Thursday, 22 August 2024

भारत पाक युद्ध 1971 एवं बांग्लादेश राष्ट्र

पाकिस्तान 1947 और 1965 के युद्ध में भारत से बुरी तरह हार गया। इस हार के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने भारत में छद्म युद्ध शुरू कर दिया और पंजाब,असम और कश्मीर में अलगाववाद पनपने लगा। इस युद्ध में पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान पृथक राष्ट्र बांग्लादेश बना। 16 दिसंबर 1965 के दिन पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया जिसे विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करते पाक सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल A. A. खान नियाजी।
युद्धरत भारतीय सेना टैंक के साथ
उत्साहित भारतीय सेना बांग्लादेश की आजादी के बाद

अंतर्राष्ट्रीय समर्थन एवं विरोध - 
सोवियत संघ ने भारत का एवं अमेरिका व चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। सोवियत संघ ने भारत को आश्वस्त किया कि यदि चीन और अमेरिका इस युद्ध में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लेते हैं तो रूस भी भारत - रूस मैत्री समझौता 1971 के अनुसार खुल कर भारत का साथ देगा। रूस पाकिस्तान के साथ भी सहानुभूति दर्शाता रहा। नवंबर 1971 में रूसी सेना ने पाक सेना को युद्ध की स्थिति में बड़े नुकसान की गुप्त सूचना भेजी थी। जॉर्डन, ईरान, चीन, अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को सैन्य व अन्य सहायता प्रदान की गई।
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत जॉर्ज बुश सीनियर ने संयुक्र्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत-पाक युद्ध के बन्दीयों को मुक्त करवाने और कब्जाए क्षेत्र से सेनाएं हटाने हेतु प्रस्ताव रखा।

युद्ध आरंभ - 
ऑपरेशन चंगेज खान के तहत पाकिस्तान ने 03 दिसंबर 1971 को  भारत के 11 एयर फोर्स अड्डों पर एक साथ हवाई हमले शुरू कर दिए। साथ ही पाकिस्तानी थल सेना ने पूर्वी तथा पश्चिमी फ्रंट पर हमला शुरू किया जिसके जवाब में भारतीय सेना को युद्ध में कूदना पड़ा। 

पृष्ठभूमि - 
पूर्वी पाकिस्तान में रजाकार (पाक समर्थक) और मुक्ति वाहीन (पृथक बांग्लादेश समर्थक) में कई वर्षों से संघर्ष चल रहा था जिसमें लगभग तीन लाख नागरिक मारे गए। लाखों बांग्लादेशी भारत में शरणार्थी के रूप में आ गए। इसके मुख्य कारकों में 1950 का भाषा आन्दोलन और 1964 के दंगे रहे। वर्ष 1969 के दंगों के कारण पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के त्याग-पत्र के बाद सेना प्रमुख जनरल याह्या ख़ान ने सत्ता संभाली। याह्या खान ने बंगाल विद्रोह को दबाने हेतु वन युनिट कार्यक्रम (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) संचालित किया गया जिसका पश्चिमी बंगाली लोगों ने विरोध किया। 1969 के आम चुनावों में राष्ट्रपति याह्या खान की घोषणा के अनुसार 1970 में वन यूनिट कार्यक्रम को वापस ले कर 1947 की चार प्रांतीय व्यवस्था को बहाल किया गया। चुनावों में पश्चिमी पाकिस्तान में बहुमत मिलने के बाद आवामी लीग नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने छः सूत्री कार्यक्रम के द्वारा बंगाल में बंगालियों का शासन के सिद्धांत पर कार्य शुरू किया। बंगाल संकट के समाधान हेतु अहसान-याकूब मिशन पूर्वी बंगाल में भेजा गया। मिशन की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी पाकिस्तान में सत्ता शेख मुजीबुर्रहमान को सौंपने की बात का राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी अध्यक्ष ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने विरोध कर दिया। आवामी लीग ने इस विरोध के विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल/प्रदर्शन शुरू कर दिया। राष्ट्रपति याह्या खान ने नेशनल असेम्बली को स्थगित कर दिया। शेख मुजीबुर्रहमान की हड़ताल/असहयोग आंदोलन के कारण पाक में सरकारी कामकाज ठप्प हो गए। पश्चिमी पाकिस्तान में बिहारी जातीय समूहों रजाकार (पूर्वी पाकिस्तान समर्थक) और मुक्ति वाहिनी (पश्चिमी पाकिस्तान से बांग्लादेश समर्थक) में संघर्ष शुरू हो गया जिसमें हजारों लोग मारे गए। मार्च 1971 में चटगांव में सैंकडों रजाकारों (बिहारी हत्याकांड) के बाद पाकिस्तान सरकार ने 25 मार्च को ऑपरेशन सर्चलाइट चला कर सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी। बंगालियों के प्रति नरम रुख के कारण पूर्वी पाक-सेनाध्यक्ष लेफ़्टि. जनरल साहबज़ादा याकूब खां और एड्मिरल सैयद मुहम्मद एहसान को राष्ट्रपति याह्या खान के दबाव में त्यागपत्र देना पड़ा।
प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर जेल में डाला गया। जनरल टिक्का खान के नेतृत्त्व में पाकिस्तानी सेना ने 25 मार्च 1971 की रात्रि को ढाका राजभवन पर अधिकार कर लिया। आवामी लीग को सरकार ने अवैध संगठन घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया। शेख मुजीबुर्रहमान को  गिरफ़्तार कर पूर्वी  पाकिस्तान ले जाया गया। साथ ही बंगाल के ऑपरेशन बरीसल द्वारा वहां के बौद्धिक (लेखक,पत्रकार और शिक्षक) वर्ग को निपटाया जाना शुरू किया गया। 26 मार्च  को पाकिस्तानी सेना के मेजर ज़ियाउर रहमान ने शेख मुजीबुर्रहमान की सत्ता से पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा की। अप्रैल 1971 में विस्थापित आवामी लीग नेताओं ने मेहरपुर के बैद्यनाथ ताला में स्वतंत्र बांग्लादेश सरकार का गठन किया। ईस्ट पाकिस्तान राईफ़ल्स, थल सेना, वायु एवं नौसेना व पाकिस्तान मैरीन्स के बंगाली अधिकारियों ने इसका समर्थन कर बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी का गठन किया। मुक्ति वाहिनी को नियमितो बाहिनी तथा गॉनो बाहिनी दो अंगों के रूप में सेवानिवृत्त कर्नल मुहम्मद अताउल गनी उस्मानी के नेतृत्त्व में गठित की गई। पाक सेना के बंगालियों के नर संहार के कारण इनको भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत सरकार ने शरणार्थियों हेतु पूर्वी भारत की सीमाओं को खोल कर पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, मेघालय एवं त्रिपुरा में शरणार्थी कैम्प लगाये। बंगालियों के नर संहार के दोषी लेफ़्टिनेंट जनरल एवं गवर्नर टिक्का खान को बंगाल का कसाई नाम दिया गया।
युद्ध जांच आयोग की सुनवाईयों में लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी ने अपराध स्वीकार करते हुए लिखा कि  "25 से 26 मार्च 1971 के बीच की रात को जनरल टिक्का खान ने शांतिपूर्ण रात को विलाप, चित्कार और आगज़नी भरी रात में बदल दिया। आम जन पर इस तरह  हमले किए गए जैसे दुश्मन देश पर हमले किए जाते हैं। इस सैन्य कार्रवाई की निर्दयता ने चंगेज़ खान एवं हलाकू खान द्वारा बुखारा और बग़दाद में किये गए भयंकर नरसंहार को पीछे छोड़ दिया। टिक्का खान ने आदेश दिया कि हमें जमीन चाहिये न कि आदमी।"  
पाक मेजर जनरल राव फ़रमान अली की दैनिक डायरी में उद्धृत है कि "पूर्वी पाकिस्तान की हरित भूमि को बंगाली रक्त से लाल कर दिया गया।"
भारत सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप हेतु विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह को विदेशों में भेज कर अपील की, परंतु कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलने पर प्रधान मंत्री इन्दिरा गाँधी ने 27 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संघर्ष का समर्थन करते हुए कहा कि "लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण देने से कहीं बेहतर है पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कर इस संघर्ष को विराम दिया जाए।" 27 अप्रैल 1971 को सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ को पूर्वी पाकिस्तान की ओर कूच करने का आदेश दिया गया। मुक्ति वाहिनी एवं भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ने शरणार्थीयों को गुरिल्ला प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया गया। पाकिस्तान समर्थक रजाकारों एवं पाक अधिकारियों की हत्याएं होने लगी। सितम्बर 1971 के अंत तक दोनों देशों के मध्य द्वंद और बढ़ता गया। रावलपिण्डी, इस्लामाबाद एवं लाहौर से आरम्भ होते हुए शीघ्र ही पूरे पश्चिमी पाकिस्तान में क्रश इंडिया एवं हैंग द ट्रेटर (देशद्रोही को फ़ांसी दो) प्रचार अभियान शुरू हुआ। अक्टूबर 1971 तक शेख मुजीबुर्रहमान को भी निशाना बनाया जाने लगा। भारतीय सेना अधिकारी सैम मानेकशॉ ने दो कारणों से युद्ध नहीं करने का प्रस्ताव रखा कि - 
1. पूर्वी पाकिस्तान में मॉनसून आने का समय 2. भारतीय सेना में टैंकों का पुनरोद्धार कार्य।
युद्ध की स्थिति में उन्होंने त्यागपत्र भी प्रस्तुत किया जिसे इंदिरा गांधी ने जीत का भरोसा दिलवाते हुए मानेकशा की सेना को खुली छूट की शर्तें मानते हुए अस्वीकार कर दिया। 
नवम्बर 1971 में पाकिस्तान में क्रश इंडिया आंदोलन को देखते हुए भारतीय सेना ने सीमाओं पर मोर्चा संभाल लिया। भारतीय सेना ने युद्ध रणनीति बनाई कि दिसम्बर 1971 तक प्रतीक्षा की जानी चाहिए। दिसम्बर में मॉनसूनी वर्षा उपरान्त भूमि शुष्क हो जायेगी और हिमालय के दर्रों में हिमपात से पाक सेना की आवाजाही अवरोधित हो जायेगी जिस से चीनी सेना को भी बीच में घुसने का अवसर नहीं मिलेगा। 23 नवम्बर 1971 को याह्या खान ने पाकिस्तान में आपातकाल कि घोषणा कर लोगों को युद्ध हेतु तैयार रहने का आह्वान किया। इसी दिन रॉ ने पूर्वी मोर्चे में प्रवेश कर पूर्वी पाकिस्तान की सीमाओं में घुस कर बंगाली मुक्ति वाहिनी का साथ देना शुरू कर दिया।
03 दिसम्बर 1971 की शाम 5:40 बजे पाकिस्तान वायुसेना ने भारत के 480 किलोमीटर अंदर ऑपरेशन चंगेज खान के अन्तर्गत आगरा शहर सहित उत्तर-पश्चिमी वायुसेना के 11अड्डों पर हमले शुरू कर दिये। इसी समय प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम सन्देश प्रसारित कर युद्ध की घोषणा कर दी। अगले पल भारतीय वायु सेना ने जवाबी हमले शुरू कर दिए एवं थलसेना को सीमा की ओर कूच करने के आदेश दिये गए।

छाछरो विजय - 
भारतीय सेना की 10वीं पैरा बटालियन ने महावीर चक्र ब्रिगेडियर महाराजा सवाई भवानी सिंह के नेतृत्व में 7 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के छाछरो कस्बे पर विजय प्राप्त की।
इस विजय में बाखासर के डाकू बलवंत सिंह का विशेष योगदान रहा।

       छाछरो क्षेत्र पर कब्जे का चित्र 

युद्ध क्षेत्र का घटनाक्रम - 
युद्ध पूर्व भारतीय सेनाएं दोनों मोर्चों पर सुव्यवस्थित तरीके तैनात थीं जो 350000 की संख्या में पाकिस्तानी सेना के मुकाबले 150000 मुक्ति वाहिनी और 500000 भारतीय सेना के जवान भरी साबित हो रहे थे। तीन युद्धों बार के युद्ध अनुभव से सीख कर भारतीय सेना ने 1961 के चीन के साथ युद्ध के समय गंवाई प्रतिष्ठा, आत्मविश्वास, और गरिमा वापस को पुनः प्राप्त कर लिया।दो मोर्चों पर पाकिस्तानी सेना के स्थलीय हमलों के जवाब में रणनीतिक समन्वयकारी कौशल से पंजाब, सिंध एवं पाक अधिकृत कश्मीर के 15010 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया। पाक सेना की प्रथम एवं द्वितीय पंक्ति के जवान ज्यादा संख्या में मरे । पश्चिमी मोर्चे पर भारत ने पाक सेना को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से घेर लिया। नौसेना, थल और वायु सेना ने संयुक्त रूप से युद्ध लड़ा। पूर्वी कमान अध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने वायु सेना के सहयोग से त्वरित गति से पाकिस्तान की पूर्वी कमान के हवाई अड्डों को नष्ट कर दिया। भारतीय सेना ने ब्लिट्ज़क्रीग तकनीक (दुश्मन की कमजोर कड़ी की पहचान कर ताबड़तोड़ हमले द्वारा स्तब्ध करने की क्रिया) अपनाते हुए 16 दिसम्बर को ढाका पहुंच कर राज भवन को घेर लिया। युद्ध के 13 दिन में ही पाक सेना ने समर्पण कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान में तैनात अपने लेफ़्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी के नेतृत्व में पाकिस्तानी पूर्वी कमान ने बिना किसी विरोध के समर्पण के बाद पाकिस्तान ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
इस युद्ध में भारतीय नौ सेना ने बंगाल की खाड़ी में पाक नो सेना की कमजोर स्थिति का लाभ उठा कर धूल चटा दी। पश्चिमी कमांड के एड्मिरल सुरेन्द्र नाथ कोहली के नेतृत्त्व में 4 से 5 दिसम्बर 1971 के बीच की रात को ऑपरेशन त्रिशूल के अंर्तगत सोवियत मिसाइल से सुसज्जित ओसा नावों के साथ कराची बंदरगाह पर हमला बोला। इस हमले ने 720 सैनिकों की मौत के साथ ही पाक युद्ध पोत PNS खायबर, PNS माइन स्वीपर और PNS मुहाफ़िज़ को नष्ट कर जलमग्न कर दिया। PNS शाहजहां (DD 962)  को क्षतिग्रस्त कर पाक नो सेना के ईंधन एवं आयुध भंडार को नष्ट कर दिया गया। पाकिस्तानी पनडुब्बियों, युद्ध पोत, मॅन्ग्रो, शुशुक एवं PNS हैंगर (S 131) ने भारतीय युद्ध पोतों का पीछा किया। 09 दिसंबर 1971 को भारतीय युद्धपोत INS खुकरी को (F 9 PNS हैंगर (S 131)49) ने जलमग्न कर 195 भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी। INS खुकरी पर हमले के बाद 08 व 09 दिसम्बर की रात को भारतीय नो सेना ने कराची बंदरगाह पर ऑपरेशन पायथन नाम से बड़ा हमला किया। ओसा स्टाइक्स मिसाइल से लदी नावों ने कराची बंदरगाह के ईंधन टैंक, तीन व्यापारिक जहाज एक विदेशी जहाज को ध्वस्त कर दिया। पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय युद्ध पोत के भरोसे में PNS ज़ुल्फ़ीकार (K 265) पर हमला कर दिया।
बंगाल की खाड़ी में युद्ध मोर्चे पर भारतीय पूर्वी नो कमान के वाइस एड्मिरल नीलकांत कृष्णन के नेतृत्त्व में बंगाल की खाड़ी में नौ सैनिक अवरोध बना कर पाक नौसेना एवं अन्य विदेशी व्यापारिक जहाज को रोक दिया। 4 दिसम्बर 1971 से विमान वाहक पोत INS विक्रांत को तैनात किया। विक्रांत पर तैनात C - हॉक लड़ाकू बम वर्षकों ने चटगांव एवं कॉक्स बाज़ार सहित पूर्वी पाक के तटवर्त्ती नगरों व कस्बों पर हमला बोल दिया। पाकिस्तान ने बदले की कार्रवाई में PNS ग़ाज़ी को भेजा जो विशाखापट्टनम के निकट डूब गया। पाक सेना के कई भाग हो जाने के कारण नौसेना ने रियर एड्मिरल लेज़्ली मुंगाविन की योजना अनुसार जलीय युद्ध (रिवराइन वारफ़ेयर) शुरू किया। इस अभियान में पाक नो सेना के अनुभव हीनता एवं विपरीत वातावरणीय स्थिति से अनभिज्ञता के कारण सात मिसायली नाव, एक माइन स्वीपर, एक पनडुब्बी, दो विध्वंशक पोत, तीन गश्ती दल नाव, तीन गश्ती जहाज, अठारह माल वाहक जहाज, रसद/आयुध आपूर्ति एवं संचार पोत नष्ट कर दिए गए। कराची बंदरगाह पर नौ सैनिक अड्डे को लगभग समाप्त कर दिया गया। भारतीय नो सेना ने तीन मर्चेण्ट नेवी जहाज, अनवर बख़्श, पास्नी व मधुमति, दस छोटे जहाज सैनिकों सहित कब्जे में ले लिए। भारत ने इस युद्ध में आधी से अधिक नो सेना को समाप्त कर दिया।
पाक वायु सेना ने पूर्व 30 तथा पश्चिमी मोर्चे पर 2840 उड़ान से हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने पश्चिम में 4000 और पूर्व में 1978 उड़ान भर कर उसके थल, जल और वायु सेना अड्डों को ध्वस्त कर दिया। कराची बंदरगाह पर हमले के बदले पाक वायुसेना ने ओखा बंदरगाह पर हमला बोल दिया एवं भारतीय ईंधन भण्डारों को नष्ट कर दिया। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के 14 वीं स्वाड्रन टेल चॉपर्स स्क्वाड्रन लीडर परवेज़ मेहन्दी कुरैशी, जिन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया, के नेतृत्त्व में थी, उसको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया, बचे हुए पायलट बर्मा भाग गए। पाक फाइटर F- 6 B - 47 व C - 130 और भारत के कॅनबरा व SN- 12 के बीच भिडंत होती रही। इसके बाद ढाका की वायु सेना के नष्ट होते ही ढाका पर भारत का अधिकार हो गया। भारतीय वायुसेना के हमले में एक अमेरिकी वायुसेना व एक संयुक्त राष्ट्र का विमान ढाका में नष्ट हो गया। इस्लामाबाद में कनाडा के रॉयल कनाडा वायुसेना के DHC - 4 कॅरिबोउ के साथ खड़े संयुक्त राज्य अमेरिका के सेना सम्पर्क प्रमुख ब्रिगेडियर - जनरल चुक यीगर के निजी विमान U - 8 को नष्ट कर दिया गया।
पाकिस्तानी वायुसेना को जॉर्डन ने F - 104, मध्य-पूर्व एशिया के एक देश द्वारा मिराज विमान, लीबिया ने F - 5 तथा सउदी अरब से F - 86 विमान उपलब्ध करवाए। भारतीय वायुसेना ने शत्रु के ठिकानों के निकट पैरा - ड्रॉपिंग व भारत के ठिकानों की सुरक्षा टोही विमानों द्वारा की जबकि पाक वायु सेना सिर्फ हमले करने में व्यस्त रही। भारत की रणनीति के कारण पाक विमानों को ईरान एयर बेस पर शरण लेनी पड़ी, कुछ को भूमिगत बंकरों में छुपाया गया। 15 दिसम्बर 1971 को शाम साढ़े चार बजे पाकिस्तान के पूर्वी भाग को बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में घोषित कर दिया गया। 

युद्ध में जन - धन की हानि - 
इस युद्ध में पाक वायु सेना ने 45 विमान खोए जिनमे F-6, 3 मिराज, 6 जॉर्डन F- 104 की गिनती नहीं हैं। जमीनी मोर्चों पर पाक सेना के 8000 सैनिक मरे और  24000 घायल हुए। भारत ने 3843 सैनिक खोए और 12000 घायल हुए। 
समर्पण के बाद भारतीय सेना ने 90000 (55692 पाक सैनिक, 16354 अर्द्ध सैनिक, 5296 पुलिस जवान, 1000 नो सैनिक, 800 वायु सैनिक) से अधिक पाक सैनिक एवं उनके बंगाली सहायक (रजाकारों) को युद्धबंदी बना लिया गया। 

युद्ध में भारत के पक्ष में स्थिति - 
1. पाक सेना पश्चिमी मुक्ति वाहिनी के बंगाली गुरिल्लाओं के विद्रोह को दबाने में व्यस्त थी। 2. भारत के पास अधिक विमानों, टैंकों, सैनिकों और बेहतर हथियारों से लैस एक पेशेवर सेना थी जिसके सामने पाकिस्तानी सेना छोटी और कमजोर पड़ गई।
3. भारत ने समुद्र को छोड़कर बांग्लादेश को सभी तरफ से घेर लिया था (जिसे वे अपनी बड़ी नौसेना के माध्यम से नियंत्रित करते थे)।
मुक्ति वाहिनी के 15000 से अधिक सैनिक
4. पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान की भौगोलिक दूरी भी अत्यधिक दूरी 1,600 किलोमीटर जो 5. पृथक बंगाली संस्कृति एवं पाकिस्तानी संस्कृति राष्ट्रीय एकीकरण में बाधक थी।

शिमला समझौता 1972 - 
2 जुलाई 1972 को भारत - पाक के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी और पाक राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो की मध्यस्थता में दोनों सेनाओं के बीच समझोता हुआ। 
1. पाकिस्तान सरकार ने बांग्लादेश को मान्यता प्रदान की।
2. युद्ध बंदियों का आदान प्रदान किया गया। 
3. दोनों देश नियंत्रण रेखा (तुरतुक, थांग , त्याक्षी (पूर्वी तियाक़ी) और चोरबत घाटी के चुलुंका क्षेत्र पर भारतीय नियन्त्रण) को छोड़ कर सहित) पर लौट गए।

1971 युद्ध में कायमखानी सैनिकों का बलिदान
14 ग्रेनेडियर के 26 कायमखानी सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भारतीय सैन्य इतिहास का ऐसा अध्याय है, जिसने भारत को निर्णायक विजय दिलाई और बांग्लादेश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। खासतौर पर राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में तैनात 14 ग्रेनेडियर रेजिमेंट के जवानों ने वीरता की नई मिसाल कायम की। इस रेजिमेंट में शामिल कायमखानी समाज के 62 जवानों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। 14 और 15 दिसंबर 1971 की रात को, लौंगेवाला के रणक्षेत्र में, जहां भारतीय सेना के पास सीमित संसाधन और हल्के हथियार थे, वहीं पाकिस्तान की ओर से भारी टैंकों और आधुनिक हथियारों से लैस सेना ने हमला किया। इसके बावजूद भारतीय सैनिकों, विशेष रूप से कायमखानी जवानों, ने दुश्मन की हर कोशिश को नाकाम करते हुए आखिरी सांस तक युद्ध लड़ा। उनके इस बलिदान ने न केवल दुश्मन की योजना को विफल किया, बल्कि भारतीय वायुसेना को जवाबी कार्रवाई के लिए समय दिया।
कायमखानी समाज, जो अपनी सैन्य परंपरा और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध है, इस युद्ध में भी अपनी पहचान को और मजबूत कर गया। उनकी बहादुरी और बलिदान ने यह साबित किया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। लौंगेवाला के इस युद्ध में उनके शौर्य ने यह सुनिश्चित किया कि दुश्मन भारतीय सीमाओं को पार न कर सके। यह बलिदान केवल उनके परिवारों और समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। आज भी 14-15 दिसंबर को उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, और उनका बलिदान प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। 1971 का यह युद्ध न केवल भारत की विजय का प्रतीक है, बल्कि कायमखानी समाज के उन वीर जवानों की अमर गाथा भी है, जिन्होंने भारत की सुरक्षा और सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। समाज तरफ से सभी शहीदों को खिराजे-अक़ीदत।
       शहीदों के नाम का शीला पट्ट

आखिरकार भारत और पाकिस्तान के मध्य यह युद्ध समाप्त हुआ।

शमशेर भालू खान 
9587243963

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