24 मार्च, 1986 भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कम्पनी A.B .बोफोर्स के बीच 1437 करोड़ रुपये का थल सेना हेतु 155 MM की 400 होवित्जर तोप सप्लाई हेतु सौदा हुआ। 1984 में भारतीय सेना ने हविट्जर तोप की खरीदी के लिए टेंडर निकाला। सेना प्रमुख कृष्णास्वामी सुंदरजी ने जांच के बाद फ्रांस के 29.2 किलोमीटर रेंज वाली सोफमा तोप को उत्तम पाया परंतु सरकार ने बोफोर्स कंपनी को बोली लगाने की छूट दी जिसके पास 21.5 किलोमीटर की रेंज की होवित्जर तोप थीं। इस तरह से सेना को आयुध आपूर्ति हेतु बोफोर्स को चुना गया।
1987 में स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि क्वात्रोची के माध्यम से भारतीय नेताओं को बोफोर्स कंपनी ने तोप सौदे हेतु 1.42 करोड़ डॉलर घुस दी। अंग्रेजी अखबार द हिंदू की पत्रकार चित्रा सुब्रह्मण्यम ने बोफोर्स कंपनी के प्रबंध निदेशक की निजी डायरी उठा ली जिसमें लिखा था Q जो R का निकटतम है का सौदे में शामिल होना समस्या पैदा कर सकता है। CBI निदेशक जोगिंदर सिंह ने स्विस बैंक से आवश्यक दस्तावेज प्राप्त कर लिए।
होवित्जर तोप -
चेक भाषा के हॉफनिस शब्द से बने हॉवित्जर शब्द का अर्थ होता है भीड़।
होवित्ज तोप, फील्ड गन और मोर्टार के बीच की तोप है। होवित्जर से मोर्टार से कम और तोप से अधिक ऊंचाई पर निशाना लगाया जा सकता है। लंबी मारक क्षमता (एक से दस किलोमीटर) वाली होवित्जर का उपयोग बैटरी फॉर्मेशन में अन्य तोपों, जैसे लंबी बैरल वाली बंदूकें, मोर्टार और रॉकेट आर्टिलरी के साथ बहुत शानदार ढंग से किया जा सकता है। कोरिया युद्ध में कोरियन 90वीं फील्ड आर्टिलरी बटालियन और अमेरिका की 24वीं इन्फैंट्री डिवीजन द्वारा 155 MM हॉवित्जर का उपयोग किया गया। मोर्टार में फायरिंग कोण तय होते है परंतु हॉवित्जर को विभिन्न कोणों पर फायर किया जा सकता है जिस से युद्ध में मारक क्षमता बढ़ जाती है।
16वीं शताब्दी में विकसित और 19 शताब्दी में परिष्कृत मध्यम - प्रक्षेपण हथियार दुश्मन की घेरेबंदी/किलेबंदी में विस्फोट करने और आग लगाने वाले गोले का उपयुक्त हथियार बना। 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक हॉवित्जर को विभिन्न सेगमेंट उपयोग और आकार के आधार पर वर्गीकृत किया गया -
1. फील्ड हॉवित्जर,
2. घेराबंदी हॉवित्जर और
3. सुपर-हैवी घेराबंदी हॉवित्जर
प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान , हॉवित्जर ने युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से खाई युद्ध और सोवियत डीप बैटल डॉक्ट्रिन जैसी तोपखाने के समक्ष। आधुनिक हॉवित्जर स्व-चालित होते हैं जो वाहनों/दो पहिया ट्रेक पर लगाए जाते हैं।
घोटाले की जांच -
सौदे के 9 वर्ष बाद जुलाई 1993 में CBI द्वारा स्विस सरकार से प्राप्त दस्तावेजों और स्विस बैंक के खातों की जांच से Q से क्वात्रोची का होना पाया गया।
CBI ने केस संख्या RC.1(A)/90-ACU.IV/SIG दर्ज किया। आरोपी क्वात्रोची के विरुद्ध इंटरपोल से रेडकॉर्नर नोटिस संख्या- A-44/2/1997 जारी करवाया। CBI ने कुछ दस्तावेज कोर्ट में प्रस्तुत किए पर कोर्ट ने इन दस्तावेजों की प्रमाणिकता पर संदेह जताते हुए मानने से मना कर दिया। CBI ने कोर्ट से क्वात्रोची का पासपोर्ट जब्त कर पूछताछ की अनुमति मांगी। अनुमति से पहले ही वह 29 जुलाई रात को दिल्ली से कुआलालांपुर भाग गया। मार्च 1999 में एक साक्षात्कार में क्वात्रोची ने दावा किया कि उसे बोफोर्स से कोई पैसा नहीं मिला और ये भी कि A.E. सर्विसेज, जिसने उसके नाम स्वीस बैंक में पैसा जमा करवाया था, से उसका कोई भी संबंध है।
22 नवम्बर 1999 को भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के शासनकाल में स्वीस बैंक द्वारा जारी पांच दस्तावेजों के आधार पर CBI ने A.E. सर्विसेज के संचालक क्वात्रोची, उनकी पत्नी मारिया, भारतीय व्यापारी V.N.चड्ढा और उनकी पत्नी कांता चड्डा के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया।
वर्ष 2003 में क्वात्रोची मलेशिया से इटली लौट गया। इटली सरकार ने भारत सरकार को पर्याप्त सबूत पेश किए जाने के बाद इटली की कोर्ट में मुकदमा चलाने की बात कह कर क्वात्रोची के प्रत्यर्पण हेतु मना कर दिया।
जून 2003 में स्वीस बैंक BSIG की लंदन शाखा ने क्वात्रोची और उसकी पत्नी मारिया के खाते में चालीस लाख पौंड जमा होने का खुलासा किया।
मार्च 2004 में कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी और भटनागर को मामले से बरी कर दिया। मलयेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने भी क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की भारत की मांग को खारिज कर दिया।
मई 2005 दिल्ली हाई कोर्ट ने हिंदुजा बंधु और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। 90 दिन की मोहलत पर CBI ने कोई अपील दाखिल नहीं की।
अक्टूबर 2005 में एडवोकेट अजय अग्रवाल ने हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। अजय अग्रवाल ने लंदन में क्वात्रोकी के खाते से संबंधित दस्तावेज मांगे जो CBI उपलब्ध नहीं करवा सकी।
22 दिसम्बर 2005 को कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने क्वात्रोची के लंदन स्थित खातों पर लगी रोक को हटाने की अपील की।कानून मंत्रालय ने CBI से इस हेतु कोई राय नहीं ली।
जनवरी 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और CBI को निर्देश दिया कि क्वात्रोची के लंदन स्थित खातों से निकासी पर रोक लगाई जावे और राशि जब्त कर ली जावे।
16 मई 2006 खातों में जमा चालीस लाख पौंड की परंतु क्वात्रोची ने उस से पहले ही सारी रकम निकाल ली।
21 जुलाई 2006 को क्वात्रोची का बेटा लुफ्थांसा फ्लाइट 760 से भारत आया और 22 फ़रवरी 2007 को लुफ्थांसा फ्लाइट-761 से वापस गया। वह बंगलोर में रुका।
फरवरी 2007 में रेड कार्नर नोटिस के आधार पर क्वात्रोक्की को अर्जेन्टिना पुलिस ने गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया। CBI ने इसका खुलासा लेट किया।
7 मार्च 2007 को CBI ने अर्जेंटीना से प्रत्यर्पण के लिए वहां की कोर्ट में काफी देर से अर्जी दाखिल की।
2007 में इस मामले में CBI के निदेशक विजय शंकर पर कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया गया।
मार्च 2007 में भारत सरकार को क्वात्रोची के कानून खर्च का भुगतान करना पड़ा।
जून 2007 में अर्जेंटीना कोर्ट ने साक्ष्यों के अभाव में क्वात्रोची के प्रत्यर्पण की मांग को खारिज कर दिया।
28 अप्रैल 2009 CBI ने प्रत्यर्पण के सभी प्रयास विफल हो जाने के बाद मामले को बंद करने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी।
नवम्बर 2009 में क्वात्रोकी के विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस को वापस ले लिया।
दिसम्बर 2010 में कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी करने की CBI की याचिका पर फैसले को पलट दिया।
दिसम्बर 2010 में इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने क्वात्रोकी और चड्ढा के बेटे से उन पर बकाया टैक्स वसूलने का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को निर्देश दिया।
फरवरी 2011 में मुख्य सूचना आयुक्त ने CBI पर सूचनाओं को वापस लेने का आरोप लगाया। एक महीने बाद
मार्च 2011 में CBI स्पेशल कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी कर दिया और टिप्पणी की कि टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई को देश उसके प्रत्यर्पण पर खर्च नहीं कर सकता हैं क्योंकि पहले ही करीब 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।
अप्रैल 2012 में स्वीडन पुलिस ने कहा कि राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन पर रिश्वतखोरी के आरोप सिद्ध नहीं होते हैं इसके बाद अमिताभ बच्चन को उनके विरुद्ध दर्ज मामले में निर्दोष करार दिया गया।
13 जुलाई 2013 सन् 1993 में भारत से फरार हुए क्वात्रोकी की मृत्यु हो गई। अन्य आरोपी भटनागर, चड्ढा और आर्डबो की भी मौत हो चुकी थी।
1 दिसम्बर, 2016 को 12 अगस्त, 2010 के बाद करीब छह साल के अन्तराल के बाद अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई हुई।
14 जुलाई, 2017 को CBI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार अगर आदेश दें तो वह फिर से बोफोर्स मामले की जांच शुरू कर सकती है।
2 फरवरी, 2018 को CBI ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दिल्ली हाई कोर्ट के 2005 के निर्णय को चुनौती दी।
1 नवंबर, 2018 को CBI की बोफोर्स घोटाले की पुनः जांच की अपील सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि CBI ने 13 साल बाद अपील क्यों की। राजीव गांधी का नाम अभियुक्तों की सूची से हटा दिया गया।
जांच एजेंसी CBI पर आलोचना की बौछार -
बोफोर्स घोटाले में CBI की भूमिका सरकार बदलने पर दिशा बदल लेने के आरोप लगते रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी खूब आलोचना की गई है। आम जन ने CBI को केंद्र सरकार का तोता कहना शुरू कर दिया। मुख्य बिंदु -
1. CBI ने FIR दायर करने में देरी क्यों की ?
2. उसने वाद दायर करने का अनुरोध पत्र भेजने में देरी क्यों की ?
3. दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील क्यों नहीं की गई ?
4. क्वात्रोची के लन्दन के बैंक खाते को पुनः चालू क्यों किया गया ?
5. अर्जेंटीना से क्वात्रोची के प्रत्यर्पण हेतु कमजोर केस क्यों बनाया गया ? और ऊपरी अदालत में मामला नहीं ले जाने का निर्णय क्यों लिया गया ?
6. इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस को वापस क्यों लिया गया ?
7. वांछित होने पर भी क्वात्रोची को मलेशिया क्यों भागने दिया गया ?
8. क्वात्रोची के विरुद्ध दायर मामला वापस क्यों लिया गया ?
ओतावियो क्वात्रोची -
ओतावियो क्वात्रोची का जन्म सिसली के कातानिया राज्य के मासकली शहर में हुआ। क्वात्रोची 1973 में इटली की तेल और गैस कंपनी इनी का प्रतिनिधि बनकर भारत आया। 1974 में मोलीनरी नाम के व्यक्ति ने क्वात्रोची का परिचय राजीव गांधी और सोनिया गांधी से करावाया। बाद में दोनों के बच्चे भी मिलने-जुलने लगे। उस समय राजीव गांधी इंडियन एयर लाइन्स में पायलट थे। दोनों के बीच खान-पान और उपहारों का लेन-देन भी होता रहा। इस दोस्ती के कारण प्रधानमंत्री कार्यालय में भी क्वात्रोची का प्रभाव बढ़ता गया। यह प्रभाव क्वात्रोची का प्रभाव बोफोर्स घाटाले के रूप में सामने आया।
बोफोर्स घोटाले के प्रभाव -
इस घोटाले के कारण 1989 में राजीव गांधी की सरकार चली गई। विश्वनाथ प्रताप सिंह हीरो बन कर उभरे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनकी सरकार बोफोर्स घोटाले का सच सामने लाने में विफल रही थी। कुल मिलाकर इस मामले में कांग्रेस पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी।
दिल्ली हाई कोर्ट का एक निर्णय -
section 409
issue of jurisdiction.
foreign court filter stay of suit under section 151 cpc
Supreme Court of India
Union Of India And Another vs W.N. Chadha on 17 December, 1992
Equivalent citations: AIR1993SC1082, 1993CRILJ859, 1992(3)SCALE396, 1993SUPP(4)SCC260, [1992]SUPP3SCR594, AIR 1993 SUPREME COURT 1082, 1993 AIR SCW 423, (1992) 3 SCR 594 (SC), 1992 JT (SUPP) 255, 1993 (4) SCC(SUPP) 260, 1992 (3) SCR 594, 1993 SCC(CRI) 1171, (1993) 1 ALLCRILR 357, (1993) 1 CURCRIR 1, (1993) 1 CRIMES 308
Author: S. Ratnavel Pandian
Bench: S.R. Pandian
शमशेर भालू खान
9587243963
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