श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्णिम गुरुद्वारा) अमृतसर
सिक्ख धर्मोपदेशक (निहंग)
(सिक्ख धर्म प्रतीक इक ओंकार साहिब)
अभिवादन :-
सत श्री अकाल
नारा :-
वाहे गुरु दा ख़ालसा वाहे गुरु जी दी फतह
सिक्ख शब्द व अर्थ :-
सिख शब्द संस्कृत भाषा के शब्द शिष्य से लिया गया है जिसका अर्थ है विद्यार्थी,ज्ञानार्थी। सिक्ख गुरु से शिक्षा लेता है। 10 गुरु मनुष्य व 11वें गुरु गुरुग्रन्थ साहिब से शिक्षा लेते रहते हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब में लिखे गये उपदेशों से गुरुओं के साथ छात्र-शिक्षक सम्बन्ध हैं।
सिख्या (शिक्षा) को ग्रहण करने वाला सिक्ख (शिष्य) है।
सिक्ख धर्म का सामान्य परिचय ;-
धार्मिक वाक्य - इक ओंकार
सिख धर्म का परम लक्ष्य मानव-कल्याण है।
तीन उपदेश
1 उद्यम कर के जीना
2 कमा कर सुख की प्राप्ति
3 ध्यान से प्रभु की प्राप्ति
सिक्ख धर्म के पाँच क :-
1 केश
2 कड़ा
3 कंघा
4 कच्छा
5 कटार
सनातन,बौद्ध, जेन, सिक्ख व दीन ए इलाही पाँच धर्म भारतीय मूल के धर्म हैं। जिनमे से सिक्ख धर्म लगभग 500 से 600 साल पुराना विश्व का नवीनतम धर्म है जिसके संस्थापक गुरु गोविंद सिंह जी हैं व इसका उदय पंजाब में हुआ।
गुरु गोविंद सिंह जी भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं,अंधविश्वासों,रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करने के लिये सिक्ख पंथ की स्थापना की। उन्होंने प्रेम,सेवा,परिश्रम,परोपकार एवं भाई-चारे की भावना को विकसित किया।
उदारवादी दृष्टिकोण व समन्वयकारी नीति के गुरु नानक देव ने सभी धर्मों पंथों की अच्छाईयों को सिक्ख पंथ में समाहित किया। उनका मुख्य उपदेश यही था कि ईश्वर एक है, उसी ने सबको बनाया है। हिन्दू मुसलमान सभी एक ईश्वर की कृति हैं और ईश्वर के लिए सभी समान हैं।
उन्होंने यह भी बताया है कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कार्य करने चाहियें जिससे जीवन के अंत मे परमात्मा के दरबार में उसे लज्जित नहीं होना पड़े।
सिख धर्म (खालसा पंथ भी कहलाता है
नानक देव ने गुरमत को खोजा और गुरमत की सिख्याओं को पूरे भारत(तत्कालीन) में खुद जा कर फैलाया। शेष नो गुरुओं ने गुरुमत का प्रचार किया। दसवें सिक्ख गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर उनको सौंपा। सिक्ख धर्म की परम्पराओं को गुरु गोबिन्द सिंह ने 30 मार्च 1699 को अंतिम रूप दिया।
विभिन्न जातियों के लोग ने सिख गुरुओं से दीक्षा ग्रहण कर ख़ालसा (फ़ारसी शब्द जिसका अर्थ है सार्वजनिक) पन्थ अपनाया। पंज प्यारों ने फिर गुरु गोबिन्द सिंह को अमृत देकर ख़ालसे में शामिल कर लिया।
सिख धर्म के धर्म स्थल को गुरुद्वारा कहते हैं। समान्यतः सिक्ख धर्म के दस गुरु माने जाते हैं।
गुरुनानक के उपदेशों को सबद कहा जाता है। उनके अनुसार शास्त्र पढ़ने के नहीं उनके अनुसार आचरण करने हेतु प्रकाशित हैं जो हम नहीं कर रहे हैं। धर्म व कर्मकांड को व्यापार बना दिया गया है। लोग धर्म के वाद-विवाद में पड़े रहते हैं।
गुरु नानक देव जी आदिग्रंथ (गुरु अर्जुन देव कृत ग्रन्थ) (सबद 6) में फरमाते हैं :-
पण्डित वाचहि पोथिआ न बूझहि बीचारू।
आन को मती दे चलहि माइआ का बामारू।
कहनी झूठी जगु भवै रहणी सबहु सबदु सु सारू।।
गुरु अर्जुनदेव आदिग्रंथ में फरमाते हैं (जिस प्रकार दूध में घी मिला हुआ है पर हम देख नहीं पाते वैसे ही परमात्मा कण-कण में हैं जिसे हम पहचान नहीं पाते :-
सगल वनस्पति महि,
बैसन्तरु सगल दूध महि घीआ।
ऊँच-नीच महि जोति समाणी,
घटि-घटि माथउ जीआ॥
ओंकार मन्त्र :- (मूल मन्त्र)
निरंकार
सिखमत की शुरुआत इक (एक) से होती है। सिखों के धर्म ग्रंथ में एक की ही व्याख्या हैं। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदिक गुणवाचक नामों से जाना जाता हैं। निरंकार का स्वरूप श्री गुरुग्रंथ साहिब के शुरुआत में बताया है
इक ओंकार
सतिनाम
करतापुरखु
निर्भाओ
निरवैरु
अकालमूर्त
अजूनी स्वैभंग
गुर पर्सादि
॥जपु आदि सचु जुगादि सचु॥
है भी सचु नानक होसी भी सचु॥
सिक्ख धर्म संक्षिप्त इतिहास :-
पंजाब व दक्षिण एशिया (पाकिस्तान और भारत) के 16वीं सदी के सामाजिक-राजनैतिक महौल से बहुत मिलता-जुलता है सिक्ख धर्म का इतिहास। दक्षिण एशिया पर मुग़ल सल्तनत (1556 से 1707) में लोगों के मानवाधिकार की रक्षा के लिये संघर्ष शुरू हुआ।
इस दौरान मुग़ल सल्तनत के विरुद्ध आमजन का सिक्ख जागिरों के अधीन सैन्यकरण हुआ। इनमें महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य में यह सेना एक ताक़तवर सेना थी व सिक्ख साम्राज्य इसाई, मुस्लिम सनातन धर्म के लोगों के लिए धार्मिक निरपेक्ष रहा। यह सिक्ख साम्राज्य कश्मीर लद्दाख़ और पेशावर तक फैला था।
खालसा फ़ौज़ में हरी सिंह नलवा प्रमुख जनरल थे, ने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा से आगे दर्रा-ए-ख़ैबर जीत कर सिक्ख साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
गुरु शोभा (गुरु गोविंद सिंह के निकटवर्ती साथियों द्वारा लिखा गया) में सिक्ख धर्म घटनाक्रम का उल्लेख है पर तिथियों की जानकारी नहीं हैं। श्री गुर परताप सूरज ग्रन्थ, गुर्बिलास पातशाही 10,श्री गुर सोभा मन्हीमा परकाश एवं पंथ परकाश, जनमसखियाँ जैसे ग्रन्थों में इतिहास मिलता है। अधिकांश सिक्ख इतिहास 1750 के बाद लिखा गया है |
सिक्ख इतिहास लेखक ज्यादातर सनातनी थे जिस कारण कुछ ऐतिहासिक पुस्तकों जम्सखिओं और गुर्बिलास में सत गुरुओं को चमत्कारी दर्शाया गया है जो गुरमत के अनुसार वर्जित है जैसे गुरु नानकदेव का हवा में उड़ना,मगरमच्छ की सवारी करना,माता गंगा का बाबा बुड्ढा द्वारा गर्भवती करना यह घटनाएँ अंधविश्वास को जन्म देती हैं।
सिख धर्म इतिहास को इतना महत्त्व नहीं देता बस गुरबानी समझने के काम आये उतना ज़रूरी है |
सिक्ख धर्म दर्शन :-
सिक्ख दर्शन निरंकारी दर्शन है जो किसी भी प्रकार के पाखण्ड,कर्मकांड व पूजा विधि विधान को नहीं मानता। इस धर्म मे चार पदार्थ महत्वपूर्ण माने गये हैं। जिनको प्राप्त कर जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
चार पदार्थ :-
1 ज्ञान (प्रेम)
2 मुक्ति
3 नाम
4 जन्म
(1) ज्ञान पदार्थ - इसे प्रेम पदार्थ भी कहते हैं। ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। गुरमत ज्ञान समझ कर भावनात्मक रूप से प्राप्त किया जा सकता है। मोह माया के त्याग से ही निरंकार की प्राप्ति संभव है।
(2) मुक्त पदार्थ - ज्ञान से ही मुक्ति मिलती है। मन व चित एकमेव हो जाता है तो जीव नाम का ध्यान (आराधना) कर जीवित मुक्त हो जाता है (मोक्ष)।
(3) नाम पदार्थ - नाम ध्यान (आराधना) से प्राप्त किया हुआ निरंकारी ज्ञान है। इसको
धुर की बानी भी कहा जाता हैं जो हृदय से सुनी जाती है जिससे तीन लोक का ज्ञान मिलता है। । यह नाम ही जीवित करता है।
धुर की बानी आई, तिन सगली चिंत मिटाई।
गुरु अर्जुनदेव
(4)जन्म पदार्थ - आत्मा व जीवन निराकार है।जिसे शरीर मिलने पर आकर मिलता है। प्रेम शरीर से नहीं आत्मा से है। न कोई दुःख है ना कोई सुख,न कोई पाप है न कोई पुण्य। गुरुदेव
नानकजी ने कहा है कि नानक नाम मिले तां जीवां।
गुरु गोविंद सिंह ने कहा है -
ज्ञान के विहीन लोभ मोह में परवीन
कामना अधीन कैसे पांवे भगवंत को।
पूजा कर्मकांड का खंडन :-
ईश्वर आकार रहित है। सांसारिक पदार्थ (आकार) का समाप्त होना तय हैं निरंकार ब्रह्म अजर-अमर है व यह कभी नहीं मरता जिसे अकाल (अनिश्चित,शाश्वत) कहा जाता है। आत्मा शरीर से कुछ समय के लिए बंधी है। जिसका अस्तित्व शरीर के बिना भी है।
सिक्ख धर्म मूर्ति पूजा के विरुद्ध है। सभी गुरुओं ने मूर्ती पूजकों को अँधा या जानवर जैसे शब्दों से उदृत किया है। अकाल का कोई आकार नहीं।
कब्र व मूर्ति की पूजा व्यर्थ है।
सिक्ख धर्म व भगवान/अवतार/पैगम्बर :-
सृष्टि का हर जीव अवतार है।
मानुख कि टेक बिरथी सब जानत, देने, को एके भगवान (मनुष्य के सामने माथा टेकना व्यर्थ है सिर्फ निरंकार ही पूजा योग्य हैं।)
ईश्वर अजन्मा (अजूनी) है। परमेश्वर का जन्म नहीं हो सकता। सृष्टि में हर जीव निरंकार का अंश है। अनेक जीवन भुगतने के बाद मोक्ष हेतु मानव जीव ज्ञान की पूर्णता के लिये अवतरित होता है। व्यक्ति की पूजा सिख धर्म में वर्जित है। सिक्ख मत इस्लाम धर्म की अवधारणा से सहमत है पर मोहम्मद साहब अंतिम पैग़म्बर हैं को नकारता है। सिक्ख धर्म के अनुसार ईश्वर का संदेश ले कर आने वाले हर समय आते रहे हैं व आते रहेंगे।
सिक्ख धर्म व आत्मा :-
आत्मा निराकार है उसके पास निरंकार के सिर्फ चार गुण व्याप्त हैं :-
1 औंकार
2 सतिनाम
3 करता पुरख
4 स्वैभंग
यह चार गुण प्राप्त करते ही जीव आत्मा वापस निरंकार में समां जाती है लेकिन उसको प्राप्त करने के लिए जीव आत्मा को खुद को गुरमत के ज्ञान द्वारा समझना ज़रूरी है। इसे सिख धर्म में आतम चिंतन कहा जाता है। निरंकारी मन (आत्मा) स्वरूप मन (परमात्मा),सुरत,बुधि,मति का ज्ञान इस धर्म की मूल शिक्षाओं में है व इन गतिविधिओं को समझ कर इंसान स्वयं को प्राप्त कर निरंकार मे समाहित हो जाता है। आत्मा स्वयं निरंकार का अंश है। इसका ज्ञान ही निरंकार का ज्ञान है।
आत्मा क्या
आत्मा का उद्गम स्थल
आत्मा का अस्तित्व
आत्मा को क्या करना है
आत्मा के विकार क्या हैं,
आत्मा की मुक्ति कैसे हो
सिक्ख दर्शनानुसार प्रेम,सेवा व सहयोग से ही मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
सिक्ख मतानुसार पाप -पुण्य में आत्मा का या शरीर का कोई वश नहीं। यह सब पूर्व में ही लिखित है जिसका मानव एक साधन मात्र है। मानव वही करता है जो हुक्म में है भला या बुरा करना हुक्म के अनुसार ही है।
हुक्मे अंदर सब है बाहर हुक्म न कोय
श्री गुरुग्रन्थ साहिब
अर्थात भले बुरे के लिये सिर्फ निरंकार (ईश्वर) ही जिम्मेदार है, मानव आत्मा या शरीर नहीं।
सिक्ख धर्म मे सम्प्रदाय :-
1 उदासीन पंथ :-
गुरू नानक द्वारा लहाना को उत्तराधिकारी बनाने पर रुष्ट हो कर नया पंथ उदासी पंथ स्थापित किया गया। सतगुर नानक के लडके इस बात से नाराज हुए और गुरु घर के विरोधी बन गए।
2 खालसा पंथ :-
गुरु तेगबहादुर की हत्या के बाद गुरु गोविंद सिंह ने सन(बैसाखी के दिन) 1699 में खालसा पंथ की स्थापना आनंदपुर साहिब में की। खालसा फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है सार्वजनिक। गुरु गोविंद सिंह ने इसे काल पुरख की फ़ौज नाम दिया। खालसा सिक्ख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों सामूहिक रूप है। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृत पान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृत पान किया।
सिक्ख अनुयायियों के पास पूर्व में कटार व केश तो थे ही गुरु गोविंद सिंह ने कच्छा,कड़ा व कंघा इस मे और जोड़ कर खण्डे बाटे दी पाहुल तैयार की व खालसे के नाम के साथ सिंह शब्द जोड़ा।
खंडे बाटे की पाहुल (अमृत संचार) :-
खंडा बाटा जंत्र,मंत्र व तंत्र से बना होता है जिसे पहली बार गुरु गोविंद सिंह ने बनाया था।
(A) जंत्र : सतनाम गुरु
(B) मंत्र - जपु साहिब,जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये,चोपाई साहिब,आनंद साहिब (5 बाणिया)
(C) तंत्र - पतासों (मीठा) को बाटे (बर्तन) के पानी में डाल कर मन्त्र पढ़ते हुये खंडे (दो धारी तलवार) से घोलना।
इस तैयार पतासे के शर्बत को पाहुल (अमृत) कहते हैं। इस को पी कर (अमृत छकना) साधारण सिक्ख खालसा फ़ौज का हिस्सा (अमृतधारी) बन जाता है यह पाहुल पाँचों को पिलाई गई और उन्हें पांच प्यारों के ख़िताब से निवाजा।
खालसा निर्माण व पंज प्यारे :-
अपने पिता गुरु तेग़ बहादुर की औरंगजेब के हाथों शहादत का गुरु तेगबहादुर ने खुलकर विरोध किया। सिक्ख धर्म की रक्षा हेतु गुरु गोबिंद सिंह ने सशस्त्र संघर्ष का निर्णय लिया जिसके लिये उन्हें ऐसे सिक्ख सैनिकों की ज़रुरत थी जो हर समय बलिदान देने के लिये तैयार रहें।
गुरु गोविंद सिंह आनंदपुर गये वहां उपस्थित समूह को तलवार से ललकार कर कहा मुझे एक सर चाहिये है कोई बलिदान करने वाला। बड़ी भीड़ में पहले सबका खून उबाल मार रहा था, ठण्डा पड़ गया। पहला बन्दा (1) दया सिंह आया जिसने कहा मैं तैयार हूं। गुरु गोविंद सिंह उसे पकड़ कर एक झोंपड़े में ले गये और खून सनी तलवार ले कर बाहर आ कर वही शब्द चार बार दोहराये और क्रमशः- (2) धर्म सिंह (3) हिम्मत सिंह (4) मोहकम सिंह (5) साहिब सिंह आते गये और गुरु उनको झोंपड़े में ले जाते रहे।
अंत मे पांचों को एक साथ बाहर लाये (झोपड़े में उन्होंने पहले से ही बकरे बांध रखे थे जिन्हें काट कर खून सनी तलवार बाहर ला रहे थे)(एक अन्य मत के अनुसार इन पांच साथियों के सर काट कर फिर से जोड़े)। इन पांच साथियो को पंज प्यारे नाम दे कर खंडे बाटे की पाहुल तैयार की।
खालसा का मह्त्व व गुरु गोबिंद सिंह :-
गुरु गोबिंदसिंह पंज प्यारों के निर्देशों की पालना करते थे। उदाहरण :-
1 पंज प्यारों ने गोबिंदसिंह को चमकोर का किला छोड़ने का हुक्म दिया उन्हें माना।
2 दादूदास की कब्र पर नमस्कार करने से रोकने पर माने।
3 खालसा के कहने पर ही गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह जफर की मदद उसके भाई के विरुद्ध लड़कर की।
सिक्ख धर्म में निहंग :-
(शस्त्रों के साथ सुसज्जित सिक्ख सिपाही)
निहंग से अभिप्राय है वो सिक्ख सिपाही जो दस गुरुओं के आदेशों के पूर्ण रूप से पालन के लिये तत्पर रहते हैं। दस गुरुओं के काल में उनके प्रहरी होते थे अब गुरुग्रंथ साहिब की रक्षा करते हैं।प्रहरी अब भी होते हैं।
निहंगों का व्यक्तित्व आक्रामक होता है। उनके धर्म प्रतीक आम सिक्ख से थोड़े मज़बूत और बड़े होते हैं। जन्म से लेकर जीवन के अंत तक जितने भी जीवन संस्कार होते हैं, सिख धर्म के अनुसार ही उनका से निर्वहन करते हैं l
सिक्ख धर्म में लंगर प्रथा :-
लंगर को संस्कृत में अनलगृह (जहां आग जलती है,चुल्हा) है। अनलगृह का अर्थ है- पाकशाला या रसोई घर। लंगर सूफी संतों द्वारा दीन-हीन भूखे लोगों को दिये जाने वाले भोजन से लिया गया शब्द है। गुरुद्वारों में प्रदान किए जाने वाले नि:शुल्क, शाकाहारी भोजन को लंगर कहते हैं। यह सभी धर्म,समाज व समुदाय के लोगों के लिये खुला होता है चाहे वे सिख हो या नहीं।
लंगर शब्द दो दृष्टिकोणों से इस्तेमाल होता है। सिखों के धर्म ग्रंथ में लंगर शब्द को निराकारी दृष्टिकोण से लिया गया है। साधारण अर्थ में रसोई को लंगर कहा जाता है जिसमे लोग इकट्ठे बैठ कर भूख - प्यास मिटाते हैं। निराकारी दृष्टिकोण के अनुसार किसी भी जीव-आत्मा का अपनी की भूख (ज्ञान से) बूझाने से है।
सिक्ख धर्म ग्रंथ में लंगर शब्द पहली बार सत्ता डूम व बलवन्त राय द्वारा प्रयोग में लिया। गुरु नानकदेव ने लंगर प्रथा श्री गुरू नानक देव जी के समय शुरू हुई थी। तीसरे गुरू अमरदास जी ने अमली रूप में लंगर प्रथा को शुरू किया।
सिक्ख धर्म की भाषा पंजाबी :-
पंजाबी हिंद-आर्यन भाषा समूह से (800 वर्ष) नवीन भाषा है जो भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित पंजाब के निवासियों (माझा क्षेत्र) की भाषा है। इसका दूसरा नाम लहम्ब्रा भी है। डोगरी पंजाबी की उपभाषा है। यह हिंदी,हिंदवी के नाम से भी जानी जाती थी।
लहंदी,टकसाली, खड़ीबोली, उर्दू, फ़ारसी, अरबी, पश्तो,हिंदी व संस्कृत के शब्दों से नई भाषा पंजाबी का जन्म हुआ। (वैसे उर्दू व पंजाबी का विकास समकालीन है) इसके स्थानीय रूप पश्चिमी पंजाब की बोलियों में मुलतानी, डेरावाली, अवाणकारी और पोठोहारी व पूर्वी पंजाबी की बोलियों में पहाड़ी, माझी, दूआबी, पुआधी, मलवई और राठी प्रसिद्ध हैं। (पश्चिमी पंजाबी और पूर्वी पंजाबी की सीमारेखा रावी नदी मानी गई है)। पंजाबी शब्द फ़ारसी के पंजाब (पांच आब अर्थात पांच नदी रावी,चिनाब,व्यास,सतलुज व झेलम क्षेत्र,जिसका पुराना नाम सप्तसिन्धु है) से बना है।
भाषा के रूप में पंजाबी शब्द का प्रयोग सन 1670 ईस्वी में शायर (कवि) हाफिज़ बरखुदार ने किया।
पंजाबी सहित्य समृद्ध है, आज पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तरी यूपी,जम्मू-कश्मीर, उत्तरी राजस्थान,पश्चिमी उत्तराखंड सहित दुबई,मस्कत
अमेरीका, कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया,इंग्लैंड,ताईवान व अन्य देशों में बोली जाती है।
पंजाबी गुरमुखी लिपि :-
(गुरुमुखी अर्थात गुरुओं के मुख से निकली हुई)। सिक्ख गुरुओं ने पंजाब में अपनी शिक्षाओं के सहज प्रचार के लिये नई लिपि को प्रचलित किया जिसे गुरुमुखी नाम दिया।
लिपि
कुल वर्ण - 35
कुल स्वर -3 (मात्रायें जोड़ के अन्य स्वर निर्माण)
व्यंजन - 32
गुरुमुखी व देवनागरी वर्ण :-
ਕ - क ਖ - ख ਗ - ग ਘ - घ ਙ - ङ
ਚ - च ਛ - छ ਜ - ज ਝ - झ ਞ -ञ
ਟ - ट ਠ - ठ ਡ - ड ਢ - ढ ਣ - ण
ਤ - त ਥ - थ ਦ - द ਧ - ध ਨ - न
ਪ - प ਫ - फ ਬ - ब ਭ - भ ਮ - म
ਯ - य ਰ - र ਲ - ल ਵ - व
ਸ਼ - श ਸ - स ਹ - ह ੜ - ड़
मात्रायें -
਼ - ़੍ - ्ਾ - ाਿ - िੀ - ी ੁ - ु ੂ - ू
ੇ - े। ੈ - ै ੋ - ो ੌ - ौ ਂ - ं ੰ - ं
स्वर चिह्न :-
ਅ - अ ਅ। - आ ਇ - इ ਈ - ई ਉ - उ
ਊ - ऊ ਏ - ए ਐ - ऐ ਓ -ओ ਔ - औ
अंक :-
0- ੦ -०
1- ੧ - १
2 -੨ - २
3 -੩ - ३
4 -੪ - ४
5 -੫ - ५
6 -੬ - ६
7 -੭ - ७
8 -੮ - ८
9 -੯ - ९
देवनागरी व गुरुमुखी में काफी समानता है पर उच्चारण में भिन्नता है।
सिक्ख धर्म उपासना पद्धति :-
नाम सिमरन :-
में परमात्मा का चिंतन अमृतवेला सुबह का ध्यान।
पाठ :-
गुरु ग्रंथ साहिब का भक्ति पाठ या दैनिक प्रार्थना।
नितनेम बनिस :-
पांच आवश्यक दैनिक प्रार्थनायें :-
खराब - माला का जपना।
कीर्तन - गीत में एक प्रार्थनापूर्ण पूजा।
अरदासी - याचिका की प्रार्थना।
ध्यान - सुबह का ध्यान .
हुक्म :-
गुरु का अध्यादेश (छंद) या हुकम को पढ़ना। हुकम एक पंजाबी शब्द है जो अरबी हुक़्म से आया है, जिसका अर्थ है आदेश।
अखण्ड पथ - व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से गुरु ग्रंथ साहिब लगातार पूरा पढ़ना।
गुरबानी पढ़ना :-
गुरुग्रंथ साहिब के भजनों को गुरबानी कहा जाता है।
नितनेम :-
नितनेम (रोजाना की प्रार्थना) नितनेम पांच प्रार्थनाओं का समूह है जिसे पंज बानिया के नाम से जाना जाता है।
सुबह की प्रार्थना :-
जपजी साहिब, जप साहिब, तव प्रसाद
रेहरास :-
शाम की प्रार्थना
कीर्तन सोहिला :-
सोने का समय प्रार्थना
सिक्ख धर्मग्रंथ :-
सिखों के धार्मिक ग्रन्थ श्री आदिग्रंथ साहिब (गुरुग्रंथ साहिब) तथा दसम ग्रन्थ हैं। इन धार्मिक ग्रन्थों में छः गुरुओं सहित तीस भगत की बाणी है जिनकी सामान शिक्षाओं के अनुसार हर सिक्ख को सत्यमार्ग पर चलने हेतु महत्त्वपूर्ण माना जाता है। गुरुमत संदेशवाहकों एवं गुरुओं की वाणी का संग्रेह जो सतगुरु अर्जुनदेव जी ने किया उसे आदिग्रंथ कहते हैं जो सिक्ख धार्मिक के रूप में प्रसिद्ध है।
आदिग्रंथ के बाद दसम ग्रंथ जो गुरु गोबिंद सिंह की वाणी का संग्रह है को मानते हैं | यह ग्रंथ खालसे के अधीन है।
यही नहीं सिख हर उस ग्रंथ को सम्मान देते हैं, जिसमे गुरमत का उपदेश व एक ईश्वर (अकाल ,निरंकार) का ज्ञान है।
गुटका -हाथ से पकड़ी जाने वाली प्रार्थना पुस्तक
अमृत कीर्तन - अमर अमृत का स्तोत्र।
पोथी - गुरबानी की पवित्र पुस्तक।
ए - गुरुग्रंथ साहिब में रचनाओं का संग्रह।
ग्रन्थ - एक धार्मिक पुस्तक जिसमें सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ जैसे गुरुग्रंथ या दशम ग्रंथ शामिल हैं।
1 आदिग्रंथ (गुरुग्रंथ साहिब) :-
(सिक्ख धर्मगुरुओं व साहित्यकारों की रचनाओं का समूह) :-
(आदिग्रंथ/आदि गुरुग्रंथ/गुरुग्रंथ साहिब/आदिगुरु दरबार/पोथी साहिब)
इस ग्रन्थ को आदि ग्रंथ इसलिये कहा जाता है कि इसमें आदि का ज्ञान है | जप बानी के अनुसार सच ही आदि है | इसका ज्ञान करवाने वाले ग्रंथ को आदिग्रंथ कहते हैं इसमें 1430 पृष्ठ हैं।
गुरु अर्जुन देव ने सिख धर्म को मजबूत व सुगम बनाने के लिये आदिग्रन्थ का संपादन व लेखन उनके भाई गुरदास जी ने 1604 में पांच गुरुओं की बाणी को शामिल किया जिसे गुरु गोविंद सिंह ने 30 मार्च 1699 को अपने पिता गुरु तेग बहादुर की बाणी को शामिल कर अंतिम रूप दिया। पूर्व में इसमें पाँच गुरुओं की बाणी थी गुरु तेग बहादुर की बाणी गुरु गोविंद सिंह ने जोड़ी। पाँच गुरुओं की बाणी आदिग्रन्थ व छठे गुरु की बाणी जो नहीं थी इस लिए यह आदि ग्रंथ गुरु गोबिंदसिंह जी ने नोवें महले की बाणी जोड़ी इसलिये यह आदिग्रंथ गुरुग्रंथ साहब कहा जाने लगा।
आदिग्रन्थ में छः (पहले पाँच थे) सिख गुरु की बाणी :-
1 गुरु नानक देव
2 गुरु अंगददेव
3 गुरु अमरदास
4 गुरु रामदास
5 गुरु अर्जुनदेव
6 गुरु तेग बहादुर
के अलावा पन्द्रह संतों की बाणी :- (778 पद)
1 सन्त कबीरदास (541 पद)
2 सन्त शेख़ फरीद (122 पद)
3 सन्त नामदेव (60 पद)
4 सन्त रविदास (40 पद)
5 सन्त जयदेव
6 सन्त त्रिलोचन
7 सन्त सधना
8 सन्त वेणी
9 सन्त रामानंद
10 सन्त पीपा
11 सन्त सैठा
12 सन्त धन्ना
13 सन्त भीखन
14 सन्त परमानन्द
15 सन्त सूरदास
आदिग्रंथ में पन्द्रह रचनाकारों की बाणी :-
1 हरिबंस
2 बल्हा
3 मथुरा
4 गयन्द
5 नल्ह
6 भल्ल
7 सल्ह
8 भिक्खा
9 कीरत
10 मरदाना
11 सुन्दरदास
12 राइ बलवंड
13 सत्ता डूम
14 कलसहार
15 जालप
के साहित्य को जाति धर्म के विभेद के बिना अपने ग्रन्थ में इनकी रचनाओं को शामिल किया।
उन्हें मालूम था इन सभी गुरुओं, संतों एवं कवियों का सांस्कृतिक, वैचारिक एवं चिन्तन का आधार एक ही है।
गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ को ‘गुरुपद’ पर आसीन कर आदिग्रन्थ को गुरु साहब के रूप में स्थापित किया। 1708 तक नौ अन्य गुरु उत्तराधिकारी हुये, गुरुशाही के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह द्वारा पवित्र सिख ग्रन्थ, गुरु ग्रन्थ साहिब में पारित किया गया जिसे सिक्ख अनुयायियों द्वारा जीवित गुरु माना जाता है।
2 दसम ग्रंथ :-
(गुरु गोबिंद सिंह जी की पवित्र वाणी एवं रचनाओ का संग्रह है)
गुरु गोबिंदसिंह जी की रचनाओं की अनेक छोटी पोथियाँ बना दी गईं। गुरु की मृत्यु के पश्चात उनकी धर्म पत्नी माता सुन्दरी,भाई मनीसिंह खालसा व अन्य खालसाओं ने गुरु गोबिंदसिंह की सारी रचनाओं को एक जिल्द में एकत्रित किया जो आजका दसम ग्रन्थ है।
जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिखों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह बाणियां खंडे-बाटे की पहोल (अमृत छकना) को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं। तखत हजूर साहिब, तखत पटना साहिब और निहंग सिंह के गुरुद्वारों में दसम ग्रन्थ का गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ ही रखा जाता है और हुकुम नामा लिया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी छोटी छोटी पोथियाँ बना दीं। उनके देह त्यागने के बाद उनकी धर्म पत्नी माता सुन्दरी की आज्ञा से भाई मणी सिंह खालसा और अन्य खालसा भाइयों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सारी रचनाओ को इकट्ठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया जिसे आज "दसम ग्रन्थ" कहा जाता है।
दसम ग्रंथ की वानियाँ जैसे की जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिक्खों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह बाणियां खंडे बाटे की पहोल, जिस को आम भाषा में अमृत छकना कहते हैं को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं।
दसम ग्रन्थ में दर्ज बाणियां -
1 जाप साहिब
2 अकाल उसतति
3 बचित्र नाटक
4 चंडी चरित्र उक्ति बिलास
5 चंडी चरित्र भाग दूसरा
6 चंडी की वार
7 ज्ञान परबोध
8 चौबीस अवतार
9 ब्रह्मा अवतार
10 रूद्र अवतार
11 शब्द हजारे
12 (33 सवैये)
13 सवैये
14 शास्त्र नाम माला
15 अथ पख्यान चरित्र लिख्यते
16 ज़फरनामा
17 हिकायतें
3 जफरनामा :-
(गुरु गोविंद सिंह द्वारा बादशाह औरंगजेब के नाम भावनात्मक व योद्धा के धर्म विषय पर फ़ारसी में लिखा पत्र)
ज़फरनामे में गुरु गोविंद सिंह ने ईश्वर की बड़ाई करने के साथ-साथ औरंगजेब के शासन-काल में हो रहे अन्याय तथा अत्याचार का मार्मिक उल्लेख है। इस पत्र में गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को नेक कर्म करने और प्रजा का खून न बहाने की नसीहतें की। इस पत्र से औरंगजेब के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ा।
4 सरबलोह :-
कई सरब्लोह प्रकाशित हैं उनमें से गुरु गोविंद सिंह की सरब्लोह (खालसा महिमा) ही सही प्रतीत होती है। शेष सिक्ख धर्म के मुख्य आधार इक ओंकार के विरुद्ध है।
5 गुरदास की वारें :-
गुरु अर्जुन देव के भाई गुरदास की वारों में मूर्ती पूजा व कर्मकांड जैसे शब्दों को शामिल किया गया है जो गुरमत शिद्धान्त के विरुद्ध शब्द दर्ज हैं।
6 आनंद साहिब :-
आनंद साहिब मे 40 श्लोक हैं जो पवित्र कार्यों पूजा सेवाओ, समारोहों के अंत में छः श्लोक काम मे लिये जाते हैं।
प्रमुख गुरुद्वारा साहिब :-
छठे गुरु गुरुहरगोबिंद जी ने गुरुद्वारा शब्द की शुरुआत की। गुरुद्वारा शब्द का अर्थ है गुरु का द्वार जो सिक्ख के लिए एक सभास्थल और पूजा स्थल है। जिसे गुरुद्वारा साहिब भी कहते हैं। यहां सिक्ख धर्मगुरु के आध्यात्मिक प्रवचन सुनने,वाहेगुरु की प्रशंसा ,सबद व वाणी गाने हेतु इकट्ठा होते हैं।
यहां एक दरबार साहिब होते है जहां गुरुग्रंथ साहिब केंद्रीय स्थिति में तख्त पर (एक ऊंचा सिंहासन) पर विराजते हैं। बाणी गायक मण्डली की उपस्थिति में रागी (जो राग गाते हैं) गुरुग्रंथ साहिब से छंदों का वाचन करते हैं।
सभी गुरुद्वारों में एक लंगर हॉल होता है जहाँ सेवकों द्वारा लंगर का सेवन कर सकते हैं। यहां चिकित्सा कक्ष, पुस्तकालय, नर्सरी, कक्षा, बैठक कक्ष होते है। गुरुद्वारे की पहचान दूर से झंडे (निशान साहिब) से की जा सकती है।
20 वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत में कई गुरुद्वारों का नियंत्रण उडसी महंतों (एक पादरी) के पास रहा जिस पर 1920 के गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के परिणाम स्वरूप शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने सभी गुरुद्वारों को अपने नियंत्रण में ले लिया। वर्तमान में दुनिया के लगभग सभी देशों में गुरुद्वारे कार्यरत हैं।
लगभग गुरुद्वारों (विशेषकर भारत में) में गुरुद्वारा हरिमंदिर साहिब स्थापत्य का अनुसरण किया गया है जो सिक्ख-इस्लामी वास्तुकला का मेल है।
गुरुद्वारों में कोई मूर्ति या प्रतिमा या धार्मिक चित्र नहीं होते।
1. गुरुद्वारा कन्ध साहिब-
बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहाँ बीबी सुलक्षणा से 16 वर्ष की आयु में 1485 में (शुक्ल पक्ष चौदस जेष्ठ माह संवत 1537 में विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर हर साल उत्सव का आयोजन होता है।
2. गुरुद्वारा हाट साहिब-
1499 में स्थापित। सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने अपने बहनोई जयराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भण्डार की देख-रेख की नौकरी की। वे यहाँ पर मोदी (मुनीम) बने। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को 'तेरा' शब्द के माध्यम से ज्ञान का आभास हुआ था।
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग-
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानकदेव जी का घर था जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचन्द और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ।
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब-
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी माँगी अपना प्रधानमन्त्री बनने का प्रस्ताव भी रखा।
5.गुरुद्वारा बेर साहिब-
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरु नानक मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे और अचानक नदी में डुबकी लगाकर तीन दिनों तक लापता रहे। जहाँ ईश्वर से साक्षात्कार हुआ। सबद एक ओंकार सतिनाम का जप करते हुये बाहर आये।गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया जो अब बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
6. गुरुद्वारा अचल साहिब-
गुरुदासपुर से यात्राओं के दौरान नानकदेव यहाँ रुके व नाथपन्थी योगी भांगर नाथ से आध्यात्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ।
7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक-
गुरुदासपुर में जीवनभर धार्मिक यात्राओं के बाद नानकदेव ने रावी नदी के तट पर एक स्थान पर डेरा जमाया। यहीं समाधि ली। पंजाब के गुरदास पुर जिले के डेरा बाबा नानक चेकपोस्ट से गुरुनानक जी के (पाकिस्तान पंजाब प्रान्त) के नारोवाल जनपद में स्थित समाधि-स्थल पर निर्मित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब (गुरुद्वारा दरबार साहिब) को जोड़ने वाले 4.5 किलोमीटर सड़क बनाई गई है।
8 गुरुद्वारा हरमंदर साहिब (स्वर्ण मंदिर) :-
अमृतसर के हरमंदिर साहिब, जिसे अनौपचारिक रूप से स्वर्ण मंदिर के रूप में जाना जाता है, भारत में सिखों का सबसे पवित्र गुरुद्वारा है, जो सत्ता की सिख सीट है।
9 श्री हजूर साहिब गुरुद्वारा नांदेड़ महाराष्ट्र :-
गुरु गोविंद सिंह की समाधि स्थल पर स्थित एक गुरुद्वारा जो पाँच टके में से एक है।
10 गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली :-
भारत के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक जिसे आठवें सतगुरु गुरु हरकृष्ण व परिसर में स्थित पूल के लिये जाना जाता है यह पूल सरदार नाम से प्रशिद्ध है।
11 गुरुद्वारा ननकाना साहिब :-
ननकाना साहिब गुरु नानक देव द्वारा ननकाना में (अब पंजाब, पाकिस्तान में) 1490 में स्थापित किया गया।
12 गुरुद्वारा करतारपुर साहिब :-
करतारपुर साहिब 1521 में गुरु नानकदेव द्वारा में स्थापित रावी नदी किनारे (अब नरोवाल पंजाब, पाकिस्तान में।)
13 गुरुद्वारा श्री खण्डूर साहिब :-
खण्डूर (ब्यास नदी के पास अमृतसर पंजाब) गुरुद्वारा खडूर साहिब 1539 में गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित किया गया।
14 गुरुद्वारा श्री गोइंदवाल साहिब :-
गोइंदवाल साहिब, 1552 में गुरु अमरदासजी द्वारा स्थापित ब्यास नदी के पास अमृतसर पंजाब में।
15 गुरुद्वारा श्री अमृतसर साहिब :-
1577 में स्थापित गुरु रामदास जी जिला अमृतसर पंजाब में स्थापित किया जिस की नींव मीर खान नाम के उनके मित्र ने रखी।
16 गुरुद्वारा श्री तरनतारन साहिब :-
1590 में पांचवें सिख गुरु, [गुरु अर्जन देव जी], जिला तरनतारन साहिब, पंजाब भारत द्वारा स्थापित किया गया था।
17 गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब :-
1594 में गुरु अर्जनदेव द्वारा ब्यास नदी के पास जालंधर में स्थापित किया गया था।
18 गुरुद्वारा श्री हरगोबिंदपुर साहिब :-
गुरु अर्जनदेव द्वारा स्थापित गुरुद्वारा (ब्यास नदी के पास गुरदासपुर में।
19 गुरुद्वारा श्री किरतपुर साहिब ;-
गुरु हरगोबिंद द्वारा 1627 में स्थापित किया गया था। सतलुज नदी किनारे जिला रोपड़ पंजाब में।
20 गुरुद्वारा श्री आनंदपुर साहिब :-
1665 में गुरु तेगबहादुर द्वारा सतलज नदी किनारे आनन्दपुर पंजाब में स्थापित किया गया।
21 गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
1685 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा यमुना नदी निकट हिमाचल प्रदेश के पावटा में स्थापित किया गया।
पंज तख्त :-
पंज तख्त जिसका शाब्दिक अर्थ है पाँच सिंहासन गुरुद्वारे जिनका सिक्ख समुदाय में अत्यधिक महत्व है। वे सिख धर्म के ऐतिहासिक विकास का परिणाम हैं। यह गुरुद्वारे सिक्ख धर्म शक्ति के केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। सिक्ख राजनीति के केंद्र।
1 अकाल तख्त साहिब स्वर्ण मंदिर अमृतसर :-
गुरु हरगोबिंद द्वारा सन 1609 में पहला अकाल तख्त साहिब (कालातीत का सिंहासन) स्वर्ण मंदिर अमृतसर के परिसर में स्थापित किया गया। तख्त श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर साहिब, पंजाब, भारत में स्थित है
2 तख्त साहिब दमदमा बठिंडा पंजाब :-
तख्त श्री दमदमा साहिब बठिंडा, पंजाब में स्थित है।
3 तख्त श्री हरमंदिर साहिब पटना बिहार :-
तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब पटना बिहार में स्थित है।
4 तख्त श्री हज़ूर साहिब नांदेड़ महाराष्ट्र :-
तख्त श्री हज़ूर साहिब नांदेड़ महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। गुरु गोविंद सिंह का समाधि स्थल।
5 तख्त श्री आनंदपुर साहिब :-
आनंदपुर पंजाब
कुछ शब्द व उनके अर्थ :-
1 शबद कीर्तन :-
ग्रन्थ साहिब से भजन गाना
2 पाठ :-
गुरु ग्रंथ साहिब से गुरबाणी का व्याख्या सहित वाचन।
पाठ दो प्रकार के होते हैं :-
A अखंड पाठ
B साधरण पाठ
3 संगत और पंगत :-
धार्मिक, क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, नस्लीय, जाति या वर्ग की संबद्धता की परवाह किए बिना, सभी आगंतुकों हेतु एकमेव रसोई घर प्रदान करना।
4 दरबार साहिब :-
पुरुष व महिलाओं के बैठने का स्थान (हॉल)।
5 नगर कीर्तन :-
पूरे समुदाय में पवित्र भजनों का जुलूस जो गुरुद्वारे में शुरू हो कर गुरुद्वारे पर ही सम्यन्न होता है।
6 सेवा :-
मनन्नतानुसार गुरुद्वारे में सेवा कार्य करना जैसे,पंगत को जिमाना, जूते साफ करना,बर्तन धोना, झाड़ू लगाना
7 सरबत खालसा :-
सभी खालसा समुदाय
सिक्ख धर्म मे गुरमत :-
गुरमत शब्द संस्कृत भाषा के गुरुमत से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है गुरु का मत या गुरु के नाम पर संकल्प।सिक्ख धर्मावलम्बियों द्वारा किसी धार्मिक,सामाजिक या राजनीतिक मुद्दे से संबंधित गुरु के नाम पर आयोजित की गई सभा में अपनाई गई सलाह या संकल्प ही गुरमत है। अठारवीं शताब्दी से इसका चलन शुरू हुआ जब अनिश्चितता का दौर शुरू हुआ। सभी सिक्ख बैसाखी के दिन अमृतसर के अकाल तख्त पर इकट्ठे हुये और गुरु ग्रंथ साहिब (जिनको 11वां जीवित गुरु माना गया है) की उपस्थिति में एक आसन्न स्थिति (आम के पीछा) में कार्रवाई की योजना बनाने के लिये एक साथ परामर्श लिया गया जिसका उद्देश्य था विचार-विमर्श से अंतिम निर्णय तक पहुंचना जिसे गुरमत कहा गया, खालसा ने नेतृत्व कर गुरु की मंजूरी (गुरुमत) को आगे बढ़ाया जिस पर सभी ने स्वीकार किया। गुरमत की शिक्षा गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाओं के अनुसार है। सन 1699 में खालसा पंथ की शुरुआत करते हुये उन्होंने कहा था कि खालसा पंथ में सिक्ख समुदायर के सभी सदस्य समान होंगे। 1708 में निधन से पहले उन्होंने घोषणा की कि जहाँ भी सिखों को गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में इकट्ठा किया जायेगा वहां गुरु स्वयं उपस्थित रहेंगे व गुरुग्रन्थ साहिब की उपस्थिति में सर्वसम्मति से ली गई सलाह खालसा की संयुक्त इच्छा का प्रतिनिधित्व करेगी।
सिक्ख धर्म में गुरमत एक सुस्थापित लोकतांत्रिक संस्था के रूप में उभरा।
बैसाखी व दीवाली के दिन वर्ष में दो बार सिक्ख एकत्रित हो कर अकाल तख्त पर राजनीतिक स्थिति का जायजा लेने,आने वाली समस्या से निपटने हेतु,नेतृत्व के चुनाव हेतु लोकतांत्रिक तरीके से बिना व्यक्तिगत रंजिश व आशक्ति के गुरुमत लिया जाता है।
गुरमत परम्परा :-
(1) 29 मार्च 1748 (बैसाखी) को पारित एक गुरमत के अनुसार खालसा की स्थापना करने का फैसला लिया गया इसके नेता जस्सा सिंह आहलूवालिया चुने गये। गुरमत अनुसार मान्यता प्राप्त सिक्ख जत्थों की संख्या 65 से घटाकर 11 कर दी गई। सभी जत्थों की मिसल रेकॉर्ड फ़ाइल) तैयार की गई। प्रत्येक जत्थे की संपत्ति अकाल तख्त में समाहित कर दी गई।
(2) 1753 में एक गुरमत ने राखी के त्योहार का औपचारिक समर्थन किया।
(3) 1765 में एक गुरमत को व्यक्तिगत नेतृत्व के स्थान पे सरबत खालसा के नेतृत्व को माना गया। 1765 में ही दूसरे गुरमत द्वारा लाहौर में एक सिक्का दीग ओ तेग ओ फतेह ओ नुसरत दिरंग,येफ्ट एज़ नानक गुरु गोबिंद सिंह (अर्थात गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह से प्राप्त समृद्धि, शक्ति और अमोघ विजय) ढलवाया गया।
(4) 1767 तक गुरमत की सत्ता यशस्वी रही पर व्यक्तिगत स्वार्थ व सत्ता सुख की भावना ने गुरमत के प्रभाव को क्षिण कर दिया।
(5) अंतिम गुरुमाता 1805 जो महाराजा रणजीत सिंह द्वारा आयोजित किया गया जो (जसवंत राव होल्कर का लॉर्ड लेक के अधीन ब्रिटिश सैनिकों के साथ सिक्ख साम्राज्य में प्रवेश से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा करने के लिये बुलाया गया, इसमें गुरु संप्रदाय शब्द सिख संप्रभुता समाप्ति के बाद पुनर्जीवित किया गया।
वर्तमान में सिंह सभा आंदोलन के उदय के साथ ही में सिक्ख सभा में आम सहमति (गुरमत) ने धार्मिक या सामाजिक रूप ले लिया।अकाली आंदोलन के बाद गुरमत एक राजनीतिक मुद्दा बन गया जिससे इसका महत्व कम होता चला गया।
सिक्ख धर्मगुरु (सतगुरु) :-
गुरु संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है शिक्षक या मार्गदर्शक। यह दो वर्णों का संयोजन है गु- अन्धकार व रु-प्रकाश अर्थात अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला गुरु कहलाता है।गुरु अंधेरे को मिटाकर प्रकाश को फैलता है।
सिक्ख धर्म गुरुओं का सहज,सरल व सादा जीवन मूल्यों पर आधारित रहा इन मूल्यों को उन्होंने परम्परागत भारतीय चेतना से ग्रहण किया। परिस्थिति अनुसा व्यक्तित्व को ढालकर तत्कालीन राजनैतिक,सामाजिक,धार्मिक,आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया।
सिक्ख गुरुओं ने अपने समय की सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित किया व नई दिशा दी। भक्ति,ज्ञान,उपासना,अध्यात्म व दर्शन को आम समाज व वंचित तक पहुंचाया। कर्मकांड के स्थान पर निर्गुण भक्ति को बढ़ावा दिया।
सिक्ख धर्म गुरुओं ने दार्शनिक एवं आध्यात्मिक चिन्तन द्वारा सतत सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना व शारीरिक अभ्यास व विनोदशीलता को जीवन का आवश्यक अंग माना। गुरुदेव ने लोकगीतों,सबद व बाणी के माध्यम से प्यार व भाईचारे का पाठ पढ़ाया।
दस सिक्ख धर्मगुरु :-
1 सतगुरु नानक देव
2 सतगुरु अंगद देव
3 सतगुरु अमर दास
4 सतगुरु राम दास
5 सतगुरु अर्जन देव
6 सतगुरु हरि गोबिंद
7 सतगुरु हरि राय
8 सतगुरु हरि कृष्ण
9 सतगुरु तेग बहादुर
10 सतगुरु गोबिंद सिंह
1 गुरु नानकदेव (नानक,नानक देव जी,बाबा नानक और नानकशाह) :-
सिख पन्थ के संस्थापक और एक सूफी साहित्यकार गुरु नानकदेव प्रथम (आदि )गुरु हैं। गुरु नानक दार्शनिक,योगी,गृहस्थ,धर्मसुधारक, समाजसुधारक व कवि गुणधारी थे।
नाम - नानक देव
जन्म -15 अप्रैल 1469
जन्मस्थान- राय भोई की तलवंडी,रावी नदी के किनारे (वर्तमान ननकाना साहिब पंजाब वर्तमान पाकिस्तान) तलवंडी का नाम अब ननकाना साहिब है।
मृत्यु -22 सितंबर 1539 (69 वर्ष)
मृत्यु स्थान - करतारपुर (नानकदेव ने बसाया)
गृहत्याग - 20 अगस्त 1507
गुरुपद प्राप्ति - 1499
पिता का नाम - लाला कल्याण राय मेहता (कालू जी)
माता - तृप्ता देवी
कुल (वंश) - खत्री(सनातन)
सहोदर - नानकी देवी (बहन)
विवाह - सुलक्खनी देवी से (लाखोकि गांव गुरदासपुर के मुलादेव की पुत्री)
विवाह का वर्ष - 1485 (16 वर्ष उम्र)
शिक्षा - लड़कपन से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा व पढ़ाई छोड़ कर अध्यात्म की ओर आकर्षित।
सन्तान -
1 श्रीचंद देव - 1501 तलवंडी (उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की)
2 लक्ष्मीदास - 1504
शिष्य - तलवंडी के जागीरदार बुलार राय व बहन नानकी देवी,(यात्राओं में साथ रहे मरदाना, लहना, बाला और रामदास
उदासियाँ -गुरु नानाक देव जी ने 1507 से 1521 तक चार यात्रा भारत,अफगानिस्तान, फारस और अरब क्षेत्र की पूरी कीं इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ कहा जाता है।
नानक दर्शन - नानक सर्वेश्वरवादी थे। बहुदेववाद मूर्तिपूजा के विरोधी थे।सन्त साहित्य में नानक नारी उद्धार को महत्व दिया।
सहित्यकाल - भक्तिकाल (निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा)
कार्य - सिक्ख धर्म संस्थापक,कवि,सन्त व समाज सुधारक
उत्तराधिकारी - शिष्य लहाना (दूसरे गुरु अंगद देव)
रचनायें - नानक भेदाभेदवादी कवितायें सूफी कविताओं की भाषा बहता नीर है। जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समाये हैं।
1 सबद - 974 सबद गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल
2 गुरुबाणी - 19 रागों में गुरबाणी में शामिल है। 3 जपजी,
4 सिद्ध गस्त
5 सोहिला,
6 दखनी ओंकार,
7 आसा दी वार,
8 पाती
9 बारह माह
विशेष :-
1 सिक्ख धर्म की स्थापना (सभी धर्मों की अच्छाईयों का संयोजन)
2 खड़ी बोली,उर्दू,फ़ारसी,हिंदी, सिंधी, अरबी व स्थानीय भाषाओं के मेल से नई भाषा पंजाबी का प्रादुर्भाव।
3 गुरु का लंगर प्रारंभ किया।
4 नई लिपि जिसे बाद में अंगददेव ने विकसित किया गुरुमुखी का चलन किया।
2 गुरु अंगद देव :-
नाम - अंगददेव
पूर्व नाम - लहनादास
पद - दूसरे घर्मगुरु सिक्ख धर्म
जन्म - 31 मार्च 1504
जन्मस्थान - हरिके गांव जिला फिरोजपुर पंजाब
पैतृक कार्य - व्यापार
मृत्यु - 29 मार्च 1552 (उम्र 48)
पिता - फेरूमल (मत्ते दी सराय,मुख्तसर,पंजाब से तरन तारन (अमृतसर के निकट) ब्यास नदी के किनारे स्थित खडूर साहिब नामक गाँव में बस गये।
माता - रामोदेवी
मूल धर्म - सनातन (दुर्गा के भक्त)
विवाह - 1520 में खिंवीदेवी से
सन्तान
1 दासूदास पुत्र
2 दातूदास पुत्र
3 अमरोदेवी पुत्री
4 अनोखीदेवी पुत्री
गुरुपद - 7 सितम्बर 1539 को
प्रवास - 8 साल करतार पुर में रहकर गुरु नानकदेव की मृत्यु के बाद खण्डूर साहिब आ गये
विशेष जीवन कार्य -
1 गुरु नानकदेव कृत पंजाबी लिपि के वर्णों में फेरबदल कर गुरूमुखी लिपि की एक वर्णमाला तैयार की।
2 कई विद्यालय व साहित्य केन्द्रों की स्थापना
3 युवकों के लिये मल्ल-अखाड़ा की प्रथा
4 बाला की मदद से गुरू नानक साहिब जी की जीवनी लेखन
4 उनके 62 श्लोक गुरुग्रन्थ साहिब में शामिल।
5 गुरू नानक जी के गुरू का लंगर प्रथा सशक्त बनाई।
6उत्तराधिकारी - अमर दास (1552)
3 गुरु अमर दास :-
नाम - अमर दास गोइंदवाल
जन्म - 5 मई 1479
जन्मस्थान - बसारके, पंजाब
निधन - 1 सितम्बर 1574 (उम्र 95)
समाधि - गोइंदवाल साहिब पंजाब
विवाह - मंसा देवी
सन्तान -
1 मोहनदास (1507 - 1567) पुत्र
2 मोहरदास (1514 - 1569) पुत्र
3 बीबी दानी (1526 - 1569) पुत्री
4 बीबी भानी (1532 - 1598) पुत्री
गुरुपद - 26 मार्च 1552
उत्तराधिकारी - गुरु राम दास (1.09.1574)
4 गुरु राम दास :-
24 सितम्बर 1534 1 सितम्बर 1581 46
नाम - रामदास
जन्मनाम -जेठा जी
जन्म - 24 सितंबर 1534
जन्मस्थान - चुना मंडी लाहौर
मृत्यु - 1 सितम्बर 1581
समाधि - गोइन्दवाल
पिता - हरिदास सोढा
माता - अनुपकोर (दयाकौर)
वंश - सोढा (खत्री)
व्यवसाय -उबले / भुने चने बेचना
गुरुपद - 1 सितम्बर 1574
विवाह - भानी देवी (गुरु अरदास की पुत्री)
सन्तान -
1 पृथ्बिचन्द
2 महादेव दास
3 अर्जुनदास
उत्तराधिकारी - कनिष्ठ पुत्र अर्जुनदास
विशेष -
1 चक रामदास (रामदासपुर)(अब अमृतसर) नगर बसाया।
2 अमृतसर सरोवर( सहलो जी एवं बाबा बूढा जी की देखरेख में)
3 मंजी पद्धति में सुधार कर पद्धति अपनाई।
4 आनंद कारज (विवाह) में चार लावों (फेरों) की रचना जर सरल विवाह की गुरमत मर्यादानुसार बनाये।
5 श्रीचंद जी के उदासी संतों व अन्य मतावलम्बियों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये।
रचनायें -
1 30 रागों में 638 शबद रचना (243 पौड़ी, 138 श्लोक, 31 अष्टपदी और 8 वारां) सभी गुरुग्रन्थ साहिब में अंकित।
5 गुरु अर्जुन देव :-
तेरा कीआ मीठा लागे, हरि नामु पदारथ नानक मांगे
नान - अर्जुन देव
पिता का नाम - गुरु राम दास । उनकी
माता का नाम - बीवी भानी
जन्म -15 अप्रेल 1563
जन्मस्थान - गोइंदवाल
मृत्यु - 30 मई 1606 (43 वर्ष उम्र में जहांगीर द्वारा शहीद किये गये)
शांत स्थान - लाहौर
वंश - सोढा (खत्री)
विवाह - गंगा देवी से 1579
गुरुपद - 1 सितम्बर 1581
विशेष -
1- 1590 ई. में तरनतारन के सरोवर को पक्का करवाया।
2 - शहजादा खुसरो को शरण देने के कारण अर्जुनदेव से नाराज होकर जहांगीर ने उन्हें 28 अप्रैल 1606 ई. को गिरफ्तार कर लिया।
रचनायें -
1 -राग गाउडी सुखमनी साहिब उनकी अमर वाणी है जिसमें चौबीस अष्टपदी हैं।
सुखमनीसुख अमृत प्रभु नामु।
भगत जनां के मन बिसरामु॥
6 गुरु हरगोबिन्द :-
नाम - हरगोबिंद दास
अन्य नाम - बाबा बन्दी छोड़
जन्म - 19 जून 1595
जन्मस्थान - गुरू की वडाली,अमृतसर
पिता -अर्जुनदास
माता -गंगा देवी
मृत्यु -28 फरवरी 1644 (उम्र 48 वर्ष)
गुरुपद -25 मई 1606
विवाह -
1 नानकी देवी
2 महा देवी
3 दामोदरी देवी
सन्तान -
1 गुरदिता पुत्र
2 सूरजमल पुत्र
3 अनि राय पुत्र
4 अटल राय पुत्र
5 तेग बहादुर पुत्र
6 बीबी बीरो पुत्री
उत्तराधिकारी - गुरु हरिराय
शांत स्थान - कीरतपुर पंजाब
शहर बसाया - कीरतपुर
विशेष -
1 अकाल तख़त का निर्माण
2 युद्ध में शामिल होने वाले पैहले गुरू
3 मीरी पीरी की स्थापना
युद्धों में भागिदारी -
1 रोहिला की लड़ाई
2 करतारपुर की लड़ाई
3 अमृतसर की लड़ाई
4 हरगोबिंदपुर की लड़ाई
5 गुरुसर की लड़ाई
6 कीरतपुर की लड़ाई
7 गुरु हर राय :-
नाम - हर राय
जन्म - 16 जनवरी 1630
जन्म स्थान - कीरतपुर, रूपनगर,रोपड़(पंजाब)
मृत्यु - 6 अक्टुबर 1661 (31 वर्ष आयु)
शांत स्थल - किरतपुर पंजाब
पिता - गुरदित्ता (गुरु हरगोबिंद के पोते)
माता - निहाल कौर
विवाह - किशन कौर 1697
गुरुपद - 3 मार्च 1644
उत्तराधिकारी - गुरु हरकिशन
सन्तान -
1 रामराय वडवाल (रामराय सिक्ख विरोधी व मुगल सल्तनत का पक्षधर होने के कारण पंथ से निष्कासित।)
2 हरकिशन
8 गुरु हर किशन :-
नाम - हरकिशन दास
जन्म - 7 जुलाई 1656
जन्म स्थान - किरतपुर पंजाब
मृत्यु - 30 मार्च 1664 (7 वर्ष आयु)
शांत स्थल - किरतपुर पंजाब
पिता -गुरु हरराय
माता - किशन कौर
गुरुपद - 6 अक्टूबर 1661 (5 वर्ष उम्र)
विशेष - पंजोखरा गुरुद्वारा की स्थापना
9 गुरु तेग बहादुर :-
20 मार्च 1665 54
नाम - तेग बहादुर
जन्म - 1 अप्रैल 1621
जन्म स्थान - किरतपुर
मृत्यु - 11 नवंबर 1675 (54 वर्ष उम्र)
पिता - गुरु हरगोबिंद
माता - नानकी देवी
सन्तान -
1 गोविंद सिंह
2 मनी सिंह
उत्तराधिकारी - गोविंद सिंह
उत्तराधिकारी - गुरु गोविंद सिंह
विशेष
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों पर स्थित हैं जहाँ गुरु तेगबहादुर की शहादत हुई वहीं उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
10 गुरु गोविंद सिंह :-
जन्म - 22 दिसम्बर 1666
मृत्यु - 7 अक्टूबर 1708 (44 वर्ष)
समाधि - नांदेड़, महाराष्ट्र
गुरु पद - 11 नवंबर 1675
पिता - गुरु तेगबहादुर
माता - गुजरी
सहोदर - मनी सिंह (खालसा)
विवाह - सुंदरी देवी
उत्तराधिकारी - गुरु गोविंद सिंह के बाद गुरुपद गुरुग्रंथ साहिब को स्थानांतरित हो गया।
सिक्ख धर्म में - खालसा पंथ संस्थापक
रचनायें -
1 दशम ग्रन्थ
1 पूर्व सत्गुरुओं की वाणी का निचोड़, सतगुर गोबिंद सिंह जी ने जाप साहिब बानी में ढाला
2 बचित्र नाटक (सत्गुरुओं की और अपनी आत्मिक वंशावली का ज़िक्र किया।)
3 चंडी चरित्र (मार्कण्डेय पुराण के आधार पर मूर्ति पूजा के विरुद्ध)
4 अथ पख्यान चरित्र लिख्यते ( इर्षा, द्वेष, काम और अन्य विकारों से ग्रसित चतुर महिलाओं और पुरुषों के चरित्र)
5 ज़फरनामा -औरंगजेब को सत्य मार्ग दिखाने हेतु)
6 ३३ सवैये- जप,माला व कर्मकांड का विरोध
7 शास्त्र नाम माला - शास्त्रों का सत्य ज्ञान
महाराजा रणजीत सिंह व उनका सम्राज्य :-
महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के सिक्ख सम्राज्य के राजा थे जिन्हें शेर-ए पंजाब के नाम से भी जाना जाता है। महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को एक सशक्त राज्य के रूप में एकजुट किया।
उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 को पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना। कोहिनूर हीरा (1 मार्च 1813 को शाह शूजा से संधि कर (पगड़ी बदल भाई बनकर) उसे शरण दी,शाह शुजा ने उन्हें कोहेनूर हीरा भेंट किया ) 1849 में दलीप सिंह से छीन कर अंग्रेज ले गये व महारानी विक्टोरिया के ताज में जड़ा।
नाम - रणजीत सिंह
उपनाम -
1) शेर ए पंजाब,
2) महाराजा 1201 को
जन्म - 1780 गुजरांवाला,पंजाब (अब पाकिस्तान)
मृत्यु - 27 जून 1839 लाहौर (1838 में लकवा हुआ)
वंश - जट सिक्ख
पिता - महासिंह (सुकरचकिया मिसल के कमांडर)
सन्तान -दलीप सिंह
रियासत - सन्ध्वलिया
राज्याभिषेक - 1792 (12 वर्ष)
राजधानी - लाहौर (1798)
राज्य - पेशावर,कश्मीर,पख्तून से आनन्दपुर तक
शिक्षा - नहीं
व्यक्तित्व - रंग- सांवला, कद - छोटा, एक आँख चेचक से चली गई थी।
विशेष -
(1) अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और
(2) हरमंदिर साहिब पर सोना मढ़वाया तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।
(3) अंग्रेजो की एजेंट (खुद की सास) को 1808 में बंदी बनाया।
(4) सन 1835 में काशी विश्वनाथ मंदिर को एक टन सोना दान किया जिससे उसके ऊपरी भाग पर स्वर्ण पत्र जड़ा गया।
(5) 1809 में लार्ड मिंटो से अपमानजनक सन्धि
(6) अंग्रेज,रणजीत सिंह तथा शाहशुजा के साथ एक त्रिगुट संधि।
(7) 1845 में अंग्रेजों ने सिक्ख सम्राज्य पर चढ़ाई की और सेनापति लालसिंह (अंग्रेजों से मिला हुआ) की गद्दारी से हार गये।
इस तरह समृद्ध सिक्ख सम्राज्य का अंत हो गया।
सिक्ख धर्म मे अंतिम संस्कार :-
सिक्ख धर्म मे अंतिम संस्कार दाह कर्म कर किया जाता है।
सिक्ख धर्म में विवाह संस्कार :-
सिक्ख धर्म मे विवाह चार फेरो से होती है। अन्य कर्मकांड नहीं होते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह साहब के मुस्लिम साथियों की क़ब्रें
नबी ख़ान
गनीं ख़ान
लुधियाना
जब गुरू गोविंद सिंह मछीवाङे के जंगल के पास अपने सिखों गुलाब सिंह व पंजाब सिंह के पास पहुँचे तो कुछ दिनो बाद ही मुगलिया हुकूमत के डर से गुलाबे और पंजाबे ने गुरू जी से कहीं और चले जाने के लिए कहा इस बात का पता जब दो पठान मुस्लिम भाईयो गनी खान जी और नबी खान जी को चला तो वे सम्मान के साथ गुरू गोविंद सिंह को अपने घर ले गये मुगल फौज घर घर तलाशी ले रही थी फिर भाई गनी खान और नबी खान ने सलाह करके गुरू जी को अपनी जान पर खेलकर मुगल फौज के घेरे से भेष बदलवाकर बाहर सुरक्षित जगह पर पहुंचाया और फौज से कहा कि यह हमारे उच्च के पीर हैं ।
उसी वक्त गुरू जी ने वरदान दिया कि गनी खान और नबी खान मेरे पुत्रों से भी बढकर हैं किसी भी सिख को यह वरदान प्राप्त नहीं है,
और सिखो को यह आदेश दिया कि कोई भी सिख गनी खान और नबी खान से मिलने खाली हाथ न जाए, आज भी सिख उनकी कब्र का सम्मान करते हैं
वहां गुरूद्वारा भी बना है लेकिन कब्रें आज भी सम्भाल कर रखी है।
वाहेगुरु जी
जिगर चुरुवी 9587243963
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