Thursday, 31 July 2025

लघुकथा -सती

लघुकथा - सती

शाम का समय, मलिकपुर गांव में मातम पसरा था। गांव वाले दीनू के घर की ओर चुपचाप चले जा रहे थे।
घर के हर कोने में खुसर - फुसर करते पांच - सात लोगों का झुंड आगे क्या करना है के बारे में योजना बना रहे थे।
35 साल का दीनू सिंह फटकार के कारण पुले उतार दिया गया। दीनू सिंह की पत्नी रमा और उसके दो बेटे बेसुध थे। अच्छे खासे घर की पोल के भींटके लग गए। बड़ा बेटा कल्याण सिंह दस और छोटा नारायण सिंह सात साल के थे। 
खेत में पालीदारों को संभालने गए दीनू सिंह को अचानक ओपरी छाया ने तोड़ डाला। बड़े बुजुर्ग जवान विधवा बहु को देख - देख कराह रहे थे।
गांव के ठाकुर मालम सिंह ने परिवार के सब से बुजुर्ग राधे सिंह के कान में कुछ कहा और राधे सिंह ने गर्दन हिलाते हुए स्वीकृति दे दी।
मालम सिंह ने पांच - सात युवाओं पोल के बाहर बुलाकर और बड़े गांव के सेठ की दुकान से सामान लाने के कहा।
ठाकुर मालम सिंह गांव का सब से होशियार और समझदार आदमी है। अंग्रेज बहादुर के लिए माल उगाने का काम वही करता है। जमींदारों और जागीरदारों के झगड़े सुलझाना उस का मुख्य काम है। अंग्रेज बहादुर गांव में आएं तो उनके लिए डोले एवं शिकार की व्यवस्था उसी का जिम्मा है।
सामान से लदी बैल गाड़ी आ चुकी है। 
रमा के पिता ने बेटी को लाल टिका लगाया, पंडित जी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए।
रमा कुछ समझ नहीं पा रही थी, घर की बड़ी - बूढ़ी औरतों ने रमा का सिंगार शुरू किया।
साथ ही हर सुहागन उसे प्याला पिला रही थी। भांग और धतूरा से भरे चार - पांच प्याले पीते ही रमा कभी हंसने और कभी रोने लगती।
लोगों ने ढोल, ताशे, मजीरे बजा कर सती सहवरण की सहमति पर खुशीयां मनाना शुरू कर दिया।
आस - पास के गांवों में रमा के सती होने की खबर आग की तरह फैल गई। हर गांव से राल, घी, नारियल और ओढ़ावणी आने लगी।
सती रमा की जय हो!
सती माता की जय हो!
सती माता अमर रहे!
के जयकारे गूंजने लगे। अभी सुहागनों द्वारा रमा की पूजा और प्याले पिलाने की रश्म अनवरत थी।
रमा पल - पल रूप बदल रही थी, उसकी आँखें बड़ी और लाल हो गईं।
दीनू सिंह की बैकुंठी सज रही थी। सभी ने सती रमा के जयकारे लगाते हुए दीनू सिंह को रमा की गोद में सुला दिया। शानदार बैकुंठी में रमा को बैठा कर बांस की बल्लियों और रस्सियों से बांध दिया गया। पूरे रस्ते में ढोल, नगाड़े, मजीरे, ढप, तुरी, अलगोजे और शंख की ध्वनि इतनी तेज थी कि दूसरी कोई बात सुनाई ना दे।
अब श्मशान घाट आ चुका था। बैकुंठी को तैयार चंदन की चिता पर रख दिया गया। हर गांव के जमीदार अपनी और से रोली, मोली, नारियल, घी और ओढ़ावणी अर्पित कर रहे थे। सब तैयार होने पर कल्याण सिंह ने मुखाग्नि दी। आग के कर पकड़ने पर रमा की चीख निकलने लगी परन्तु ढोल नगाड़ों और शंख की तेज ध्वनि के सामने उसकी चीखें दब गईं। आधे घंटे में सती माता का पर्चा आ गया।   ड्योढी के पास माता का देवरा बनाया गया। देशी घी के लड्डू, हलवा पूरे बारह दिन चला। 
बारहवें के बाद नगर सेठ राधे सिंह के घर चलावे के सामान के पैसे लेने आया। दीनू के बच्चे तो अभी छोटे थे, राधा सिंह ने जमींदारी की आधी से ज्यादा जमीन सेठ के हवाले कर दी। 
कल्याण सिंह अब बड़ा हो गया था। दादा राधा सिंह के गुजर जाने पर घर की जिम्मेदारी उस पर आ गई। देवरे और घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया। 
जमींदारी की थोड़ी सी बची जमीन पर खुद काश्त करने लगा। खेत में मां - पिताजी की याद उसे बहुत सताती।
एक दिन कल्याण सिंह यह कहानी ले कर समाज सुधारक राजा राममोहन राय के पास जा पहुंचा। मोहन राय को कहानी सुनकर दुःख के साथ - साथ गुस्सा आया।
एक दिन कल्याण उसका भाई और कुछ लोग मोहन राय के साथ कलक्टर बहादुर के पास पहुंचे। कलक्टर बहादुर ने वायसराय लार्ड विलियम बैंटिक के नाम चिट्ठी लिख कर उन्हें कलकत्ता भेज दिया। लार्ड विलियम बैंटिक सारी कहानी सुनकर भौंचंक्के रह गए।
हाउस ऑफ लॉर्ड्स के प्रस्ताव पर हाउस ऑफ कॉमन में भारत में सती प्रथा रोकने के कानून पर चर्चा हुई। 
आखिर कार सरकार ने विलियम बैंटिक को सती प्रथा निषेध अधिनियम का मसौदा पास कर भिजवा दिया।
बैंटिक ने राजा राममोहन राय से मंत्रणा कर भारत में बंगाल सती प्रथा निषेध अधिनियम 1929 लागू कर दिया।
शिक्षा - नारी सती नहीं शक्ति है।
जिगर चूरुवी 

Wednesday, 30 July 2025

लघुकथा -अभी संसार में अच्छाई बाकी है

लघुकथा - संसार में अच्छाई बाकी है।

आज माधव को जरूरी काम से 20 किलोमीटर दूर ससुराल जा कर आना था। मोटर साइकल से आधा घंटे का रास्ता है, उसने सोचा थोड़े काम निपटा कर दस बजे चल पड़ूंगा।  चलने से पहले दो - तीन बाल्टी पानी से मोटर साइकल को खूब धो कर चमकाया, काम में कब ग्यारह बज गए पता ही नहीं चला अब वह फटाफट तैयार हुआ मोटर साइकल पर सवार चल पड़ा फर्राटे से ससुराल की ओर। जल्दबाजी में सर पर तौलिया और पानी की बोतल साथ लेना भूल गया।
जून का महीना, सर पर जलता सूरज और गर्म तपती सड़क। दो किलोमीटर चलते ही पिछला टायर फुस्स। सुनसान सड़क, ना आदमी ना जानवर ना कोई घर। अब क्या करे। जैसे तैसे हिम्मत जुटाई, मोटर साइकल को घसीटते हुए पंचर की दुकान ढूंढने आगे बढ़ा। जानलेवा गर्मी, ना पानी, ना सर पर तौलिया ना छाया। पसीने से तर - बतर आग उगलती सड़क पर पंचर मोटर साइकल को धक्का देते माधव पसीना - पसीना हो गया।
दो - तीन किलोमीटर चलने के बाद एक गांव में पहुंचा। वह थक चुका था, निढाल सड़क किनारे एक घर में लगे नीम के पेड़ की छांव जो सड़क तक आ रही थी, में सुस्ताने लगा, हवा का नाम नहीं और भयंकर प्यास से निकलती जान, सब कुछ असहनीय हो रहा था।
एकाएक उस घर की खिड़की खुली, अधेड़ उम्र के आदमी ने पूछा, पानी पिओगे। पानी का नाम सुनकर उसकी जान में जान आई, इशारे से हथेली मुंह की ओर कर हां कहा और इंतजार करने लगा। मन ही मन सोचने लगा - 
अभी संसार में अच्छे लोग बाकी हैं।
काफी समय निकल गया पानी नहीं आया। अब प्यास के मारे जान निकल रही थी, सड़क पर उसे पानी ही पानी दिखाई दे रहा था पर वो  आदमी नहीं आया। माधव ने मन में सोचा जब पानी नहीं पिलाना था तो पूछा क्यों - 
अब संसार में अच्छाई बाकी नहीं रही।
थोड़ी देर में अधेड़ जग और गिलास हाथ में थामे गेट से बाहर निकला। उसने क्षमा मांगते हुए कहा - भाई साहब, मैने सोचा आपको प्यास ज्यादा लगी है, गर्मी भी भयंकर है, इसलिए शिकंजी बना कर ले चलूं। 
माधव ने खुद की गलत सोच पर लज्जा का अनुभव करते हुए मन ही मन कहा - अभी संसार में अच्छाई बाकी है।
शिकंजी का गिलास मुंह से लगाया, यह तो फीकी है। अजीब कंजूस आदमी है, जब शिकंजी ही बनाई तो थोड़ी सी चीनी भी डाल देते। सच है - 
अब संसार में अच्छाई बाकी नहीं रही।
अधेड़ ने जेब से चीनी की पुड़िया निकालते हुए कहा, अरे भाई साहब, मैने सोचा आज कल लोग शुगर के मरीज हो रहे हैं, इसलिए क्या पता मीठी शिकंजी पीएंगे या नहीं, मैं यह चीनी पुड़िया में बांध लाया, आपके शुगर नहीं है तो चीनी मिला लीजिए।
माधव को फिर अपनी सोच पर लज्जा का अनुभव हुआ। चीनी मिलाते हुए उसने फिर कहा - 
अभी संसार में अच्छाई बाकी है।
थोड़ी देर में ताजगी आने से माधव ने चलने की तैयारी की। इस ठीठें (पंचर मोटर साइकल) को घसीटना जानलेवा हो जाएगा पर क्या किया जा सकता है, मन में सोचते हुए चलने लगा तो अधेड़ ने कहा - 20 रुपए दीजिए।
माधव मन ही मन गुस्से से लाल हो रहा था, एक गिलास शिकंजी के बीस रुपए, यह तो लूट है - 
वास्तव में संसार में अच्छाई बाकी नहीं रही। 
भारी मन से उसने दो दस - दस के नोट निकाले और अधेड़ की तरफ बढ़ा दिए।
अधेड़, माधव को पांच मिनिट रुकने का कह कर घर में चला गया। 
माधव ने मन ही मन उसे इतनी गालियां दीं जितनी पूरी जिंदगी में किसी ने किसी को नहीं दीं।
थोड़ी देर में गेट फिर से खुला, एक हाथ में थैला दूसरे हाथ में चाय का थर्मस लिए अधेड़ बाहर आया। आज सॉल्यूशन की ट्यूब खत्म हो गई थी, मेरे पास पैसे नहीं थे, मैं पास ही के गांव से सॉल्यूशन ट्यूब लाता हूं, तब तक आप चाय पीजिए।
माधव फिर मन में खुद को गलत समझते हुए कहने लगा -  
अभी संसार में अच्छाई बाकी है।
आधे घंटे में अधेड़ आया, मोटर साइकल की पंचर बनाते हुए कहने लगा, साहब मेरा नाम फतेह खान है, रिटायर्ड फौजी हूं, यहां गांव में पंचर की दुकान नहीं है,  कोई गाड़ी या मोटर साइकल पंचर होने पर मैं थोड़ी बहुत मदद कर देता हूं।
माधव खुद पर खूब लज्जित था, उसने मन में फिर कहा है -
अभी संसार में अच्छाई बाकी है।

जिगर चूरूवी 
(शमशेर भालू खां सहजूसर)

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स्वतंत्रता सेनानी रहीम खान जिसे बाद में फांसी दे दी गई 

कांग्रेस के प्रथम स्थापना अधिवेशन का चित्र