Thursday, 10 July 2025

✅पारसी (अग्नि पूजक) धर्म

                        पारसी चिह्न
                   महात्मा जरथुस्त्र 

पारसी धर्म मान्यता व इतिहास :-
हे मज़्द! जब मैंने पहले पहल अपने ध्यान में तेरी कल्पना की तो मैंने शुद्ध हृदय से तुझे विश्व का प्रथम नेता माना, विवेक का जनक, सदाचार का उत्पन्न करने वाला व मनुष्य के कार्यों का नियामक माना।
जरथुस्त्र

अवस्ताई मन्त्र :- 
सर्व शक्तिमान देवता, शूरों में शूर मित्र को मैं अपना होत्र प्रस्तुत करता हूँ।

फ़ारस (ईरान ) क्षेत्र :- 
फ़ारस (पर्सिया) प्राचीन काल के कई साम्राज्यों का केन्द्र रहा (वर्तमान ईरान से तथा उससे संलग्न क्षेत्र)। यह साम्राज्य कई बार विशाल बना और ढहा। एक बार यह सम्राज्य मध्य यूरोप से भारत के पश्चिमी छोर, तथा मध्य एशिया से मिस्र तक फेल गया था। 1935 में रजा शाह पहलवी ने फारस का नाम बदलकर ईरान किया। यहां के निवासी फारसी व भाषा फ़ारसी कहलाती थी।
खुद पारसी मानते थे कि वो लोग पश्चिमी भारत से पलायन करके ईरान आए और यहां बस गये।

पारसी धर्म :-
पारसी (जोरोएस्ट्रिनिइजम) फारस (ईरान क्षेत्र) का विश्व का प्राचीनतम एकेश्वरवादी धर्म है जो उस क्षेत्र का राजधर्म था जो ज़न्द अवेस्ता धर्म ग्रन्थ पर आधारित है जिसके संस्थापक ज़रथुष्ट्र हैं अतः इस धर्म को ज़रथुष्ट्री धर्म भी कहते हैं। प्राचीन फारस (आज का ईरान) पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था जहां (पैगंबर) जरथुस्त्र ने सभी को एकेश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी। सिकंदर व अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का अधिकांश साहित्य नष्ट कर डाला। ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत इतिहास की कुछ कड़ियों को जोड़ कर जानकारी जुटाई गई है। फारस के राजा विश्तास्प के शासन काल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर एकेश्वरवाद का संदेश दिया (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने अहुरा मजदा (महान जीवन दाता)।फ़ारसी धर्म के लिखित प्रमाण 2 शताब्दी ईसा पूर्व से प्राप्त होते हैं लगभग 1000 वर्षों तक फ़ारश का राजधर्म (600 BC-650 AD) रहा एवं मुसलमानों की फारस विजय (633 से 644)  के बाद या तो वे अपना स्थान छोड़ गये या मुस्लिम बन गये। फारसियों के इस्लाम ग्रहण करने के उपरांत ईरान मुस्लिम देश बन गया। सातवीं सदी ईस्वी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुरातन वैभव तथा शक्ति गँवा चुका था। जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली तो अपने धर्म की रक्षा हेतु अनेक जरथोस्ती धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली।
यहाँ वे पारसी (फारसी का अपभ्रंश) कहलाये। आज विश्व में सिर्फ सवा से डेढ़ लाख के बीच जरथोस्ती बचे हैं जिनमें आधे से अधिक भारत में हैं। 700 से 1100 के मध्य अधिकांश पारसी भारत व श्रीलंका (75 %) व शेष 25 % उज्बेकिस्तान, USA, ब्रिटेन, कजाकिस्तान आदि देशों में बस गये। पारसी धर्म विश्व के लुप्त होते धर्मों में गिना जाता है। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में इनकी संख्या एक लाख से कम है।

पारसी धर्म ग्रन्थ ज़न्द अवेस्ता :-
इसके अधिकांश अंश लुप्त हो गये हैं अब कुछ ही अंश शेष हैं जिसकी भाषा अवेस्तन भाषा है।

फारस की भाषा अवस्ताई :- 
हिंदी-ईरानी भाषा परिवार की सदस्य भाषाओं में  ईरान (फारस) में दो भाषायें बोली जाती थीं -
1 अवस्ताई - पूर्वी ईरान (
2 फ़ारसी पश्चिमी ईरान
1500 वर्ष ईसा पूर्व के कुछ ग्रन्थ अवस्ताई व फ़ारसी भाषा  में लिखे मिले हैं। मध्य एशिया के बॅक्ट्रिया और मार्गु क्षेत्रों में स्थित याज़ संस्कृति में यह भाषा या इसकी उपभाषाएँ 1500-1100 ईसापूर्व के काल में बोली जाती थीं। बाद में यह भाषा धार्मिक भाषा बन गई जिसका उपयोग सिर्फ ग्रंथ लेखन हेतु होने लगा व जन साधारण से लुप्त होने लगी। अवस्ताई भाषा में अनुहावैती गाथा का यस्न लिखा गया प्राप्य है।
अवस्ताई भाषा सौराष्ट्र ( गुजरात) मे बोली जाने वाली सौरशेनी और पैसाची भाषा से मिलती जुलती ज़िसमें स का ह हो जाता है। संस्कृत हिंदी , कश्मीरी, फ़ारसी, पश्तो व प्राकृत सभी हिंदी - ईरानी परिवार की भाषायें हैं। अवस्ताई भाषा में रचनाएँ बहुत कम हैं इसलिये इसे समझने हेतु वैदिक संस्कृत की सहायता ली जाती हैं। संस्कृत व अवस्ताई भाषा के बहुत सारे शब्द मिलते हैं व निकट के संबंध हैं।

पहलवी लिपि :-
अवस्ताई भाषा की लिपि पहलवी लिपि थी जिसका उपयोग पारसी धार्मिक लेखनों को छोड़ कर लुप्त हो चुका है। पहलवी लिपि फ़ारसी और प्राचीन भारतीय खरोष्ठी लिपि की तरह दायें से बायें लिखी जाती है। पहलवी लिपि में आरामाई लिपि पर आधारित मूल अक्षरों की संख्या तेरह है जिनके अवस्ताई में 53 भिन्न रूप प्रयोग होते हैं। यह अक्षर थे। अब भारतीय पारसी अवस्ताई को ब्राह्मी लिपि में भी लिखते हैं।

पारसी पंथ की शिक्षा :-
1 हुमत (सुमत)(सुबुद्धि)
2 हुख्त (सूक्त) (सुभाष)
3 हुवर्श्त (सुवर्तन) (सुव्यवहार)

आहुर मज़दा व मनुष्य :-
मनुष्य जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है की इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका रहेगी। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श एवं अमरत्व के सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व में व्याप्त सभी बुराईयों को समाप्त कर देगा। मनुष्य प्रकाश का सैनिक होता है जिसका पुनीत कर्तव्य अंधकार और वासना की शक्तियों से धर्म संस्थापन के लिए लड़ना है।

अहुरा मज़्दा (पारसियों के ईश्वर का नाम) :-
पारसी एक ईश्वर को मानते हैं, जिसे अहुरा मज़्दा (होरमज़्द) कहते हैं। आहुर का अर्थ है स्वामी व मज़दा का अर्थ है परम् ज्ञानी।  जिसके अन्य नाम ओह्रमज़्द, होउरमज़्द, हुरमुज़, अरमज़्द और अज़्ज़न्दारा नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। आहुर ऊर्जा है यह कोई व्यक्ति नहीं है बल्कि सत्व है। जरथुस्त्र के दर्शन अनुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है।
1 स्पंता मेन्यू (पुण्यात्मा) (फरिश्ते)
2 अंगिरा मेन्यू  (पापात्मा) (शैतान)
दुष्ट आत्मा अंगिरा मेन्यू के नाश हेतु अहुरा मजदा ने सात कृतियों से इस भौतिक विश्व का सृजन किया।
1 आकाश
2 जल
3 पृथ्वी
4 वनस्पति
5 पशु
6 मानव
7 आग
अहुरा मज़दा जानते थे कि विध्वंसकारी प्रकृति व अज्ञान के चलते अंगिरा मैन्यू विश्व पर हमला कर अव्यवस्था, असत्य, दुःख, क्रूरता, रुग्णता एवं मृत्यु का प्रवेश करायेगा।
 
फ़ारसी धर्म संस्थापक - जरथुस्त्र (ज़रथुष्ट्र) :-
ज़राथुस्ट्र (ग्रीक भाषा में जारोस्टर फारसी में जरदुश्त्र)  ईरान (फारस) के निवासी व फ़ारसी (जोरोएस्ट्रिनिइजम) धर्म के संस्थापक थे, फ़ारसी उन्हें ईश्वर का दूत (पैगम्बर) मानते हैं। 
नाम - जरथुस्त्र का अर्थ है स्वर्ण रंग के ऊंट वाला।
जन्म -1400 से 600 ईस्वी पूर्व
जन्म स्थान - अफगानिस्तान 
(जरथुस्त्र की पुस्तक में लिखा कि उनके पूर्वज अफगानिस्तान से भी सुदूर पूर्व भारत देश से आए थे।)
मृत्यु - शाहनामा के अनुसार जरथुस्त्र की तुर्कियों द्वारा बल्ख के तूफान में वेदी पर हत्या कर दी गई थी।
काबिला - स्पित्मा (राजवंशीय)
वैराग्य - 15 वर्ष की आयु में
सिद्धि की प्राप्ति -  सात वर्ष एकांतवास में बिताने के बाद दिव्य शक्तियों में से वोहू महह ध्यानावस्था में प्रकट हुये और उनकी समाधिस्थ आत्मा को आहूर मज्द के समक्ष उपस्थित किया व उन्हें सिद्धि की प्राप्ति हुई।
पद - अहुरा मज़दा के दूत
कार्य - एकेश्वरवाद का प्रचार, दाएवों (बुरी और शैतानी शक्तियों) की निन्दा की और अहुरा मज़्दा को एक अकेला और सच्चा ईश्वर माना। पारसी धर्म ग्रंथ अवेस्ता लिखा। शुद्ध अद्वैतवादी दर्शन ने यहूदी धर्म, ग्रीस व रोम तक अपनी पहचान बनाई।
सन्देश - अच्छे विचार,अच्छी वाणी, अच्छे कार्य।
अनुयायी - फारस के राजा विश्तस्प
जरथुस्त्र के वाक्य - ऐ मज्द! जब मैंने तुम्हारा प्रथम साक्षात पाया। 

जरथुस्त्र का संदेश (फ़ारसी दर्शन) :-
जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को कायम रखते हुये विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। जरथोस्ती धर्म में जड़ता (कार्य नही करना) निषेध है। विकास की इस प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती रही हैं परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं हो कर सदाचार के पथ पर चलते हुये आगे बढ़ना है।
जीवन के क्षण- क्षण का निश्चित उद्देश्य है जीवन अनायास शुरू होकर अनायास ही समाप्त होने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है।
सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से, अच्छाई द्वारा, अच्छाई के लिये जीना है। हुमत(सद्विचार), हुउक्त (सद्वाणी) तथा हुवर्षत (सद्कर्म) जरथोस्ती जीवन पद्धति का आधार दर्शन हैं।
फ़ारसी धर्म में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।
निराशावाद व अवसाद को पाप समझा गया है। जरथुस्त्र चाहते हैं कि सदाचार के रास्ते चल कर मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाये व खुश रहे।
भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन की मनाही नहीं है पर समाज से जितना लिया जाता है उससे अधिक दिया जाये।
आत्मा पवित्रता, सत्यशीलता और परोपकार के सब रूपों और क्रियाओं को समेटती है। किसी धर्म या मत को आँख बंद कर मत को विवेक व गुण-अवगुण की जाँच कर स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिये। फ़ारसी धर्म अश (अंश) के नियमों सदाचार, व्यवस्था, संगति, अनुशासन, एकरूपता को बनाये रखना है।

फ़ारसी दर्शन में पाप - दुराचार, पुण्य-सदाचार  :-
पाप - किसी का हक मारना या शोषण करना दुराचार (पाप) है। 
पुण्य - कम सम्पन्न की करना।

पारसी धर्म व स्वर्ग - नरक :-
फ़ारसी धर्म55 में दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थायी जीत माना गया है। इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ (अदल) होगा। यदि वह सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में और दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्य की गहराइयों मे स्थान पायेगी। दुराचारी आत्मा की यह स्थिति अस्थायी होती है। धर्म का अंतिम अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता व बुराई को समाप्त करना है। समय-समय पर मुक्ति दाता आ कर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे। तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्व सामर्थ्यवान होंगे जो आत्माओं का अंतिम फैसला करेंगे।
इसके बाद भौतिक शरीर का पुनरोत्थान हो कर आत्मा से मिल जायेगा। समय का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और अहुरा मजदा की सात कृतियाँ शाश्वत धन्यता में एक साथ आ मिलेंगी और आनंदमय, अनश्वर अस्तित्व जीवन प्रारंभ होगा।

पारसी उपासना पद्धति व माध्यम अग्नि :-
पारसी अग्नि को ईश्वर पुत्र व पवित्र मानते हैं। और इसी माध्यम से अहुरा मज़्दा की पूजा करते हैं। यस्न पारसी पूजा विधि है।

फ़ारसी उपासना गृह आतिश बेहराम :- 
अब भारत में पारसियों के प्रार्थना/पूजा स्थल को दर-ए मेहर या आतिश बेहराम कहा जाता है। आतिश (आग)  की पारसी धर्म के लोग पूजा करते हैं। फारसी में आतिश का अर्थ अग्नि होता है। अंग्रेज़ी इसे फ़ायर टेम्पल (fire temple) व हिंदी में अग्नि मंदिर कहते हैं।

स्पेन्ता अमेशा (स्पन्द अमृत) (फरिश्ते) :-
स्पेन्ता अमेशा इनके सात (अथवा छः) .फ़रिश्ते हैं। वेरिगोद
स्पेंता मैन्यू की व्याख्य संवृद्धिशील, प्रगतिशील मन या मानसिकता है अर्थात यह अहुरा मजदा का वह गुण जो ब्रह्माण्ड का निर्माण एवं संवर्द्धन करता है। ईश्वर ने स्पेंता मैन्यू का सृजन इसीलिए किया था कि एक आनंददायक विश्व का निर्माण किया जा सके। प्रगतिशील मानसिकता ही पृथ्वी पर मनुष्यों को दो वर्गों में बाँटती है। सदाचारी जो विश्व का संवर्द्धन करते हैं तथा दुराचारी जो इस की प्रगति को रोकते हैं। जरथुस्त्र चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर तुल्य बने व जीवनदायी ऊर्जा को अपनायें तथा निर्माण संवर्द्धन एवं प्रगति का वाहक बने। 
पारसी धर्म में अमृतमयी ऊर्जा का नाम है जिसके छः रूप हैं :-
3 देवता
1 वोहु मनह (सुमन)
2 अशा वहिष्ट (ऋतु वसिष्ठ)
3 क्षत्र वैर्य 
3 देवियां 
1 सपेन्त अर्मैति (स्पन्द अरमति)
2 हौर्वतत (सार्वत्व)
3 अमरतत (अमरत्व)

अंगिरा मेन्यू (शैतान,असुर) :-
पारसी विश्वास के मुताबिक अहुरा मज़्दा का दुश्मन दुष्ट अंगिरा मैन्यु (आहरीमान) है। अंगिरा मैन्यु अथवा अह्रिमान् पारसी धर्म में नकारात्मक अथवा विनाशक शक्तियों के स्वामी के रूप में वर्णित है। यह अहुर मज़्द की विरोधी शक्ति है।  अहिरमन को अन्धकार तथा मृत्यु का प्रतीक माना गया है।

पारसी त्यौहार :- 

1 नौरोज़ (विषुव) :-
दिपावली या ईद की तरह फ़ारसी लोग फ़ारसी लोग ईरानी हिजरी शमसी  कैलेंडर के पहले महीने (फारवर्दिन) का पहला दिन  नवरोज़(नया दिन) का त्यौहार मनाते हैं। घर की सफाई और खरीददारी करते हैं साथ में फूल भी खरीदते हैं जिनमें जलकुंभी और टुलिप का उपयोग अधिक किया जाता है। यह एक तरह से राष्ट्रीय परंपरा बन गई है। ईरान में लगभग हर घर में इसे मनाया जाता है और सभी लोग अपने घरों के रखरखाव और सजावट हेतु चीजें खरीदते हैं। कम से कम एक जोड़ी कपड़े तो लेते ही हैं।
नौरोज़ उत्सव इक्वीनाक्स (अर्थ - समान)(वह क्षण जब सूर्य सीधे भूमध्य रेखा से ऊपर होकर निकलता है जिसमें दिन व रात लगभग बराबर होते हैं।) ईसवी कैलेण्डर के अनुसार नौरोज़ प्रति वर्ष 20 या 21 मार्च से आरंभ होता है। नौरोज़ के प्रचलित संस्कारों में महीने भर परिवार,मित्र व संबंधियों से भेंट व मेल मिलाप किया जाता है। सबसे पहले उस व्यक्ति के यहाँ जाते हैं जिसके घर में वर्ष के दौरान किसी सगे संबंधी का निधन हो गया हो। इस संस्कार को नोए ईद कहा जाता है। इस दिन शोकाकुल परिवार के बड़े सदस्य के काले कपड़े उतरवा कर नये कपड़े उपहार दे कर शोकाकुल परिवार के लिये ख़ुशी की कामना करते हैं।
आधिकारिक वर्ष का प्रथम दिवस (नौरोज़) हमेशा से वह दिन होता था जिस दिन मध्याह्न से पहले सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है।
ईरानी विद्वान तूसी

2 चारशानबे सूरी का त्यौहार :-
चारशानबे सूरी नव वर्ष के शुरू होने से पूर्व का त्यौहार है, जिसे ईरान में नववर्ष से पहले के आखिरी बुधवार के पूर्व संध्या को मनाया जाता है। यह आमतौर पर शाम को मनाया जाता है। इसमें लोग लकड़ियों को जला कर फटाके फोड़ते हैं और आतिशबाजी करते हैं।

3 खोरदाद साल :-
खोरदाद साल पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है।

4 जरथुस्त्र नो डेसो :-
जरथुस्त्रनो पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का जोरोस्टर की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाने वाला त्योहार है। यह 10 वें महीने (डीएई) के 11 वें दिन (खोरशेद) मनाया जाता है। ग्रेगेरियन कैलेंडर में ज़राथोस्ट नो-डिसो 26 दिसंबर के दिन होता है। इस दिन जरथुस्त्र के जीवन और कार्यों पर आयोजित व्याख्यान और चर्चाओं के साथ स्मरण का अवसर है। 
लोग आतिश बेहराम और अताश अदारान में प्रार्थना करते हैँ। पारसी मृतक का शोक नहीं मनाते बस दिवंगत लोगों के फ़ारस की याद और पूजा होती है।

4 गहम्बर्स :-
गहम्बर्स पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है।

5 फ्रावार देगन :-
गहम्बर्स पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है।

6 पपेटी :-
यह जरोस्त्रेयन कैलेंडर के हिसाब से नये वर्ष के शुभारंभ पर मनाया जाता है व अच्छे विचारों के साथ रहने, अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करने और सतकर्म करने का वादा करते हैं। इस अवसर के लिए खास पारसी व्यंजन जैसे, पत्रानी माची (केले के पत्ते में लिपटे हुई मछली), साली बोटी (आलू चिप्स के साथ मांस), रावो और फालूदा तैयार किए जाते हैं।

7 जमशोद नौरोज़ :-
जमशोद नौरोज़ पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का 3000 वर्ष पुराना त्योहार है। ईरानी कैलेंडर में पहले महीने (फर्ववर्ड) के पहले दिन नोरोज़,  विषुव का दिन जब उत्तरी गोलार्ध में वसंत की शुरुआत 20 या 22 मार्च का दिन है। इस पर निर्भर करता है कि इसे कहाँ देखा गया है। 

पारसी समुदाय :-
पारसी समुदाय वैज्ञानिक सोच व व्रत, उपवास व कर्मकांड मुक्त समाज है। खगोलीय परिकल्पना पारसी समुदाय की प्रमुखता रही है। आज यह समुदाय लुप्तप्राय है पर जितनी संख्या में हैं आर्थिक व सामाजिक स्थिति में सुदृढ़ हैं। भारत में होमी जहांगीर भाभा, जमशेद जी टाटा, दादाभाई नौरोजी व फ़िरोज़ गांधी प्रमुख पारसी समुदाय की हस्तियां रही हैं।

पारसी धर्म मे विवाह :-
ज्यादातर पारसी शादियाँ शाम को सूर्यास्त के बाद होती हैं। विवाह की पूर्व रस्मों या रीति-रिवाजों में माधव सरो शामिल है जो चार दिन पहले मनाया जाता है। 
दूल्हे और दुल्हन के परिवार वाले एक बर्तन में एक युवा पेड़ लगाते है व परिवार के पुजारी द्वारा पूजा पाठ किया जाता ह।

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार :-
पारसी धर्म में टावर ऑफ साइलेंस में अंतिम संस्कार किया जाता है. इसे दोखमेनाशिनी या दखमा भी कहा जाता है। यह एक खास गोलाकार जगह होती है जिसकी चोटी पर शवों को छोड़ दिया जाता है। खुले आसमान के हवाले शव का गिद्ध या अन्य जानवर सेवन करते हैं।
                  टॉवर ऑफ साइलेन्स

जिगर चुरुवी
9587243963

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