Thursday, 10 July 2025

✅यहूदी (ज्यूस) धर्म

इस्लाम, ईसाई , यहूदी व बहाई धर्म को जानने से पहले कुछ नबियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है :-

नूह (नबी)
लगभग 10 हज़ार साल पहले यहूदी धर्मग्रन्थ तौरेत (तोराह) के अनुसार नबी नूह के समय उनके क्षेत्र के लोग ईश्वर की सत्ता के स्थान पर अन्य देवी देवताओं को मानने लगे।
उनके बहुत समझाने पर भी लोग नहीं माने तो ईश्वर के आदेश अनुसार जल प्रलय का दिन नियत किया गया व नूह को एक बड़ी नाव बना कर उसमें सभी जीवों का एक-एक जोड़ा बैठाने का निर्णय लेने को कहा गया।
नूह स्वयं के पुत्र व पत्नी जो इंकार करने वालों में शामिल रहे को नहीं बचा सका।
निश्चित समय पर जल प्रलय हुआ व नाव में बैठे जोड़ों के अलावा शेष सभी मृत्यु को प्राप्त हो गये।

अब्राहम/ इब्राहिम (खलीलुल्लाह) (नबी)
नाम - इब्राहीम(अब्राहम)
जन्म - 4200 वर्ष पूर्व कासडिम
मृत्यु - 4100 वर्ष पूर्व हिब्रान

पत्नियाँ
1 सारा (सायरा)
2 हाजिरा (उपपत्नी)
3 केतुरा (कथूरा)

सन्तान
1 इस्माइल (नबी) (बनी इस्माइल)
2 इशहाक  (नबी) (बनी इसराइल/इजराइल)
3 इमरान  (नबी)
4 Jokshan (नबी)
5 Medan
6 Midian
7 इस्हाक़ 
8 शुएब  (नबी)

नातेदार (संबन्धी)
1 हारून (भाई)
2 नाहोर (भाई)
3 लूत (भतीजा)  (नबी)
4 लूत की पत्नी - भतीजी

विशेष :- इब्राहिमी धर्म के जनक

(इब्राहमिया शब्द का इस्तेमाल सितंबर 2020 में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के साथ इजराइल के साथ एक समझौते (USA की मध्यस्थता में इब्राहिमी धर्मों की एकता को आगे बढ़ाने हेतु राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प) पर हस्ताक्षर करने के साथ शुरू हुआ था। इन चारों धर्मों को अहले किताब भी कहते हैं।
इब्राहीमी धर्म उन धर्मों को कहते हैं जो एक ईश्वर को मानते हैं व इब्राहिम को ईश्वर का पैगम्बर।
इनमें यहूदी, ईसाई, इस्लाम और बहाई धर्म शामिल हैं। 
ये धर्म मध्य पूर्व में पनपे और एकेश्वरवादी हैं। यहूदी धर्म विश्व के प्राचीनतम 3000 साल पुराना धर्म है।)
इब्राहिम यहूदी, इस्लाम और ईसाई व बहाई चारों धर्मों के संस्थापक/ पितामह कहे जातें हैं। तोरात,कुरआन,इंजील,ज़बूर व बाईबल के अनुसार इब्राहिम/अब्राहम ईश्वर के भेजे हुये पैगम्बर थे।
आज से 4200 साल पहले लगभग 2000 ई.पू.इब्राहिम अकीदियन साम्राज्य के ऊर प्रदेश में अपने कबीले (इब्रानी) के साथ रहा करते थे।
कबीले में मूर्ति पूजा प्रचलित थी जिसका इब्राहिम ने विरोध किया व एकेश्वरवाद को बढ़ावा देने के लिये प्रचार करने लगे।
मूर्ति पूजा करने वाले लोगों ने इब्राहिम को बुत पूजा (मूर्तियों को पूजना) के लिये दबाव बनाया और एक दिन गुस्से में आ कर इब्राहिम ने सभी मूर्तियों को कुल्हाड़ी से तोड़ डाला।
मूर्तियों को तोड़ने व धर्म के विपरीत काम करने के जुर्म में इब्राहिम को आग में जला कर मारने की सज़ा सुनाई गई।
आग से बच कर वो अपने कबीले से व्यथित होकर ईश्वर की खोज में अपने परिवार के साथ एक लम्बी यात्रा पर निकल गये जो बाद में एक परम्परा बन गई इसे आज हम हज के नाम से जानते हैं।
यर्दन नदी की तराई के प्रदेश में पहुँच कर इब्राहिम ने  इज़रायली प्रदेश की नींव रखी (बनी इजरायल)। 
यहूदी मान्यता के अनुसार कालांतर में कनान प्रदेश में भीषण अकाल पड़ने के कारण इब्रानियों ने अन्न (गल्ला) के रूप में संपन्न मिस्र देश में जाकर शरण ली जहां कालांतर में उन्हें गुलाम (दास) बना लिया गया।
मक्का में काबा के पास एक स्थान बना है जिसे मक़ामे इब्राहिम कहा जाता है।

इस्माइल (नबी)  :-
70 साल की उम्र में माँ शायरा के पेट से जन्मे इब्राहिम के बेटे जिनको इब्राहिम ने ईश्वर के आदेशानुसार माँ सहित तपते रेगिस्तान हिजाज़ (मक्का) में छोड़ दिया जिसके एक तरफ ऊँची पहाड़ियां (सफा-मरवा) थीं व दूसरी तरफ तपते रेत के टिले।
यहां इस्माइल को प्यास लगी तो माँ ने पहाड़ियों पर चढ़ कर पानी की तलाश शुरू की पर जैसे ही बच्चे की याद आई दौड़ कर  वापस आ गई।
इस तरह से सात चक्कर पूरे हो गये और इस्माइल के पैरों की रगड़ से ज़मीन से पानी निकलना शुरू हुआ।
जिसे माँ ने रोकते हुये कहा "जम-जम" (रुक-रुक) कालान्तर में यहाँ कुआ बनवाया गया जिसे नाम दिया गया ज़मज़म।
इसी प्रकार से ईश्वर के आदेशानुसार इब्राहिम ने इस्माइल को ईश्वर के नाम बलि देने की कोशिश की जिसे इब्लिश ने तीन बार पिता,माँ व इस्माइल को बहका कर ईश्वर के आदेश को न मानने के प्रयास किये ओर तीनों ही बार शैतान को पत्थर मार कर भगा दिया गया।
आज भी हज में उनके द्वारा किये गये कार्यों को दोहराया जाता है व इस्माइल के स्थान पर ईश्वर द्वारा भेड़ को बलि हेतु प्रस्तुत करने की याद में हज के महीने (ज़ुल्हिज़्ज़) की 10 तारीख़ को ईद-अल-अज़्हा का त्योहार (ईद)(खुशी) मनाया जाता है।

लूत (नबी) :-
इब्राहिम के भतीजे लूत के समय भी उनके लोगों ने उनकी बात नहीं मानी और जल प्रलय (सिमित क्षेत्र में) आया था।

इशहाक  नबी :-
इब्राहिम के बेटे इशहाक ने भी अपने समय में बेहतरीन शासन प्रबन्ध कर इबरानी समुदाय का नेतृत्व किया । इन पर आसमानी किताब ज़बूर प्रकट हुई। इनके परिवार को बनी इजराइल /इसराइल कहते हैं। ईसाई (ईसा/यीशु) व यहूदी (मूसा/मोजेज) इसी कबीले से हैं।

याकूब नबी  :-
इशहाक के बेटे याकूब जो एक लड़की पसन्द आने पर शादी की मेहर के रूप में बारह वर्ष तक ससुर की भेड़-बकरियां चराई। (मेहर - वर पक्ष द्वारा वधु पक्ष की मांग अनुसार दिया जाने वाला कार्य,राशि आदि)
पिता की मृत्यु के बाद नबी बने।
उन्हें एक बार कोढ़ का रोग भी हो गया था जिससे उनके शरीर मे कीड़े पड़ गये।
उनके बारह बेटे हुये। बेटे यूसुफ की याद में रोते हुये वो आंखों से अंधे(नाबीना) हो गये।
इब्राहिम नबी से इस्माईल नबी, इशहाक नबी और आर्यन (एक भतीजे लूत भी नबी बने)
इब्राहिम पुराने निवास को छोड़ कर केनान आए। 
यूसुफ के दास से अजीज मिश्र बनने के बाद सभी मिश्र में आकर बस गए।

इशहाक नबी से याकूब नबी 
याकूब नबी के 12 बेटे एक बेटी
बनी इस्राएल के बारह गोत्र शाब्दिक अर्थ  इस्राएल के गोत्र हिब्रू इतिहास के याकूब (इस्राएल) के वंशज हैं, जो सामूहिक रूप से इस्राएली राष्ट्र कहा जाता हैं। ये गोत्र उसकी पत्नियों लिआ और राहेल , और उसकी रखैलों बिल्हा और जिल्पा से हुए।
इस्राएल के बारह पुत्रों से बारह कबीले बने। उनके नाम बड़े से छोटे के क्रम में निम्नानुसार हैं -  
याकूब की संतान का बाइबिल में संदर्भ के अनुसार (उत्पत्ति की पुस्तक) याकूब के 12 बेटों और एक बेटी का वर्णन है. ये 12 बेटे इस्राएल के 12 गोत्रों के संस्थापक माने जाते हैं। 
याकूब की दो पत्नियाँ
1. लिआ
2. राहेल
दोनों के पिता लाबान जो याकूब के मामा थे। 
दो दासियाँ
1. बिल्हा
2. ज़िल्पा
इनसे याकूब की संतानें निम्नलिखित हैं - 
1. लिआ से - 
1. रूबेन
2. शिमोन
3. लेवी
4. यहूदा
5. इस्साकार
6. ज़ेबुलून
7. बेटी दीना
2. राहेल से - 
1. यूसुफ
2. बिन्यामीन
3. बिल्हा (राहेल की दासी एवं सौतेली बहन) से - 
1. दान
2. नप्ताली
4. ज़िल्पा (लिआ की दासी) से - 
1. गाद
2. आशेर
सभी 12 बेटों का जन्म क्रम - 
01. रूबेन
02. शिमोन
03. लेवी
04. यहूदा
होरेस वर्नेट द्वारा निर्मित यहूदा (1840) यहूदा का चित्र
05. दान
06. नप्ताली
07. गाद
08. आशेर
09. इस्साकार
10. जबूलून
11. जोसेफ नबी (यूसुफ) (मिश्री नाम युजारसिफ) पत्नी जुलेखा ओर एक अन्य
12. बिन्यामीन

प्रतीकात्मक चिह्नो के साथ बारह जनजातियों और उनके हिब्रू नामों को दर्शाने वाला मोज़ेक - 
01. आशेर : एक पेड़
02. दान : न्याय का तराजू
03. यहूदा : किन्नोर , सीतारा और मुकुट, राजा दाऊद का प्रतीक है
04. रूबेन : दूदाफल
05. यूसुफ : ताड़ का पेड़ और गेहूं के पूले, मिस्र में उनके समय का प्रतीक है
06. नप्ताली : चिकारे
07. इस्साकार : सूर्य, चंद्रमा और तारे
08. शिमोन: शेकेम शहर की मीनारें और दीवारें 
09. बिन्यामिन: सुराही ,करछुल और कांटा
10. गाद : तंबू

यूसुफ (नबी) :-
याकूब के बारह बेटों में से सब से सुंदर बेटा जिस से शेष भाई जलन रखते थे ने उसे कुएं में डाल दिया व पिता को बताया कि यूसुफ को भेड़िया खा गया। यूसुफ को वहाँ से गुजर रहे व्यापारियों ने बाहर निकाल कर मिस्र में बेच दिया।
यूसुफ जुलेखा के प्रेम के किस्से प्रसिद्ध है। यूसुफ को सपनो की ताबीर(हक़ीक़त) बतानी आती थी।
बाद में उसे जेल में डाल दिया गया । राजा के सपने की सही ताबीर करने पर उसे वहां का मंत्री बनाया गया।
याकूब के क्षेत्र में अकाल पड़ा तो उस के भाई मिस्र से अनाज खरीदने आये यूसुफ ने उन्हें पहचान कर अपना कटोरा उनके अनाज के बोरे में डाल दिया जिसे याकूब ने देखा तो वह यूसुफ की निसानी को समझ गया और पूरे कुनबे सहित मिस्र आ गया। कालान्तर मेँ बनी इसराइल को मिस्र वासियों द्वारा दास बना लिया गया जो लगभग 400 वर्ष तक दासता में रहे।

हारून (नबी) :-
मूसा:-
 इब्राहिम के परिवार से ही मूसा व हारून नाम के दो नबी हुये। हारून मूसा के बाद नबी बने।

मूसा (कलीमुल्लाह) (नबी) :-
नाम - मूसा (Moses)
जन्म - जाशान(गोसेन) (प्राचीन मिस्र)
मृत्यु - नीबो पर्वत , मोआब
पिता -इमरान
माता - यूकाबद
1 मूसा 
2 हारून
3 मरियम

प्रसिद्धि -  पैगम्बर
पत्नी -
1 सफ़ूरा
2 कुसी महिल

सन्तान -
1 गरशोम
2 अलीअजर
नबी मूसा का जन्म मिस्र के गोशेन (जाशान)  शहर में हुआ था। मूसा का जन्म एक इब्रानी दास परिवार में हुआ था। राजा फराओ (फिरऑन) रोमेसस द्वितीय ने भविष्यवाणी के अनुसार गोशेन शहर में जन्म लेने वाले हर लड़के को मार डालता था सिर्फ लड़कियों को ज़िंदा रखता था।
मूसा की माँ युकाबद ने उसे एक सन्दूक में डाल कर नदी में बहा दिया। जो फिरओन की पत्नी आयशा को मिला जो निसन्तान थी। आयशा ने उसे पाल-पोश कर बड़ा किया। कालांतर मे उसे पता चला कि उस के कबीले के लोग इब्रानियों को गुलाम बना कर रखा हुआ है और उसने इस दासता से मुक्ति के लिये संघर्ष शुरू कर दिया।
आखिरकार  400 वर्ष बाद फराओ (फिरओन)  की गुलामी से बाहर निकालकर उन्हें कनान देश तक पहुँचाया व राजा(फराओ) व उसकी सेना को नील नदी में डुबो कर मार डाला।
मूसा को ही यहूदी धर्मग्रन्थ की प्रथम पाँच पुस्तक (किताबो) तौरात का रचयिता माना जाता है (इस्लाम धर्म के अनुसार तौरात एक आसमानी किताब है) इन्होंने ही ईश्वर के दस विधान व व्यवस्था इब्रानियों को प्रदान की थी।
बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में यहूदी धर्म का ही वर्णन किया गया है। जिसमे एक ही सर्वशक्तिमान् की सम्पूर्ण सृष्टि पर प्रभुसत्ता स्वीकार करते हुये अन्य उपास्य व देवताओं को नकार दिया गया है। उनके अनुसार बनी इसरायल सहित सम्पूर्ण सम्राज्य का एक ही सम्राट ईश्वर है।

बहाई धर्म :-
बहाई परंपरा का दावा है कि बहाउल्लाह अपनी पत्नी केतुरा (कथूरा) के माध्यम से इब्राहम के वंशज थे।
बहाई धर्म औपचारिक रूप से स्थापित कोई धर्म नहीं है, ना इसके कोई अनुयायी हैं और ना ही इसकी कोई नींव है।
इतिहासकारों का मानना है कि यह सिर्फ एक धार्मिक प्रोजेक्ट है जिसका इस्लाम,ईसाई और यहूदी धर्म के बीच समानता को देखते हुये इनका एकीकरण कर तीनों के बीच के मतभेदों को मिटाना ही मक़सद है।
ज़ाहिरी तौर पर इन तीनों धर्मों को अब्राहमी धर्म की श्रेणी में ही रखा जाता है।
अब्राहमिक धर्म के विचार का विरोध भी हो रहा है। कई लोगों का मानना है कि यह समन्वय बिठने की आड़ में एक राजनीतिक चाल है। इस नए धर्म का मुख्य मकसद अरब देशों के साथ इज़रायल के संबंधों को बढ़ाना है।
परन्तु इस्लाम धर्म इन तीनो धर्मो को अहले किताब (चार आसमानी किताब 1इंजील,2ज़बूर 3तौरात व 4कुरआन) मानता है व कुछ मुस्लिम जातियाँ इनसे वैवाहिक संबंध भी रखती हैं।

यहूदी धर्म या यूदावाद
इब्राहीमी धर्म मे चार धर्म हैं 
1 यहूदी (तौरात) (भाषा हिब्रू लिपि इब्रानी)
2 ईसाई (इंजील) बाईबल (भाषा हिब्रू लिपि इब्रानी )
3 इस्लाम (कुरआन) (भाषा अरबी लिपि अरबी)
4 बहाई
इब्राहीमी धर्म का प्रथम समुदाय यहूदी धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। यह धर्म विश्व का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना गया है। 
यहूदी धर्म 1948 में बने देश इजराइल का राजधर्म है जिसमे ईश्वर और उसके नबी यानि पैग़म्बर की मान्यता प्रथम है। यहूदियों के धर्म ग्रन्थों हीब्रू में लिखे गये हैं में से तनख़, तालमुद तथा मिद्रश प्रमुख हैं। 
यहूदी मान्यतानुसार यह ग्रन्थ सृष्टि की रचना से ही विद्यमान है। यहूदियों के धार्मिक उपासना स्थल (प्रार्थना) स्थल को सिनेगॉग कहते हैं। ईसाई व इस्लाम धर्म इसी में से निकसित हैं।
आज से लगभग 2750 वर्ष पूर्व लगभग 537 ई.पू. में बाबिल (बेबीलोन) से 40,000 लोगों का काफिला व बाद में अन्य समूह यरूसलम तथा उसके आसपास के 'यूदा' क्षेत्र में बसने के कारण इज़रायलियों के सामुदायिक संगठन व पूजा उपासना पद्धति को यहुदी (जुदी)(यदा) (यदाई,जुडी) कहा जाता है। यरूसलम का सिनेगॉग यहूदी धर्म का मुख्य केन्द्र है। 
निर्वासन के पूर्व से ही तथा निर्वासन के समय में भी इशहाक,लूत,याकूब और यूसुफ नामक नबी यहूदी धर्म को सृजित करते रहे।
सभी नबियों ने एकेश्वरवादी धर्म का उपदेश दिया।
यहूदियों की धार्मिक मान्यतनुसार यहया के साथ मसीह का जन्म जुडा क्षेत्र में होगा व निर्वासन के बाद जो यहूदी फिलिस्तीन लौटेंगे वे नए जोश से ईश्वर के नियमों पर चलेंगे और मसीह के सच्चे अनुयायी बनेंगें।
आगे  चलकर कई नबी और आये और यहूदी धर्म में नव संचार करते रहे पर समय निकलने पर यूदा के लोग जिनका मुख्य व्यवसाय व्यापार था जो बहुत सम्पन्न हो गये व स्वयं को ईश्वर की प्रजा समझने लगे उनमें दम्भ व आपसी शत्रुता बढ़ती गई। बाबीन व शेष समस्त यहूदी समुदाय यरुसलम को प्रथम धर्म स्थल व अपनी जाति को श्रेष्ठ नेता मानने लगे।

यहूदियों में शासन व्यवस्था 
राजा के स्थान पर ईश्वर (यहय्या) को राजा मानकर धर्म के नेता अथवा नबी को उसका प्रतिनिधि मानते थे।
यहूदी किसी भी प्रकार की मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं व अन्य धर्मों से स्वयं की श्रेष्ठता व घृणा के कारण यह सम्पूर्ण विश्व बिरादरी से अलग-थलग से हो गये। यहूदियों में अन्य धर्मों के साथ असमन्वय के साथ अति घृणा बसी हुई है।
नबी मूसा के समय ईश्वर के सन्देशों को संगृहीत कर मूसा संहिता का निर्माण किया गया जो बाद में समस्त जाति के धार्मिक एवं नागरिक जीवन का संविधान बन गई। गैर यहूदी इस शर्त पर इस समुदाय के सदस्य बन सकते थे कि वे याह्वे का पंथ तथा मूसा की संहिता स्वीकार करेंगे। 
बाईबल के उल्लेख के अनुसार मूसा संहिता में लिखा है कि मसीह के आने पर समस्त मानव जाति उनके राज्य में संमिलित हो जायेगी परन्तु सभी यहूदी इसमें सम्मिलित नहीं हो सके व जो बचे वो अन्य धर्मों के लिये कट्टर विचारधारा रखने लगे।
लगभग 2400 वर्ष पूर्व तक यहूदी धर्म पराकाष्ठा पर था पर शासक अन्तियोकुश के शासनकाल में 175 ईस्वी पूर्व यहूदियों पर यूनानी संस्कृति व व्यवस्था थोपने का प्रयास किया गया जिसका वहां के स्थानीय निवासी मक्काबियों व उनके साथियों ने विरोध कर अपनी संस्कृति बचाने के प्रयास किये।

यहूदियों के धर्मग्रन्थ :- 
यहूदी धर्म ग्रन्थ हिब्रू, इब्रानी व अरामी भाषा में लिखे गये जिनके नाम :-
1 तनख़
2 तालमुद 
3 मिद्रश
4 सिद्दूर
5हलाखा
6कब्बालाह

मूसा संहिता (तौरात) :-
 तौरात - इसमें पांच किताबों को शामिल किया गया है। जिनकी रचना मूसा ने की थी(आसमानी किताब -इस्लाम धर्म)। ये पांचों किताबें ही यहूदी परम्परा की नींव हैं। तौरात निम्नानुसार पांच किताबों का संकलन है
1 बेरेशित
2 शेमोत
3 वयिकरा
4 बेमिदबार
5 देवारिम  
मूसा ने बनी इसराइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है। किताब तौरात यहूदी धर्म की मूल अवधारणाओं की शिक्षा देने वाला धार्मिक ग्रन्थ है। बाईबल का प्रारंभ (ओल्ड टेस्टामेंट) भी इसी धर्मग्रन्थ से होता है। माना जाता है कि तौरात सबसे पहली किताब है जिसमें ख़ुदा ने अपने पैग़म्बर मूसा को जीवनयापन और उनकी बनी इसरायल की ओर अपने आदेश, व निर्देश आदि भेजे। 
मुस्लिम इसके महत्व को स्वीकारते हैं, लेकिन साथ ही यह भी मानते हैं कि यहूदियों ने असल किताब में बदलाव कर दिये जिससे इसका ईश्वरीय स्वरूप छिन्न-भिन्न हो गया।
मूसा संहिता यहूदियों के आचरण तथा उनके कर्मकाण्ड का मापदण्ड है किंतु कालान्तर में वे मूसा संहिता के नियमों की उपेक्षा करने लगे। ईश्वर तथा उसके नियमों के प्रति यहूदियों के इस विश्वासघात के कारण (बनी इसराइल) को मूल निवास बाबील से निर्वासित होना पड़ा। 
कुरआन के अनुसार बनी इसरायल (यहूदी) ने मूसा के मूल सन्देशों को रद्दोबदल कर उनके विपरीत व मर्ज़ी के अनुसार अर्थ निकाल लिये।
उस समय व आज भी बहुत से यहूदी प्रार्थना, उपवास तथा परोपकार द्वारा अपनी सच्ची ईश्वर भक्ति प्रमाणित करते रहे हैं।
इब्राहिम व उनके वंशजों को ईश्वर ने मोजज़ा (चमत्कार) प्रदान कर ज्ञान दिया कि वह स्वर्ग, पृथ्वी तथा सभी चीजों का सृजक व संहारक है। तौरात में ईश वंदना (इबादत) की रीति नीति निर्धारित व लिपिबद्ध है।

तनख ;-
 तौरात के बाद तनख यहूदियों का मुख्य धार्मिक ग्रन्थ है। इसकी रचना 600 से 100 ईसा पूर्व में विभिन्न लेखकों द्वारा विभिन्न देशों में की गई है। असल में हिब्रू बाइबल तीन अलग अलग शास्त्रों का संकलन है। जो कि प्राचीन यहूदी परम्परा का आधार हैं। अतः तनख़ के तीन भाग हैं-

नवीम:
इसमें पैगम्बर या नबियों की किताबें शामिल हैं, जिनकी संख्या आठ है।

केतविम:- 
इसमें ईश्वर की आराधना व भविष्यवाणियों की ग्यारह रचनाएं शामिल हैं। इस भाग में हजरत दाऊद का ज़बूर (तेहेल्लिम) का बहुत बड़ा भाग मिलता है।

तालमुद 
यहूदियों की परम्पराओं का संग्रह है। इसका रचनाकाल 5वीं शताब्दी ई.पू. से 3सरी सदी ई.पू. तक का माना जाता है। तालमुद दो तरह के शास्त्रों का सम्मिलित रूप है।
1 मिश्नाह
यहूदी रीति रिवाजों का वर्णन किया गया है।
2 गेमारा
यहूदी रब्बियों द्वारा सभी परम्पराओं पर लिखी गई टीकायें शामिल हैं।
यह दो प्रकार के है -
1.यरुशालेमी तालमुद
 2. बेबीलोनीयन तालमुद

मिद्रश :-
यहूदी धर्म व दर्शन का संकलन जिसका रचनाकाल 5वीं से 13वीं सदी के बीच का है। जो दो भागों में विभाजित है
1 पांच भागों में तौरात की विचारधारा पर लिखे भाष्य।
2 पांच भागों में नवीन रब्बियों द्वारा लिखित दर्शन व  टीकाये।

यहूदी उपासन पद्धति :-
यहूदी धर्म की उपासना यरूसलेम के मुख्य सिनेगॉग में केन्द्रीभूत थी। उस उपासना गृह की सेवा तथा प्रशासन के लिये याजकों (सिनेगॉग में सेवक) का श्रेणीबद्ध संगठन तैयार किया गया था। यहूदियों के अनुसार यरूसलम के सिनेगॉग में ईश्वर विशेष रूप से विद्यमान है, यह यहूदियों का द्दढ़ विश्वास था और वे सब के सब उस मंदिर की तीर्थयात्रा  (पवित्र यात्रा) कर ईश्वर के सामने उपस्थित होकर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर सकें। 
यहाँ के धार्मिक अनुष्ठान तथा त्योहारों के अवसर पर उसमें आयोजित समारोह यहूदियों को खूब आनन्दित किया करते थे। 
छठी शताब्दी ई.पू. के निर्वासन के बाद विभिन्न स्थानीय सभा घरों में भी ईश्वर की उपासना की जाने लगी।
प्रारम्भ से ही कुछ यहूदियों (और बाद में मुसलमानों ने) बाइबिल के पूर्वार्ध में प्रतिपादित धर्म तथा दर्शन की व्याख्या अपने ढंग से की है। ईसाइयों का विश्वास है कि ईसा ही बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के मसीह हैं किन्तु ईसा के समय में बहुत से यहूदियों ने ईसा को अस्वीकार कर दिया और आज भी यहूदी धर्मावलम्बी सच्चे मसीह की राह देख रहे हैं। 
मुस्लिम मान्यता अनुसार एक लाख चौबीस हज़ार या एक लाख चौरासी हज़ार सभी नबियों पर अवतरित पुस्तकें,उनकी उपासना पद्धति व संदेश आखिरी नबी मुहम्मद साहब के बाद से समाप्त व अमान्य कर दिये गये हैं व सभी के लिये आजीवन पृथ्वी के रहने तक एक पुस्तक,एक कुरआन, एक नबी मुहम्मद व एक ईश्वर (अल्लाह) की नवीन विधान मुस्लिम रिचुअल्स के अनुसार पूजा (इबादत) की जानी चाहिये।
तौरात व अन्य यहूदी पुस्तकों में निश्चित प्रार्थना पद्धति अथवा कर्मकांड का वर्णन पाया जाता है। नमाज़ की पद्धति में बदलाव है व यहूदी प्रार्थना समय से पूर्व अज़ान भी देते हैं जिसमे कह्ते हैं हासिम उनका खुदा है।
 
फ्लोरेंस के प्रार्थना स्थल :-
यहूदी सिनेगॉग में सामान्यतः प्रार्थना के लिए एक विशाल गृह (मुख्य पुजा स्थल) होता है।
यहाँ अध्ययन और सामाजिक कार्यों के लिये कार्यालयों के रूप में में छोटे मकान भी बने होते हैं। यहूदी उपासना गृह को पवित्र रिक्त स्थान माना जाता है जिन्हें केवल पूजा के काम में लिया जाता है।

इस्रराइली भाषाएँ
यह क्षेत्र मेसोपोटेमिया का ही प्राचीन भाग है जहाँ पहले सुमेरियन भाषा बोली जाती थी। फलस्वरूप सुमेरिया की भाषा ने पूर्वी सामी भाषाओं को बहुत प्रभावित किया। 
प्राचीनतम सामी भाषा अक्कादीय की दो उपशाखाएँ हैं :-
1 असूरी
2  बाबुली
सामी परिवार की दक्षिणी उपशाखा की प्रधान भाषाएँ हैं :-
1अरबी, (अरब)
2हब्शी (इथोपियाई)
3 साबा (अफ्रीकन)

सामी वर्ग की पश्चिमी उपशाखा की मुख्य भाषाएँ हैं :-
1 उगारितीय (3200 वर्ष पुरानी भाषा)
2 कनानीय 
(कनान क्षेत्र की भाषा,उगारीतिय से संबद्ध)
3 आरमीय (कनान क्षेत्र की प्राचीन भाषा)
4 इब्रानी (उपरोक्त तीनो के मिश्रण से बनी भाषा)

इब्रानी भाषा :- (इब्राहिम के कबीले की भाषा)
538 ईस्वी पूर्व यहूदियों के बेबीलोन से निर्वासन के बाद वे दैनिक जीवन में इब्रानी भाषा छोड़कर आरमीय भाषा बोलने लगे। इस भाषा की कई बोलियाँ प्रचलित थीं। ईसा भी आरमीय भाषा में बात करते थे। वर्तमान में यह लुप्त प्राय सी है।
माना जाता है कि 'इब्रानी' शब्द इब्राहिमी से निकला है। 
सामी- हामी भाषा-परिवार की सामी शाखा में आने वाली भाषाएँ हैं
1 इब्रानी 
2 हीब्रू 
3 इव्रित
4 इव्ख़्रित 
इब्रानी इस्राइल की मुख्य भाषा और राष्ट्रभाषा है। इसका पुरातन रूप तौराती इब्रानी यहूदी धर्म की धर्मभाषा है। 
तौरात, बाइबिल के पुराने नियम,टिका व भाष्य इसी में लिखे गये थे।
इब्रानी लिपि दायें से बायें पढ़ी और लिखी जाती है। पश्चिम के विश्वविद्यालयों में आजकल इब्रानी का अध्ययन बहुत लोकप्रिय है।
वास्तव में इब्रानी भाषा दार्शनिक विवेचना की अपेक्षा कथा साहित्य तथा काव्य के लिये अधिक उपर्युक्त है।
बोल-चाल में शताब्दियों से अप्रयुक्त इब्रानी भाषा का स्वरूप तथा उसका उच्चारण निश्चित करने के लिये प्रथम शताब्दी ईस्वी में यहूदी भाषा शास्त्रियों ने इब्रानी भाषा को लिपिबद्ध करने की एक नई प्रणाली का विकास किया।
सम्पूर्ण इब्रानी बाइबिल का नवीन भाषा प्रणाली अनुसार संपादन आठवीं से दसवीं शताब्दी में किया गया। 1524 ईस्वी सन में बेन ह्मीम ने इब्रानी का विशुद्ध संस्करण वेनिस में प्रकाशित किया। 
सन 1947 में फिलिस्तीन में मिली प्राचीन (पहली शताब्दी के लगभग) बाईबल पाण्डुलिपि मसोरा के परम्परागत अध्याय से लगभग मिलती जुलती थी।
मध्यकाल में इब्रानी लिपि की जर्मन,पोलिश,आरमिय व रूसी भाषा के मेल से एक विशेष इब्रानी बोली यिद्दिश की उत्पत्ति हुई थी जिसे जर्मनी के वे यहूदी बोलते थे जो पोलैंड और रूस में जाकर बस गये।
यिद्दिश का व्याकरण अस्थिर है परन्तु साहित्य समृद्ध है।

इब्रानी भाषा क्षेत्र :-
तुर्की व पश्चिम यूरोप में खासकर अन्वेषण, खोज व अनुसंधान करने वाले विश्वविद्यालय इब्रानी भाषा मे खूब काम कर रहे हैं।
1948  के बाद इजरायल की स्थापना  (यहूदियों का इज़रायल नामक नया देश) के बाद वहाँ की राजभाषा आधुनिक इब्रानी बनी। 
सन् 1925 ई.सन में यरूसलम में इब्रानी विश्वविद्यालय स्थापित किया गया जिसके सभी विभागों में इब्रानी माध्यम से शिक्षण कार्य किया जाता है। 
तुर्की,पश्चिम यूरोप व इज़रायल में कई अखबार इब्रानी में प्रकाशित होते हैं।

हीब्रू भाषा :-
यह भाषा आरमिय भाषा के शब्द हपिरू से बना हुआ है। हपीरू उत्तरी अरब के मरुस्थल में बसने वाली घुमक्कड़(यायावर) जनजाति थी जिसके यहूदियों से संबंध थे। (हपीरू शब्द का शाब्दिक अर्थ है विदेशी) शब्द  हीब्रू इसी से निकला है।
हिब्रू भाषा, इब्रानी लिपि में लिखी जाती है जो दाएँ से बाएँ लिखी-पढ़ी जाती है। यह भाषा सामी-हामी परिवार की भाषाओं में से एक है। 
यह यहूददियों की प्राचीन सांस्कृतिक भाषा है।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से 'सामी' शब्द नूह के पुत्र सेम से संबंध रखता है।
अन्य सामी भाषाओं की तरह हिब्रू की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं। 
1 धातुएँ प्राय: त्रिव्यंजनात्मक होती हैं। 
2 धातुओं में स्वर होते ही नहीं।
3 साधारण शब्दों के स्वर भी प्राय: नहीं लिखे जाते।
4 प्रत्यय और उपसर्ग द्वारा पुरुष तथा वचन का बोध कराया जाता है।
5 क्रियाओं के रूपांतर अपेक्षाकृत कम हैं।
6 साधारण अर्थ में काल नहीं होते, केवल वाच्य होते हैं।
7 वाक्यविन्यास अत्यंत सरल है, वाक्यांश प्राय: 'और' शब्द के सहारे जोड़े जाते हैं।
वक़्त के साथ-साथ हिब्रू का प्रचलन कम होता गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषा वैज्ञानिकों ने इसे भाषाओं की मृत सूची में डाल दिया। 

यहूदी,ईसाई,बहाई व इस्लाम धर्म में समानता :-
चारों ही धर्म की मान्यताओं के अनुसार ईश्वर एक है, अजन्मा है, न उसका कोई पिता है न वो किसी का पिता है। वह रूप,रंग व गन्ध,आकार-स्वरूप विहीन है।
जन्म के बाद मृत्यु सत्य है जिसके बाद कोई पुनर्जन्म नहीं होगा व व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक मिलेगी।
किसी अवतार या स्वरूप में कोइसे भी विश्वास नहीं करते। 
सम्पूर्ण सम्राज्य ईश्वर का है जिसे चलाने के लिये वह अपने दूत समय-समय पर भेजता रहता है वही उस सम्राज्य का संचालन ईश्वर के नाम से करता है।
कुरान में यहूदियों को बनी इसराइल भी कहा है जिस के अनुसार मूसा पर आसमानी किताब तौरात उतारी गई याकूब पर ज़बूर।
चारों धर्मों के ग्रन्थों के अनुसार ईश्वर पवित्र है जो सभी मनुष्यों को पाप से बचकर पुण्य जीवन जीना चाहिये। । ईश्वर न्यायी एवं निष्पक्ष है जो पापियों को दंड व पुण्य करने वालों को इनाम देगा। वह दयालु व क्षमादाता है जो हमसे पिता-माता से ज्यादा स्नेह करता है।
यहूदियों ने उस एक ही ईश्वर के अनेक नाम रखे  अर्थात एलोहीम, याहवे और अदोनाई। वैसे ही मुस्लिम में भी अल्लाह (ईश्वर) के 99 नाम लिखे जाते हैं।

यहूदी,ईसाई,इस्लाम व इस्लाम धर्म में भिन्नता :-
यहूदी परंपरा का दावा है कि इज़राइल की बारह जनजातियाँ अब्राहम से उनके बेटे इसहाक और पोते याकूब (जैकब) के वंशज हैं, जिनके बेटों ने सामूहिक रूप से कनान में इज़राइलियों का राष्ट्र बनाया जो सर्वश्रेष्ठ हैं।
इस्लामी परंपरा का दावा है कि इश्माइलियों के रूप में जानी जाने वाली बारह अरब जनजातियां इब्राहीम से अरब में अपने बेटे इस्माइल के माध्यम से निकली हैं। 
बहाई परंपरा का दावा है कि बहाउल्लाह अपनी पत्नी केतुरा (कथूरा) के माध्यम से अब्राहम के वंशज थे।

इजरायली,इस्माइली व बहाई धर्म में एक ही वंशानुगतता :-
कुरआन भी दीन ए इब्राहिम "इब्राहिम का धर्म" के अंतर्गत ही इस्लाम धर्म को मानता है।
बाईबल के अनुसार अब्राहम के वारिसों के बारे में परमेश्वर का वादा यहूदियों के लिए आदर्श बन गया, जो उसे "हमारे पिता अब्राहम" (अवराम अविनु) के रूप में बोलते हैं।  
ईसाई धर्म के उदय के साथ, प्रेरित पौलुस ने इब्राहीम को "सबका पिता" कहा है। जो खतना या खतनारहित हैं यह चारों धर्म इब्राहमि के धर्म से स्वयं को जोड़ते हुये इब्राहम के सीधे वंशज होने का दावा करते हैं।
इब्राहिम को तौरेत,ज़बूर,कुरआन व बाईबल में इसराइलयों के पूर्वज इसहाक के पिता के रूप में वर्णित किया है।
ईसाई धर्म के अनुसार  यहूदी इब्राहिम के पैतृक मूल से है (यीशु ईशा) इब्राहिम के वंशज हैं।
मुहम्मद साहब अरब क्षेत्र के रहने वाले थे मुसलमानों द्वारा इब्राहीम के बेटे मुहम्मद साहब को इब्राहिम के बेटे इस्माइल का वंशज माना गया है।यहूदी भी अरबों को इस्माइल का वंशज मानते हैं।
इस हिसाब से इब्राहिम के तीन पुत्रों मे से से :-
1 इस्माइल की संतान - इस्माईली या बनी इस्माइल (अरब) (मुस्लिम)
इसहाक की सन्तान - इसरायली या बनी इसराइल या यहूदी हुये। (ईसाई व यहूदी)
3 बहाउल्लाह की सन्तान - बहाई धर्म के अनुसार बहाउल्लाह इब्राहिम की पत्नी केतुराह की संतान हैं। (बहाई)

यहूदी,ईसाई व मुस्लिम धर्मों में विवाद का कारण :- 
यरुशलम (हिब्रू: येरुशलयिम‎, अरबी : अल-क़ुद्स) एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र है यहां एक प्राचीन मस्जिद है जिसका नाम है मस्ज़िद ए अक्सा जिसे (बैतुल्लाह) (बैतुल मुक़द्दस)(अल्लाह का घर) कहा जाता है पर मुस्लिम व यहूदी समूदायों का पारस्परिक दिवानी दावा है जिस पर दोनों ही धर्म अपना अधिकार मानते हैं। 
ईइजराइल और फिलिस्तीन द्वारा यरूसलम को अपने देश की राजधानी होने का दावा किया जाता है बस यही विवादित कड़ी है यरुसलम यहूदी ,ईसाई व इस्लाम तीनों की पवित्र नगरी है।
इतिहासकारों के अनुसार यरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र और राजधानी रहा है। यहीं यहूदियों का परम पवित्र सोलोमन उपासना गृह रहे हैं। इसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था यरूशलम शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि भी रहा है व यहीं से मुहम्मद साहब मेराज (ईश्वर लोक) पर गये।

विवाद क्षेत्र:-

फिलिस्तीन :-
फिलिस्तीन लगभग तीन हज़ार साल पहले बेबीलोन और मिस्र के मध्य का भू-भाग जो मुख्य व्यापारिक क्षेत्र बनकर उभरा।
लगभग दो हज़ार साल पहले यहाँ मिस्र व हिक्सोसों का आधिपत्य था। 1300 इसा पूर्व (3500 वर्ष पूर्व) मूसा ने यहूदियों (बनी इसरायल) का नेतृत्व करते हुये मिस्र से फिलीस्तीन की तरफ़ (दास इसराइलियों को मुक्ति दिलवाने बाबत) कूच किया। 
हिब्रू (यहूदी) लोगों पर फिलिस्तीनियों का राज था। ईस्वी पूर्व सन् 1000 में इब्रानियों (हिब्रू, यहूदी) ने दो राज्यों की स्थापना की
1 इसरायल 
2 जुडाया
ईसा पूर्व 700 (2900 साल पहले) तक यहाँ बेबीलोन क्षेत्र के राजाओं का अधिकार हो गया। और यहूदियों को यहाँ से निर्वासित कर दिया गया।
लगभग सन 538 ईसा पूर्व फ़ारस (पर्सिया) के हख़ामनी शासकों ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर यहूदियों को पुनः इन प्रदेशों में लौटने की स्वीकृति प्रदान की जिसके कारण यहूदी धर्म पर जरथुस्त धर्म का प्रभाव पड़ा एवं इस ही समय यहूदियो ने अपना दूसरा सिनेगॉग यरुशलम में स्थापित किया।
332 इसा पूर्व (2550 वर्ष पूर्व) सिकन्दर के आक्रमण तक यहाँ स्थिति शांतिपूर्ण बनी रही पर उसके बाद रोमनों के शासनकाल मे फिलिस्तीन क्षेत्र में दो विद्रोह हुये :-
1 ईस्वी सन्  66 का विद्रोह
2 ईस्वी सन् 132 का विद्रोह
रोमनों ने दोनों ही विद्रोहों को काबू में कर लिया 636 में खिलाफत काल में यहाँ अरबों का शासन हो गया। (उस्मानी ख़िलाफ़त)
636 के बाद इस क्षेत्र में अरबों का प्रभुत्व बढ़ता चला गया। इस क्षेत्र में यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों आबादी रहती थी व तीनों में ही आपसी युद्ध होते रहे हैं। ईस्वी सन 1517 में तुर्कों ने फिलिस्तीन पर अधिकार कर लिया।
1948 से पहले यह पूरा क्षेत्र फ़िलिस्तीन कहलाता था जो खिलाफ़त उस्मानिया में स्थापित किया गया था।
बाद में अंग्रेजों और फ़्रांसीसियों ने इस पर कब्जा कर लिया। सन 1948 में यहाँ के अधिकांश क्षेत्र पर इजराइल देश की स्थापना कर विश्व में बिखरे सभी बनी इजरायल को यहाँ बसाया गया। जिसका पाँच पड़ोसी मुस्लिम देशों ने विरोध किया पर ताकतवर अमेरिका का सानिध्य होने के कारण यह बीतते समय के साथ शक्तिशाली होता गया।
फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा इजरायल के क़ब्ज़े के वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर दावा करता रहा है जिनके मुखिया यासर अराफात थे।  
इसी क्षेत्र में यरुशलम शहर है जो फलीस्तीन की सैद्धान्तिक राजधानी है परन्तु वर्तमान में वास्तविक व प्रशासनिक राजधानी रामल्ला शहर है जिसके नियंत्रण में वेस्ट बैंक के 167 "द्वीपों" और गाजा पट्टी के आन्तरिक भाग हैं।
यरूशलम राजधानी (फिलिस्तीन व इजरायल) होने के अलावा यह एक महत्‍वपूर्ण पर्यटन स्‍थल भी है जहाँ 158 गिरिजाघर (कलेशा) 73 मस्जिदें व कई सिनेगॉग मौजूद हैं इसके अलावा यरूशलम में कई और दर्शनीय स्थल हैं जिनमे से महत्वपूर्ण नाम निम्नलिखित हैं :-
1 द इजरायल म्‍यूजियम यादे भसीम
2 नोबेल अभ्‍यारण, 
3 अल अक्‍सा मस्जिद, 
4 कुव्‍वत अल सकारा, 
5 मुसाला मरवान, 
6 सोलोमन टेम्पल, 
7 वेस्‍टर्न वॉल, 
8 डेबिडस गुम्‍बद 

द इजरायल म्यूजियम :-
इस म्‍यूजियम में प्रवेश का कोई शुल्‍क नहीं है। दस वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों को म्‍यूजियम के सभी भागों में प्रवेश की अनुमति नहीं है।

द नोबेल अभयारण्य :-
यह अभ्‍यारण यरुसलम शहर के क्षेत्र के मुस्लिम भाग में स्थित है। शहर के इस भाग में मुस्लिम काल के उम्‍मयद शासन से लेकर ऑटोमन (तुर्की) सम्राज्य तक की बनी महत्‍वपूर्ण इमारतों को देखा जा सकता है। 
यह भाग उस समय से लेकर आज तक मुस्लिम धर्म की शिक्षा का महत्‍वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। यह अभ्‍यारण 35 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस अभ्‍यारण में फव्‍वारे, बगीचे, गुम्‍बद आदि बने हुए हैं।

अल-अक्सा मस्जिद :-
अक्सा मस्जिद से इस्‍लाम धर्म की उत्‍पति मानी जाती है कुरआन व हदीष के अनुसार मस्जिद अक्सा से ही अंतिम पैंगम्‍बर मुहम्‍मद साहब मेराज के लिये बुर्राक पर सवार हो कर गये थे। मुसलमानो की यह बहुत पुरानी मस्जिद है काबा से पूर्व  सभी मुसलमान इसकी तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ते थे।

कुव्‍वत अल सकारा 
येरुशलम में तीन धर्मों का संगम होता है जहाँ सिनेगॉग, गिरजा व मस्जिदों की संख्या खूब है।
नोबेल अभ्‍यारण के मध्‍य में अल-अक्सा मस्जिद के ठीक विपरीत दिशा में स्थित एक इमारत जिसकी दिवारें अष्‍टकोणीय हैं कुव्वत अल सकारा नाम से प्रसिद्ध है।
यरुसलम शहर का यह भाग सबसे महत्‍वपूर्ण भाग माना जाता है। इस इमारत का गुंबद सोने का बना हुआ है जिसे अरबी शैली में सजाया गया है।

इजरायल संग्रहालय 
इस म्‍यूजियम में प्राचीनतम ग्रंथ रखे हुए हैं। इजरायल म्‍यूज़ियम में प्राचीन शहर का मॉडल भी रखा हुआ है। इसमें पुरातात्‍विक वस्‍तुओं का भी अच्‍छा संग्रह है। इस म्‍यूजियम का अधिकांश भाग 2010 ई. तक पुर्नर्निमाण कार्यों के कारण आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है।

मुसाला मरवान 
उम्‍मयद शासन काल में 8वीं सदी में बनी यह संरचना नोबेल अभ्‍यारण के दक्षिणी भाग में स्थित है जिसका उपयोग नमाज पढ़ने के लिये किया जाता है।

सोलोमन टेंपल 
बाइबिल अनुसार अब्राहिमियों (हीब्रू समुदाय) का प्रथम उपासना गृह जिसका निर्माण 10वीं शताब्‍दी ईसा पूर्व (3200 साल पहले) करवाया गया था। 
इस उपासना गृह को बेबीलोन के शासकों द्वारा 586 ई. तोड़ दिये जाने पर बाद में पुर्नर्निमाण भी करवाया जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं को देखा जा सकता है।

वेस्‍टर्न वॉल :-
यरूशलम के पुराने भाग में स्थित ईसाई धर्म से संबंधित वेस्टर्न वाल रॉक कोटेल नाम से भी प्रसिद्ध है का निर्माण 19वीं शताब्दी में करवाया गया था।

दाऊद के गुम्‍बद :-
यह गुम्‍बद पुराने शहर में जियोन पहाड़ी पर बना हुआ है। हिब्रू बाइबिल के अनुसार डेविड/दाऊद को यहीं पर दफनाया गया था। आधुनिक खुदाई द्वारा हम्मुराबी के अवशेष मिले हैं।

वर्तमान समय मे यहूदी धर्म व स्थिति :-
1948 में जर्मनी से मुक्त करवाये गये व बाद में शेष वविश्व के यहूदी धर्म के मानने वालों का राष्ट्र (दौलत ए इसरा'ईल) दक्षिण पश्चिम एशिया में स्थित एक देश है जो दक्षिणपूर्व भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसके उत्तर में लेबनांन, पूर्व में सीरिया और जॉर्डन तथा दक्षिण-पश्चिम में मिस्र (सभी इस्लामिक देश) हैं।

इज़राइल देश :-
राष्ट्रगान -हातिकवाह आशा
राजधानी 
दावा - येरुशलम 
वास्तविक -तेल अवीव
सबसे बड़ा नगर - यरुशलम
राजभाषा- हिब्रू, अरबी,इब्रानी
धर्म
1 76% यहूदी
2 19% अरब (मुस्लिम)
3  5% अन्य 

स्वतन्त्रता व स्थापना - 14 मई 1948 फिलिस्तीन का ब्रिटिश जनादेश घोषणा पत्र।
इस दिन दुनिया भर में यहूदी लोगों ने आज़ादी का जश्न मनाया। मौक़ा दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के 3 साल पश्चात नया देश इजराइल बना परन्तु पड़ोसी अरब देशों ने इसराइल की आज़ादी स्वीकर नहीं की। 
15 मई 1948 को  पांच मुस्लिम देशों की सेनाओं ने नये बने देश पर हमला कर दिया जिसे अमेरिका सहित मित्र राष्ट्र सेना ने विफल कर दिया व इजराइल को संरक्षण प्रदान किया।

नागरिकता का नाम:- इजराइली/इसराइली

क्षेत्रफल
कुल - 22,072 km2 (विश्व का 150वा देश)
मुद्रा - इजरायली नई शेकेल (ILS)

स्थिति व अवस्थिति
इज़राइल, गोलान हाईट्स व पूर्वी यरुशलम के सारे स्थायी निवासी शामिल। वेस्ट बैंक(पश्चिमी पट्टी) की इज़राइली आबादी भी इसमें सम्मिलित है।
मध्यपूर्व में स्थित यह देश विश्व राजनीति और इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इतिहास और प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार यहूदियों का मूल निवास रहे इस क्षेत्र का नाम यहूदी,इसाई व इस्लाम धर्मों में प्रमुखता से लिया जाता है। 
यहूदी मध्यपूर्व और यूरोप के कई क्षेत्रों में फैल गए थे। उन्नीसवी सदी के अन्त में व बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में यूरोप में यहूदियों के ऊपर बहुत अत्याचार हुये। जिसके कारण यूरोपीय (तथा अन्य) यहूदी अपने क्षेत्रों से भाग कर यरुशलम और इसके आसपास के क्षेत्रों में लौटने लगे व नये देश की स्थापना की।
यरूशलम इसरायल की राजधानी है पर अन्य महत्वपूर्ण शहरों में तेल अवीव का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यहाँ की प्रमुख भाषा हिब्रू थी पर अब इब्रानी है।

एडोल्फ हिटलर (नाज़ियों) ने यहूदियों को क्यों मारा:-
1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑस्चविट्ज। यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता। जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था।
युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई। यह नरसंहार संख्या, प्रबंधन और क्रियान्वयन के लिहाज से विलक्षण था। इसके तहत एक समुदाय के लोग जहां भी मिले, वे मारे जाने लगे, सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी पैदा हुए थे। इन कारणों के चलते ही इसे अपनी तरह का नाम दिया गया-होलोकॉस्ट।

मुस्लिम और यहूदी धर्म उपासना में अंतर -
यहूदियों के यहां एक दिन में जो फ़र्ज़ नमाज़ें हैं, वो तीन ही हैं जिसको वो मानते हैं:

1. पहली नमाज़ को शचरित (Shacharit) कहा जाता है। सूरज के निकलने के बाद और दोपहर का अर्सा उसका होता है।
2. दूसरी नमाज़ को मिंचा (Mincha) कहा जाता है और उसका वक़्त दोपहर से ले कर शाम तक होता है।
3. तीसरी नमाज़ मग़रिब के बाद से लेकर रात तक होती है और उसको म'आरिव (Maariv) कहा जाता है।

यहूदियों के यहां तसव्वुर-ए-अज़ान भी है। कलिमा शीमा (Shema Yisrael) जिसके अल्फाज़ तौरेत की इस आयत से माख़ूज़ है:

"सुन लो! ऐ बनी इसराईल! तुम्हारा रब तुम्हारा ख़ुदा है, और एक ख़ुदा है।"

(सेफ़र: इस्तिसना, बाब: 6, आयत नंबर: 4)

अक़्सर अज़ान इससे दी जाती है, मगर अज़ान देना ज़रूरी नहीं बल्कि अक़्सर दी ही नहीं जाती है। मगर आयत में "यहवाह" लफ़्ज़ है, इसकी जगह "अदोनाई" बोला जाता है।
ये पूरा तसव्वुर मुसलमानों से ख़ासी मुख़्तलिफ़ है:

1. ये ज़्यादा तवील होता है, कम-अज़-कम पंद्रह मिनट तो एक नमाज़ में लग ही जाते हैं। ये पांच मिनट में ख़त्म होने वाली नमाज़ नहीं होती है।
2. इसमें चप्पल उतारना ज़रूरी नहीं, किसी भी तरह पढ़ी जा सकती है।
3. आम तौर पर यहूदियों को आयात, दुआएं वगैरह याद नहीं होती हैं, वो सब क़िताब से देख कर पढ़ते हैं और उसकी पूरी इजाज़त होती है। मुसलमानों में आम तौर पर ऐसा नहीं होता।
4. जमा'अत भी ज़रूरी नहीं है। हां, अगर एक सिनगॉग्‌ (synagogue) है, तो कम-अज़-कम पंद्रह लोगों का जमा होना ज़रूरी है। ये चीज़ होना एक तरीक़े से उनके यहां फ़र्ज़-ए-किफ़ाया है। मगर कोई शर्त नहीं ।
5. ज़ुबान का भी इब्रानी होना ज़रूरी नहीं, सिर्फ़ कुछ दुआएं हैं और आयात हैं जिनका इब्रानी होना ज़रूरी है। इसके अलावा दीगर ज़ुबानों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
6. सज्दा भी बिल्कुल ज़रूरी नहीं है, अलबत्ता पसंदीदा चीज़ है। इसलिए मुमकिन है कि दौरान-ए-इबादत कोई यहूदी लज़्ज़त पाते हुए सज्दे में गिर जाए। और सज्दों पर कोई कैद नहीं है, जितने चाहे किए जा सकते हैं।

दिलचस्प बात ये है कि कुरआन में भी नमाज़ों का ज़िक्र है, मगर तफ़्सील और तरीक़ा कार नहीं बताया गया। वो चीज़ सुन्नत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मा'लूम चलती है। यहूदियों में भी उस्लूब यही है। तौरेत में ज़िक्र ज़रूर है, तफ़्सील कोई नहीं है। ये सारी चीज़ें यहूदियों के मुताबिक़ उनके तवातुर से मनक़ूल है

यहूदीयों के त्यौहार :-
योम किपुर
शुक्कोह
हुनक्का
पूरीम
रौशन-शनाह
पासओवर

अंत्येष्टि क्रिया :-
यहूदी धर्म में मरने के बाद व्यक्ति को ज़मीन में दफनाने की क्रिया करते हैं।

यहूदी धर्मांतरण - 
वास्तव में यहूदी धर्म के स्थान पर शुद्ध जातीय समूह है। यह याकूब के बारह बेटों की संतान का समूह है। 
यहूदी होना चुनौती है—ऐसी आग की परीक्षा, जिसे पार करना हर किसी के बस की बात नहीं। इज़रायल, जो खुद को यहूदी राज्य कहता है, वह किसी व्यक्ति के यहूदी बनने के अधिकार को लेकर इतना कठोर है कि यह प्रक्रिया आयरन गेट बन जाती है। आपका खून अगर अब्राहम की विरासत से नहीं आया, तो इज़रायल आपसे पूछता है: “तू क्यों यहूदी बनना चाहता है, और फिर खुद ही उत्तर दे देता है: शायद किसी यहूदी लड़की से शादी करना चाहता है? या इस्राइली नागरिकता चाहिए?, यह सवाल नहीं, संदेह होते हैं। 
यह कितना विचित्र विरोधाभास है कि पूरी दुनिया में यहूदी समुदाय इस बात की शिकायत करता रहा है कि उन्हें पहचानने से इनकार किया गया, उन्हें गेटो में बंद किया गया, उन्हें बाहर का कहा गया, लेकिन जब कोई बाहरी व्यक्ति दिल से कहता है कि वह यहूदी बनना चाहता है, तब यही समुदाय उसे दरवाज़े पर रोककर पूछता है: क्या तू सच्चा है? दरअसल, यहूदी धर्म में कन्वर्ज़न आत्मा का आह्वान नहीं, बल्कि धार्मिक अभिजात्यवाद का द्वारपाल बन गया है।
इज़रायल में स्थिति और भी नंगी हो जाती है। वहाँ के धार्मिक अधिकार अगर यहूदी कन्वर्ट को यहूदी मान लें, तो वह नागरिकता पा सकता है। लेकिन ऑर्थोडॉक्स यहूदी मान्यता के बिना, उसे न तो यहूदी माना जाता है, न इज़रायली। यहूदी धर्म सार्वभौमिक नैतिकता नहीं, जातीय पवित्रता है, जो हम और वे की रेखा खींचती है
even when the they is desperately knocking to be one of us.
यहूदियों का यह धर्म-रक्षक गढ़ खुद जातीय दीवार बन गया है, जिसके भीतर प्रवेश करना धार्मिक साधना नहीं, सामाजिक शुद्धता की परीक्षा है।
यह धर्म जब कहता है कि हम कन्वर्ज़न की इजाज़त देते हैं, तो वह दरअसल कहता है कि हम तुम्हें बदलने देंगे, लेकिन पहले देखेंगे कि तुम हमारे जैसे बनने लायक हो भी या नहीं। यह शर्तें धर्म के नहीं, नस्लवादी सोच के संकेतक हैं। यह पवित्रता नहीं, बल्कि सुरक्षा घेरे के भीतर की सत्ता की भूख है। और यही भूख इज़रायल के ज़मीनी और धार्मिक दोनों राजनैतिक व्यवस्थाओं में दिखाई देती है।
यहूदी धर्म की यह जटिल और विरोधाभासी स्थिति तब और तीव्र हो जाती है जब हम स्वयं उनके धर्मग्रंथों की ओर देखते हैं। तोराह (Torah) और तलमूद (Talmud) में ऐसे अनेक कथन हैं जो कन्वर्ज़न के लिए समावेशी और करुणामयी दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, पर आधुनिक इज़रायली शासन और धार्मिक संस्थाएँ उन्हीं को दरकिनार कर एक प्रकार का जातीय अनुदारवाद थोपती हैं।
टोराह कहती है - 
You shall love the stranger, for you were strangers in the land of Egypt.
(Deuteronomy 10:19)
अर्थ - तुम परदेशी से प्रेम करना, क्योंकि तुम स्वयं मिस्र में परदेशी थे।
क्या यह वाक्य केवल दिखावे के लिए लिखा गया था? जब कोई गैर-यहूदी यह कहता है कि वह यहूदी धर्म की सीखों को अपनाना चाहता है, तो इज़रायली व्यवस्था उसे तीन बार मना करने की प्रक्रिया में डाल देती है, यह कहकर कि यह हमारी परंपरा है।
तलमूद में लिखा है - 
A convert who comes to convert, we say to him: 'Why do you come to convert? Don’t you know Israel is afflicted and oppressed?' But if he persists, we accept him immediately.
(Yevamot 47a)
अर्थ - अगर कोई कन्वर्ट होना चाहता है, तो हम उससे पूछते हैं कि क्यों? क्या तुम नहीं जानते कि यहूदी उत्पीड़ित और सताए हुए हैं? लेकिन अगर वह दृढ़ रहता है, तो हम उसे तुरंत स्वीकार कर लेते हैं।
लेकिन आज का इज़रायल न तो उसे तुरंत स्वीकार करता है, न ही यह मानता है कि उत्पीड़ित होना दूसरों के लिए द्वार खोलने का कारण बनता है। इसके विपरीत, कन्वर्ट के संदेहास्पद परीक्षण किए जाते हैं मानो वह विदेशी जासूस हो।
एक यहूदी कहावत है - 
The righteous convert is dearer to God than the multitudes of Israelites who stood at Mount Sinai.
(Midrash Tanchuma, Lech Lecha 6)
अर्थ - धार्मिक कन्वर्ट परमेश्वर को उन इस्राएलियों से अधिक प्रिय है जो सिनाई पर्वत पर खड़े थे।
क्या इस कथन का कोई मूल्य बचा है? या यह महज़ ऐतिहासिक तात्कालिकता थी जिसे अब सिर्फ सजावट के लिए दोहराया जाता है?
धर्म जब अपने ही ग्रंथों के मूल आग्रह, दया, समावेशन और सत्य की खोज से मुँह मोड़ने लगे, तो वह केवल पहचान का खोल रह जाता है। आज इज़रायल के धार्मिक संरक्षक यहूदियों की पहचान को पवित्रता की आड़ में रक्त और नस्ल की सीमाओं में बाँध रहे हैं। उन्हें इस बात से डर है कि कहीं यहूदियत विचार बनकर न फैल जाए, क्योंकि अगर ऐसा हुआ, तो वह विशेषाधिकार जो ‘चुने हुए लोगों’ की अवधारणा से आता है, समाप्त हो जाएगा।
धर्म ने जब कन्वर्ट को प्रिय अतिथि कहा था, तब वह ईश्वर के घर का द्वार था। लेकिन आज इज़रायल में वह द्वार नहीं, गेटेड कॉलोनी का सिक्योरिटी गेट है, जहाँ धर्म नहीं, पहचान पूछी जाती है, और आस्था नहीं, वंशावली जाँची जाती है। यहूदी धर्म अपने ही नैतिक घोषणाओं को कुचलकर आत्मरक्षित, संदेहग्रस्त जातीयता बनता जा रहा है। यही उसकी मूल आत्मा का विघटन है।
जो धर्म हजारों सालों से उत्पीड़न का शिकार रहा हो, वह जब दूसरों को अपने भीतर जगह देने से इनकार करता है, तब वह उत्पीड़न को स्मृति नहीं, नीति बना देता है। और यही सबसे उत्तेजक बात है, यहूदी धर्म आत्मपीड़ित इतिहास से निकलकर आज नियंत्रक पहचान बन चुका है, जो कहता है - तू हममें शामिल हो सकता है, पर पहले हमारी जातीय कसौटी पर खरा उतर कर दिखा। 
क्या यह धर्म का वैश्विक चरित्र है? नहीं, यह राष्ट्र-धर्म का सांप्रदायिक चरित्र है—जो अब दूसरों के लिए ईश्वर की ओर का दरवाज़ा नहीं, बल्कि पासपोर्ट और रक्त की जाँच बन गया है।

फिलिस्तीन में यहूदी 
अब इजरायल देश - 
1930 में जब जहूदी लोग युरोप से भागकर फलिस्तीन आए थे तब उन्हे इस तरह का परमिट दिया जाता था जिसमे लिखा होता था
मुझे एक शर्णार्थी के रूप में फलिस्तीन में शरण ली गई है मैं हमेशा फलिस्तीन के प्रति वफ़ादार रहूंगा।

शमशेर भालू खां सहजूसर 
जिगर चूरूवी

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