अरब व्यापारी हर देश में हर देश का हर एक सामान खरीदते और बेचते थे।
अरब में व्यापार -
किसी भी क्षेत्र में सभी सामान उपलब्ध नहीं हो सकते। हर क्षेत्र का किसी ना किसी सामान के उत्पादन में विशेष स्थान होता है। उपलब्ध सामग्री का उत्पादन, भंडारण, परिवहन एवं विपणन ही व्यापार कहलाता है। क्षेत्र अनुसार इसके अलग - अलग नाम हो सकते हैं। इस्लाम धर्म का उदय अरब में हुआ। अरब क्षेत्र में तीन प्रकार की जनजातियां रहती थीं।
बायदा - यमनी
अराबा - कहतानू (मिस्र)
मुस्ता अराबा - अरबी (इस्माइली)
यह जनजातियां खेती, व्यापार एवं अन्य कार्य करती थीं। हजारों सालों से इनका व्यापार रोम, चीन एवं अफ्रीका के देशों से रहा। अरब व्यापारी पश्चिम में अटलांटिक महासागर से लेकर पूर्व में अरब सागर तक, अरब प्रायद्वीप तक व्यापार करते थे। अरब नील से ह्यांग्हो तक व्यापार करते थे। अरब प्रायद्वीप कई व्यापार मार्गों के केंद्र में स्थित था, जिसमें दक्षिण पूर्व एशिया, भूमध्य सागर और मिस्र शामिल थे।
यहां मुख्य सभ्यताएं रहीं -
- सुमेरियन एवं बेबीलोन सभ्यता (मेसोपोटामिया/इराक) (दजला फरात) की सभ्यता।
- फराओ (मिस्र) नील की सभ्यता।
- शाम (सीरिया) की सभ्यता।
- बद्दुएन (हिजाज/सऊदी अरब) के रेगिस्तान की सभ्यता।
हर सभ्यता का अपना - अपना उत्पादन था। जो सामग्री यहां उपलब्ध होती वो बेची जाती और जो सामग्री उपलब्ध नहीं होती वो खरीदी जाती। इस खरीद बिक्री हेतु व्यापार ऊंटों पर सामान लाद कर किया जाता था, बाद में घोड़ा, गधा एवं खच्चर को काम में लिया जाने लगा। अरब क्षेत्र में गधे एवं ऊंट का अधिक महत्व है।
सुमेरिया एवं बेबीलोन में अनाज, कपास (कपड़ा) एवं लेखन में अग्रणी थे।
सीरिया में तांबा, लौहा एवं अन्य धातु बहुतायत से मिलती थीं। चीन से कागज,रेशम आदि आयातित होता था। भारत से सोना, चांदी एवं शीशा लाते थे। इस प्रकार से मांग अनुसार विपणन कार्य आरंभ हुआ। व्यापारी कई महीनों तक देश से बाहर रहते ओर व्यापार के साथ - सांस्कृतिक आदान प्रदान के कारक बने।
अपने क्षेत्र की मान्यताओं को अन्य स्थान पर पहुंचाई व अन्य क्षेत्र की मान्यताओं को अपने देश में ले कर आए।
यही कारण है कि विभिन्न ग्रंथों में नाम व स्थान बदल कर कहानियां प्रचलित हुई जिनका कथानक एवं हीरो एक ही था। जैसे इब्राहिम नबी को आग में जला कर मारने का प्रयास भारतीय ग्रंथों में होली की कहानी से मेल खाती है। अरब में नूह नबी की कहानी सुमेरिया में नोआ एवं भारत में मनु की कहानी से मेल खाती है। इन व्यापारियों के साथ चित्रकार, लेखक एवं इतिहासकार भी भ्रमण पर निकले जिन्होंने एक स्थान की कहानियों को दूसरे स्थान पर अलग ढंग से प्रस्तुत किया। चीन के महान इतिहासकार ह्वेनसांग ने मेगस्थनीज पुस्तक में अपने ढंग से वर्णन किया है। इब्न बतुता, शेख चिल्ली आदि ने भारतीय ज्ञान एवं विज्ञान को अरबी भाषा के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित किया। अरबों ने अरेबिक नंबर्स में आर्यभट्ट के शून्य को सम्मिलित कर लोगोरिथम प्रणाली का आविष्कार किया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सम्पूर्ण संसार का सांस्कृतिक एकीकरण व्यापार के माध्यम से हुआ। व्यापार ही के कारण उपनिवेशवाद की अवधारणा ने जन्म लिया। राज व्यवस्था में परिवर्तन आना शुरू हुआ।
शक्तिशाली राजवंशों की स्थापना हुई जिनमें
उरन - इराक (बेबीलोन, सुमेरियन) मेसोपोटामिया,
फ़िरौन - मिश्र (अफ्रीका एवं एशिया)
चीन - ख़ुराईन (पूर्वी एशिया)
रोम - केसर (रोम, यूरोप एवं मध्य एशिया)
ईरान - किसरा (ईरान एवं मध्य एशिया)
नसारा - फिलिस्तीन (मध्य एशिया)
अंसार - मदीना (मध्य एशिया)
आर्य - भारत
द्रविड़ - भारत
जार - रूस
सुल्तान - तुर्की (मंगोलिया, यूरोप एवं मध्य एशिया)
डच - पुर्तगाल (यूरोप)
फ्रेंच - (यूरोप)
जमोरिन - भारत
ज़ामोरिन - कोड़िकोड, केरल, भारत (मलयालम भाषा में सामूतीरी) के राजा की उपाधि।
आदि साम्राज्यों की स्थापना, उदय एवं पतन हुआ। इन सब साम्राज्यों की नींव व्यापार पर ही टिकी हुई थी। आज भी विश्व के 200 से अधिक देशों की शासन व्यवस्था का मूल अर्थतंत्र है। अंग्रेजी भाषा में इसे इकोनॉमी कहते हैं।
शुरुआती व्यापार में लेन देन का माध्यम वस्तु विनिमय हुआ करता था। बढ़ई किसान से अनाज ले कर हल बना देता था। लुहार पाती एवं हथियार के बदले दर्जी से कपड़े सिलवा लेता था। धीरे - धीरे विनिमय के माध्यम बदलते गए। अब विनिमय का साधन धातु बन गई। लोहा, तांबा, सोना एवं चांदी के बाद कांसा भी विनियम का साधन बना। कागज़ की मुद्रा का प्रचलन सब से पहले चीन में हुआ जो सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित हुई। यह बदलता हुआ रूप और व्यापार के बढ़ते प्रभाव ने अलग व्यवस्था को जन्म दिया।
अरब में व्यापार - (कारवां)
भूमि मार्ग के व्यापारी बड़े समूहों में यात्रा करते थे जिन्हें कारवां कहा जाता था। कारवां चलते -फिरते शहर हुआ करते थे जिनमें डॉक्टरों और मनोरंजन करने वालों से लेकर सशस्त्र गार्ड, लेखक, फकीर और अनुवादक शामिल थे। एक सामान्य कारवां दिन में लगभग 15 मील की यात्रा करता और रात में सरायों (प्राचीन होटल) में रुकता। भारतीय कारवां व्यापारी को पणि (अपभ्रंश हो कर वणी से वणिक - बणी से बाणिया) कहते थे। बाद में अरबों ने समुद्री मार्गों का उपयोग भी शुरू किया जिसे जहाजी कारवां कहते हैं। यह कारवां प्राकृतिक संसाधन जैसे मछली पकड़ना, मोती निकालना, और खेती के सामान का व्यापार भी करते थे।
अरब व्यापारियों की मुद्रा -
अर्थव्यवस्था में पैसा महत्वपूर्ण है। अरब व्यापारी दीनार (सोने का सिक्का) और दिरहम (चांदी का सिक्का) काम में लेते थे। बड़े लेन-देन सुफ्ताजा (कागज के क्रेडिट पत्र) (हुंडी) पर किए जाते थे। इन पत्रों को भारी सिक्कों की तुलना में लंबे मार्गों पर ले जाना आसान व सुरक्षित था। एक शहर से दूसरे शहर में सूफ़्ताज़ा को मानीचेंजर से सिक्कों में बदलवा सकते थे।
महत्वपूर्ण व्यापार सामग्री -
अरब से लोबान, इत्र, भारत से मसाला, बर्तन, धातु, और उप-सहारा अफ्रीका से सोना, नमक, दास, हाथीदांत पूर्व-आधुनिक उद्योगों में चमड़ा, मिट्टी के बर्तन और धातु और पंख, चीन से रेशम, कागज एवं विलासिता की वस्तुओं का व्यापार करते थे।
महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र (बाज़ार)-
पूरे अरब में अलग-अलग स्थानों पर मौसमी बाज़ार लगाए जाते थे, जहाँ पूरे प्रायद्वीप से अरब लोग व्यापार करने हेतु आते थे।
मक्का -
हजारों सालों से (बक्का) मक्का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं व्यापारिक केंद्र रहा है। जो विभिन्न व्यापार मार्गों का केंद्र बिंदु रहा है।
यमन -
यमन, अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित, मसाले, सुगंधित पदार्थों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए जाना जाता था।
मुख्य व्यापार मार्ग -
अरब प्रायद्वीप, कई महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों के केंद्र में स्थित था, जो इसे विभिन्न सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के मध्य की महत्वपूर्ण कड़ी बनाता है।
रेशम मार्ग -
अरब व्यापारी रेशम मार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान, उत्तर भारत, तिब्बत, बर्मा चीन एवं मंगोलिया से वस्तुओं को लाते - ले जाते थे।
हिंद महासागर (साहिली/स्वाहिली तट) व्यापार मार्ग -
यह जल मार्ग है जिसके माध्यम से अरब व्यापारी भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों साथ व्यापार करते थे। केरल पर इसी मार्ग के कारण अरबों का अधिक प्रभाव पड़ा। अरब व्यापारियों में से कई यहां बस गए। कुछ ने यहीं विवाह किया। यह व्यापार पहली ईस्वी के लगभग प्रारंभ हुआ। हिंद महासागर के तट (अज़ानिया) और बाकी दुनिया (भारत, चीन और अरब देशों) के बीच व्यापार होता था। इन क्षेत्रों के बीच बातचीत को हिंद महासागर की यात्रा करने वाले व्यापारियों द्वारा मानसूनी हवाओं के ज्ञान से सहायता मिली। स्वाहिली तट पर अरबी उपस्थिति अरब से पूर्वी अफ्रीकी तट पर अरबों के प्रवास के साथ शुरू हुई, जो अरब में जनसांख्यिकीय और राजनीतिक संघर्षों के परिणाम थी। इस तट पर व्यापार पूर्वी अफ्रीकी तट से आने वाले अधिकांश मुस्लिम आगंतुकों से 8वीं शताब्दी में प्रभावित हुआ जिसमें मोगादिशु, मोम्बासा और किल्वा जैसे शहरों (बंदरगाह) एवं स्वाहिली भाषा के विकास को बढ़ावा मिला। यह भाषा अब स्थानीय बंटू लोगों और अरब प्रवासियों के बीच आम बोलचाल की भाषा बन गई। स्वाहिली तट पर प्रमुख अरब प्रभावों में से एक ओमानी अरबों का आगमन था। महान नाविकों के रूप में प्रसिद्ध, ओमानी व्यापारी हिंद महासागर में अच्छी तरह से जाने जाते थे। 17 वीं शताब्दी के अंत में पूर्वी अफ्रीकी तट पर ओमानी अरबों के आगमन ने मोम्बासा में उनकी हार के बाद स्वाहिली तट पर पुर्तगाली प्रभाव में बदल गया। इस क्षेत्र पर ओमानी अरबों के प्रभुत्व के साथ स्वाहिली तट पर व्यापार बढ़ता गया। 1804 और 1856 के बीच ज़ांज़ीबार के विकास ने लंबी दूरी के व्यापार के माध्यम से अफ्रीकी इंटीरियर से हाथीदांत और दासों के आयातक के रूप में अपनी भूमिका के कारण स्वाहिली तट के आर्थिक विकास को बढ़ाया। ओमानी व्यापारियों ने यूरोप और भारत में उच्च मांग के कारण पूर्वी अफ्रीकी तट से दासों और हाथीदांत का निर्यात किया। दासों की उपलब्धता ने उन्हें ज़ांज़ीबार और पेम्बा के बढ़ते लौंग के बागानों में श्रम का एक उपयुक्त स्रोत बना दिया और इस तरह तट के किनारे दासों की मांग में और वृद्धि ने पूर्वी और मध्य अफ़्रीका के भीतर लंबी दूरी के व्यापार को बढ़ावा दिया। इनमें से कुछ दासों को स्वाहिली अरबों के घरों में घरेलू दास के रूप में खरीदा गया।
स्वाहिली-अरब और आंतरिक जनजातियों के बीच स्वाहिली तट पर व्यापार ने आंतरिक अफ्रीकी जनजातियों के विकास को प्रेरित किया। अफ्रीकी आंतरिक क्षेत्र में व्यापार के विस्तार के कारण, अफ्रीकी शासकों ने अपने राज्यों और क्षेत्रों का विस्तार करने के उद्देश्य से राजनीतिक विकास करना शुरू कर दिया ताकि वे अपने क्षेत्रों के भीतर व्यापार मार्गों और खनिज स्रोतों पर नियंत्रण कर सकें। स्वाहिली-अरब व्यापारियों और आंतरिक अफ्रीकी जनजातियों के बीच बातचीत के कारण, इस्लाम धर्म फैलता गया। 1804 से 1888 के बीच ज़ांज़ीबार के सुल्तानों के शासनकाल और सोमालिया से मोज़ाम्बिक तक पूर्वी अफ्रीकी तट पर उनके प्रभुत्व ने स्वाहिली तट के साथ व्यापार को बहुत प्रभावित किया।
17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद यूरोपियन का भारत आने का रास्ता साफ हुआ। वास्को डी गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की। उसने कालीकट के राजा जिसकी उपाधि जमोरिन थी से व्यापार का अधिकार प्राप्त कर लिया पर वहाँ सालों से स्थापित अरबी व्यापारियों ने उसका विरोध किया।
1873 में दास व्यापार के उन्मूलन से पहले, जब आंतरिक क्षेत्र से तट तक दास तस्करी पर प्रतिबंध की घोषणा जारी की गई थी, टिपू टिप सबसे प्रसिद्ध स्वाहिली-अरब व्यापारियों में से एक था। हाथीदांत प्राप्त करने के लिए अपनी विजय में ज़ांज़ीबार से निकलकर उसने ट्रोवा के नसामा को हराया और हाथीदांत और दास व्यापार को नियंत्रित करने के लिए मन्येमा देश में अपना शासन स्थापित किया।
मुख्य व्यापार -
- दास व्यापार -
फारस की खाड़ी के सीप-तलों से मोती चुन कर बेचना संपन्न और लाभदायक व्यवसाय था। भारत में लगभग चार सौ सालों से मोती की खेती की जाती है जिसका मुख्य केंद्र हैदराबाद है।
- धातु व्यापार -
यमन एवं सीरिया से लोहा, तांबा एवं धातु की खरीद फरोख्त होती थी।
सोना, मसाला एवं बर्तन -
भारत के दक्षिण तट से मसाले, बर्तन एवं सिंध क्षेत्र से सोना - चांदी खरीदते थे।
घाना का सोने का व्यापार -
अरबी सोने के महत्व और इसके प्रभाव को समझते थे। पहले वो सोना सिंध और अफगान क्षेत्र भारत से खरीद कर लाते और बेचते थे। नौवीं सदी ईस्वी में अरबों ने सोना खोदने के व्यापार में भाग लेना शुरू किया। अरबियों ने घाना के सोने के मैदानों से खदानों से सोना निकालने के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
हज का व्यापार में महत्व -
हज यात्रियों को लंबी यात्रा के समय सामग्री रास्ते में खरीदनी पड़ती थीं। इस से व्यापार बढ़ता गया। इस कारण हज यात्री मार्गों सराय व्यवसाय बढ़ा। इन्हीं मार्गों पर कई शहर बसे। बद्दू जनजातियों के लोग अब हाजियों के लिए भोजन एवं अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने के साथ-साथ पवित्र शहर में लाने - ले जाने हेतु परिवहन सुविधा भी उपलब्ध करवाने लगे। सरकार को इस से कर द्वारा आय प्राप्त होती थी। स्टीम जहाजों के माध्यम से परिवहन व्यापार यूरोपियन के हाथ में चल गया। सन 1908 में, उस्मानी (ऑटोमन) साम्राज्य ने हज हेतु रेल मार्ग का निर्माण करवाया।
हज तीर्थयात्रा मार्ग - दरब अल जुबैदा सऊदी अरब और इराक गणराज्य द्वारा संयुक्त रूप से विकसित अब्बासिद काल से कुफा से प्रमुख शहरों को जोड़ते हुए मक्का तक 1300 किलोमीटर का अंतरराष्ट्रीय सड़क मार्ग है। भारतीय स्थल मार्ग से पाकिस्तान, ईरान होते हुए इसी मार्ग से हज यात्रा पर जाते थे। अकबर ने सब से पहले भारतीय हज यात्रियों को राजकीय अनुदान (सब्सिडी) प्रदान की। इस मार्ग के 13 शहरों में से चार इराक में और नौ सऊदी अरब में हैं।
व्यापार एवं डकैती (जल दस्यु)-
फारस की खाड़ी और माघरेब के तट पर स्थित छोटे मुस्लिम राज्यों को समुद्री डकैती के एक अनोखे आर्थिक मॉडल द्वारा समर्थन दिया जाता था, जिसमें शासक नियमित रूप से व्यापारी जहाजों को लूटते थे और गुलामों को पकड़ने के लिए आयरलैंड और आइसलैंड जैसे दूर-दराज के गैर-मुस्लिम देशों के तटों पर रज्जिया, छापे मारते थे। गुलामों को बेचा जा सकता था या उन्हें समुद्री लुटेरों की नावों में गुलाम नाविकों के रूप में जंजीरों में बांधा जा सकता था, जिससे हमले को गति मिलती थी और अधिक गुलाम पकड़े जाते थे। जहाज के मालिक या उनकी सरकारें पकड़े जाने से बचने के लिए सुरक्षा राशि का भुगतान कर सकती थीं। यह जल दस्यु सोमालिया के जल दस्यु के रूप में काफी प्रसिद्ध हुए।
छापा मार (कारवां के लुटेरे) -
कुछ अरबों ने रज़िया/कारवां को लूटने हेतु छापा मारने (छिप कर हमला करने) का कार्य शुरू किया। वे हथियारबंद लोगों को लेकर गुजरते कारवां पर हमला कर लूटपाट करते। यह आर्थिक लुट कई शताब्दियों तक अरब जनजातियों के बीच लोकप्रिय रही। अरबों द्वारा छापा मारकर लूटने का काम सशस्त्र खानाबदोश बद्दू जनजातियों द्वारा किया जाता था। यह लुटेरे व्यापारियों एवं किसानों पर हमला करते और सामान लुट कर ले जाते।
यहां भी किसान एवं व्यापारी कारवां हमलावरों को सुरक्षा राशि दे कर सुरक्षित निकल सकते थे।
व्यापार से इस्लाम का प्रचार -
व्यापार और वाणिज्य ने प्रारंभिक इस्लामी दुनिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुस्लिम व्यापारियों के बड़े नेटवर्क दुनिया के अधिकांश हिस्सों में फैले हुए थे, जिनमें चीन, अफ्रीका और यूरोप जैसे दूर-दराज के स्थान भी शामिल थे। इस्लामी सरकारों ने धनी व्यापारियों से मिलने वाले करों का इस्तेमाल स्कूलों, अस्पतालों, बांधों और पुलों जैसे सार्वजनिक कार्यों के निर्माण और रखरखाव के लिए किया। व्यापारी अपने धर्म को पश्चिमी अफ्रीका ले गए जहाँ इस्लाम बहुत जल्दी पूरे क्षेत्र में फैल गया। मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे सुदूर पूर्व के क्षेत्र भी व्यापारियों और इस्लामी सूफियों के माध्यम से मुस्लिम बन गए। समय के साथ, भारत, चीन और स्पेन सहित अन्य क्षेत्रों में बड़ी मुस्लिम आबादी बढ़ती गई। इस्लामी व्यापार के विस्तार का इस्लाम धर्म के प्रसार पर सीधा प्रभाव पड़ा। दक्षिणी भारत में इस्लाम 600 ईस्वी के आसपास फैलना शुरू हो चुका था।
इस्लामी स्वर्ण युग में व्यापार और वाणिज्य के रोचक तथ्य -
- स्वीडन, ब्रिटेन और चीन के सुदूर स्थानों पर प्राचीन इस्लामी सिक्के मिले हैं।
- इस्लामी दुनिया में व्यापारियों का बहुत सम्मान किया जाता था। पैगम्बर मोहम्मद (स) व्यापारी परिवार से थे।
- दास व्यापार अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा था। कुछ दास मुस्लिम विजय के समय पकड़े गए कैदी थे कुछ उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका के दास बाजारों से खरीदे गए थे।
- इस्लामी व्यापार के विस्तार ने सम्पूर्ण एशिया, अफ्रीका और यूरोप में कला, विज्ञान, खाद्य एवं वस्त्रों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को संभव बनाया।
- कुरान ने इस्लामी व्यापारियों हेतु सिद्धांतों के पालन का आदेश दिया जिसमें उन्हें एक-दूसरे के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने और ऋण पर ब्याज न लेने की बात कही गई है।
ब्याज मुक्त व्यापार -
अपने व्यापार को सूद (ब्याज़) से शुद्ध रखें ब्याज़ लेना व देना दोनों ही ग़ैर इस्लामिक कृत्य हैं। जो व्यापार ब्याज मुक्त होगा उसमें (वृद्धि) बरकत होगी। जिस व्यापार में सूद (ब्याज़) का चलन होगा वो व्यापार डूब जायेगा। मोहम्मद (स) ने सूद खाने/खिलाने, लिखने, गारंटर पर हेय (लानत) की है। इस्लाम पूरी तरह सिंद्धान्तों पर चलने वाला धर्म है इस मज़हब में हर एक जरुरत के लिए जगह दी गई है। इस्लाम के सिद्धान्त बहुत कठोर हैं। अगर आप मुस्लमान है तो तो आप को इस्लाम के सिंद्धान्तों को मानना भी आवश्यक है।
इस्लाम ने सूद (ब्याज) को वर्जित (हराम) करार दे कर इसे बहुत बड़ा गुनाह (पाप) बताया है। जिसका हवाला कुरआन में इस तरह दिया गया है -
- सूद खाने वाले ऐसे लोगों की मिशाल हैं जो अपनी माँ (जननी) के साथ ज़िना (sex) करते हों।
- जो लोग सूद (ब्याज) का कारोवार करते है वह लोग क़यामत के दिन ऐसे उठेंगे जैसे शैतान के दीवाने हो फिर जो हश्र शैतान के साथ किया जायेगा वही हश्र सूद खाने वाले के साथ किया जायेगा।
सुरह बक़रा – 2:276, 278, 279
सूद के संबंध में हदीश -
जाबिर (र.) के अनुसार मोहम्मद (स) ने सूद के व्यापार पर (हेय) लानत की है और इस काम में लगे किसी भी तरह से संबंधित/भागीदार व्यक्ति को बराबरी का हिस्सेदार बताया है।
व्यापार के इस्लामी नियम -
- व्यापार में लाभ -
इस्लाम में व्यापार में लाभ कमाने के नियम, ईमानदारी, न्याय, और दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना शामिल है। सूदखोरी और गलत तरीकों से लाभ कमाना वर्जित है।
- ईमानदारी और न्याय - व्यापार में हमेशा ईमानदार और न्यायसंगत रहें। अमानतदारी अत्यावश्यक है।
- अल्लाह को याद रखें - व्यापार करते समय, अल्लाह को याद रखें और उसके नियमों का पालन करें।
- जायज़ व्यापार - केवल जायज़ (अनुमत) तरीकों से व्यापार करें।
- संदेह से बचें- संदिग्ध मामलों से दूर रहें।
- दान करें - अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें। दान में सदका, इमदाद आदि शामिल हैं।
- उदार बनें - दूसरों के साथ उदार और सहज रहें।
- रिब (ब्याज) से बचें - ब्याज पर पैसे का लेन-देन न करें, क्योंकि इस्लाम में यह वर्जित है।
- जोखिम में व्यापार से बचें - ऐसे व्यापार से बचें जिनमें बहुत अधिक जोखिम हो।
- अज्ञानता का फायदा न उठाएं - किसी की अज्ञानता का फायदा उठाकर अधिक लाभ न कमाएं।
- निषिद्ध वस्तुओं का व्यापार न करें - शराब, सूअर का मांस, और अन्य निषिद्ध वस्तुओं का व्यापार न करें।
- सच्चाई और भरोसेमंदता - व्यापार में सच्चाई और भरोसेमंदता का पालन करें।
- मुराबाहा - विक्रेता क्रेता को वास्तविक लागत बताता है और फिर कुछ लाभ पर वस्तु को बेच देता है।
- मुसवमा - विक्रेता वस्तु की वास्तविक लागत घोषित नहीं करता है।
- किश्तों में बिक्री (मुराबाहा) - किश्तों में बिक्री मध्यस्थ के माध्यम से घर खरीदने से होती है।
- अच्छा ऋण v/s बुरा ऋण - इस्लामी वित्त में उस ऋण को अच्छा"l माना जाता है जो उत्पादक उद्देश्यों हेतु लिया जाता हो। ऐसे ऋण जिनसे व्यक्ति और समाज को लाभ हो अच्छे ऋण कहलाते हैं।
- हराम - धोखाधड़ी, चोरी, भ्रष्टाचार, हत्या और ब्याज या किसी अन्य तरीके से अर्जित धन/संपत्ति शामिल है। किसी भी इंसान को नुकसान पहुँचा कर अर्जित धन हराम है।
- कालाबाजारी - सामान को गलत तरीके से जमा कर नकली कमी दिखा कर ऊंचे दाम में बेचना कालाबाजारी है जो इस्लाम धर्म में वर्जित है।
इस्लाम धर्म में दासों को आजाद करवाना पुण्य का कार्य माना गया है।
शमशेर भालू खां
9587243963
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