मारो - मारो का हल्ला सुनकर पूरा गांव उस तरफ दौड़ता चला आया।
सयाने समझदार लोग लड़ने वालों को ऐसा नहीं करने के लिए समझा रहे थे।
मुता गांव का नया - नया नेता खड़ा हुआ था। सरपंच का चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर रहा था। सामने बघेरा जो लंबे समय से नेतागिरी में था दम लगा कर तैयारी कर रहा था।
मुता घर से लड़ाई वाली जगह की ओर निकला, ने फोन निकाला और बघेरा के भाई चतुर से कहने लगा कि मैं आ रहा हूं, लोगों के सामने तुम्हें थोड़ा डांटुंगा तुम बुरा मत मानना, तुम अपनी जो बात हुई थी उस पर अड़े रहना, हम कितना भी कहें।
थोड़ी देर में लोगों ने दोनों भाइयों बघेरा और चतुर को एक जगह बैठा कर समझाना शुरू किया।
बघेरा ने बैठते ही कह दिया, जो तुम लोग करोगे हमें मंजूर होगा, बिना किसी शर्त के।
चतुर को मुता ने दो बातों पर अड़े रहने के लिए कह कर भेजा था, एक तो यह कि हमारा फैसला मुता के निर्णय के अनुसार होगा, दूसरा पहले के सब निर्णय हटा कर बघेरा मुझे 20 लाख जुर्माना दे।
पंचायत ने खूब समझाया, पर चतुर अड़ा रहा। वो बार - बार सभा से उठ कर फोन से मुता से निर्देश ले कर, उसके अनुसार अड़ा रहा।
पूरा दिन और पूरी रात निकल गई, पंचायत के लोग लगभग 20 घंटे बैठे पर चतुर नहीं माना।
अंत में बघेरा ने कहा ठीक है तुम्हारी सब शर्तें हमें मान्य हैं, अब तो खुश। पंचायत में दोनों की सहमति पर खुशी जताई, दोनों से बात पर अडिग रहने की लिखा - पढ़ी कर हस्ताक्षर करवा लिए।
थोड़ी देर में चतुर ने कहा दो मिनिट रुकिए, मैं लघु शंका कर के आता हूं। बाहर निकल कर उसने मुता को फोन लगाया, मुता ने कहा अपनी सब चाल समाप्त हो जाएंगी, तेरा बेटा पंच नहीं बन पाएगा, इसलिए कोई बहाना बना कर वहां से निकल जा।
चतुर अंदर आया, हाथ जोड़े और कहा अभी मेरे बेटे सहमत नहीं हैं, इसलिए समझौता नहीं हो सकता और चला गया। सभा के लोग भी अपने - अपने घर चले गए।
पांच - सात दिन बाद चतुर अपने घर की चार दीवार बनावा रहा था, उसमें जमीन कानी पड़ रही थी। बघेरे ने आ कर कहा, यार चतुर, दीवारें बार - बार नहीं बनती, इस जमीन को सीधा कर लो।
चतुर को लड़ने का बहना मिल गया, काम रोका, मुता को फोन लगाया और थाने में जा धमका।
इधर बघेरा को भी क्रॉस केस करने के लिए थाने जाना पड़ा। बघेरा सामाजिक और धार्मिक आदमी था, उसने थानेदार के ऑफिस में जाने से पहले जूतियां बाहर निकाल दीं।
चतुर ने बघेरा को देखा और आग बगुला हो गया। गुस्से में वह थानेदार की ऑफिस से बाहर निकला, बाहर थोड़ी बूंदाबांदी हो रही थी, उसकी नजर बघेरे की जूतियों पर पड़ी जो बाहर भीग रही हैं। अनायास ही उसने जूतियों को उठाया और बरामदे में रख दिया।
किसी काम से बघेरा भी बाहर आया, उसने जूतियां जहां निकाली थीं वहां ढूंढ़ी, पर नहीं मिली।
साथ आए कालू ने बताया कि आपकी जूतियां भीग रहीं थीं, चतुर ने उनको उठा कर बरामदे में रख दीं।
बघेरे की आंखों से आंसू झरने लगे, उसने सोचा कि मेरे भाई के दिल में मेरी जूतियों के लिए इतना प्यार है तो मेरे लिए कितना होगा।
उसने चतुर का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा, दोनों गले मिलकर खूब रोए और खुशी - खुशी घर आ गए।
शिक्षा - हर गांव में मुता बसता है। भाई आखिर भाई होता है।
लेखक - जिगर चुरूवी (शमशेर भालू खां सहजूसर)
No comments:
Post a Comment