह 5 बजे शुरू किया। यह ऑपरेशन भारतीय सेना का शेष भारत से संपर्क तोड़ने और घेरने हेतु पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के अंतर्गत अखनूर पर आक्रमण कर दिया। पाकिस्तान के इस आक्रमण से भारतीय सेना स्तब्ध रह गई। पाकिस्तान अमेरिका से प्राप्त पैटन टैंक का का लाभ उठा रहा था। भारत को भारी क्षती हुई, इस पर भारतीय सेना ने हवाई शक्ति से जवाबी कार्यवाही कर पाक सेना को रोका। भारतीय सेना ने रामबन होते हुए NH 1A को परिवहन मार्ग के रूप में काम में लिया। ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम के शुरुआती हमले के समय, छम्ब जौरियन सेक्टर की रक्षा भारत की ओर से 191वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड द्वारा की गई जिसमें तीन बटालियन शामिल थीं जिन्हें 20 लांसर्स स्क्वाड्रन द्वारा सहायता पहुंचाई जा रही थी। थल सेना ने AMX-13 लाइट टैंकों द्वारा लोहा लिया।

"हम अखनूर पर कब्जा कर भारत के गले की हड्डी बन जायेंगे और कश्मीर मुद्दे पर भारत को हम से बात करनी होगी।"
जनरल अयुब खान राष्ट्रपति पाकिस्तान (मई,1965)
       चंब जोरियां सेक्टर में पाकिस्तानी सैनिक
                      अखनूर सेक्टर
               भारतीय AMX टैंक 
जवाब में पाकिस्तान ने पंजाब और श्रीनगर के हवाई ठिकानो पर हमला शुरू कर दिया। ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम पाक सेना के पक्ष में था परंतु उसने दो गलतियां कर दीं 
1. पाक सेना का कमांडर अख्तर मलिक (राष्ट्रपति अयुब खान की कुछ बातों से असहमत होने के कारण) के स्थान पर 7वीं इन्फैंट्री डिवीजन के जीओसी मेजर जनरल याह्या खान को को बदलने की प्रक्रिया में सेना अस्तव्यत हो गई और भारतीय सेना को सैन्य पुनर्गठन और अतिरिक्त सहायता हेतु समय मिल गया। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी को पंजाब सीमा में एक नया मोर्चा खोल लाहौर पर हमला करने का आदेश दिया।
2. पाक सेना के शीर्ष अधिकारियों ने राष्ट्रपति के आदेश के अन्य पहलुओं को नज़र अंदाज़ कर दिया। भारत की जवाबी कार्रवाई का सामना करने हेतु वे कोई तैयारी कर के नहीं आए थे। न ही लंबे युद्ध के लिए रसद और असले की आपूर्ति का भंडार बनाया गया था। सेना प्रमुख जनरल मूसा खान ने युद्ध के दूसरे दिन जनरल अयूब को बताया कि सेना पाक सेना का गोला-बारूद खत्म हो रहा था।
6 सितम्बर 1965 को लाहौर पर हमले में भारतीय सेना की इनफैंट्री डिविजन ने बखतरबंद ब्रिगेड के तीन टैंक दस्ते शामिल किए। भारतीय सेना सीमा पार कर इच्छोगिल नहर पर काबिज हो गई। पाक सेना ने भारतीय सेना को रोकने हेतु वहां बने पुलों को उड़ा दिया जिस से भारतीय सेना को आगे बढ़ने में समस्या हुई। भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट 3 जाट इन्फेंट्री ने नहर पार कर के डोगराई और बातापोर पर कब्जा कर लिया। पाक सेना की बख्तरबंद टुकड़ी और वायुसेना ने रास्ता रोकने हेतु हमला बोल दिया। थोड़े नुकसान के बावजूद 3 जाट रेजीमेंट आगे बढ़ती रही और पाक थल सेना की रसद और हथियार आपूर्ति को बाधित कर दिया। भारतीय सैन्य अधिकारियों को वस्तुस्थिति का भान नहीं होने के कारण 3 जाट रेजीमेंट को वापस लाइन की कमांड दी। हाथ में आए डोगराई क्षेत्र पर पुनः कब्जे हेतु बाद में भारतीय सेना को भारी कीमत चुकानी पड़ी।
8 दिसम्बर 1965 को 5 मराठा लाईट इनफ़ैन्ट्री के एक दस्ते को पाक थल सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिये मुनाबाव  राजस्थान में तैनात सैन्य बल की सहायतार्थ भेजा गया। पाकिस्तानी तोपखाने, हवाई और थल सेना के एक साथ आक्रमण के कारण यह दस्ता केवल भारतीय सैन्य चौकी बचा सका जिसे मराठा हिल के नाम से जाना जाता है। सेना की 3 गोरखा रेजीमेंट की टुकड़ी, 954 तोपखाना दस्ता,रसद ट्रेन (बाड़मेर से गडरा रोड पर हवाई हमले से क्षतिग्रस्त), पाक वायु सेना के हमलों के कारण समय पर नहीं पहुंच पाई और  10 सितम्बर 1965 को मुनाबाव पर पाकिस्तान का अधिकार हो गया।
9 सितंबर 1965 को भारतीय सेना के 09 बख्तरबंद दस्ते ने सियालकोट पर हमला किया जिसे छविंडा में पाक सेना के 06 बख्तरबंद दस्ते ने हरा दिया। इस से भारत को 100 से अधिक टैंक गंवाने पड़े। पाक सेना की बख़्तरबंद डिवीजन और 11वीं इन्फैन्ट्री डिवीजन ने मिलकर अमृतसर पर कब्जे हेतु खेमकरण पर हमला कर दिया। पाक सुप्रीम सैन्य कमांडर और राष्ट्रपति जनरल अयुब खान ने कहा कि हम अमृतसर से लुधियाना होते हुए दिल्ली पर कब्जा करेंगे। पाकिस्तानी सेना खेमकरण पर कब्जे के बाद आगे बढ़ती पाक सेना के सामने असल उत्तर गाँव (बाद में पैटन नगर के नाम से जाना जाने लगा) के निकट भारत की फोर्थ माउंटेन डिवीजन, सेवंथ माउंटेन ब्रिगेड, सिक्सटी सेकंड माउंटेन ब्रिगेड और शेरमेन टैंक सहित  डेक्कन हॉर्स  युद्ध हेतु खड़े थे। यहाँ दोनो सेनाओं के मध्य भयंकर टैंक युद्ध लड़ा गया (जिसे द्वितीय विश्व युध्द के बाद की सबसे बड़ी टैंक की लड़ाई  कहा जाता है)। इस में पाक सेना के 97 (72 पैटन)  टैंक नष्ट दिये गए,  32 टैंक सही हालत में कब्जे में ले लिए गए और युद्ध में हारते भारत ने पासा पलट कर अपनी ओर कर लिया। पाक सेना ने फर्स्ट बख्तरबंद डिवीजन को सियालकोट लौटा दिया।
भारतीय वायु सेना का शोर्य - 
वर्ष 1950 (प्रथम कश्मीर युद्ध) के बाद दोनो वायु सेनाएं आमने सामने थीं। भारतीय वायु सेना के पास हॉकर हंटर, फोलेंड नेट (made in India), हैविलैंड वैंपायर, E.E.कैनबरा (बमवर्षक) और मिग-21 जैसे अधिकांश रूसी व यूरोपीय उम्दा विमानों का बेड़ा था। पाकिस्तान के पास F-86F सैबर और F-104 स्टारफाइटर, और B-57 कैनबरा (बमवर्षक) अधिकांश अमेरिकी विमान थे। युद्ध के समय भारत के पास पाकिस्तान से पांच गुना अधिक वायुयान थे। चीनी आक्रमण के भय से अधिकांश विमान पूर्व की सीमा पर तैनात थे।

भारतीय वायुसेना के वैंपायर फाइटर F-86 सैबर के मुकाबले पुराने और कमज़ोर थे पर हंटर विमान शक्ति एवं गति दोनों में ही उनसे बेहतर थे।
सज्जाद हैदर स्क्वाड्रन लीडर एफ 86 पाक

F-86 छोटे से फॉलैंड नैट( सेबर नाशक) के सामने तुच्छ था। पाकिस्तान वायुसेना का F-104 स्टार फाइटर (प्राइड ऑफ पाकिस्कतान) 40000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ने वाले सोवियत बमवर्षकों को रोकने व मुकाबला करने वाला विमान कम ऊँचाई पर तेज गति विमानों से लड़ने में अक्षम था। धीमी गति वाले परंतु फुर्तीले फोलेन्ड नेट ने उसे धूल चटा दी। सैबर (सुपर सोनिक) विमान नैट्स से अधिक प्रभावी रहा।

ताशकंद समझौता - 
       लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री भारत सरकार 
            सोवियत राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव
          जनरल अयुब खान राष्ट्रपति पाकिस्तान
ताशकन्द समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 10 जनवरी 1966 को हुआ, जो भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच सोवियत राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव (1964-1982) की मध्यस्थता में संयुक्त सोवियत संघ (1991 से उज़्बेकिस्तान) के ताशकंद शहर में हुआ। इसके अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान शक्तियों का उपयोग झगड़ों के स्थान पर शान्तिपूर्ण ढंग से करेंगे। समझौते के अनुसार -
1. दोनों देश 25 फ़रवरी 1966 तक सेनाएँ 5 अगस्त 1965 की सीमा रेखा मानते हुए पीछे हटा लेंगे।
2. आपसी हित के मामलों में शिखर वार्ताएँ तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएँ जारी रखेंगे।
3. दोनो देश परस्पर आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
4. परस्पर राजनयिक सम्बन्ध पुनः स्थापित किए जायेंगे।
5. परस्पर संचार पुनः शुरू किया जायेगा।
6. आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध बहाल कर सांस्कृतिक आदान-प्रदान पुनः प्रारंभ करने हेतु विचार किया जाएगा।
7. नागरिकों के पलायन को रोकने की व्यवस्था की जायेगी।
8. शरणार्थी तथा अवैध प्रवासियों की समस्या के समाधान हेतु विचार-विमर्श जारी रखा जाएगा।
9. युद्ध में ज़ब्त की गई एक दूसरे की सम्पत्ति को लौटाने हेतु वार्ता की जायेगी ।
समझौते के बाद दोनों देशों की सेनाएँ युद्ध पूर्व की सीमा रेखा पर वापस लौट गईं। भारत को पाकिस्तान का जीता हुआ बड़ा भाग वापस देना पड़ा। ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर के कुछ घंटों बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई। लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के कारणों के संबंध में कई अफवाहें उड़ीं।
भारत को जीत के बावजूद पाकिस्तान से जीते हुए क्षेत्र वापस करने का सदमा लाल बहादुर शास्त्री सहन नहीं कर सके और इस गुदड़ी के लाल ने प्राण गंवा दिए।

युद्ध का प्रभाव - 
युद्ध कभी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। आखिरकार हर शक्ति - महाशक्ति को संधि/समझोता करना ही होता है। प्रत्येक युद्ध का अंत वेदना और नुकसान से हुआ है। पुराने समय में युद्ध तीर,तलवार और भालों से लड़ा जाता था जिस में मानवीय क्षति आज की तुलना में कम होती थी। कलिंग युद्ध का दृश्य देख कर अशोक महान का कठोर हृदय पिघल गया। इस युद्ध में भी एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान ने अपनी 25% और भारत ने 10% सैन्य शक्ति गंवा दी। बहुत सारे सैनिकों के शव गिद्दों ने नोच - नोच कर खाए। यदि यह संघर्ष 15 दिन और चल जाता तो पाकिस्तान एक तिहाई और भारत अपनी शक्ति का आठवां भाग खो देते। 
हालांकि वास्तविक आंकड़े दोनों ही देशों ने जारी नहीं किए परस्पर विरोधी आंकड़े दिए गए परंतु जान - माल का नुकसान दोनो ओर से दिए गए आंकड़ों से अधिक हुआ। 

शमशेर भालू खान 
9587243963

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