Thursday, 10 July 2025

✅इस्लाम धर्म संक्षिप्त परिचय एवं पवित्र कुरआन हिंदी अनुवाद सहित

पवित्र कुरान मय तर्जुमा - 
        कुरआन का संदेश पारा 29


पवित्र कुरान (कुरआन शरीफ) -
कुरान का पाठ करने से पूर्व सावधानियां -
01. यथा संभव स्नान (गुसल) कर के ही पाठ करें, यदि इसकी आवश्यकता नहीं हो तो वजू (विधि अनुसार हाथ पैर धोना) अवश्य करें।
02. कुरान का पाठ यथा संभव अरबी भाषा में ही करें क्यों कि इसकी हर आयत (सीख, पाठ्य अंश) में कोई ना कोई अतिरिक्त संदेश या गहन विचार होता है जिसे उर्दू या हिंदी (किसी भी भाषा में) व्यक्त करना संभव नहीं है। किसी आयत में सृष्टि की रचना का पैटर्न है तो किसी में मानव विकास का पैटर्न, जो हर आयत (वाक्य), हर्फ (शब्द) में छुपा हुआ है।
03. जहां रूकू (रुकने का प्रतिक) हो रुकें, सजदे का प्रतिक के स्थान पर सजदा करें।
04. प्रत्येक आयत (वाक्य) का अपना यूनिक (विशिष्ट) स्थान और पेटर्न है जिसे समझना आवश्यक है।
05. अरबी भाषा के कुछ शब्दों का उचित और हुबहू अनुवाद संभव नहीं है।
06. कुरान में कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका अर्थ किसी को नहीं पता, जेसे अध्याय 01 में अलिफ लाम मीम का अर्थ किसी को नहीं पता, अतः इनका अनुवाद, भाष्यंत्रण संभव नहीं है।
07. हिंदी में बहुत से समानार्थी शब्द हैं जिनका अनुवाद हेतु उपयोग किया गया है, परंतु वास्तविक भाव हेतु कोष्ठक में मूल अरबी शब्द दिए गए हैं। वास्तविक अर्थ मूल शब्द ही दर्शा सकते हैं।
08. कुरान का पाठ करते समय मुंह काबे की ओर, दोनो घुटनों पर बैठ कर सुरीली वाणी में (यदि अरबी में पाठ कर रहे हैं और गला ठीक है तो) अन्यथा मौन पाठ करें।
09. कुरान का एक एक शब्द अपने आप में एक पुस्तक है, इसलिए इसे ध्यान पूर्व उचित उच्चारण सहित पढ़ें।
10 प्रत्येक पाठ (आयत) के प्रारंभ में शुरू ईश्वर के नाम से.... (बिस्मिल्लाह ......) अवश्य पढ़ें।
11. पढ़ने, समझने और उच्चारण में हुई भूल हेतु ईश्वर से क्षमा याचना उचित होगा।

पवित्र कुरान की तिलावत सुनें, जिस पारा नंबर पे टच करेंगे।उस पारे की तिलावत शुरू हो जाएगी वो भी उर्दू तरजुमे के साथ।
पारा लिंक 
1.नम्बर पारा 1

अध्याय (पारा)  01
1. पाठ (सूरह अल-फ़ातिहा) 
(मक्का में उतरी कुल आयत (वाक्य - 7, कुल रुकुअ 01)
(प्रारंभ का पाठ) (विषय - सद्मार्ग पर चलने वालों को विजय की सूचना और सफलता का संदेश)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।
सब बड़ाई ईश्वर की जो समस्त सृष्टि का मालिक है।
उसी की पूजा कर उसी से सहायता मांगो।
सीधे मार्ग पर चलो, उनके मार्ग पर जिनको ईश्वर ने पुरस्कार दिया है। 
उनके मार्ग पर नहीं जिनसे वह क्रोधित हो गया और पथभ्रष्ट हो गए।

2. पाठ (सूरह अल-बक़राह)
(मदीना में उतरी ,गाय का पाठ) कुल वाक्य (आयत) 286, कुल ठहराव (रुकुअ )ठहराव 20)
(विषय शांति न्याय, उत्तराधिकार, एकेश्वरवाद, संसाधन वितरण, दान,पुण्य,वर्जित,)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।
वो पुस्तक जिसकी प्रतिक्षा थी वह आ गई है। इसे मार्गदर्शक बनाओ । पवित्रता अपनाओ। 
ईश्वर पर विश्वास करो। नमाज पढ़ो। ईश्वर के रास्ते में व्यय (दान) करो। कुरआन पर और पूर्व की सारी ईश्वरीय पुस्तकों (तोरेत, इंजील और जुबूर) पर विश्वास कर अंतिम दिन पर विश्वास रखो।
धरती पर झगड़ा न करो। इसे संवारने का काम करो। सुचिता के बदले पथभ्रष्टता का बदला मत करो। ईश्वर की पूजा करो, उस पर विश्वास करो और अच्छे कर्म करो।
ईश्वर से किये वचन को मत तोड़ो। उसने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है जोड़ो। यह भूमि आपके लिए बनाई गई है जिस पर सर्वश्रेष्ठता दे कर तुम्हे इसका नायक बनाया गया। उसकी प्रतिपूर्ति करो। 
धरती पर झगड़ा मत फैलाओ। रक्तपात मत करो। शैतान(राक्षस) से सतर्क रहो, कभी भटका दे तो तुरंत प्रायश्चित करो।
ईश्वर की कृपा का स्मरण करो, उसके साथ किये वचन को पूरा करो, उसी से डरो, उसकी पुस्तक पर भरोसा करो और इसके वाक्यों (आयतों) का व्यापार मत करो। 
ईश्वर के प्रकोप से बचो, सत्य को झूठ से पृथक रखो, सत्य का प्रसार करते रहो। 
नमाज़  पढ़ो, जकात दो और झुकने वालों के साथ ईश्वर के आगे झुक जाओ। लोगों को भलाई का आदेश दो, अपने आप को कभी मत भूलो और ख़ुद भी भलाई के कार्य करते रहो, संयम और नमाज़ से सहायता प्राप्त करो और इसके लिए अपने जीवन में ईश्वर का डर पैदा करो। 
सदेव स्मरण रखो कि ईश्वर से भेंट करनी है और उसकी ओर पलट कर जाना है, उस दिन की स्थिति की चिंता करो जब कोई किसी के काम नहीं आएगा और किसी की पैरवी मान्य नहीं की जाएगी, किसी से भरपाई नहीं ली जायेगी और किसी की किसी से सहायता न हो पाएगी।
बनी इस्राईल(अरब के एक स्थान के व्यक्ति) का इतिहास ध्यानपूर्वक पढ़ो। उनके बदले से सीखो। उन्होंने ईश्वर के प्रति कृतघ्नता की, तुम ऐसा मत करना। उन्होंने ईश्वर की पुस्तकों के वाक्यों का उपहास उड़ाया, तुम ऐसा मत करना। उन्होंने ईश्वर के कानून को तोड़ा, तुम ऐसा मत करना । उन्होंने हर वादा तोड़ा, तुम ऐसा मत करना।
पूजा केवल परमात्मा की करो। माँ-बाप,नातेदार,निर्धन और अनाथों के साथ सद्व्यवहार करो, नमाज़ पढ़ो और ज़कात दो।
परस्पर रक्तपात मत करो, किसी को बेघर मत करो, एक दूसरे का हिस्सा मत दबाओ और एक-दूसरे के साथ बुरा व्यवहार मत करो। 
परमेश्वर की पुस्तक पर विश्वास कर उसके नियमों (शरीयत ) का दृढ़ता से पालन करो।
जादू और कुफ़्र (ईश्वर के प्रति विश्वास पात्र नहीं होना) से बचो। परमात्मा के वाक्यों का अनर्गल उपयोग मत करो। ऐसे कर्म मत करो जिनसे तुम्हें या लोगों को हानि पहुंचे। पति और पत्नी के संबंधों की रक्षा करो और उसमें दरार मत डालो। 
परमेश्वर की पुस्तक से इस तरह संबंध  बनालो जिस तरह उस का अर्ध्य है।
नमाज़ पढ़ो और ज़कात दो और अपने अंतिम दिन के लिए अच्छे कर्म आगे भेजते रहो।
असत्य आस मत बांधो, खुद को ईश्वर के आगे झुका दो और उत्तम कर्मों से जीवन को सजाओ। परमात्मा के पूजा घर में किसी को रोकना और उन्हें वीरान करना बहुत बड़ा पाप है इससे दूर रहो।
दूसरों की आशाओं की पैरवी मत करो। ईश्वर के बताए सदमार्ग से सद्भाव रखो। परमेश्वर की पुस्तक को सही  तरह से पढ़ो।
इब्राहीम तुम सबके इमाम (नायक) हैं। उनके भव्य जीवन से स्वयं के जीवन को प्रकाशित करो। अत्याचार से बचो, इब्राहीम के कार्यों का केंद्र काबा (ईश्वर का घर) था। तुम उसे अपना उपासना गृह बनाओ। काबा और हर पूजास्थल की पवित्रता और सफ़ाई का ध्यान रखो।
परमात्मा के अनुगामी बन जाओ। त्याग के लिए स्थान खोजो। परमात्मा से दया मांगो। परमेश्वर के दूत के कार्यों के साझीदार बनो। इस पुस्तक से शिक्षा ग्रहण करो और लोगों तक भी इसको पहुंचाओ। 
स्वयं सद्व्यवहार करो और लोगों से भी कहो।
इब्राहीम के मार्ग पर प्रेमपूर्वक चलो। वह मार्ग यह है कि स्वयं को सम्पूर्ण रूप से ईश्वर के हवाले कर दो।
खुद भी सच्चे विश्वासी बनो और अपने बच्चों को सच्चा विश्वासी बनाने की सारी कोशिशें जीवन भर करते रहो। खुद से निर्णय करो कि तुम्हें मौत आए तो विश्वासी की हालत में और बच्चों को भी मरते दम तक यही सीख देते रहो। अपने बच्चों के हृदय में सत्य मार्ग का प्रेम कूट-कूट कर भर दो।
बहुत से लोग दावा करेंगे कि उनका मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है, मगर तुम बस इब्राहीम के पथ पर चलो, वह ईमानदार और एकाग्रचित थे।
सारे नबियों (ईश्वर के संदेश वाहकों ) का मार्ग विश्वास का मार्ग था तुम भी इसी मार्ग को अपनाओ। 
सारी आकाशीय पुस्तकों पर विश्वास करो और उनके मध्य कोई अंतर न करो। अपने विश्वासी होने का ऐलान करो। इस तरह ईश्वर के प्रति विश्वास लाओ जिस तरह सच्चे मानने वाले परमात्मा के दूत को मानते थे। 
यह परमेश्वर का रंग है इसे अपनाओ। इससे अच्छा कोई रंग नहीं है अतः इसके अलावा हर रंग से अलगाव की घोषणा कर दो।
यहूदियों व ईसाईयों का मार्ग मत अपनाओ। तुम्हें जो मार्ग दिखाया है उस पर शांति के साथ चलते रहो। तुम्हें अपने कर्मों का प्रत्युत्तर देना है और अपनी कमाई प्रस्तुत करनी है।

अध्याय (पारा) - 2
ईश्वर ने अपनी दयालुता को पूर्ण किया और तुम्हें वास्तविक पूजा केंद्र (किबला) से जोड़ दिया, इसके महत्व को समझो और अपने आप को इस से अच्छी प्रकार से जोड़े रखो। ईश्वर ने तुम्हें एक श्रेष्ठ जन बनाया है, तुम्हें लोगों पर साक्षी बनाया है, तुम साक्ष्य का कर्तव्य पूरा करते रहो।
वास्तव में तुम्हें किबला दे दिया गया है, अब तुम किसी परेशानी का शिकार मत रहो, सम्मिलित होकर अच्छाई और भलाई के कामों की तरफ़ दौड़ पड़ो ।
ईश्वर का स्मरण रखो, वह तुम्हारा स्मरण रखेगा, उसका धन्यवाद करो, धैर्य और नमाज़ के माध्यम से उससे सहायता मांगो।
ईश्वर भिन्न भिन्न रूप में तुम्हारी परीक्षा लेगा, तुम धैर्य का का साथ थामे रखो। सदैव स्मरण रखो कि तुम ईश्वर के उपासक हो और उसकी ओर ही पलटकर जाना है।
ईश्वर के प्रतीकों पर ध्यान करो, उससे प्रेम करो, लोग अपने उपास्यों से जितना प्रेम करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा तुम ईश्वर से प्रेम करो।
ईश्वर ने भूमि में भोज्य और पवित्र खाद्य का प्रबंध तुम्हारे लिए किया है, खूब खाओ-पियो और राक्षस (शैतान) के पथ पर मत चलो। वह बुराई और निर्लज्जता का पथ दिखाता है। तुम उसके रास्ते से दूर रहो, अगर बाप-दादा का पंथ कुरआन के विरुद्ध हो तो उस पंथ को भी छोड़ दो।
ईश्वर ने पवित्र वस्तुएं दी हैं, उन्हें खाओ और उसका धन्यवाद करो, त्याज्य वस्तुओं से बचो, स्मरण रखो मरा पशु, रक्त, सूअर और अन्य अराध्य के नाम का मांस वर्जित (हराम) है और सब से ज़्यादा वर्जित तो उसकी किताब को छिपाना और उसकी असंगत पढ़ाई करके धन कमाना है।
यदि तुम्हें कृतज्ञता के ऊँचे स्थान पर पहुंचना है तो विश्वास लाओ ईश्वर पर, अंत के दिन पर, यमदूतों पर, किताबों और उसके संदेश वाहकों पर। अपनी प्रियतम सामग्री व्यय (दान) करो संबंधियों, अनाथों, बेघरों और अवश्यकता वालों पर और दासों को स्वतंत्र कराने पर। नमाज़ सुदृढ़ करो, ज़कात दो और जो वचन करो उसे पूरा करो। कैसी ही आपदा और कठिनाई हो धैर्य करो।
मृतक (हत्या होने पर) उसका बदला (खून के बदले खून) के संबंध में बराबरी के नियम पर अडिग रहो, अत्याचार मत करो, क्षमा का रास्ता भी खुला रखो और जो देयता आवश्यक है उसे उत्तम तरीके से करो।
संपत्ति से संबंधित वक्तव्यों (वसीयत) का आदर करो, किसी की वसीयत में गड़बड़ी न करो और अगर वसीयत करने वाला किसी के साथ अन्याय करे तो उसे समझाओ।
उपवास (रोजे रखो) करो और भलाई के कामों में आगे-आगे रहो। रमज़ान के महीने में पवित्र कुरआन का विशेष रूप से स्मरण करो। इस हेतु ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करो और उस संबंध में आवश्यक बातें पूरी करने के प्रयत्न करो।
तुम्हारा उपास्य तुम से अत्यधिक निकट है। वह तुम्हारी सभी प्रार्थना सुनता है। तुम उसकी पुकार पर उपस्थित हूं (लबैक) कहो और उस पर विश्वास करो। एक दूसरे का धन अनुचित विधि से मत हड़पो, राजाओं और अधिकारियों को रिश्वत दे कर दूसरे की संपत्ति पर अधिकार मत करो।
सभी कार्य सुव्यवस्थित और ठीक से करो। संयम उत्तम मार्ग है उसे छोड़ कर चोर दरवाज़े मत निकालो।
उनसे युद्ध करो जो तुम से युद्ध करते हैं और अत्याचार किसी पर मत करो। स्मरण रहे मात्र अत्याचारी से ही युद्ध करना है। ईश्वर के पथ में व्यय (दान) करो, अपने आप को भय में मत डालो और उत्तम कार्य करो।
हज और उमरा ईश्वर के लिए करो। हज के नियमों का स्मरण रखो। जीवन में संयम अपनाओ। हज करते हुए ईश्वर का अत्यधिक स्मरण करो, उससे मोक्ष मांगो। तुम्हारे हृदय और तुम्हारी प्रार्थनाओं में सांसारिकता ही न बसी रहे अपितु ईश्वर से संसार की उत्तम वस्तुएं भी माँगो और अंतिम दिन की अच्छाई भी माँगो और नरक की आग से छूट भी माँगो ।
उल्टा सीधा संवाद (बहस) मत करो, धरती में बिगाड़ मत फैलाओ, खेतों और नस्लों को नष्ट कदापि न करो। ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने हेतु स्वयं को त्याग दो और सबके सब इस्लाम (विश्वास) में प्रवेशित हो जाओ, राक्षस के पद चिह्न पर कदापि न चलो ।
यदि तुम्हें स्वर्ग में जाना है तो इसके लिए उस पथ की सारी कठिनाइयों को सहन करना होगा, इस वास्तविकता को सदैव स्मरण रखो।
भलाई के ख़ूब काम करो। माता पिता,संबंधियों,अनाथों, निर्धनों और बेघर लोगों पर अधिक व्यय करो।
लोग तुम से युद्ध करें और तुम्हें सत्य मार्ग छोड़ने हेतु आतुर करें तो उससे युद्ध करने में पीछे न हटो। स्मरण रखो जो सच्चा पंथ मिल जाने के बाद उसे छोड़ना स्वीकार कर लेगा उसका अंत के दिन में बुरा अंत होगा।
मदिरा और जुए से दूर रहो। ईश्वर के पथ में व्यय (दान) करने का ऐसा भाव उत्पन्न करो कि जो भी आवश्यकता से बच रहे वह उसके नाम से लूटा दो।
अनाथों के संबंध में जो बात उनके उत्तम हो वही करो और उन्हें अपना भाई समझो।
रिश्ते विश्वास (समान पंथ वालों से) वालों से करो, वैवाहिक जीवन में पवित्रता अपनाओ, ईश्वर पवित्रता का मार्ग अपनाने वालों को पसंद करता है।
ईश्वर के नाम पर ऐसी सोगंधें मत खाओ जो तुम्हें अच्छाई के कामों से रोक दें, ऐसी सोगंधें हृदय में बसने मत दो, तुरंत समाप्त कर दो।
अपनी पत्नियों से दूर रहने की सौगंध न खाओ और परित्याग की स्थिति में ईश्वर की सीमाओं का संचय करो। स्त्रियां अपने गर्भ के बच्चों को न छिपाएं। स्त्री को पुरुष अच्छे और भले से रखें और छोड़ें तो उत्तम मार्ग से छोड़ें। पति ने पत्नी को जो दिया है वह वापस नहीं ले। पत्नी फ़िदया (परित्याग) दे कर खुला (विवाह विच्छेद) मांगे तो पति धन लेकर खुला दे दे। पति स्त्री को बलपूर्वक रख कर उसे कठिनाई में न रखें। स्त्रियों को विवाह विच्छेद हो जाने के पश्चात अन्यत्र निकाह (विवाह) करने से रोका नहीं जाए।
विवाह विच्छेद की स्थिति में भी संतान की भलाई का माँ-बाप दोनों ध्यान रखें और कोई ऐसा मार्ग न अपनाए कि बच्चे को कठिनाई हो जाए।
पति से विवाह विच्छेद या उसकी मृत्यु हो जाए, दोनों ही स्थिति में इद्दत (मृत्यु के एक सो तीस दिन) के नियम व कानून का ध्यान रखा जाए।
 विवाह विच्छेद की स्थिति में पति को चाहिए कि वह पत्नी को अधिकाधिक देकर विदा करे। इस अवसर पर दोनों बड़ा दिल और अच्छे से अच्छे व्यवहार का सबूत दें।
नमाज़ों की रक्षा करो और ईश्वर के सामने आज्ञाकारी बन कर खड़े हो जाओ। स्थिति कठिन हो और कठोर हों तब भी किसी न किसी तरह नमाज़ पढ़ो।
इसकी परवाह मत करो कि तुम संख्या में कम हो। इस पर ध्यान दो कि तुम्हारे अंदर संयम की स्थिति कितनी है और तुम्हारा ईश्वर से संबंध कितना सुदृढ़ है।

अध्याय (पारा) -3
गत समुदायों ने ईश्वर की प्रकाशित किताब का अनादर किया और परस्पर रक्त बहाया, तुम उनके तरीके से बचो। 
ईश्वर ने जो संपदा प्रदान की है उसे भलाई के कार्यों में व्यय करो, इस से पूर्व कि वह दिन आ जाए जब न कोई क्रय - विक्रय होगी न कोई अनुशंसा चलेगी और न कोई मित्रता काम आएगी।
यह बात कभी मत भूलो कि तुम हर पल अजर - अमर ईश्वर की पूर्णतया निगरानी में हो।
ईश्वर की सुदृढ़ डोर को दृढ़तापूर्वक थामे रहो। ताग़ूत (एक भगवान जो अरबों में पूजा जाता था) के आगे कभी न झुको, ईश्वर पर विश्वास लाओ और उसको अपना मित्र बनाओ। अँधेरों से दूर भागो और उजाले से प्रेम करो।
ईश्वर की शक्तिशालिता पर विश्वास रखो। वही मारता है और वही जिलाता है।
अतः न कभी संसय में पड़ो और न कभी मायूसी को निकट आने दो।
ईश्वर के मार्ग में व्यय करो। व्यय करके उपकार न जताओ और न किसी के हृदय को दुखाओ। तुम्हारे पास देने के लिए न हो तो दिल रखने वाला एक शब्द कह दो या क्षमा मांग लो। उपकार जताकर और दिल दुखा कर अपने सदक़े (पुण्य व्यय ) को नष्ट मत करो। व्यय करो ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने हेतु और अपने साथियों को अडिग रखने हेतु।
उत्तम और पवित्र धन व्यय करो। दान में ऐसी ख़राब वस्तुएं मत दो जिसे लेना तुम स्वयं पसंद न करो।
शैतान (राक्षस) तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता का मार्ग सुझाता है उसके धोखे में न आओ। ईश्वर से लौ लगाओ। ईश्वर क्षमा और दया का वचन करता है और दान करने वालों को सोचने समझने की संपदा प्रदान करता है।
दान करते समय उन निर्धनों को ढूंढो जो कहीं घिरे हुए हैं और विपत्ति में हैं। उन्हे आवश्यकता है परंतु उनकी ख़ुद्दारी उन्हें हाथ फैलाने नहीं देती। ईश्वर को ऐसे ख़ुद्दार लोग पसंद हैं।
अपने अंदर दान करने की आदत डालो। दिन-रात दान करो, खुले-छुपे दान करो।
ब्याज हराम (वर्जित) है । अपनी संपत्ति को ब्याज मुक्त रखो, ईश्वर की अप्रसन्नता से बचो और जो ब्याज तुम्हारा शेष रह जाए उसे छोड़ दो।
अत्याचार से बचो और याद रखो उधार दे कर अधिक लेना अत्याचार है और उधार लेकर कम लौटाना भी अत्याचार है।
यदि उधार लेने वाला कष्ट में हो तो वापरने तक उसे छूट दो और उसे क्षमा कर दो तो यह अति उत्तम है।
उधार का लेन-देन हो तो उसे लिख लिया करो उसके लिए साक्षी बनाओ। जो ख़ुद न लिखवा सके तो उसके निकटतम से लिखवाए और वह (लिखने वाला) ईश्वर से डरे और लिखने में कोई कमी - बेशी न करे।
उधार कम हो या अधिक लिखने में सुस्ती न करो। लिखने वाले और साक्षी भी ईश्वर से डरें और ऐसा कुछ न करें जिस से किसी पक्ष को हानि पहुंचे।
कर्म की पवित्रता के बारे में सोचो और सहृदयता रखो। स्मरण रहे कि जो तुम्हारे हृदय में है और जो तुम्हारे कर्म से सामने है, ईश्वर सब जानता है और सब का हिसाब लेगा।
पंथ के प्रचार-प्रसार में अपनी सारी शक्ति लगा दो, साथ ही ईश्वर से सहायता की प्रार्थना भी करते रहो।

3. पाठ (आल इमरान )
(मदीना में उतरी इमरान की संतान का पाठ)
(कुल आयत 200,कुल रुकुअ 20)
(केंद्रीय विषय - परलोक,स्वर्ग,क्षमा,विश्वास,संयम, ईसा मसीह की मां मरियम, जकरिया और एकेश्वरवाद के संदर्भ में)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।
ईश्वर के सभी आदेशों पर विश्वास लाओ और हृदय के टेढ़ेपन से छुटकारा माँगो ।
स्त्रियां, बच्चे, सोना-चांदी, घोड़े मवेशी और खेत यह सब कुछ सांसारिक क्षणिक जीवन का सामान हैं, इनसे लगाव में न पड़ो, और स्वर्ग के इच्छुक बनो।
तुम ऐसे बन जाओ कि धैर्य तुम्हारा मार्ग हो, सत्य तुम्हारी आदत हो, आज्ञाकारिता तुम्हारी पहचान हो, ईश्वर के मार्ग में दान करना तुम्हारी विशेषता हो और रात्रि के अंतिम पहर में ईश्वर से मुक्ति हेतु प्रार्थना करना तुम्हारी आदत हो ।
स्मरण रहे ईश्वर के आदेशों को झुठलाना और संदेश वाहकों की हत्या करना बहुत बड़ा अत्याचार है, और उन लोगों की हत्या करना भी बहुत बड़ा पाप है, जो लोगों को न्याय और सद्मार्ग की सूचना देते हैं।
प्रतिष्ठा व बड़े नाम का मालिक ईश्वर है। वह जिसे चाहता है बड़प्पन देता है और जिससे चाहता है छीन लेता है और जिसे चाहता है सम्मान देता है और जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है। समस्त भलाई उसी के हाथ में है। वह जिसे चाहता है अत्यंत प्रदान करता है।
तुम ईश्वर पर विश्वास रखते हो तो अविश्वासियों को मित्र न बनाओ और उनसे हर तरह से सतर्क रहो।
तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो संदेश वाहकों की पैरवी करो ईश्वर तुमको मित्र रखेगा। जीवन के हर क्षेत्र में ईश्वर और उसके संदेश वाहकों की बात मानो।
अपनी संतान के संबंध में मरियम की माँ से सीख लो। किस तरह उनके जन्म से पहले ही उन्हें ईश्वर के लिए वक़्फ़ (समर्पण) कर दिया और पैदा हो जाने के बाद यह इच्छा की कि यह बच्ची राक्षस (शैतान) से सुरक्षित रहे और इस बच्ची की संतान भी सुरक्षित रहे ।
ज़करिया के वर्णन से सीख लो। दिल में अच्छी इच्छा उत्पन्न हो तो ईश्वर के समक्ष प्रार्थना के लिए हाथ फैलाओ। यह मत देखो कि समय अनुकूल है या प्रतिकूल, ईश्वर जो चाहे वो कर सकता है। उसकी दयालुता पर उसका अत्यधिक स्मरण करो।
जब ईश्वर मार्गी को सहायता की आवश्यकता हो तो देर मत करो और बढ़ कर कहो कि हम हैं ईश्वर के सहायक। उसकी किताब पर विश्वास लाने और संदेश वाहकों की पैरवी करने में तनिक भी देर न लगाओ और अपने आप को सत्य का साक्ष्य देने वालों की पंक्ति में खड़ा करो।
पराई वस्तु जो तुम्हारे पास रखी है (अमानत) को नष्ट ,(गबन) (खयानत) न करो, अपने वचन को पूरा करो, ईश्वर के रूठने से बचो, उससे किए हुए वचन और सोगंधों का व्यापार मत करो । यह उसके निकट घोर पाप है। ईश्वर को छोड़ कर किसी को पूज्य न बनाओ, यमदूतों (फरिश्तों) को भी नहीं और संदेश वाहकों को भी नहीं।
संदेश वाहक पर सहृदयता से विश्वास लाओ और उसकी मदद के लिए आगे बढ़ो।
पूजा केवल ईश्वर की करो। उसके साथ किसी को पूज्य न ठहराओ, और उसके सिवा किसी को पूज्य न बनाओ। इन बातों में कभी समझौता न करो अन्यों को भी इस हेतु लालायित करो।
इब्राहीम ईश्वर की ओर पूर्णतया एकाग्र थे और उसके अत्यधिक आज्ञाकारी थे उन्हीं का मार्ग अपनाओ, अन्य सभी मार्ग भटकाव की ओर ले जाने वाले हैं उनसे सावधान रहो।

अध्याय (पारा) -4
यदि कृतज्ञता के स्थान के इच्छुक हो तो वह वस्तुएं दान करो जिन्हें तुम पसंद करते हो।
ख़ाना-ए-काबा (मक्का में एक स्थान) ईश्वर का प्रथम घर है। यह तुम्हारे लिए समृद्धि और सीख का झरना है। जो भी वहाँ पहुंच सकता हो, उस पर आवश्यक है कि उसके दर्शन करे।
गत किताब वालों के चक्कर में न पड़ो। ईश्वर की डोर को दृढ़ता से थामे रहो। उसके कोप से बचो जिस सीमा तक बच सको। आमरण इस्लाम (विश्वास) के पथ पर सुदृढ़ रहो। सब इकठ्ठे हो कर ईश्वर की डोर को दृढ़ता से पकड़ लो और बंटो मत, ईश्वर के उस उपकार का स्मरण रखो कि उसने तुम्हारे हृदयों को जोड़ दिया और तुम्हें भाई - भाई बना दिया, तुम अग्नि के गड्ढे के किनारे खड़े थे, उसने तुम्हें उसकी कोपदृष्टि से बचा लिया।
अच्छाई की ओर बुलाओ, भलाई का आदेश दो और पाप से रोकते रहो। उन व्यक्तियों के जेसे न हो जाओ जो प्रकाशित आयतों (पाठ्यंशो) के आ जाने के पश्चात भी सत्य से भटक गए और टुकड़े-टुकड़े हो गए।
तुम उनका मार्ग पकड़ो जो सही मार्ग पर डटे हैं। रात्रि के समयों में ईश्वर की आयतों (पाठ्यंशों) का उच्चारण करते हैं और उसके आगे सजदे (झुकते) में होते हैं। ईश्वर और अंत के दिन पर विश्वास रखते हैं, सद्कर्म का आदेश देते हैं, पाप से रोकते हैं और पुण्य के कार्यों में परस्पर अग्रणी रहने का प्रयास करते हैं।
शत्रुओं को अपना भेदी मत बनाओ। उनके कुकर्मों से बचो संयम और शालीनता का चीर थामे रहो। ईश्वर के मार्ग में निकलो तो टूटा साहस न दिखाओ।
ईश्वर के कोप से बचो । अत्यधिक ब्याज न खाओ। ईश्वर और ईश्वर के संदेश वाहकों की बात मानो और स्फूर्ति से अग्रगामी रहो।अपने पूज्य की क्षमाशीलता और उस स्वर्ग की ओर जिसका विस्तार भूमि से नभ के समान है।
जिनके हृदय संयम से भरे हैं, वे घनवानी और निर्धनता की प्रत्येक स्थिति में दान करते हैं। क्रोध को पी जाते हैं और अन्यों के अपराध क्षमा कर देते हैं। यह पुण्य करने वाले व्यक्ति हैं जिन्हें ईश्वर प्रेम करता है।
कदैव कोई अश्लील कृत्य कर बैठें तो वे तुरंत ईश्वर का स्मरण करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं। भूल पर अड़े नहीं रहते। ऐसे व्यक्तियों हेतु ईश्वर की क्षमाशीलता और स्वर्ग है।
टूटा साहस न दिखाओ, दुःख न करो, विश्वास पर अडिग रहो, ऐसा करोगे तो तुम ही छाए रहोगे ।
क्या तुम ने यह समझ रखा है कि ऐसे ही स्वर्ग में प्रवेश पा जाओगे यद्यपि अभी ईश्वर ने यह तो देखा ही नहीं कि तुम में कौन व्यक्ति उसके सत्य मार्ग हेतु युद्ध करने वाले हैं और कौन इस हेतु संयम करने वाले हैं।
मुहम्मद (स.) ईश्वर के संदेश वाहक हैं। उनसे पूर्व बहुत से संदेश वाहक आए और प्रस्थान कर गए। अगर उनकी हत्या हो जाए या मृत्यु हो जाए तो क्या उनका मार्ग छोड़ दोगे ? नहीं, ऐसा न करना जब तक जीवित रहो इश मार्ग पर चलायमान रहो चाहे कुछ भी हो जाए।
ईश्वर से प्रार्थना करो कि ऐ हमारे पालनहार ! हमारे पापों और भूलों को क्षमा करो। हमारे अविश्वास को क्षमा कर दो। हमारे पैर जमा दो और अविश्वासियो के समक्ष हमारी सहायता करो।
ईश्वर को नहीं मानने वालों की बात मत मानो। उसको अपना पक्षकार और सहायता करने वाला बना लो दुर्बलता मत दिखाओ, परस्पर झगड़े न करो,मृत्यु से न डरो, सांसारिक प्रेम में मत पड़ो और अंत के दिन की अभिलाषा उत्पन्न करो। ऐसा करोगे तो ईश्वर की सहायता से स्वयं को निकट पाओगे। ईश्वर से डरो, राक्षस टोली से मत डरो। उनके क्रियाकलाप से तुम भयभीत न हो, यह ईश्वर का अनिष्ट नहीं कर सकते।
सत्य बोलने में कंजूसी से काम न लो, यह कंजूसी अंत के दिन गले की सांकल बन जाएगी। स्मरण रहे कि हर जीवित को मृत्यु का स्वाद चखना है और सभी को अंत के दिन पूर्ण बदला मिलना है। संसार के धोखे में न रहो, अंत के दिन की सफलता की सोचो।
सद्मार्ग में परीक्षा पर संयम करो, ईश्वरीय पुस्तक की शिक्षा आमजन को दो, उसमें कुछ भी मत छिपाओ,सृष्टि के चिह्नो में पहचान करो। उठते बैठते और लेटते हर हाल में ईश्वर का स्मरण करो और नरक की सजा से बचने की सोचो । धीरज रखो ईश्वर किसी का सद्कर्म नष्ट नहीं करेगा, चाहे पुरुष हो या स्त्री। ईश्वर के मार्ग के लिए जिन व्यक्तियों ने जीवन व धन का त्याग किया है, उन्हें उनके त्याग का पूर्ण बदला देय होगा और सदाबहार स्वर्ग में प्रवेश करेगा।
ईश्वर के आदेश नहीं मानने वालों के क्रियाकलाप और दिखावे से धोखा मत खाओ, उनका अंत अच्छा नहीं होगा।
संयम से काम लो, सुदृढ़ रहो, सत्य की सहायता हेतु सदैव तैयार रहो और ईश्वर की अवज्ञा से बचते रहो।

4. पाठ (सूरह अन-निसा) (स्त्री का पाठ)
मदीना में उतरी, (कुल आयत 176, कुल रुकुअ 24)
(विषय - स्त्री अधिकार, सशक्तिकरण, अनाथ, निर्धन, न्याय, वसीयत, अधिकार और कर्तव्य, समानता, कर्मफल,आचरण,वाणी की शुद्धता के संदर्भ में)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर से डरो और संबंधों का पालन करो। अनाथों का धन उनके सुपुर्द कर दो। उनका धन हड़पने के प्रयास न करो क्योंकि वह तुम्हारे लिए वर्जित और हानिकारक है।

तुम्हें अनाथों के संबंध में न्याय करना है और स्त्रियों के संबंध में भी न्याय करना है।

स्त्री धन (मेहर) का भुगतान प्रसन्नता पूर्वक कर दो। अनाथों के धन की सम्पूर्ण रखवाली करो। जब वो बड़े और समझदार हो जाएं तो उनका धन उनके सुपुर्द कर दो।

ईश्वर ने उत्तराधिकार के भागीदार नियत कर दिये हैं, उसके बताए हुए भागों के अनुसार प्रत्येक का भाग उसके सुपुर्द करो। उत्तराधिकार में से अनाथों का भाग कदापि मत मारो।

उत्तराधिकार के बंटवारा करने के समय निकट संबंधी और अनाथ व निर्धन आएं तो उस माल में से उनको भी कुछ दे दो।

मरने वाले के उधारी वसीयत को उत्तराधिकारियों में बांटने से पहले चुकता करो। ऐसी वसीयत न करो जिससे किसी का भाग मारा जाए। कुटुंब और समाज में निर्लज्जता मत फैलने दो। उसे रोकने के लिए प्रभावी प्रयास करो।

पाप कर बैठो तो सहृदयता से तुरंत प्रायश्चित कर लो, न हठधर्मीता से काम लो और प्रायश्चित हेतु मरने के समय की प्रतीक्षा करो।

स्त्रियों को मत सताओ, उनके साथ अन्याय की धारणा मत रखो। यदि अलगाव की स्थिति आ जाए तो उनको दिया हुआ धन उनसे वापस लेने के प्रयास मत करो। उनके साथ भली प्रकार से जीवन जियो। यथा संभव उनके साथ सुंदरता पूर्वक संबंध बनाने के प्रयास करो।

ईश्वर ने जो संबंध वर्जित किए हैं उनकी पालना सुनिश्चित करो।

अध्याय (पारा) -5

दुष्कर्म से दूर रहो । विवाह का पवित्र मार्ग अपनाओ । यदि किसी स्वतंत्र मुस्लिम महिला से विवाह का सामर्थ्य नहीं हो तो स्वतंत्र दासी से विवाह कर लो। परंतु अश्लीलता के निकट नहीं जाओ ।

परस्पर संपत्ति का अनर्गल मार्ग से गबन नहीं करो, पारस्परिक सहमति वाले व्यापार को बढ़ावा दो। पारस्परिक जीवन का सम्मान करो।

स्त्रियों को भलाई वाली आज्ञाकारिणी होना चाहिए, पति की अनुपस्थिति में अपनी लज्जा की रक्षा करने वाली हों।

पत्नी का व्यवहार ठीक नहीं हो तो पति को चाहिए कि उसमें सुधार के प्रयास करे। पति पत्नी में वेमनस्यता की स्थिति में अन्य व्यक्ति (संबंधी) संबंध सुधार हेतु सहायता करें।

ईश्वर की पूजा करो, किसी को उसके समकक्ष नहीं मानो, माता पिता, अनाथ, गरीब, नातेदारों, पड़ोसियों, अपरिचित पड़ोसियों, समधी पड़ोसियों, निकट मित्र, पथिकों , अपने अधीनस्थों के संग उत्तम व्यवहार करो।

ईश्वर से विद्रोह मत करो। ना खुद सत्य को छुपाओ और ना ही सत्य को छुपाने हेतु किसी को प्रोत्साहित करो। ईश्वर ने जो ज्ञान तुम्हें दिया है उसे सार्वजनिक करो, अविश्वासी एवं कृतघ्नता का मार्ग मत अपनाओ। जनता को दिखाने हेतु व्यय(दान) मत करो।

नशा (मद्य) नही करें और पूर्ण होश में नमाज पढ़ने हेतु आएं। नहाना (गुस्ल) अनिवार्य हो तो नहाओ और यदि बीमार हो पानी उपलब्ध नहीं हो तो मिट्टी से (तयम्मुम) (चेहरे और हाथों मलना) कर लो।

यहूदियों और ईसाईयों को तरह पंथ में परिवर्तन का विचार हृदय में नहीं लाओ। पंथ से अनभिज्ञता न दर्शाओ व ना ही इसका उपहास करो। मानने वाले और अज्ञाकारिता की प्रतिमूर्ति बन जाओ।

ईश्वर के समकक्षता (शिर्क) घृणित पाप है, सब से बड़ा शिर्क (ईश्वर के समकक्ष किसी अन्य को मानना) यह है कि ईश्वर के नियमों (शरीयत) के समकक्ष दूसरे के नियमों को मानना। ईश्वर के समकक्ष किसी को मानने को ईश्वर कभी क्षमा नहीं करता। अपनी पवित्रता का बखान मत करो। गंभीरता से स्वयं का परीक्षण करो कि क्या ईश्वर के यहां तुम्हें पवित्र माना जायेगा ?

जिसका जो अधिकार है वो उसके सुपुर्द करो। जनता के मध्य निर्णय करो तो न्यायपूर्ण करो। ईश्वर की सीख को समझो।

ताग़ूत और ताग़ूत (अन्य उपासक) के कानूनों को स्वीकार नहीं करो, ईश्वर के पंथ पर विश्वास लाओ। आज्ञाकारी बानो, बात मानो ईश्वर की और उसके संदेश वाहक की और उन व्यक्तियों की जो तुम से आयु में अधिक हैं। यदि तुम्हारे मध्य कोई विवाद हो जाए तो ईश्वर और उसके संदेश वाहक को सौंप दो, इनके निर्णय हेतु (अन्य अराध्य) के निकट मत जाओ।

यदि तुम मानने वाले हो तो अपने पारस्परिक झगड़े की स्थिति में ईश्वर के संदेश वाहक का निर्णय मानो और जो निर्णय वो कर दें उसे सहृदयता से स्वीकार करो उनके निर्णय के समक्ष अपना सर झुका दो।

ईश्वर और उसके संदेश वाहक की बात मानो। ईश्वर तुम्हे उन व्यक्तियों के साथ रखेगा जिन पर पुरस्कार हुआ है, अर्थात ईश्वर के संदेश वाहक, मित्र, भले लोग और शहीदों के साथ। तुम ऐसे व्यक्तियों के संग की लालसा हृदय में बसाओ और इस हेतु प्रयासरत रहो।

असत्य से लड़ने हेतु सदैव तैयार रहो। आदेश होते ही निकल पड़ो और जी ना चुराओ। उन व्यक्तियों में सम्मिलित हो जाओ जिन्होंने अंत के दिन हेतु जीवन का परित्याग कर दिया।

तुम ईश्वर के लिए उन दुर्बल पुरष, स्त्रियों और बालकों के पक्ष में युद्ध करो उनसे जो निर्बलों को दबाते हैं। वो निर्बल ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनके वास स्थान पर मुक्तिदाता आयेगा।

मात्र ईश्वर के लिए युद्ध करो और यदि युद्ध आवश्यक हो तो डरो मत, ईश्वर के निर्णय पर असहमति मत दर्शाओ।मृत्यु का भय मत करो, तुम मृत्यु से कहीं नहीं भाग सकते हो। सांसारिक जीवन क्षणिक है और अंत का दिन उत्तम है। अंत के दिन हेतु सांसारिक जीवन त्यागना उत्तम है।

अपनी शक्ति भलाई हेतु उपयोग करो बुराई को शक्ति मत दो, जब कोई तुम्हें अभिवादन (सलाम) करे तो उसे उत्तम प्रतियोत्तर दो अथवा उसी के शब्दों में उत्तर दो।

दोगले (मुनाफ़िक़) को मित्र मत बनाओ, उनकी मीठी बातों से धोखा मत खाओ।

किसी विश्वासी (मोमिन) पर हाथ ना उठाओ ना ही किसी ऐसे व्यक्ति पर हाथ उठाओ जिसके समाज (कोम) से तुम्हारा समझौता हुआ है। भूल से किसी से हत्या हो जाए तो खून के बदले खून का बदला (ख़ूनबहा) (तावान) प्रस्तुत करो। भूल से हत्या की स्थिति में एक विश्वासी (मोमिन) दास को मुक्त करो, यदि दास ना हो तो दो माह तक लगातार उपवास (रोजा) करो। जानबूझकर किसी की हत्या का विचार हृदय में मत लाओ, यह अति घृणित अपराध है जिसकी सजा नरक है सदा के लिए रहने वाली नरक। अपने हाथ को विराम दो यदि कोई युद्ध के समय अभिवादन (सलाम) कर ले और उसे झूठा समझकर उस पर हाथ मत उठाओ।

जब ईश्वर के मार्ग में जीवन और संपदा प्रस्तुत करने का आदेश हो तो बैठो मत आगे बढ़ो, और स्थान छोड़ने (हिजरत) का आदेश हो सोच विचार में मत पड़ो प्रस्थान करो।

शत्रु के साथ युद्ध की संभावना की स्थिति में नमाज अवश्य पढ़ो। साथ ही ऐसी रणनीति बनाओं कि एक टुकड़ी नमाज पढ़े और दूसरी टुकड़ी रक्षा करे।

ईश्वर ने जो समझ दी है उसके प्रकाश में निर्णय करो। गबन और घोटाला और बुरे कर्म करने वाले व्यक्तियों के साथ ना कोई दया करो और ना ही छूट करो।

कोई पाप होने की स्थिति में तुरंत क्षमा मांग लो । पाप को जीवन की कमाई मत बनाओ, स्वयं अपराध या पाप कर के दूसरों के सर पर मत थोपो, यह अति घृणित कृत्य है।

जनता को दान पुण्य हेतु लालायित करो और बिगड़े संबंध बनाने के प्रयास करो। इस हेतु पृथक से मंत्रणा आवश्यक हो तो करो इसके अतिरिक्त पृथक मंत्राणा व खुसुर-फूसुर से बचो।

ईश्वर के संदेश वाहक (रसूल) का विरोध करना और विश्वासियों का मार्ग छोड़ कर अन्य मार्ग पर चलना अंत के दिन हेतु घातक है। इससे सावधान रहो। और अन्य को ईश्वर के समकक्ष ठहराने (शिर्क) से दूर रहो, यह अक्षम्य अपराध है।

स्त्री पुरुष के लिए स्वर्ग में जाने हेतु सद्कर्म आवश्यक हैं। अतः स्वयं के विश्वास की रक्षा करो, बुरे कर्मों से बचो और अच्छे कर्म करते रहो। लालसाओ की अट्टालिका (महल) मत बनाओ।अपना मुख ईश्वर की ओर कर दो, अच्छाई और पवित्रता के साथ जीवन यापन करो। इब्राहीम जेसे एकाग्रचित्त थे, वैसे ही तुम इब्राहीम के मार्ग पर चलो।

अनाथों का अधिकार हनन मत करो और ना ही उन पर अत्याचार करो। निर्बल और अनाथों के अधिकार उन्हें सौंप दो। अनाथों के साथ न्याय करो और भलाई के कामों में आगे बढ़ो।

पति पत्नी के मध्य मतभेद हो तो परस्पर समझौता करने में पहल करो और उपकार का मार्ग अपनाओ। परोपकार से काम लो । स्वयं के लाभ की भावना मानव में रची-बसी है, अतः इससे सावधान रहो। ऐसा कोई मार्ग ना अपनाओ कि तुम्हारी पत्नी अधर में लटकी रह जाए। अलगाव की स्थिति आ ही जाए तो ईश्वर से दया की आशा रखो।

ईश्वर के लिए न्याय के रखवाले और ईश्वर के लिए न्याय के साक्षी बानो चाहे इस हेतु तुम्हें कितनी भी हानि उठानी पड़े उठाना पड़े, परंतु न्याय का मार्ग मत छोड़ना।

 ईश्वर को नकारने वाले को मित्र मत बनाओ, दोगलों (मुनाफ़िक़त) (बाहर से कुछ और अंदर से कुछ ओर) से बचो और ईश्वर की डोर पकड़ लो। केवल ईश्वर के आदेश मानना ही जीवन का उद्देश्य बना लो।

अध्याय (पारा) -6

वाणी को अश्लील वार्ता से गंदी ना करो, प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सब ईश्वर देख रहा है। अन्य लोगों की बुराई क्षमा करो ।

ईश्वर और उसके दूतों पर विश्वास रखो, यह संभव्य नहीं है कि एक पर विश्वास करो और दूसरे पर नहीं।

पुस्तक वालों ने मूसा (एक संदेश वाहक) को तंग किया, बछड़े को पूजना प्रारंभ किया, ईश्वर से किए वचन तोड़े, ईश्वर के पाठ्यांशों (आयतों) को नकार, संदेश वाहकों की हत्या की, और संदेश वाहकों का उपहास करते हुए कहा, “हमारे हृदय मूहरबंद हैं।” उनके अपराधों की सूची अत्यंत लंबी है, तुम उनके मार्ग पर मत चलना ।

किताब वालों से कहो कि मृत्यु से पूर्व संदेश वाहक (नबी) पर विश्वास ले आओ, इसके अलावा मुक्ति संभव नहीं।

अत्याचार मत करो, ईश्वर के मार्ग से मत रोको, ब्याज मत खाओ, अन्यों की संपत्ति गबन व घोटालों मत हड़पो, ये सभी अक्षम्य अपराध हैं।

पंथ के अत्यंत सूक्ष्म ज्ञान वालों का मार्ग अपनाओ। ईश्वर ने जो पुस्तक अवतरित की है और इस से पहले भी की थीं, सभी पर विश्वास करो। नमाज सुदृढ़ करो, ज़कात दो और ईश्वर व अंत के दिन पर विश्वास करो।

पंथ में अतिरेक से नहीं गुजरो , असत्य कथन हेतु ईश्वर को सम्मिलित मत करो, ईशा को ईश्वर का संदेश वाहक मानो, ईश्वर के समकक्ष किसी अन्य को मानने से पृथक रहो।

ईश्वर के स्थान पर तुम जिसकी पूजा करते हो वो स्वयं ईश्वर की पूजा करने में कोई लज्जा अनुभव नहीं करते। घमंड न करो, विश्वास व अच्छे कर्म का मार्ग अपनाओ।

तुम्हारे पालनहार की ओर से सद्मार्ग दिखाने हेतु पुस्तक प्रकाशित हो गई है, उसका सम्मान करो। ईश्वर पर विश्वास करो और उसकी डोर को सुदृढ़ता से थाम लो।

5: पाठ (सूरह अल-माइदा) (समझौते का पाठ)
 मदीना में उतरी (कुल आयत 120, कुल रुकुअ 16)
केंद्रीय विषय - मित्र और शत्रु से व्यवहार,समझौते और वचन का पालन,बुराई - भलाई, पति पत्नी के सामंजस्य के संदर्भ में)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

वचनबद्धता की पूर्ण पालना करो। ईश्वर ने जिन वस्तुओं को वर्जित कहा है उन्हें ग्रहण योग्य मत कहो।

शत्रु मंडली से इस तरह व्यवहार ना करो की उन पर अत्याचार हो। चाहे उनके द्वारा तुम्हें मस्जिद ए हराम (काबा) में प्रवेश से रोकने जैसा संगीन अपराध ही क्यों ना किया गया हो।

अच्छाई और भलाई के कार्यों में परस्पर सहयोग करो, अपराध और अत्याचार के कार्यों में सहायक मत बनो, ईश्वर के कोप से बचते रहे।

ईश्वर ने पंथ को पूर्ण कर दिया है, अपनी सभी सौगातें दे दी हैं, एवं विश्वासियों के पंथ को तुम्हारे लिए चुना है। इस इस पंथ का सम्मान करो और इससे अपने जीवन से अधिक प्रेम करो ।

तुम्हारे लिए सभी पवित्र वस्तुएं ग्रहण योग्य हैं,अतः अग्रहण्य वस्तुओं से दूर रहो

तुम्हारे लिए पवित्र पत्नियां ग्रहण योग्य हैं, अतः अश्लीलता और दुष्कर्म से दूर रहो।

नमाज़ हेतु वजू (हाथ,पैर,मुंह धोने की क्रिया) करो, पानी की अनुपलब्धता या रोग की स्थिति में मिट्टी से (सूखी वुज़ू) कर लो। आपनी पवित्रता (पाकी) हेतु लालायित रहो। 

ईश्वर की सोगतों का स्मरण रखो, का , उसके वचनों को ध्यान में रखो, और उसके कोप से बचने के उपाय करो।

ईश्वर के लिए न्याय के रखवाले और न्याय के साक्षी बानो। शत्रु टोली की शत्रुता में ऐसा कृत्य मत कर देना की उनके साथ अन्याय हो जाए। न्याय करो और ईश्वर का भय रखने वाले बनो ।

नमाज सुदृढ़ करो, जकात दो, ईश्वर के दूतों की बात मानो, और ईश्वर को पुण्य का ऋण देते रहो, ऐसा करोगे तो ईश्वर को अपने संग पाओगे।

जब तक ईश्वर का भय तुम्हारे हृदय में नहीं होगा तब तक तुम सभी से भयभीत रहोगे, और कोई बड़ा क़दम नहीं उठा सकोगे। अपने हृदय में ईश्वर का भय और भरोसा उत्पन्न करो।

ईश्वर के समक्ष अपने परित्याग को पहुंचाना चाहते हो तो समर्पण करो, ईश्वर का भय करो से डरो एवं किसी मानव पर हाथ मत उठाओ।

किसी भी इंसान की हत्या करना संगीन अपराध है और किसी भी मानव का जीवन बचाना समूर्ण मानवता की भलाई है।

ईश्वर और उसके दूतों से युद्ध करना, धरती पर हिंसा करने के प्रयास करना जघन्य अपराध हैं । उनकी सज़ा अति कठोर है। इसके अतिरिक्त घातक अपराधियों के लिए प्रायश्चित के किवाड़ खुले हैं, वे तुरंत प्रायश्चित करें और स्वयं में सुधार कर लें।

ईश्वर से भय करो और उसके सन्मार्गी होने के प्रयास करो एवं इस हेतु संघर्ष करो, यही सफलता का मार्ग है।

चोरी करना अपराध एवं हिंसा है, इसकी सज़ा हाथ काट देना है। इससे तुरंत पृथक हो जाओ अपनी स्वयं में सुधार करो।

ईश्वर के अवतरित नियमों को नहीं मानना अत्याचार और पाप है, यह ईश्वर का इंकार (कुफ़्र) भी है। तुम्हारे समक्ष ईश्वर की पुस्तक उपलब्ध है, अतः ईश्वर के अवतरित नियमों के अनुसार न्याय करो और जो अधिकार तुम्हारे पास हैं उनसे मुंह मोड़ कर अन्यों की पैरवी मत करो। सावधान रहो कोई तुम्हे असमंजस में डाल कर न्याय से दूर ना कर दे।

भलाइयों का प्रचार करो। यह ध्यान करो की अंततः सभी को ईश्वर की ओर लौट कर जाना है।

असंगत नियमों से प्रभावित मत होओ, ध्यान रखो की ईश्वर से उत्तम निर्णायक कोई नहीं है।

यदि तुम ईश्वर की ओर एकाग्रचित्त नहीं हुए तो वो तुम्हारे स्थान पर इसे लोगों को ले आयेगा जो उससे प्रेम करते हैं, और ईश्वर भी उनसे प्रेम करता होगा। जो विश्वासियों नरम और ईश्वर को नकारने वालों पर कठोरतम हो। ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करते रहो और आलोचना करने वालों की आलोचना से मत डरो।

तुम ईश्वर को अपना मित्र बनाओ, उसके दूतों को और उन विश्वासियों से मित्रता करो जो नमाज़ सुदृढ़ करते हैं और ज़कात देते हैं, इस स्थिति में की उनके हृदय ईश्वर के समक्ष झुके रहते हैं।

यदि तुम सम्मान और सफलता के इच्छुक हो तो ईश्वर और उसके दूतों और विश्वासियों को मित्र बनाओ, ऐसे व्यक्ति जो पंथ का उपहास करें और घूमने फिरने का स्थान समझें उनसे दूर रहो।

विश्वास करो और ईश्वर की कृपा प्राप्ति का मार्ग खोजो, ईश्वर की किताब पर विश्वास करो, ईश्वरीय कृपा ऊपर से बरसेगी और नीचे से भी उबलेंगी, अंत के दिन के सुख - चैन से संपन्न स्वर्ग में प्रवेशित किये जाओगे। स्मरण रहे जब तक तुम ईश्वर की किताब पर दृढ़ता पूर्वक नहीं डटे तो तुम्हारी कोई नीव नहीं रहेगी।

ईश्वर पर विश्वास रखो , अंतिम दिन पर विश्वास रखो, सदमार्गी कर्म करते रहो तुम प्रत्येक भय और दुख से सुरक्षित रहोगे।

पूर्व के किताब वालों ने पंथ में परिवर्तन किया, मूसा और ईसा मसीह को ख़ुदा क़रार दे दिया, तुम ऐसे परिवर्तन से बहुत दूर रहो। अन्य को ईश्वर के समकक्ष ठहराने से बचो, ऐसा करने वालों पर स्वर्ग वर्जित हो जायेगी और नरक उनका सदैव का ठिकाना होगी। अभी भी अवसर है प्रायश्चित करो और क्षमा याचना करो।

उन व्यक्तियों जेसे मत हो जाओ जो ईश्वर के नकारने वाले हैं, अत्याचार करते हैं, बुरे कर्म करने वालों को नहीं रोकते हैं, अन्य को ईश्वर के समकक्ष मानते हैं से मित्रता करते हैं, और विश्वासियों से शत्रुता रखते हैं, ऐसे व्यक्तियों हेतु कभी ना समाप्त होने वाला कष्ट है।

अध्याय (पारा) -7

ईश्वर के (भले व्यक्तियों) बंदों की पहचान होती है कि जब उसकी आयतों (पाठ्यांशो) को सुनते हूं तो हर्ष से उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, वो उद्वेलित हो कर कहते हैं, ऐ हमारे पालनहार हम तुझ पर विश्वास लाए तू हमें सद्मार्ग के साक्षियों में लिख ले।

ईश्वर ने, तुम्हें ग्रहण्य और उत्तम खाद्य प्रदान किया है, उसे खाओ और ईश्वर के कोप से बचो, सूचित रहो कि ग्रहण्य और पवित्र वस्तुओं को वर्जित कहना भी अपराध है।

असत्य बात की सौगंध मत खाओ, और सौगंध खा ली है तो, उस पर आतुर ना रहो और उसका प्रायश्चित प्रस्तुत करो और ग़लत सौगंध खाने से बचाव करो।

मद्य, जुआ, और पासे के तीर सभी घिनौने और राक्षशी (शैतानी) कार्य हैं, इनसे दूर रहो। राक्षस चाहता है कि इस तरह तुम्हारे और ईश्वर के मध्य शत्रुता एवं अलगाव उत्पन्न हो जाए और ईश्वर के स्मरण और नमाज़ से तुम्हें दूर कर दे।

ईश्वर और उसके दूतों की बात मानो और सावधानी रखो, विश्वाश की रक्षा करो, भले और सही काम करो, ईश्वर के कोप से बचो और उत्तमतम मार्ग अपनाओ।

वर्जित मास (अहराम/हज के वस्त्र धारण) की स्थिति में ख़ुश्की का शिकार न करो(अर्थात मस्जीदे हरम के क्षेत्र में किसी प्रकार की हत्या वर्जित है, जूं को मारना भी वर्जित है), इसमें तुम्हारी परीक्षा है,इससे साबित होता है कि व्यक्ति ईश्वर से कितना डरते हैं, ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं है फिर भी उससे कितना डरते हैं।

पवित्र वस्तुओं से लगाव रखो, और अपवित्र वस्तुओं से बचाव करो, इन दोनों में अंतर को समझने का प्रयास करो, इस तरह ईश्वर के कोप से बचे रहोगे।

ईश्वर ने जिन वस्तुओं को उद्रीत नहीं किया है, उनको कुरेदो मत, ईश्वर ने जो उद्रीत किया है उस पर ध्यान दो, इसी में तुम्हारी भलाई है। पशुओं को देवताओं के नाम पर स्वतंत्र छोड़ देने का आदेश ईश्वर ने नहीं दिया है, यह ईश्वर पर असत्य लांछन है।

स्मरण रखो, पंथ वह है जो ईश्वर की पुस्तक में है, पंथ वह नहीं है जो तुम्हारे बाप - दादा से तुम्हें मिला है। अपने विश्वास की रक्षा करो, दूसरों के भटकाव तुम्हें सीधे मार्ग से न हटा दें।

उत्तराधिकार पत्र के संदर्भ में सावधान रहो। यदि तुम किसी उत्तराधिकार पत्र के साक्षी हो तो अपने साक्ष्य का व्यापार मत करो, और साक्ष्यों को मत छुपाओ, चाहे इससे तुम्हारे किसी संबंधी का लाभ क्यों न जुड़ा हो, देखो, ईश्वर के कोप से बचो और ईश्वर की बात सुनो।

ईसा (अ.) की पुकार पर हवारी (ईशा के समर्थक) दौड़ पड़े, तुम भी अपने प्रवर्तक के साथ यही मार्ग अपनाओ।

ईसा (अ.) ने एकेश्वरवाद का न्यौता दिया था, परंतु उनके पश्चात के व्यक्तियों ने स्वयं उनको पूज्य बनाकर ईश्वर के साथ समकक्ष किया, तुम इस झोड़ से ईश्वर की मुक्ति माँगो।

सदैव स्मरण रखो कि तुम ईश्वर की रखवाली में हो, 
सत्य का मार्ग अपनाओगे तो विशाल सफलता मिलेगी।

पाठ (सुरह अल अनआम) - 06 
(मक्का में उतरी कुल आयत 165 , कुल रुकुअ 20)
केंद्रीय विषय - (सृष्टि की संरचना, समकक्षता (शिर्क), ईश्वर के दूत और उनके संदेश)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की बड़ाई करो, उसने नभ और भूमि उत्पन्न किए हैं, उसी ने अंधेरे - उजाले बनाए हैं, इसके पश्चात ईश्वर के समकक्षता की क्या संभावना रह जाती है। उसी ने तुमको मिट्टी से बनाया और तुम्हारी मृत्यु का दिवस निश्चित किया, फिर संदेह की संभावना कहाँ बचती है।

नभ और भूमि उसकी देखरेख में हैं, वह तुम्हारे छुपे और खुले सब को जानता है, तुम्हारी सारी कमाई उसके संज्ञान में है, और फिर उससे निडर कैसे रह सकते हो।

ईश्वर की निशानियाँ हर ओर बिखरी हुई हैं, तुमसे कहीं अधिक शक्तिशाली समाजों के बुरे अंत का इतिहास साक्ष्य दे रहा है, फिर भी सत्य को झुठलाना और ईश्वर के पाठ्य अंशों (आयतों) का उपहास उड़ाना कहाँ की बुद्धिमता है, झुठलाने वाले हर हाल में झुठलाएँगे, उपहास करने वाले हर समय उपहास उड़ाते रहे हैं, तुम उन सबसे अनभिज्ञ होकर, एकेश्वरवाद का संदेश सुनाते रहो। सभी विरोधी के उत्तर में तुम कह दो कि मैं ईश्वर के समकक्ष (शिर्क) नहीं कर सकता, मैं केवल ईश्वर की पूजा में अग्रणी रहूँगा, मुझे बड़े दिन के दंड से भय लगता है, मैं अपने पालनहार की अवज्ञा नहीं कर सकता।

तुम सम्पूर्ण प्रकार की समकक्षता (शिर्क) से मनाही की घोषणा कर दो और कह दो कि सबसे बड़ा साक्ष्य तो ईश्वर का साक्ष्य है, उसी ने यह क़ुरआन अवतरित किया है और मुझे आदेश प्राप्त हुआ है कि इसके माध्यम से व्यक्तियों को सावधान कर दूँ।

देखो बहुत बड़ा अपराध यह है कि ईश्वर की ओर से कोई झूठ बात जोड़ी जाए, और यह भी बहुत बड़ा अपराध है कि ईश्वर की ओर से जो पंथ आया है, उसे झुठलाया जाए।

ईश्वर के समकक्षता (शिर्क) करने वाले और ईश्वर के पाठ्यांशों (आयतें) झुठलाने वाले जब अपने पालनहार के समक्ष खड़े किए जाएंगे, तो उनका क्या हाल होगा? और जब वे नरक की अग्नि के निकट खड़े किए जाएंगे तो उनकी क्या स्थिति होगी? जब वह घड़ी सामने आ जाएगी तो उन्हें अपने किए पर कितना दुख होगा। ऐसे सभी व्यक्तियों हेतु संसार ही में अपना मार्ग सुधार कर लेने का अवसर है, इसके पश्चात चिल्लाना-चीख़ना व्यर्थ होगा।

तुम्हारे न्यौते को लोग झुठलाएँगे, इसका दुख न करो, संयम के साथ अपना कर्म करते रहो, न्योते के परिणाम हेतु उतलापन न करो, लोग जल्दी से सद्मार्ग (हिदायत) स्वीकार कर लें, इस लालसा में कभी मध्यम मार्ग से मत हट जाना।

लोगों को समझाइश के साथ इस तरह न्योता दो कि वह कुछ सोचने पर विवश हो जाएँ, उन्हें अच्छाई का अच्छा बदला बताओ, और बुराई के बुरे अंत की सूचना कर दो, बताओ कि उन्हें ईश्वर पर विश्वास लाना है और उसी की आराधना में अपना जीवन यापन करना है, ऐसा करके वह हर डर और हर दुख से सुरक्षित हो जाएंगे।

जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास ले आएं, उन्हें अपनी पलकों पर बैठाओ, लोगों की बातों में आकर उन्हें अपने से दूर मत करो, वे ईश्वर के कृतज्ञ आराधक हैं, ईश्वर के निकट उनका अति उच्च स्थान है।

विश्वास लाने वालों को सुरक्षा की सूचना दो, यदि उनसे भूल में कोई अपराध हो जाए तो उनको हिम्मत बंधाओ कि तुम प्रायश्चित कर लो और अपनी भूल ठीक कर लो, ईश्वर की दया तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।

एकेश्वरवाद का न्योता देने हेतु, दलीलों का कोष पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशवान प्रतीकों की सूरत में हर ओर बिखरा हुआ है, उनसे लाभ उठाओ, लोगों को सोचने व समझने हेतु लालायित करो, और जो लोग बुद्धि पर ताला डालकर केवल निरर्थक बहसें करें, उनसे बचो।

सत्य मार्ग के शत्रु तुम्हें अपने पंथ से भटकाने के प्रयास करेंगे, परंतु स्पष्ट कह दो कि हम ऐसी नासमझी के काम नहीं करेंगे, (हिदायत) सद्मार्ग तो केवल ईश्वर का सद्मार्ग है, वह हमें मिल गया है, अब तो हम सिर्फ सृष्टि के पालक के समक्ष अपने सर को झुकाएँगे, नमाज़ सुदृढ़ करेंगे और ईश्वर के कोप से बचने के प्रयास करेंगे।

इब्राहीम (अ.) के उद्धरण पर ध्यान दो, कितने सुंदर ढंग से सृष्टि के प्रतीकों के माध्यम से समाज को एकेश्वरवाद का न्योता दिया। पंथ के न्यौते के मार्ग में बहुत डर मिलेंगे, परंतु विश्वास जिसके हृदय में बस जाता है वो किसी से नहीं डरता।

संसार में नकारने (कुफ्र) और समकक्षता (शिर्क) फैलाने वालों से मत डरो। तुम्हारे समक्ष दूतों का पवित्र सिलसिला है जो सीधे मार्ग पर थे, जिनका जीवन अत्यंत सुंदर जीवन था, जो भलाई के दृष्टा थे, जिन्हे ईश्वर ने सभी मानवों पर सर्वोच्चता प्रदान की थी, बस उन्हीं का मार्ग अपनाओ।

तुम्हारे पास यह पवित्र पुस्तक है, इसके माध्यम से व्यक्तियों को सावधान करो जो अंत के दिन के बारे में सोचते हैं, जिन्हे अपनी नमाज़ों की स्वीकार्यता की सोच है,  वे इससे लाभ उठाएंगे। व्यक्ति जो ईश्वर के स्थान पर जिन अन्य देवताओं को पूजते हैं, उन्हें गालियाँ मत दो, ऐसा न हो कि वो सीमा लांघ कर, उससे आगे बढ़कर बिना जानबूझ (अनजाने में) के ईश्वर को गालियां देने लगें।

अध्याय (पारा) -8

राक्षस लोगो में और जिन्नो (आग से बने देव) में भी होते हैं, उनकी मीठी बातों से धोखा मत खाओ, ये दूतों के शत्रु होते हैं और अपनी मीठी बातों से व्यक्तियों को धोखा देते हैं। 

तुम ईश्वर के निर्णय पर सहमत रहो, और उसकी किताब को पकड़े रहो, उसमें सत्य है, सम्पूर्ण सत्य और न्याय है, उसकी बातों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है। 

सांसारिक बातों में न आओ ये तुम्हें पथभ्रष्ट कर देंगे, यह केवल कल्पना का साथ देते हैं, और तुम्हारे पास विश्वास का प्रकाश है। 

जिन भोज्य (हलाल) पशुओं पर ईश्वर का नाम लिया जाए उन्हें शांतिपूर्वक ग्रहण करो, उन्हें वर्जित मत समझो। पाप मत कमाओ, प्रत्यक्ष पाप से भी बचो और अप्रत्यक्ष पाप से भी। 

जिन पशुओं पर ईश्वर का नाम ना लिया जाए उन्हें मत खाओ। राक्षस की बातें मत सुनों वे तुम्हें समक्षकता (शिर्क) में धकेल देंगे।

तुम जीवन के सत्य से अनभिज्ञ थे, ईश्वर ने तुम्हें अपनी किताब देकर जीवन प्रदान किया, अब, तुम लोगों के मध्य प्रकाश के साथ चल रहे हो जबकि दूसरे लोग, अँधेरों में भटक रहे हैं, ईश्वर के इस उपकार का धन्यवाद ज्ञापित करो और उसका सम्मान करो।

ऐ लोगों...! ईश्वर ने तुम्हारे लिए अनंत बाग़ उगाए, तुम उनके फल खाओ, और कटाई के समय उनका दायित्व निभाओ और सीमा से आगे न बढ़ो, ईश्वर ने तुम्हारे लिए मवेशी उत्पन्न किए हैं, यह ईश्वर प्रदत्त भोजन है, उन्हें शांतिपूर्वक खाओ और राक्षस के बहकावे में मत आओ। 
उन समस्त वस्तुओ को ग्रहण योग्य समझो, जिन्हें ईश्वर ने ग्रहण्य किया है, उनमें से कुछ वस्तुएं, यहूदियों पर उनके भटकाव के कारण वर्जित कर दी गई थीं, तुम ईश्वर के समक्ष भटको मत। 

ईश्वर के साथ किसी को सम्मिलित (शिर्क ) न करो,
माँ-बाप के साथ उत्तम व्यवहार करो, अपनी संतान की निर्धनता के भय से हत्या मत करो, हम तुम्हें भी भोजन (रिज़्क़) देते हैं, और उन्हें भी देंगे।

निर्लज्जता प्रत्यक्ष हो, या अप्रत्यक्ष, उसके निकट मत जाओ। जिस जीवन को ईश्वर ने सम्मानित बताया है उसकी बिना कारण हत्या न करो। 

अनाथों की सम्पत्ति की उत्तम मार्ग से रक्षा करो, उसे ललचाई आंखों से ना देखो।

नाप-तौल में कमी न करो, जब बात कहो, न्याय की कहो चाहें वाद अपने संबंधी का ही क्यों न हो।

ईश्वर से किए वचन को पूरा करो, ईश्वर का मार्ग सीधा मार्ग है, बस उसी पर चलो। उसका मार्ग छोड़कर किसी और मार्ग पर न चलो, अन्यथा ईश्वर के मार्ग से दूर भटकते रहोगे। ये ईश्वर की सीख हैं, इन पर कार्यरत रहोगे तो ईश्वर के कोप व दंड से बच जाओगे।

ईश्वर की पुस्तक बढ़ाने ( बरकत) वाली पुस्तक है, इसमें प्रकाशित साक्ष्य है, मार्गदर्शन (हिदायत) और कृपा (रहमत) है, इस पर कार्य करो और संयम (परहेजगारी) अपनाओ। स्मरण रखो जो ईश्वर के पास भलाई लेकर जाएगा उसे दस गुना बदला मिलेगा और जो बुराई लेकर जाएगा उसे बुराई का ही बदला मिलेगा।

निश्चय कर लो तुम्हें सीधे मार्ग पर ही चलना है, उस पंथ पर कार्य (अमल) करना है जो बिलकुल ठीक पंथ है, इब्राहीम (अ) जिस प्रकार से अपने पालनहार की ओर एकाग्रचित्त थे उसी तरह एकाग्रचित हो जाना है। तुम्हारी नमाज़, तुम्हारा परित्याग (क़ुर्बानी), तुम्हारा जीना और तुम्हारा मरना, सब कुछ ईश्वर के लिए हो और केवल ईश्वर की अराधना में तुम सबसे आगे रहो।

07 पाठ (सुरह अल आराफ) 
(मक्का में उतरी कुल आयत 206, कुल रुकुअ-24)
केंद्रीय विषय -(परलोक,ईश्वरीय संदेश,विश्वास, सम्मान, घमंड,दया,ओर पवित्रता)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

तुम्हारे पास ईश्वर की पुस्तक है, तुम्हारे हृदय में उससे कोई उलझन न रहे, उसके ज़रिये लोगों को सावधान करो और ख़ुद स्मरण करते रहो, उसी की पैरवी करो। पालनहार को छोड़कर दूसरों को पालनहार ना बनाओ, और ईश्वर की पुस्तक को छोड़कर, दूसरों का मार्गदर्शन स्वीकार ना करो। 

अंत के दिन की तैयारी करो, उस दिन सबके कर्म ठीक-ठीक तौले जाएंगे, जिनके कर्म में वज़न होगा वही सफल होंगे, तो, तुम भार वाले कर्म की व्यवस्था करो।

ईश्वर ने तुम्हें धरती पर अधिकारों के साथ विशेष रूप से बसाया है, तुम्हें जीने का सामान दिया, यमदूतों (फरिश्तों) के द्वारा तुम्हारा सम्मान किया, इस पर धन्यवाद ज्ञापित करो, और अपना दायित्व पूरा करो।


घमंडियों हेतु ईश्वर के यहाँ कोई स्थान नहीं। राक्षस (इबलीस) का उदाहरण, तुम्हारे समक्ष रहे, घमंड से हृदय को पवित्र रखो, राक्षस (शैतान), तुम्हारा पुरातन शत्रु है, उसने तुम्हें बहकाने का प्रण कर रखा है उससे सदैव सावधान रहो, उसने निश्चय किया है कि तुमसे कृतघ्नता करवाएगा, पालनहार की कृतघ्नता बर्बादी का मार्ग है, कृतघ्नता से बचो और कृतज्ञता का मार्ग प्रशस्त करो।

बहकाने वाले सदैव भला चाहने वालों के भेष में आते हैं, दिवास्वपन्न दिखाते हैं और सौगंध खाते हैं, तुम बहकाने वालों से कभी धोखा मत खाओ, राक्षस (इबलीस) ने किस प्रकार से आदम और हव्वा को बहकाया, उससे सीख प्राप्त करो।

जैसे ही भूल का पता चले, आदम और हव्वा की तरह तुरंत क्षमा मांग लो, राक्षस के जेसे भूल पर ढिठाई का रास्ता मत अपनाओ। यह संसार अस्थाई है, इस संसार में भलाइ और बुराई के मध्य युद्ध सदैव चलता रहेगा, न बुराई से समझौता करो और न ही संसार को स्थाई समझो। 

ईश्वर ने तुम्हें पहनावे की सौगात प्रदान की है, यह तुम्हारा सम्मान है, तुम नग्नता ग्रहण मत करो। स्मरण रखो बुरे कर्मों से बचाव (तक़वा) उत्तम पोशाक है, इससे व्यक्तित्व कमी रहित और सुंदर हो जाता है, इस पोशाक को सदैव साथ रखो।

राक्षस और उसके साथी तुम्हें उस दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से तुम उन्हें नहीं देखते, अतः उनसे अति सावधान रहो। तुम अपने विश्वास की रक्षा करो, तुम्हारा विश्वास राक्षसों से तुम्हारी रक्षा करेगा। स्मरण रखो ईश्वर निर्लज्जता की बातों का आदेश नहीं देता। और न्याय का आदेश देता है, जहाँ भी निर्लज्जता और अन्याय दृष्टित हो, समझ जाओ कि यहाँ राक्षस की कोई चाल है, हर प्रकार की निर्लज्जता और अन्याय से दूर रहो, हर अराधना में अपना रुख़ (मुख काबे की ओर) सही रखो, और केवल ईश्वर की अराधना करो। 

प्रत्येक आराधना के अवसर पर पहनावा, जो तुम्हारी सुंदरता है, उससे स्वयं को सजाओ, पवित्र भोजन खाओ और अनावश्यक व्यय (फ़िज़ूलख़र्ची) से बचो, पवित्र भोजन, पहनावा ईश्वर के उपकार हैं। उनसे स्वयं को वंचित न करो और न उन्हें वर्जित ठहराओ। 

निर्लज्जता, प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष, वह वर्जित है, पाप और अत्याचार, वर्जित है, ईश्वर के साथ समकक्षता (शिर्क), वर्जित है और बिना जांच पड़ताल के ईश्वर की ओर से कोई बात कहना वर्जित है।

संसार में कोई कितना ही बड़ा (संन्यासी) पीर या रक्षक हो, उसके कहे अनुसार पथ भ्रष्टता मत अपनाओ, अंत के दिन ये सब हाथ उठा लेंगे। विश्वास वालों को उनके अच्छे कर्मों के बदले में स्वर्ग मिलेगी। अतः जितना ज़्यादा हो सके अच्छे कर्म का कोष इकट्ठा करते रहो।ईश्वर ने दूतों के साथ सत्य भेज कर सीधा मार्ग दिखाया है, इस उपकार का सम्मान करो। 

पंथ को खेल और रमणीय स्थान मत बनाओ, अंत के दिन को मत भूलो, किसी अनुशंसा के भरोसे ना रहो, अधिकाधिक कर्म की चिंता करो। अपने पालनहार को पुकारो गिड़गिड़ाते हुए और चुपके - चुपके, ईश्वर ने जो सीमाएं निश्चित की हैं उनका पालन करो, उनसे आगे मत बढ़ो, धरती में सुधार का कार्य करो, झगड़ा न करो। 

ईश्वर को पुकारो, उसी से डरते हुए और उसी से आशा लगा कर, स्वच्छ और उत्तम जीवन यापन करो। अच्छी धरती के जेसे बनो जो वर्षा से लाभ उठाती है और ढेर सारा फल-फूल लाती है। कृतज्ञ बनो और ईश्वर की पुस्तक से अपना जीवन संपन्न बनाओ।

समस्त दूतों ने एकेश्वरवाद का न्योता दिया, तुम भी एकेश्वरवादियों के साथी बनो। दूतों की आप बीती से सीख प्राप्त करो, वह कितनी तल्लीनता के साथ पालनहार का संदेश पहुंचाते, अपने समाज की भलाई हेतु चिंतित रहते, वो विरोधियों के अत्याचार पर संयम करते और उन्हें हर तरह से समझाने के प्रयास करते, दूतों के मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प करो।

अध्याय (पारा) 9

ईश्वर की पूजा (इबादत) करो, उसके अलावा कोई उपास्य (माबूद) नहीं है। 

नाप-तौल सही रखो, लोगों की चीज़ें हड़प मत करो, भूमि में सुधार का काम करो, आतंक (फसाद) बरपा न करो, लोगों को भयभीत मत करो, ईश्वर के मार्ग से किसी को मत रोको, ईश्वर का स्मरण करो, आतंक का प्रसार वालों का अंत अच्छा नहीं होता, उनके बुरे अंत से सीख प्राप्त करो।

पंथ के शत्रु तुम्हें ईश्वर के मार्ग से हटाने के प्रयास करें, तो उनकी कभी न सुनो, स्मरण रखो सर्वोत्तम सौगात ईश्वर का पंथ इस्लाम है। तुम को अन्य को उपास्य बनाने के स्थान पर के इस्लाम का मार्ग मिल गया, इस मार्ग को कभी न छोड़ना।

ईश्वर पर भरोसा रखो, उससे सहायता मांगो, लोग तुम्हें तरह-तरह से डराएंगे, उनकी बातों पर कान न धरना, पूरी भलाई (ख़ैरख़्वाही) के साथ ईश्वर का संदेश पहुँचाते रहो। विरोधी तुम्हारे लिए बुरा चाहेंगे परंतु तुम उनके लिए अच्छा चाहो। तंगी और आफत में नम्रता के साथ ईश्वर की ओर मुड़ जाओ। स्थिति अच्छी हो जाए, तब भी अपने पालनहार का स्मरण करो, विश्वास की सच्चाई में, कभी अंतर न आए। 

ईश्वर के कोप से बचने की चिंता करो, ईश्वर की ओर से कभी निश्चिंत ना रहो से कभी निर्भय न रहो, ईश्वर नभ और भूमि के बढ़ावे (बरकतों) के पट खोल देगा। गत समाजों में अधिकांश व्यक्तियों ने वचनबद्धता (अहद) का ध्यान नहीं रखा, बुराई के मार्ग को अपनाया, ईश्वर के पंथ को झुठलाते रहे, तुम उनके तरीक़े से दूर रहो। 

फ़िरऔन (मिश्र के एक राजा) के जादूगरों के अपने पंथ पर सुदृढ़ रहने वाले उद्धहरणों से सीख लो। जब पालनहार के प्रतीक सामने आ गए, तो तुरंत विश्वास लाए, और इतना सच्चा-पक्का विश्वास ले आए कि फ़िरऔन की किसी धमकी की परवाह न की। एक समय था, वे फ़िरऔन के समक्ष तुच्छ विश्वास हेतु हाथ फैलाए खड़े थे। देखते ही देखते उनके हृदय का संसार ऐसा परिवर्तित हुआ कि समस्त सांसारिकता उनके लिए हेच (तुच्छ) हो गई और वो पालनहार की प्रसन्नता के दीवाने हो गए। 

उनकी इस प्यारी दुआ को अपने दिल की इच्छा बना लो, "ऐ पालनहार..! हम पर संयम उंडेल दे और हमें संसार से उठा तो इस हाल में कि हम तेरे आज्ञाकारी हों।”

पंथ के शत्रु सदैव प्रोपगेंडा करते हैं कि ये लोग धरती में आतंक फैलाने वाले हैं, तुम उनके प्रोपगेंडे की चिंता न करो, ईश्वर से सहायता मांगो, संयम रखो और आचरण की पवित्रता (तक़वा) का मार्ग अपनाओ, अंतिम परिणाम तुम्हारे पक्ष में होगा।
 
इसराइल की संतान ने ईश्वर की कैसी-कैसी सौगातों का विस्मर्ण कर उसके साथ समकक्षता (शिर्क) किया, और ईश्वर से किए हुए विनिश्चय को तोड़ा, इस प्रकार उन्होने ईश्वर का कुछ नहीं बिगाड़ा, बल्कि अपने ही ऊपर अत्याचार किया, तुम उनके मार्ग से दूर रहना।

ईश्वर को अपना मित्र (वली) बनाओ, उससे पाप से छुटकारा (मग़फ़िरत) और कृपा (रहमत) मांगो, उसी से इस संसार की भलाई भी मांगो और अंत के दिन की भलाई भी, और उसी की ओर मुड़ते रहो। स्मरण रखो ईश्वर की कृपा उनके लिए है, जो उसके कोप से बचते हैं, दान (ज़कात) देते हैं और उसके पाठ्य अंशों (आयतों) (शिक्षाओं) पर विश्वास रखते हैं।

ईश्वर के दूत (जो अनपढ़ है) (उम्मी) की का पक्ष लो, वह भलाई का आदेश देते और बुराईयों से रोकते थे। उन्होने पवित्र वस्तुएं ग्रहण्य (हलाल) कीं और अपवित्र वस्तुएं वर्जित (हराम) कीं। मानवों पर लदे हुए बोझ उतारे और उनकी बेड़ियाँ खोलीं। तुम, उन पर विश्वास लाओ, तुम, उनके पक्ष व (नुसरत) हेतु कमर बांध कर तैयार रहो। उनकी गतिविधियों (मिशन) को अनवरत रखो और उस प्रकाश को ग्रहण करो जो उनके साथ अवतरित किया गया।

तुम्हारे मध्य जो लोग बुराई का मार्ग अपनाएं उन्हें समझाओ, उनकी हठधर्मी देखकर मायूस न हो, उनको समझाते रहो, रब के सामने अपनी क्षमा याचना (माफ़ी) प्रस्तुत करने के लिए भी और इस आशा के साथ कि हो सकता है ये लोग तुम्हारी शिक्षाओं से सुधर जाएँ। तुमको ईश्वर की पुस्तक मिली है, उसका सम्पूर्ण दायित्व चुकता करो।

ईश्वर से झूठी उम्मीदें बाँध कर इस संसार की रंगीनियों में गिरफ़्तार मत हो जाओ। स्मरण रखो अंत का दिन, सांसारिकता से अति उत्तम है, परंतु वह उनके लिए है जो ईश्वर के कोप से बचते हैं, ईश्वर की पुस्तक पर दृढ़ता से सुदृढ़ रहते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं और सद्कर्म करते हैं।

तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे आचरण (फ़ितरत) में (एकेश्वरवाद /Monotheism) का निश्चय डाल दिया है, इस निश्चय को कभी मत भूलो। एकेश्वरवाड तुम्हारी अंतरात्मा की ध्वनि है, इस ध्वनि को दबने मत दो। 

हमने, तुम्हें अपनी सीख (आयतें) दी हैं, ताकि तुमको ऊंचाई प्राप्त हो। यदि, इन सीखों (आयतों) से विस्मृत हुए, तो राक्षस(शैतान) तुम्हें अपने बस में कर लेगा और पथभ्रष्ट कर देगा। इन सीखों (आयतों) को मार्गदर्शक बनाओ, यदि अपनी इच्छाओं पर चले तो निम्नता में गिरते चले जाओगे। उस समय तुम्हारी स्थिति (मिसाल) उस कुत्ते की सी हो जाएगी जो हमेशा हाँफता रहता है।

ईश्वर ही के लिए उत्तम नाम हैं उसको अच्छे नामों से पुकारो। उन लोगों का मार्ग मत अपनाओ जो उसके नामों के संबंध में सही मार्ग से हट जाते हैं। सत्य वाला मार्ग बताओ और उसके उसके अनुसार न्याय करो।

नभ और भूमि की व्यवस्था पर और ईश्वर के चमत्कारों का ध्यान करो, अंतिम दिन को सदैव सामने रखो।

भूल जाने (माफ करने) का मार्ग अपनाओ, भलाई की शिक्षा दो, नसमझों से मत उलझो, अगर राक्षस(शैतान) उकसाए तो ईश्वर की शरण मांगो। यदि राक्षसी साया पड़ जाए, तो तुरंत सावधान हो जाओ और सही मार्ग पर आ जाओ।

यह ईश्वर की किताब वास्तव में, तुम्हारे पालनहार की ओर से शिक्षा, मार्गदर्शक और दयालुता है। इससे लाभ वही जन उठाएंगे जो इस पर सच्चा विश्वास रखते होंगे। जब तुम्हारे समक्ष क़ुरआन पढ़ा जाए तो ध्यान से सुनो।

अपने पालनहार को नम्रता और डर के साथ प्रताः कल और सायंकाल स्मरण करो, कभी मन ही मन में और कभी, धीमी आवाज़ से, और आलस्य को अपने समीप मत फटकने दो। 

घमंड में आकर पालनहार की अराधना से मुंह मत मोड़ो, उसका महिमा गान करो, और उसके समक्ष झुके रहो। विश्वास के कार्य पूरे करो, ईश्वर के कोप से बचो।

08 पाठ (सुरह अनफाल) 
(मदीना में उतरी कुल आयत 75, कुल रुकुअ 10)
केंद्रीय विषय - (

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

आपस के संबंध ठीक रखो, ईश्वर और उसके दूत की बात मानो। सच्चे विश्वासी (मोमिन) की पहचान यह है कि उनके हृदय ईश्वर का प्रवचन सुनकर काँप जाते हैं और जब ईश्वर की सीखें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो उनका विश्वास बढ़ जाता है, वे अपने रब पर भरोसा रखते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं, और ईश्वर के दिये हुए धन में से उसके मार्ग में दान करते हैं।

जब तुम्हारा शत्रुओं से सामना हो, तो उन्हें पीठ न दिखाओ, यह अक्षम्य अपराध है। ईश्वर और दूत की बात मानो, और आदेश सुनने के प्रश्चात मना मत करो। जब दूत तुम्हें उस वस्तु की ओर बुलाए जिसमें तुम्हारा जीवन है, तो ईश्वर और उसके दूत की पुकार पर दौड़ पड़ो। जान लो कि ईश्वर तुम्हारे हृदय से अधिक, तुमसे निकट है, अतः हृदय में कपट को मत पलने दो।

ईश्वर के तुम पर अति उपकार हैं, उसके उपकारों का स्मरण करो और उसके कृतज्ञ बनो। ईश्वर और उसके दूत के साथ धोखा मत करो, अपने दायित्वों में कमी न करो।

संपत्ति और संतान परीक्षा की सामग्री हैं, जो व्यक्ति इस परीक्षा में सफल होंगे, ईश्वर के यहाँ बहुत बड़े पुरस्कार से पुरस्कृत होंगे।

ऐ विश्वासियों (मोमिनों)...! उत्तम आचरण अपनाओगे तो ईश्वर तुम्हें उत्तमता प्रदान करेगा, और तुम्हें अपनी दयालुता और क्षमाशीलता के मुकुट पहनाएगा, तुम्हारा पालनहार अत्यधिक कृपालु है।

अध्याय (पारा) - 10

यदि तुम्हारा सामना, शत्रुओं से हो तो भागो मत, पैर जमाए रहो और ईश्वर का अधिकाधिक स्मरण करो। ईश्वर और उसके दूत का अनुसरण करो और आपस में झगड़ो माता। अपने भीतर दुर्बलता उत्पन्न मत होने दो संयम से काम लो।

उन व्यक्तियों का मार्ग मत अपनाओ अपने निवास से अकड़ दिखाते और इतराते निकले, पूरे मार्ग में, वे जन का ईश्वरीय मार्ग अवरूद्ध करते आए, राक्षस ने उनके कर्मों को उनकी दृष्टि में अच्छा बना दिया है, तुम राक्षस की चालों से बचो और ईश्वर पर भरोसा रखो।

तुम्हारे शत्रु तुम्हारे किसी वचन का सम्मान रखने वाले नहीं, वे जब-जब अवसर पाएंगे धोखा करेंगे। जहां तक हो सके अधिकाधिक शक्ति प्राप्त करो, ताकि शत्रु के हृदय में डर) बैठा रहे, ये तुम्हारे भी शत्रु हैं और ईश्वर के भी शत्रु हैं। 

भरोसा रखो ईश्वर के मार्ग में जो कुछ भी दान करोगे उसका भरपूर बदला पाओगे।

शत्रु जब संधि का निवेदन करें तो ईश्वर पर भरोसा करके समझौता कर लो। यदि उनकी नियत धोखा देने की हुई तो भी चिंता न करो ईश्वर तुम्हारी रक्षार्थ काफ़ी है। 

विश्वास करने वालों को अपने पालनहार का यह उपकार भूलना नहीं चाहिये कि, उसने उनके फटे हुए हृदयों को जोड़ दिया, हृदय का यह प्रेम अनमोल है जो पालनहार की सौगात है, किसी और के बस में नहीं कि वह हृदयों को जोड़ सके। 

यदि युद्ध का अवसर आ जाए तो पीछे न हटो। चाहे, शत्रु तुम से कई गुना अधिक हों। तुम्हें संख्या से अधिक चिंता इस बात की होनी चाहिये कि तुम्हारे संयम पर टिके रहने पर आँच न आए। यदि तुम संयम से काम लोगे तो ईश्वर की सहायता तुम्हारे साथ रहेगी।

युद्ध बंदियों को स्वतंत्र कर दो, बंदियों को सत्य स्वीकार करने और प्रायश्चित करने हेतु निवेदन करो।। फिर भी यदि वे धोखा करते हैं तो उनका प्रकरण ईश्वर के सुपुर्द करो। 

विश्वास वालों को ईश्वर के मार्ग में हर परित्याग हेतु तैयार रहना चाहिये। आवश्यक हो तो घर-बार छोड़ दें, और आवश्यक हो तो अपने भाईयों की सहायता हेतु दौड़ पड़ें। ईश्वर के मार्ग में जीवन और संपत्ति प्रस्तुत करने से कभी पीछे न हटें। 

अवज्ञाकारी परस्पर मित्र होते हैं, उनके झगड़े और आतंक की रोकथाम हेतु विश्वासियों को परस्पर पक्ष लेने और सहायता करने वाला होना चाहिए। यह मानवता हेतु अति आवश्यक है, अन्यथा धरती पर आतंक जड़ पकड़ लेंगे, चारों ओर हाहाकार मच जायेगा।

09 - सुरह तौबा मदीना में उतरी हिजरी 08
(क्षमा याचना का पाठ)
   (कुल आयत 129, कुल रूकअ 16)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के पंथ के शत्रु जब वचन तोड़ें, और अत्याचार की सीमा लांघ दें तो उन पर कठोरता अपनाई जाए। परंतु सभी अत्याचार के बाद भी उनके पास प्रायश्चित क्षमा का अवसर सदैव उपलब्ध है। ऐसे व्यक्तियों की भलाई इसी में है कि शीघ्रता पूर्वक सुधार कर लें।

शत्रुता की सीमा लांघने वाले जन जो ना किसी संबंधी का सम्मान करते हैं और न किसी वचन का ध्यान रखते हैं, वह भी यदि क्षमा मांग और नमाज़ पढ़ने लगें और दान देने लगें तो उनको अपना पंथीय भाई समझो, उनके गत समस्त अत्याचारों को सहृदयता से भुला दो।

वे जन जो शत्रुता की सभी सीमाएं लांघ जाएं और हर प्रकार के अत्याचार करें उनसे युद्ध का आदेश होने पर पीछे ना हटो, ऐसे व्यक्तियों से तनिक भी भय मत करो, ईश्वर से डरो।

ईश्वर के समकक्षकारों (मुशरिक) को अधिकार नहीं कि वे ईश्वर के घर में प्रवेश करें, उनके सभी कर्म व्यर्थ हो गए, ईश्वर की घरों में प्रवेश का अधिकार उनका है जो ईश्वर और अंत के दिन पर विश्वास रखते हैं, नमाज पढ़ते है और अपने धन में से दान देते हैं।

क्या केवल हाजियों को पानी पिलाना और काबा में प्रवेश करना ईश्वर पर विश्वास करने और उसके मार्ग में संघर्ष करने के बराबर हो सकता है, विश्वास और ईश्वर के मार्ग में संघर्ष के समकक्ष उनकी कोई हैसियत नहीं।

यदि तुम्हारे पिता और भाई भी विश्वास के स्थान पर अविश्वास (कुफ्र) को प्राथमिकता दें तो उन्हें अपना मित्र ना बनाओ, बाप, बेटों, भाईयों,पत्नियों, संबंधियों, संपत्तियों, व्यापारों और घरों का प्रेम ईश्वर और उसके दूत पर विश्वास के मार्ग में रुकावट ना बने।

अपनी शक्ति और संख्या पर कदापि घमंड मत करो, सदैव ईश्वर पर विश्वास करो और उसी से सहायता मांगो।

हाथ तंग व निर्धनता की स्थिति से डर कर ईश्वर के शत्रुओं से कदापि समझौता ना करें। पूर्व के किताब वाले ज्ञानी और पादरी जनता का धन असंगत ढंग से हड़पते हैं, ओर उन्हें ईश्वर के मार्ग से रोकते हैं।

यह सभी जन जो सोना चांदी एकत्रित करते हैं और दान नहीं करते उन सबका अंत अति भयावह होने वाला है।

ईश्वर की समकक्षता करने वाली (मुशरिक) शक्तियां एकत्रित हो कर तुम से युद्ध करना चाहती हैं, तुम सभी मिलकर उनका सामना करो और स्मरण रखो, तुम्हारी वास्तविक शक्ति तुम्हारे आचरण की शुद्धता है।

अंत के दिन के समक्ष सांसारिक जीवन कुछ भी नहीं जब ईश्वर के मार्ग पर निकलने का कहा जाए तो बिना किसी चिंता के निकल पड़ो और ईश्वर की सहायता पर भरोसा रखो, कठिन से कठिन परिस्थिति में दुखी मत होओ और ईश्वर को अपने समक्ष अनुभव करो, स्मरण रखो जब युद्ध का आदेश हो जाए तो युद्ध करने में ही जीवन है और इससे भागने में मृत्य व बर्बादी है।

विश्वास रखो तुन्हें वही प्राप्त होगा जो ईश्वर ने तुम्हारे लिए लिख दिया है, ईश्वर को अपने पक्ष का और सहायता करने वाला समझो और उसी पर विश्वास करो, यही विश्वास (ईमान) का प्रतिक है। चाहे तुम्हारे भाग्य में विजयश्री हो या शहादत, दोनो ही तुम्हारे लिए उत्तम है।

विश्वासी स्त्री और पुरुष परस्पर मित्र (वली) हैं। भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं, नमाज पढ़ते हैं और दान करते हैं, और ईश्वर और उसके दूत की अज्ञाकारिता करते हैं, इन गुणों को आत्मसात कर प्रसारित करो। 

जब कठिन परिस्थिति आती है तो स्पष्ट हो जाता है कि कौन सत्यमार्गी (मोमिन) है और कौन विधर्मी (मूनाफिक) है। विधर्मी आराम के स्थान ढूंढते हैं और दान (जीवन और धन का) से बचने के बहाने दूंढते हैं।

जो विश्वास में सत्यवादी और सुदृढ़ हैं वे साथी होने के साक्ष्य हेतु व्याकुल रहते हैं कि कब आज्ञाकारिता प्रस्तुत करनी है। जब उनके पास कुछ नहीं होता तो उनका हृदय रोने लगता है, उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। युद्ध में शामिल नहीं हो पाने पर उनकी कोई पकड़ नहीं होगी।

अध्याय (पारा) -11

कुछ व्यक्ति होते हैं जो स्वयं के विश्वास पर दृढ़ता से डटे से रहते रहते हैं और के सामिप्य हेतु उसके मार्ग में दान करते हैं , कुछ व्यक्ति अनमने ढंग से बोझ समझ कर दान करते हैं। ऐसे व्यक्ति विश्वासियों के लिए सही नहीं होते,उनके लिए कठिनाइयों की प्रतिक्षा करते हैं, वो ईश्वर की पकड़ से बच नहीं सकते। 

वे शरणार्थी और अंसार (एक कबीले के लोग) जो विश्वास हेतु अग्रणी रहे और जिन व्यक्तियों ने तन - मन से उनका मार्ग अपनाया और ईश्वर को माना व उसके आज्ञाकारिता का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया, ईश्वर प्रसन्नताओं के मुकुट उन्हे पहनाएगा और उन्हें सदाबहार स्वर्ग में स्थान देगा।

ईश्वर के मार्ग में दान करो, इससे तुम्हें पवित्रता प्राप्त होगी और तुम्हारा जीवन ज़िंदगी सँवर जाएगा। स्मरण रखो ईश्वर अपने आराधकों का प्रायश्चित स्वीकार करता है और उनके पुण्य दान को भी स्वीकार करता है। वो जन सौभाग्यशाली हैं जिनका प्रायश्चित, क्षमायाचना ,और पुण्य दान स्वीकार्य हो जाए, तुम अनुपालना करो ईश्वर और उसके दूत की विश्वासी तुम्हारी अनुपलना दृष्टित्त करेंगे इसके उपरांत उस महान के समक्ष तुम्हें उपस्थित होना है जिससे कोई पदार्थ छुपा नहीं है। वहां तम्हारे अनुसरण का मोल निश्चित होगा।  

आराधना का स्थान वह स्थल है जिसकी नींव प्रथम दिन से ही पवित्र आचरण पर टिकी हो और उसमें वो जन प्रवेश करें जो पवित्र रहने के इच्छुक हैं। ईश्वर को पवित्रता वाले व्यक्ति पसंद होते है।

यदि तुम्हें अपनी तन और धन का व्यापार करना है तो ईश्वर के साथ यह करो और जब ईश्वर का आदेश हो तो अपनी तन और धन के साथ उपस्थित हो जाओ ।

ईश्वर के साथ अपने तन और धन का लेनदेन करने वालों का सम्मान ही कुछ और होता है। ईश्वर की ओर बार-बार लौटने वाले, उसके आराधक का दायित्व प्रस्तुत करने वाले, उसके गुण गान करने वाले, उसके लिए देस- देस भ्रमण वाले, उसके आगे रुकू (आधे झुकने) और सजदे (जमीन पर नाक रखना) करने वाले, भलाई का आदेश देने वाले और बुराई से रोकने वाले और ईश्वर के आदेशों का ध्यान रखने वाले।सत्य विश्वासी ऐसे ही होते हैं, ईश्वर की ओर से बधाई उन्हीं के लिए हैं ।

अल्लाह के कोप से बचो और सत्यमार्गियों के साथ रहो। सद्विश्वासियों का मर्जी नहीं कि वे ईश्वर के मार्ग से वालों का तरीक़ा यह नहीं है कि वे अल्लाह के दीन उदासीन हो कर स्वयं के कार्यों में लग जाएं। विश्वासियों को भलाई हेतु आतुरता की तरफ़ से रखें, उस पर ईश्वर के समक्ष उत्तम कर्म प्रस्तुत करने की धुन सवार रहनी चाहिए।

पंथ की गहरी समझ-बूझ प्राप्त करने का कोई मौका हाथ से न जाने दो, इस हेतु चाहे घर-बार छोड़ना पड़े। और जब लौटो तो अपने समाज को संभालने की भावना के साथ लौटो।

ईश्वर के दूत का अनादर न करो। उनसे प्रेम करो, विश्वासी का दुखी होना दूत के लिए असहनीय होता है। इस हेतु व्यग्र रहते हैं कि दुख का समय कठिनता से व्यतीत होता है, विश्वासियों हेतु दूत मित्र (प्रेमी) रहते और दयावान होते, यदि तुम उनका अनादर करोगे तो स्वयं का अहित करोगे, उनका कुछ अहित नहीं होगा, उनके लिए तो ईश्वर खूब है ।

10. सूरह युनूस मक्का में उतरी
(यूनुस (एक ईश्वर के दूत का नाम) का पाठ कुल आयत 109 कुल रुकुअ 11) 

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

तुम जिस और दृष्टि करोगे और जिस और ध्यान दोगे तुम्हें ईश्वर की के प्रतीक दृष्टिगोचर होंगे । इस प्रतीकों से अपने पालनहार की पहचान करो।

जो व्यक्ति ईश्वर से भेंट की आशा नहीं रखते, सांसारिकता में मग्न हुए और उसी में मग्न हैं और अल्लाह के प्रतीकों को भुलाए हैं, उनके कर्मों का दंड नरक है। और जो व्यक्ति विश्वास रखते हैं और अच्छे कर्म करते हैं, उनके विश्वास की संपत्ति पर उनका पालनहार उन्हें सफलता का मार्ग दिखाता है। वह अंत के दिन में स्वर्ग से उपकृत किए जाएंगे।

हर परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण रखो। ऐसा न हो कि जब तुम पर कोई कठिन समय आए तो खड़े, बैठे और लेटे ईश्वर को पुकारो और जब ईश्वर कठिनाई टाल दे तो ऐसे चल निकलो जैसे तुमने किसी कठिन समय में ईश्वर को पुकारा ही नहीं था।

थोड़े दिनों का सांसारिक आनंद तुन्हें अंत के दिन को ना भुलवा दे। सांसारिक जीवन का उदाहरण ऐसा है जैसे आकाश से वर्षा हुई तो भूमि के पौधे अत्यंत घने हो गए बाद में ठीक उसी समय यद्यपि भूमि अपनी बहार पर थी और खेतियाँ बनी - सँवरी खड़ी थीं, खेत वालों को पूर्ण भरोसा था कि अब वह फसल पूरी तरह उनके क़ब्ज़े में है, अचानक किसी क्षण ईश्वर का आदेश आया और वह पूरी खेती इस तरह नष्ट हो गई जैसे कि कल वहाँ कुछ था ही नहीं। इसमें ईश्वर की बड़ी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ध्यान और मनन करते हों।

ईश्वर उस पथ की ओर बुला रहा है जहाँ शांति व्यवस्था है, वह जिसे चाहता है सीधे मार्ग का मार्गदर्शन देता है। जो लोग भले कर्म करेंगे, वे भला अंत पाएंगे उस दिन उनके मुख प्रकाशित होंगे। और जो लोग बुराइयों में डूबे रहेंगे, अंत के दिन उनके मुख कलूटे (काली रात की तरह काले) होंगे, और वे बुरे अंत का सामना करेंगे।

हे मानव! तुम्हारे समक्ष तुम्हारे पालनहार की ओर से सीख आई है। उसमें हृदयों के रोगों का निवारण है। विश्वासियों हेतु उसमें पथ प्रदर्शन और दया है। यह ईश्वर की विशेष कृपा और उसकी दयालुता है।

इस पर तुम सबको प्रसन्नता व्यक्त करनी चाहिये। यह तो सांसारिकता के सभी कोषों से बढ़कर है, इसका सम्मान करो और इसे हृदय से लगाओ। इससे वंचना सबसे बड़ी वंचना है।

ईश्वर के मित्र बन जाओ, उस पर विश्वास ले आओ और उसके कोप से बचने की चिंता करो। तुम्हें कोई दुख नहीं होगा और तथापि संसार और अंत के दिन दोनो स्थानों पर प्रसन्नता एवं बधाईयां तुम्हारा स्वागत करेंगी।

नूह से लेकर मूसा तक दूतों का पूरा इतिहास है कि दूत सदैव प्रकाशित प्रतीकों सहित सामाजिक जागरूकता हेतु आते रहे और उनका समाज उन्हें झुठलाता रहा । झुठलाने वाले समाजों का अंत देखो और शिक्षा प्राप्त करो ।

स्मरण रखो विश्वासियों को कठोरतम अत्याचार व कठोरतम परीक्षाओं का सामना करना पड़ सकता है, यह कोई नई बात नहीं है। हर काल में ऐसा होता रहा है। ऐसी स्थिति में पालनहार पर भरोसा रखो, उसी से सहायता की प्रार्थना करो, नमाज़ पढ़ते रहो, अपने पंथ पर सुदृढ़ रहो और अत्याचारियों के भय से और उनके ठाठ बाठ से प्रभावित (भयभीत) होकर अपना मार्ग न बदलो भरोसा रखो ईश्वर के पास विश्वास वालों हेतु बड़ी भली सूचनाएं हैं। इस संसार में भी भली सूचनाएं हैं और अंत के दिन में भी भली सूचनाएं हैं।

जो लोग धरती पर झगड़ा (आतंक/फ़साद) करते हैं, मानवों को अपने धन व संपदा से पथभ्रष्ट करते हैं और मानवों पर अत्याचार करते हैं वे सब सुन लें कि अभी भी उनके पास क्षमायाचना करने और सुधर जाने का अवसर है। लेकिन जब उनका समय आ जाएगा तब उनकी क्षमायाचना स्वीकार नहीं की जाएगी। ऐसे प्रत्येक अत्याचारी के लिए फ़िरऔन (मिश्र के राजा) के परिणाम में शिक्षा का सामान है। डूबते समय उसका विश्वास लाना उसके कुछ काम नहीं आया।

लोग तुम्हारे पंथ में कितना ही संदेह करें, तुम अपने विश्वास पर दृढ़ता से जमे रहो एकाग्रचित्त होकर स्वयं को पंथ पर सुदृढ़ रखो, समकक्षता (शिर्क) के निकट मत भटको, ईश्वर के अलावा किसी को मत पुकारो। कोई न लाभ पहुंचा सकता है और न हानि। ईश्वर की ओर से सत्य आ गया है, अब मार्गदर्शन प्राप्त करने का निर्णय तुम्हें स्वयं करना है। यदि अंत के दिन का निर्णय अपने पक्ष में होने के इच्छुक हो तो ईश्वर की पुस्तक का समर्थन करो और संयम पर डटे रहो। स्मरण रखो ईश्वर उतमतम निर्णय करने वाला है।

11. सूरह हूद में मक्का में उतरी
 (हूद का पाठ कुल आयत 123 कुल रुकुअ 10)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की पुस्तक में हर बात विस्तार से बता दी गई है। सीधा मार्ग अनिवार्य हो चुका है। ईश्वर की आराधना करो, अपने पालनहार से क्षमा माँगो और उसकी तरफ रुख करो। ईश्वर संसार में अच्छा जीवन प्रदान करेगा और अंत के दिन में जो पुरस्कार का अधिकारी होगा, उसे पुरस्कार देगा। ईश्वर से डरो, किसी की कोई बात उससे छुपी नहीं रहती।

अध्याय (पारा) -12

धरती पर चलने वाले हर जीव का खाद्य ईश्वर का दायित्व है। आजीविका से अधिक इसकी चिंता करो कि तुम्हारे कर्म अधिक अच्छे हों। स्मरण रखो ईश्वर ने तुम्हारी आजीविका का उत्तम प्रबंध यूँ ही नहीं किया है। उसने यह समस्त व्यवस्था तुम्हारे कर्मों की परीक्षा लेने हेतु की है।

संयम रखो और अच्छे कर्म करो। कठिनाई आने पर निरासा और कृतघ्नता का प्रदर्शन मत करो, और ईश्वर सौगातें प्रदान करे तो प्रसन्नता के मारे आपे से बाहर न हो जाओ।

अंत के दिन के लिए जीना सीखो। जो जन केवल संसार और संसार के आनंद हेतु जीते हैं, उनको जो भी प्राप्त होना है वह यहीं हो जाता है, अंत के दिन उनके लिए नर्क की आग के सिवाय कुछ नहीं होगा ।

जनता का ईश्वरीय मार्ग अवरूद्ध करना और उसमें टेढ़ उत्पन्न करने के प्रयास करना खुला अत्याचार है। यह अत्याचार वही करता है जो अंत के दिन पर विश्वास न रखता हो। ऐसे अपराधी ईश्वर की पकड़ से भाग नहीं सकेंगे। दूसरी ओर वो जन हैं जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, अच्छे कर्म करते हैं और अपने पालनहार के हो कर जीवन यापन करते हैं, उनके लिए सदैव की स्वर्ग है। तुम दोनों किरदार प्रत्यक्ष रख कर सोचो कि अंधे और बहरे बन कर जीवन यापन अच्छा है या देखने और सुनने वाला बन कर जीवन यापन अच्छा है।

ईश्वर के दूतों का इतिहास पढ़ो। उनका उत्तम न्योता यह होता है कि ईश्वर के अलावा किसी की उपासना मत करो अन्यथा कठोर दण्ड की लपेट में आ जाओगे । वे (दूत) अपने समाज से न्योते का बदला नहीं माँगते। वे अपने समाज की गालियों की परवाह नहीं करते। वे अपने संदेश पर सम्पूर्ण भरोसा रखते हैं। वे अपने समाज की अत्यधिक माँगों पर ध्यान नहीं देते, वे विश्वास करने वालों को सम्मान के साथ अपनो से निकट रखते, चाहे वो जन अपने समाज की दृष्टि में कितने ही तुच्छ हों । उनका ईश्वर की सहायता और समर्थन पर पूरा भरोसा होता। वे लोगों के उपहास और विनोद में निराशा न लाते। बस भला चाहने और एकाग्रता के साथ अपने कर्म करते रहते।

नूह की कहानी से सीख लो। उनके बेटे ने ईश्वरीय आदेशों की अवहेलना का मार्ग अपनाया और इंकारियों का साथ दिया तो दूत का पुत्र होना उसके काम नहीं आया और झुठलाने वालों के संग पानी में डूब गया।
ईश्वर के यहाँ कोई नातेदारी काम आने वाली नहीं, हर व्यक्ति को अपने अंत के दिन का प्रबंध करना है।

संसार के प्रत्येक आतंकी, अत्याचारी और अपराधी के लिए दूतों का संदेश सार्वजनिक है कि ईश्वर की सौगातों पर ध्यान करो, अपने पाहनहार से अपने अपराधों की क्षमा मांगो और अपना मार्ग बदलकर उसकी ओर पलट आओ। ईश्वर तुम्हारी क्षमायाचना स्वीकार करेगा। अंबर से तुम पर दया की वर्षा करेगा। जो सौगातें तुम्हें प्राप्त हैं उनमें ओर वृद्धि करेगा । देखो हठधर्मीता मत दिखाओ अन्यथा अपना अंत बुरा करोगे।

यदि तुम ईश्वर के मार्ग का न्योता लेकर उठे हो तो इस न्योते की क्रियाशील प्रतिमूर्ति बन जाओ। जिन बातों से जन को रोकते हो उन बातों से स्वयं भी रुक जाओ। जनसुधार हेतु स्वयं की पूरी ऊर्जा निचोड़ दो। तुम्हें सफलता जब भी मिलेगी ईश्वर का मार्गदर्शन मिलेगा। उसी पर भरोसा रखो और उसी से लौ लगाओ।

ईश्वर तुम्हें क्षमायाचना का अवसर दे तो उसके आदेशों को पूरा करो और सीधे रास्ते पर डटे रहो। ईश्वर की सीमाओं का ध्यान करो, उसकी निगरानी का स्पर्श रखो और अत्याचारियों की ओर तनिक भी न झुको अन्यथा उनके साथ तुम भी आग की लपेट में आ जाओगे। दिन में भी और रात में भी नमाज़ें पढ़ो, भलाईयां एकत्रित करो, भलाईयां, बुराईयों को दूर कर देती हैं। ईश्वर के मार्गदर्शन से मस्तिष्क को प्रकाशित रखो। संयम से काम लो, जीवन में अच्छे से अच्छे कर्म करो, ईश्वर तुम्हारा पुरस्कार व्यर्थ नहीं करेगा।

बुरे कर्मों से और धरती में आतंक फ़ैलाने से लोगों को रोकते रहो। चाहे लोग बुराईयों में लिप्त रहें और विलाशिता में डूबे रहें। परंतु तुम अपने दायित्व पूर्ण करते रहो।

ईश्वर की पुस्तक में दूतों की कहानी पढ़ो। उन कहानियों से तुम्हारे हृदय को शक्ति प्राप्ति होगी। तुम्हें वास्तविक ज्ञान मिलेगा, सीख और पुनः स्मरण प्राप्त होगा।

विश्वास न लाने वाले अपने कर्म कर रहे हैं तुम भी शुद्धता और एकाग्रता के साथ अपने कर्म किए जाओ, ईश्वर की उपासना करो और उस पर भरोसा रखो ।
 
12. सूरह यूसुफ़ मक्का में उतरी
(यूसुफ का पाठ, कुल आयत 111 कुल रुकुअ 12)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

राक्षस से सदैव सावधान रहो, वह मानव का खुला हुआ शत्रु  है। वह भाई को भाई से लड़ा देता है। उसकी चालाकियों से अधिक सावधान रहने की अवश्यकता है।

जीवन अच्छी तरह से यापन करने के प्रयास करो, ईश्वर तुम्हें ज्ञान व मार्गदर्शन प्रदान करेगा ।

ईश्वर की सौगातों का स्मरण करो और उसका धन्यवाद करो। अपने हृदय में उपकारकर्ता के प्रेम के दीपक प्रकाशित रखो। यह चीज़ तुम्हारे पालनहार की दलील बन कर तुम्हें हर तरह की बुराई और अश्लीलता से सुरक्षित रखेगी ।

यदि तुम पवित्रता चाहते हो तो यूसुफ़ (दूत) को अपने लिए नमूना बनाओ। केवल एक अज़ीज़ (मिस्र के एक राजा का नाम) की पत्नी ने ही नहीं मिस्र की न जाने कितनी सुंदरियों ने उन पर अपने – अपने जाल फेंके मगर आचरण की शुद्धता और पवित्रता के एक फ़रिश्ते (हर बुराई से पृथक) की तरह शुद्ध आचरण का पहाड़ बने रहे। अश्लीलता के तूफ़ान आते और जाते रहे लेकिन उन पर एक छींट भी नहीं आई। यूसुफ़ से सीखो कि ईश्वर के अच्छे उपासक का क्या गौरव होता है कि वे संसार के वर्जित स्वाद के विरुद्ध कारागार की कठिनाइयों को हृदय से लगाते हैं। संसार राक्षसी स्वादों की ओर दौड़ रहा होता है और वे उन राक्षसी स्वाद से दूर रहने में गौरव अनुभव करते हैं। कई वर्ष कारागार में यापन कर देते हैं परंतु एक क्षण के लिए भी वर्जित कार्य स्वीकार नहीं करते ।

यूसुफ़ की कहानी में एक सीख यह भी है कि पाप से मुक्ति के समस्त प्रयास करो और ईश्वर से सहायता मांगते रहो। अश्लीलता के आक्रमण का सामना करने और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण हेतु ईश्वर की सहायता की अत्यंत आवश्यकता होती है। ईश्वर से संबंध सुदृढ़ रखोगे तो तुम्हारे भीतर भी दृढ़ता आएगी ।

यूसुफ़ से सीखो कि किस तरह अच्छाई के गुण पर दृढ़ रहा जाता है। तुम्हें कठोरतम परीक्षाओं से दो-चार होना पड़े तब भी तुम्हारे अच्छे आचरण में कोई अंतर न आए। तुम हर हाल में और हर जगह उपकार करने वालों के गौरव पर डटे रहो ।

यूसुफ़ से सीखो कि जो जन ईश्वर के पंथ का न्योता लेकर उठते हैं वे कभी अपने कर्म को भूलते नहीं, परिस्थितियों की कठोरता में भी वे पंथ की शिक्षाएं प्रसारित करते हैं।

ईश्वर के साथ समकक्षता (शिर्क) करना तुम्हें शोभा नहीं देता। उसने तुम्हें किसी और की उपासना हेतु जीवन नहीं दिया। यह उसकी अत्यंत कृपा है, इस कृपा पर उसका जितना धन्यवाद किया जाए कम है। पर मानव कृतघ्नता पर तुला रहता है। वह इस कृपा पर उसका धन्यवाद करने के स्थान पर उसके साथ दूसरों को शामिल (शिर्क) ठहराने लगता है। बुद्धिमता से काम लो और केवल ईश्वर की उपासना करो ।

यूसुफ़ के अलगाव और अच्छाई को देखो। जिन व्यक्तियों ने उन्हें कई वर्षों तक कारागार की कठिनाइयों में रखा गया, उनको कितने साफ दिल से समझाया कि वे बरसों के भीषण अकाल से कैसे राहत पा सकते हैं।

अध्याय (पारा) -13

मन (नफ्स) का पक्ष मत करो, न ही मन को मासूम समझो। मन का काम ही है बुराई पर (उद्वेलित) उकसाना। उसकी उकसाहटों से सुरक्षित रहने के लिए पालनहार के संरक्षण को ढूंढो। तलाश करो। भूल हो जाए तो पालनहार से क्षमा माँगो ।

संसार की समस्त संपत्ति और राज मिल जाए तब भी यह न भूलो कि अन्त दिन के के समकक्ष सभी सांसारिक संपत्ति तुच्छ है और वह उनके लिए है जो विश्वास लाएं और ईश्वर के कोप से बचें।

विश्वासी का यह गौरव होता है कि वह सावधानी के सभी कार्य पूरे करता है मगर उसका भरोसा ईश्वर पर ही रहता है। उसे भरोसा होता है कि वही होगा जो ईश्वर को स्वीकार होगा।

विश्वासी का आचरण उत्तम और उच्च सीरत होता है। उसमें परिस्थितियों के अनुसार कभी भी उतार-चढ़ाव नहीं होता। यूसुफ़ कारागार जाने से पूर्व, कारागार के भीतर भी और राजगद्दी पर बैठ जाने के पश्चात भी कभी अच्छाईयों के उच्च स्तर से नीचे नहीं आए।

यूसुफ़ के पिता का संयम भी उद्धरणीय था । दुख इतना अधिक था कि रोते-रोते आँखों से दिखना बंद हो गया फिर भी जिव्हा पर अनंतिम संयम और ईश्वर से भले के भरोसे के प्रकथन। स्वयं के दुख और दर्द की याचना भी बस ईश्वर के समक्ष करते और अत्यधिक दुखों में भी ईश्वर की दयालुता से मायूस होने को समकक्षता (कुफ़्र) समझते, यही एक सत्य विश्वासी का गौरव है।

ईश्वर सार्वभौमिक दयालु है। वह पाप को क्षमा कर देता है चाहे वह कितना भी घोर पाप हो और ईश्वर प्रेमी मानव भी ऐसे ही गुण वाले होते हैं  और घोर अत्याचार को क्षमा कर देते हैं।

यूसुफ़ ने अपने परिस्थितियों के ठीक होने को ईश्वर की कृपा बताई और भाइयों से शत्रुता को राक्षस (शैतान) का कृत्य बताया। विश्वासी की दृष्टि इसी तरह वास्तविकता को पहचानने वाली होती है। वाह जा है कि वास्तविक भला करने वाला कौन है और शत्रु कोन।

मिस्र की राजगद्दी पर बैठने के बाद भी यूसुफ़ का आचरण देखने योग्य है। वह खुले रूप में स्वीकार करते हैं कि उनके पास जो भी शक्ति और ज्ञान है वह ईश्वर का दिया हुआ है। नभ और धरती का वास्तविक शासक ईश्वर ही है। संसार और परलोक में में मेरा मित्र और संरक्षक ईश्वर ही है। (यूसुफ़) प्रार्थना करते हैं कि आमरण ईश्वर के आज्ञाकरी बने रहें, अभिलाषा करते हैं कि परलोक में भले लोगों का साथ मिले, क्योंकि ईश्वर से निकटता  राजाओं को नहीं भले लोगों को मिलती है।

ज्ञानी बनो और क़ुरआन के दृष्टांतों से सीख प्राप्त करो। यह सच्चे दृष्टांत हैं। स्मरण रखो यह क़ुरआन विश्वास वालों के लिए सद्मार्ग व कृपा का बहता झरना है।


13 .पाठ (सुरह- अर-रअद)
(कुल आयत कुल रुकुअ)
केंद्रीय विषय - ईश्वर की आज्ञाकारिता,प्रलय के बाद परलोक में जीवन, ईश्वर की पहचान और सत्य की खोज)

ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

बुद्धिमता से काम लो और आकाश व धरती में सभी ओर प्रसरित हुई निशानियों पर ध्यान दो। यह निशानियाँ साक्ष्य देंगी कि एक दिन सबको अपने पालनहार के समक्ष उपस्थित होना है।

यदि ईश्वर उल्लंघनकर्ताओं की तुरंत पकड़ नहीं करता है, तो धोखे में न पड़ो। जो लोग बुराई और अवज्ञा के मार्ग पर चल रहे हैं और उनकी पकड़ नहीं हो रही है, वह यह न समझें कि कोई देखने और पकड़ करने वाला नहीं है। एक-एक चीज़ की ईश्वर निगरानी कर रहा है। वह दिन के उजाले में हो या रात के अंधेरे में।

अगर बुरे परिणामों से बचना चाहते हो तो अपनी स्थिति में सुधार कर लो । ईश्वर उसी समाज को सज़ा देता है जो बहुत बिगड़ जाता है और जब ईश्वर सज़ा देता है तो कोई बचाने वाला नहीं होता।

ईश्वर के संबंध में अनावश्यक बहस मत करो। उसकी महानता व शोर्य का अनुभव करो। यह जो बिजलियाँ चमक रही हैं, यह जो बादल गरज रहे हैं, यह जो भारी-भारी बादल उठ रहे हैं और यह जो आसमान कड़क रहा है, ये सब देखकर तुम्हें ईश्वर की महानता व शोर्य का अंदाज़ा हो जाना चाहिये।

अंधे मत बनो, आँखों के प्रकाश से लाभ उठाओ। अंधेरों में मत रहो, प्रकाश की ओर आओ।

नभ और भूमि के मालिक को छोड़कर उन्हें मत पूजो जो स्वयं अपने मामले में भी पूर्णतया विवश होते हैं।

असत्य को सत्य से आगे बढ़ते देख कर डरो मत। सत्य का उदाहरण तो झाग जैसा है, असत्य का सत्य से सामना होता है तो असत्य झाग की तरह उड़ जाता है।

ईश्वर के बुलावे पर उपस्थित हो जाओ तुम्हारी भलाई इसी में है। जो लोग ईश्वर से धोखा करेंगे वे संसार की सारी संपदा दे कर भी उसके दंड से बच नहीं सकेंगे।

बुद्धिमता से काम लो और सीख स्वीकार करो। ईश्वर ने तुम्हें देखने की क्षमता दी है उससे लाभ उठाओ। यह समझने का प्रयास करो कि ईश्वर ने जो उतारा है वही सत्य है। उससे किया हुआ वचन पूरा करो। किसी भी हाल में उसे तोड़ने का विचार मन में न लाओ। अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे जोड़ो। अपने पालनहार से डरो और हिसाब के बुरे अंत से बचने की चिंता करो। अपने पालनहार का आशीष प्राप्त करो, उसके मार्ग में संयम करो, नमाज़ पढ़ो, ईश्वर ने जो दिया है उसे खुले और छिपे दान करो। बुराई का इलाज भलाई से करो। संयम का चीर थामे रहो ।

अपने सुधार के साथ साथ इसकी भी चिंता करो कि तुम्हारे माँ-बाप, तुम्हारी पत्नियां और तुम्हारी संतान भी अच्छे और भले बनें, ताकि स्वर्ग में तुम सबको मिलने और साथ रहने का अवसर मिल सके।

ईश्वर पर विश्वास रखो और उसी की स्मृति में मन की शांति ढूंढो। तुम्हें मन की शांति केवल ईश्वर के स्मरण में ही मिल सकती है, विश्वास की रक्षा करो और अच्छे काम करो, अहो भाग्य तुम्हारे साथ रहेगा।


14. पाठ (सूरह इब्राहीम)
(कुल आयत कुल रुकुअ)
केंद्रीय विषय - एकेश्वरवाद,भय और दासता से मुक्ति)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

लोगों के समक्ष ईश्वर की पुस्तक को प्रस्तुत करो और झुठलाने वालों की परवाह मत करो। निश्चित कर लो कि मुझे तो केवल ईश्वर की उपासना करनी है, उसी की ओर बुलाता रहूँगा, उसी की ओर मुझे पलट कर जाना है। मेरे पास ज्ञान का प्रकाश आ गया है अब मैं किसी की इच्छाओं की दासता नहीं करूंगा।

तुम पर ईश्वर की सौगातें इतनी हैं कि तुम गिनती भी नहीं कर सकते। ईश्वर की सौगातों का धन्यवाद (बदला) पूरा करो। तुम्हारे पालनहार ने बता दिया है कि धन्यवाद करोगे तो वह तुम्हें और अधिक देगा और कृतघ्नता करोगे तो उसका अत्यधिक दंड होगा। स्मरण रखो सम्पूर्ण सृष्टि मिलकर भी कृतघ्नता करे तो ईश्वर का कुछ नहीं बिगड़ता है। लेकिन कृतधन बड़े घाटे में रहेंगे।

प्रबल विश्वासी (मोमिन) मार्ग की कठिनाइयों से नहीं घबराते। वे ईश्वर पर विश्वास रखते हैं और हर दुख पर संयम करते हैं। उन्हें यह प्रसन्नता होती हैं कि ईश्वर ने उन्हें उनका मार्ग दिखा दिया है।

संसार में तुम कितने ही दुर्बल हो और अराजकता फैलाने वाले कितने ही शक्तिशाली हों, तुम उनसे भयभीत न हो। प्रलय के दिन वो नरक में पड़े होंगे और तुम्हारे कुछ काम नहीं आएंगे। राक्षस (शैतान) का साथ मत दो, प्रलय के दिन वह तुम्हारा उपहास करेगा कि तुमने बेवकूफ़ बनकर उसकी बात सुन ली थी।

एकेश्वरवाद का वाक्य (कलमा ए तैयबा) का महत्व समझो। उसका उदाहरण ऐसा है जैसे एक अच्छा पेड़ जिसकी जड़ें धरती में गहरी जमी हुई हैं और शाखाएं गगन से बातें करती हैं। एकेश्वरवाद का वाक्य (कलिमा तय्यिबा) को अपनाओगे तो सांसारिक जीवन में सफलता प्राप्त होगी, और अंत के दिन में सफलता मिलेगी। ईश्वर जो उदाहरण देते हैं वह तुम्हारे जीवन हेतु अत्यंत मूल्यवान हैं, उनसे सीख प्राप्त करो ।

इब्राहीम को यह चिंता रहती थी कि उनकी नमाज़ ज़्यादा से ज़्यादा सुंदर हो और उनकी संतान भी सुंदर नमाज़ पढ़े। इस हेतु उन्होंने अपनी संतान को एक ऐसी वीरान जगह में (जहाँ न पानी था और न खाने को कुछ) ईश्वर के सम्मानित घर के निकट बसाया। और उसके लिए वह नतमस्तकता के साथ अपने पालनहार से प्रार्थना किया करते थे। तुम भी इस की चिंता को अपनी सबसे बड़ी चिंता बना लो।

अध्याय (पारा) -14

15. पाठ (सूरह अल-हिज्र)
(मक्का में उतरी, कुल आयत 99,कुल रुकुअ  6)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जो व्यक्ति आज रास और रंगरलियों में मगन हैं और जीवन के मज़े लूटने में आनंदित हैं और जिन्हें झूठी उम्मीदों ने भुलावे में डाल रखा है, कल पछताएँगे और कहेंगे कि काश हम मालिक के आज्ञाकारी होते।

ईश्वर ने स्मृति हेतु पवित्र पुस्तक उतारी है। वह उसकी रक्षा करने वाला है। इस पवित्र किताब को जीवन में मार्गदर्शक बनाओ ।

राक्षस (इबलीस) ने ठान लिया है कि वह जीवन की रंगीनियों और आनंद से सारे इन्सानों को बहकाएगा। ईश्वर ने भी आगाह कर दिया है कि राक्षस (इबलीस) का बस उन्हीं लोगों पर चलेगा जो उसका समर्थन करेंगे और अपने लिए पथभ्रष्टता पसंद करेंगे। तुम्हें सावधान हो जाना चाहिए और ईश्वर के कोप से बचने का सामना करना चाहिए ।

लूत के समाज से सीख प्राप्त करो। जब ईश्वर का भय मन से निकल जाता है तो आदमी गंदी इच्छाओं के नशे में किस तरह अंधा हो जाता है और कितनी नीचता में गिर जाता है ।

पवित्र कुरान ईश्वर की उत्तम सौगात है उससे मन लगाओ और उसे ध्यान पूर्वक पढ़ो। लोग सांसारिक झगड़ों में डूबे हुए हैं उनकी तरफ़ आँख उठा कर न देखो। विश्वास लाने वालों के लिए विनम्रता और प्रेम का व्यवहार करो। सत्य की घोषणा किए जाओ और समकक्षता (शिर्क) करने वालों की परवाह न करो । शत्रुओं की बातें तुम्हें अवश्य दुख पहुंचाएंगी, तुम ईश्वर की बड़ाई व महिमगान (तसबीह) करते रहो। उसी के सामने सजदा (माथा टेको) करो और अंतिम समय तक उसी की उपासना करते रहो ।

पाठ 16 (सुरह ए नहल) (चींटी का पाठ)
(मक्का में उतरी, कुल आयत 125,कुल रुकुअ  12)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की  सौगातों को यदि गिनना चाहो भी तो तुम नहीं गिन सकते। अपने चारों ओर देखो ईश्वर ने तुम्हारे लिए कितनी अच्छी व्यवस्थाएं की हैं। सौगातों के कैसे-कैसे बाजोट (दस्तरख़्वान) बिछा रखे हैं। ध्यान करो, बुद्धि से काम लो। सौगातों को देख कर अपने भीतर धन्यवाद का भाव जगाओ। मार्गों और नक्षत्रों (तारों) को देख कर सीधे मार्ग की खोज अपने भीतर पैदा करो ।

इतनी सारी सौगातें पाकर भी ईश्वर से विरोध की वजह सिर्फ़ घमंड और मैं है। और घमंड करने वालों का ठिकाना नरक है ।

घमंड से क्षमायाचना करो। ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिंता करो, ईश्वर की किताब का सम्मान करो, जीवन को अच्छे से अच्छे कामों से सजाया करो। तुमको दुनिया में भी प्रसन्नता और वैभव मिलेगा और परलोक तो है ही उन व्यक्तियों हेतु जो ईश्वर की रुष्टतासे बचने की चिंता करते हैं ।

ईश्वर की उपासना करो और ताग़ूत (एक देवता का नाम) से दूर रहो। “यह हर दूत का संदेश रहा है, तुम भी इसी संदेश के समर्थक बन जाओ।”

जिन व्यक्तियों पर अत्याचार किया गया, जिन्हें ईश्वर के लिए घर-बार छोड़ना पड़ा और जो हर कठिनाई में संयम का चीर थामे रहे और अपने मालिक पर भरोसा किए रहे ईश्वर उन्हें संसार में भी विश्वास (ईमान) देगा और परलोक का विश्वास (ईनाम) तो बहुत बड़ा है।

तुम्हारे पास ईश्वर की किताब है। ख़ुद भी स्मृति प्राप्त करो और लोगों को भी समझाओ और उन्हें ध्यान व चिंता पर आमादा करो।

जो लोग ईश्वर के विरुद्ध चालें चल रहे हैं वे सावधान हो जाएँ कि ईश्वर कभी भी उनकी पकड़ कर सकता है। ईश्वर के सामने तो सृष्टि की हर चीज़ सजदा (माथा टेकना) करती है। यमदूत (फ़रिश्ते) भी सजदे (माथा टेकते) में रहते हैं, कोई भी घमंड और अत्याचार नहीं करता। सब ईश्वर से डरते हैं और सब ईश्वर के आदेश को पूरा करते हैं। तुम भी ईश्वर ही से डरो और उसके कोप से बचने की चिंता करो। अनिवार्यतः केवल उसको पुकारो उसके साथ समकक्षता (शिर्क) न करो।

बुद्धि रखने वालों और ध्यान व चिंता करने वालों के लिए जानवरों के दूध में, खजूर और अंगूर में, शहद में और उनके आसपास की हर चीज़ में शिक्षा (सबक) है। ध्यान करो उन सौगातों पर और धन्यवाद करो अपने कृपालु मालिक का।

जब तुम जन्मते हो तो कुछ भी नहीं जानते हो। ईश्वर तुम्हें कान, आँखें और दिल करता है। सोचो! ख़ुद तुम्हारे वजूद (अस्तित्व) की अनगिनत निशानियाँ हैं।

ईश्वर सौगातों पर सौगातें दिये जाता है ताकि तुम आज्ञाकारी बनो। जो लोग ईश्वर की आज्ञाकारिता से मुँह मोड़ें और उसकी सौगातों को पहचानने के बाद भी उनको नकारें, उनकी परवाह मत करो, ईश्वर का संदेश पहुंचाते रहो। बस यही तुम्हारा दायित्व है ।

जो लोग अविश्वास करते हैं और ईश्वर के मार्ग से लोगों को रोकते हैं और धरती पर झगड़ा फैलाते हैं, उन्हें ईश्वर कितना दंड देगा, इसका तुम कयास भी नहीं लगा सकते।

न्याय पालक बनो, सदाचार (हुस्न-ए-सुलूक़) का मार्ग (तरीका) अपनाओ, संबंधियों की सहायता करो, अश्लीलता, बुराई और अत्याचार से दूर रहो। ईश्वर की शिक्षाओं को याद रखो। ईश्वर से जो वचन बांधा है उसे पूरा करो । ईश्वर को उत्तरदायी बनाकर धृष्टता से सौगंध खा लेने के बाद अपनी सौगंध मत तोड़ो, सोगन्धों को एक - दूसरे को धोखा देने का माध्यम मत बनाओ। ऐसा मार्ग (तरीका) न अपनाओ कि तुम्हें देख कर कोई ईश्वर के पंथ (दीन-ए- इस्लाम) से फिसल जाए और इस तरह ईश्वर के मार्ग में रुकावट बनने की हानि तुम्हें भुगतनी पड़े। ईश्वर से किये हुए वचन का व्यापार (सौदा) मत करो, जान लो कि जो ईश्वर के पास है वह ज़्यादा अच्छा है।

देखो जो तुम्हारे पास है वो समाप्त हो जाने वाला है और जो ईश्वर के पास है वो बाक़ी रहने वाला है। संयम से काम लो और उत्तम से उत्तम सद्कर्मों का कोष इकट्ठा करो। ईश्वर कर्मों का फल अवश्य देगा ।

स्त्री हो या पुरुष जो भी अपने विश्वास की रक्षा करेगा और अच्छे कर्म करेगा, ईश्वर उसे अति सुंदर जीवन प्रदान करेगा । और उसके उत्तम कर्मों का बदला देगा।

जब क़ुरआन पढ़ो तो ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह राक्षस (शैतान) से तुम्हें सुरक्षित रखे। यदि तुम यह चाहते हो कि इब्लिश का तुम पर बस न चले तो विश्वास (ईमान) पर अडिग (कायम) रहो और ईश्वर पर भरोसा रखो। यदि तुमने राक्षस (शैतान) को मित्र बनाया या ईश्वर के साथ समकक्षता (शिर्क) किया तो फिर राक्षसी जाल में फंस जाओगे ।

क़ुरआन से दृढ़ संबंध रखो इससे तुम्हारा विश्वास पक्का होगा। यह किताब उचित सलाह का झरना है। अज्ञाकारियों हेतु इसमें बधाई है। सांसारिक जीवन को पारलौकिक जीवन पर बढ़वा न दो, यह बर्बादियों का व्यापार (सौदा) है। फिर तुम ईश्वर की आयतों (पाठों) को भी झुठलाने लगोगे और फिर ईश्वर के संबंध में झूठ भी गढ़ने लगोगे। फिर तुम्हारे हृदय पर मुहर लग जाएगी। तुम ईश्वर की पुण्य सलाह (हिदायत) से वंचित हो जाओगे और बड़े दंड से दो-चार होगे।

वर्जित (हराम) चीजों से बचाव करो। ईश्वर ने तुम्हें सही (हलाल) और पवित्र खाद्य (रिज्क) दिया है उसे खाओ और उसकी सौगातों का धन्यवाद करो, याद रखो धन्यवाद भी उपासना (बंदगी) है। स्वयं अपनी ओर से किसी चीज़ को वर्जित या मान्य) (हलाल या हराम) न कहो, ईश्वर पर झूठ बांधकर ऐसा कोई बयान देना बहुत संगीन अपराध (जुर्म) है। जो लोग अब तक ये ग़लतियाँ करते रहे हैं, उनके लिए क्षमायाचना (तौबा) के दरवाज़े खुले हुए हैं। तुरंत क्षमायाचना करो और अपना रवैया ठीक कर लो।

इब्राहीम के मार्ग पर चलो। वह ईश्वर की पूजा और उपासना करने वाले थे। वह ईश्वर की ओर एकाग्रचित्त थे और समकक्षता (शिर्क) से बहुत दूर थे। वह मालिक की सौगातों का धन्यवाद करते थे। उनके मार्ग पर चलोगे तो संसार में भी सफलता मिलेगी और परलोक में भी अच्छे लोगों का साथ प्राप्त होगा।

अपने मालिक (रब) के मार्ग की ओर बुलाओ, समझदारी का चीर (दामन) थामे रहो, उत्तम सीख (नसीहत) से काम लो, बात करो तो उत्तम तरीक़े से करो ईश्वर के मार्ग में संयम का चीर (दामन) थामे रहो। परेशान और दुखी मत हो । ईश्वर के कोप से बचने की चिंता करो और सद्कर्मों की ओर आगे बढ़ो – तुम ईश्वर को अपने साथ पाओगे।

अध्याय (पारा )–15
पाठ 17 सूरह बनी इसराइल 
(मक्का में उतरी, कुल आयत 111,कुल रुकुअ  12)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो पूर्णतया सीधा है। जो लोग अपने विश्वास की रक्षा करते हैं और अच्छे काम करते हैं क़ुरआन उन्हें बधाई देता है और जो परलोक को मानते ही नहीं उन्हें घोर दंड की सूचना देता है। 

जो व्यक्ति यहीं सब कुछ पा लेना चाहता है उसे ईश्वर जो देना चाहता है वह यहीं दे देता है और परलोक में उसका ठिकाना नरक है। यदि तुम परलोक की कामयाबी चाहते हो तो उसके लिए जीना सीखो, विश्वास पर अडिग रहो 
और उसके लिए सारी ऊर्जा निचोड़ दो, ईश्वर तुम्हारे प्रयासों का अच्छा पुरस्कार देगा। ईश्वर के अलावा किसी की पूजा न करो। बस ईश्वर की आराधना करो।

माँ-बाप के साथ उत्तम व्यवहार करो, वे बूढ़े हो जाएँ 
तो उन्हें कुछ भी न कहो, उनकी मनःस्थिति का ध्यान रखो, उनके साथ नरमी, विनम्रता और सम्मान की प्रतिमूर्ति बने रहो। उनके लिए प्रार्थना किया करो कि 
ऐ मेरे पालनहार! उन्होने जिस तरह प्रेम से बचपन में मुझे पाला है, तू उन पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रख।

अपने हृदय को पवित्र रखो, भले बनो और अपने ईश्वर से लौ लगाने वाले बनो। तुम्हारा मालिक तुम्हें अपनी क्षमा की चादर ओढ़ा देगा। 

संबंधियों को उनका हक़ दो, निर्धन और बेघरों की सहायता करो। यदि कभी तुम उनकी सहायता न कर सको और तुम अपने मालिक की कृपा के उम्मीदवार हो तो उन्हें विनम्र उत्तर दे दो। 

अनाचारण मार्ग में, धन ख़र्च मत करो, यह ईश्वरीय देन की कृतघ्नता और राक्षस का समर्थन है। पथभ्रष्ट हो कर राक्षस के भाई मत बनो, न तो कंजूसी करो और न ही अनावश्यक खर्च करो। मध्यमवर्गीय मार्ग अपनाओ, सम्मान व राहत से रहोगे। 

निर्धनता के भय से संतान की हत्या न करो, यह अक्षम्य अपराध है। ईश्वर तुम्हें भी भोजन देता है और उन्हें भी भोजन देगा। 

व्यभिचार के निकट मत फटको, यह बहुत बुरा और अश्लीलता का काम है। ईश्वर ने मानवीय जीवन को सम्मानित क़रार दिया है, बिना कारण किसी की हत्या न करो। जिसकी हत्या हुई है उनके संबंधी भी ईश्वर की सीमाओं का ध्यान रखें।

अनाथों के बड़े होने तक उन के धन की अच्छी तरह से देख-रेख करो, उनके धन की ओर बुरी नियत से न देखो। वचन का ध्यान रखो, और वचन को पूरा करना अपनी ज़िम्मेदारी समझो। 

नापो तो पूरा-पूरा नापो और तौलो तो ठीक तराज़ू से तौलो। यही उत्तम तरीक़ा है और अपने परिणाम के लिए उत्तम है।

जिस चीज़ के बारे में जानकारी न हो उसके चक्कर में न पड़ो। अपने कानों, अपनी आँखों और अपने मन को अच्छे कामों में लगाओ। याद रखो इन सब के बारे में पूछताछ होगी।

धरती पर अकड़ कर न चलो, जो व्यवहार मानवता को शोभा देता है उसे अपनाओ। ईश्वर ने तुम्हें समझ व ज्ञान दिया है, इस अनमोल शिक्षा का सम्मान करो और ईश्वर के साथ किसी को शामिल न करो क्योंकि उसका परिणाम नरक है। 

वही बात कहो जो अच्छी हो। राक्षस मानवों के बीच झगड़ा करवाने के प्रयास करता है, यह मानव का खुला शत्रु है।

18 पाठ सूरह अल कहफ
(मक्का में उतरी कुल आयत 110 कुल रुकुअ 12)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के अलावा तुम अन्य किसी और को न पुकारो, जिन्हें तुम पुकारते हो, वे तुम्हें किसी कठिनाई से नहीं बचा सकते। वे तो स्वयं ईश्वर के दंड से डरते हैं, उसकी कृपा के प्रत्यासी होते हैं, और उससे निकट होने के मार्ग ढूंढते हैं।

राक्षस ने ठान लिया है कि वह आदमियों को बर्बादी तक पहुँचा कर रहेगा और इसके लिए वह अपना पूरा ज़ोर लगाता है। राक्षस से बचने हेतु ईश्वर की शरण में आओ, 
जो ईश्वर पर भरोसा रखेगा उस पर राक्षस का कोई बस नहीं चलेगा। 

आदम के बेटो...! अपने स्तर व पद वैभव को समझो।ईश्वर ने तुम्हें सम्मान का स्थान दिया है। तुम्हें जल-थल की सैर कराई है, तुमको पवित्र खाद्य दिया है, बहुत से जीवों पर श्रेष्ठता प्रदान की है। इन सौगातों का सम्मान करो। 

याद रखो जो सांसारिक अंधेपन से रहेगा, वह परलोक में भी अंधा ही रहेगा। सत्य मार्ग के शत्रु तुम पर हर तरह के चालें आज़माएँगे, तुम ईश्वर से सुदृढ़ संबद्धता और मज़बूती प्राप्त करो अन्यथा विधर्मियों की ओर झुक जाओगे और अपने पुण्य कर्म नष्ट कर लोगे।

नमाज़ निरंतर पढ़ो और फ़ज्र (प्रातः काल की उपासना) के उच्च स्वर में उच्चारण (क़िरअत) का विशेष ध्यान करो। रात को उठ कर रात्रि की नमाज (तहज्जुद) पढ़ो, यह ईश्वर की बहुत बड़ी सौगात है। इसी तरह तुम प्रशंसनीय स्थान तक पहुँच सकते हो। 

सच्चाई से प्रेम करो, प्रार्थना करो कि ऐ मालिक...! जहाँ भी ले जा सच्चाई के साथ ले जा और जहाँ से भी निकाल सच्चाई के साथ निकाल,और अपनी ओर से एक सहायता कर्ता मेरी सहायता करने वाला बना दे। 

असत्य से मत डरो, भरोसा रखो कि जब सत्य आ गया है तो असत्य को अब मिटना ही है। पवित्र क़ुरआन से संबंध मज़बूत करो, इसमें विश्वास वालों के लिए भलाई भी है और कृपा भी। पवित्र क़ुरआन को ठहर - ठहर कर पढ़ो। पवित्र क़ुरआन इस तरह पढ़ो कि इससे तुम्हारे हृदय में नरमी और सजदे (ईश्वर के सामने झुकना) हेतु तड़प पैदा हो जाए। मालिक की बड़ाई (तसबीह) करो, उसके वादों पर भरोसा रखो और सजदा (माथा टेक कर) आँसुओं की भेंट प्रस्तुत करो। 

कहफ़ (एक स्थान) के युवाओं की कहानी पर ध्यान दो, उन्होने विश्वास का मार्ग अपनाया तो ईश्वर ने उनके सद्मार्ग में वृद्धि की। उन्होने एकेश्वरवादिता की घोषणा की तो ईश्वर ने उनके मन को सुदृढ़ किया। उन्होने अपने अविश्वासी समाज और उनके देवताओं की पूजा से मना करने की घोषणा की तो ईश्वर ने अपने उनको अपनी दया की चादर में जगह दी और उनके जीवन का अनोखा प्रबंध किया, और फिर उन्हें जीते जी ही सत्य धर्म की स्थापना दिखा दी, और वह भी तीन सदियाँ गुज़र जाने के बाद।

तुम, जब भी किसी काम का निर्णय करो, तो ईश्वर की मदद मांगा करो। भरोसा रखो कि ईश्वर की इच्छा के बिना कोई काम नहीं हो सकता। जैसे ही तुम्हें अनुभव हो कि मालिक को भूल रहे हो, तुरंत स्मरण कर लिया करो। 

तुम्हारे मालिक की किताब तुम्हारे पास है, उसे सुनाओ, 
और उन लोगों के साथ सत्य धर्म पर जमे रहो जो सुबह -शाम अपने मालिक को प्रसन्न करने के लिए उसे पुकारते हैं। 

समाज के सरदारों और बड़े लोगों को इकठ्ठा करने के शौक़ में निर्बल, विश्वासियों से आंखें मत फेरो। उन लोगों की बातों से प्रभावित न हो जिनके हृदय ईश्वर के स्मरण से अनभिज्ञ हैं और तृष्णाओं के पीछे चलते हैं। 

दो उद्यानों के उदाहरणों से सीख लो, ईश्वर की सोगातों के प्रति कृतघ्नता और घमंड न करो। ईश्वर के साथ 
किसी को समकक्ष मत करो। कभी यह मत सोचो कि 
तुम किसी वस्तु पर ईश्वर से अधिक पकड़ रखते हो। झूठी उम्मीदें मत बांधो, ईश्वर द्वारा प्रदत्त वस्तुओं को उसके मार्ग में व्यय करो।

तुम्हारा धन तुम्हारे सांसारिक जीवन की संपत्ति हैं। याद रखो सांसारिक जीवन समाप्त हो जाएगा और भले कर्म शेष रह जाएंगे। अतः समाप्त होने वाली वस्तु के पीछे, परलोक में काम आने वाली वस्तुओं को भूल न जाओ।

ज्ञान प्राप्ति हेतु मूसा जैसा शौक़ उत्पन्न करो, उसने निर्णय किया कि मैं चलता रहूँगा यहाँ तक कि या तो दो नदियों के मिलने की जगह पहुँच जाऊँ या इसी तरह साल दर साल गुज़र जाएं और जब वह उस आदमी तक पहुँच गए, जिसे ईश्वर ने अपनी विशेष कृपा और ज्ञान प्रदान किया था, तो ज्ञान प्राप्ति हेतु उसके साथ हो लिए।


अध्याय (पारा-16)

ज्ञान से संयम उत्पन्न होता है और संयम से सफलता उत्पन्न होती है। ज्ञान से मन की शांति प्राप्त होती है और जीवन की वास्तविक प्रसन्नता हेतु मन की शांति आवश्यक है। ज्ञान प्राप्ति की यात्रा अनवरत रखो।

जुल्करनैन (एक दूत जो राजा बने का नाम) को ईश्वर ने राजा बनाया तो वो मानव सेवा की यात्रा पर निकल गए। कहीं अत्याचारी को ठीक किया और कहीं लोगों के लिए सर छुपाने की व्यवस्था को और कहीं लोहे की दीवार खड़ी करके लोगों को लुटेरों की लूटपाट से सुरक्षित कर दिया। ईश्वर के उपासक सत्ता का दायित्व इसी प्रकार पूर्ण करते हैं।

जीवन भर के परिश्रम को नष्ट मत होने दो। जो व्यक्ति ईश्वर के वाक्यों और परलोक को  नकारते हैं उनके सारे कर्म नष्ट हो जाते हैं। वे समझते हैं कि सब कुछ ठीक कर रहे हैं जबकि उनकी सारी दौड़-धूप सांसारिक जीवन में खो  जाती है। होश से काम लो, ईश्वर की किताब पर विश्वास लाओ और पुण्य कर्म करो, स्वर्ग की सौगातें तुम्हारी प्रतीक्षा में हैं।

19. पाठ (सूरह मरयम)
(मक्का में उतरी कुल आयत 98 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


ज़करिया (एक ईश्वरीय दूत का नाम) की कहानी से सीखो कि ईश्वर से क्या माँगा जाता है और किस प्रकार माँगा जाता है। और जब ईश्वर से माँगा जाए तो उसकी कृपा किस तरह बरसती है। ईश्वर से मांगो तो सामग्री और संसाधनों) को मत देखो अपितु ईश्वर की अत्यंत समर्थता और उसकी इच्छाशीलता को उसके समक्ष रखो। स्थिति कितनी ही कठिन हों और सामग्री कितनी ही कम, ईश्वर से मांगने में झिझक अनुभव मत करो।

ईश्वर की तुम पर कृपा हो तो उसे सामान्य बात समझ कर अनदेखा न करो। यह सोचो कि कितनी विशिष्ट व्यवस्थाओं के साथ ईश्वर ने तुम पर कृपा की है और फिर बहुत सा धन्यवाद करो। सुबह व शाम ईश्वर का महिमागान करो, दूसरों को भी इसकी सीख दो। यहिया (एक दूत का नाम) जैसे सालेह (सद्कर्मी) और सीखने वाले बनो। ईश्वर की किताब को दृढ़ता से थाम लो। ईश्वर से बुद्धिमानी)और सीख की प्रार्थना करो, दुख - दर्द को अनुभव करने वाले , पवित्रता और बूरे कर्मों से बचाव को अपना मार्ग बनाओ। माँ-बाप के साथ प्रेम और आज्ञाकारिता का दायित्व पूर्ण करो न शक्ति पर घमंड करो और न अवज्ञा का मार्ग पकड़ो।

मरियम से पवित्रता और सदाचरण से सीखो। उनके निकट सदाचरण जीवन से भी अधिक मूल्यवान वस्तु थी।

ईसा से उपासना सीखो, ईश्वर के उपासक (बंदे) होने की घोषणा करो और आजीवन नमाज़ और ज़कात की पाबंदी करो। माँ-बाप के प्रति दायित्व पूर्ण करो, अत्याचार और सीनाजोरी का व्यवहार मत अपनाओ। घोषणा करो कि ईश्वर मेरा भी उपास्य है और तुम्हारा भी मालिक है। सिर्फ़ उसी की उपासना करना ही सही व सीधा मार्ग है।

इब्राहीम (एक दूत का नाम) से प्रेम व लगाव सीखो। कितनी नम्रता और कैसे प्रेम के साथ अपने पिता को एकेश्वरवाद का न्योता दिया। पिता ने धमकियाँ दी तो वह भी अदब से सुनीं और अंत तक अपने प्रेम और दिल जीतने वाले व्यवहार पर अडिग रहे।

ईश्वर अपने सच्चे उपासकों को छिन्न - भिन्न नहीं होने देता। इब्राहिम ने ईश्वर की के लिए अपने समाज से और समाज के देवताओं से दूरी अपनाई तो ईश्वर ने उन्हें अत्यंत सदाचारी (नेक) संतान दी, उन्हें संदेश वाहक का मुकुट पहनाया। उन पर और उनकी संतान पर कृपा की बारिश की और इन सबको सृष्टि के रहने तक के लिए सच्ची और ऊँची बड़ाई (नामवरी) प्रदान की।

इस्माईल के व्यवहार (सीरत) से सीख लो। वह वचन के सच्चे थे, अपने घरवालों को नमाज़ और ज़कात की सीख देते थे। ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त हो जाए, बस यही उनके जीवन का उद्देश्य था।

ये वो लोग हैं जिन पर ईश्वर ने विशेष पुरस्कार किया। उनका हाल यह था कि जब उन्हें ईश्वर के वाक्य सुनाए जाते तो कृतज्ञता से सजदे में गिर जाते और रोते-रोते उनकी हिचकियाँ बंध जातीं। लेकिन बाद में वे लोग आए जिन्होंने नमाज़ छोड़ दी और इच्छाओं के दास बन गए। ऐसे लोगों का परिणाम बहुत बुरा होगा। लेकिन अगर वे क्षमायाचना कर लें, विश्वास और अच्छे कर्मों से स्वयं को सजा लें तो उनके लिए दया व क्षमा के दरवाज़े खुले हुए हैं।
यह मत देखो कि संसार में कौन अधिक वैभव - विलासिता और उच्वय पद, संपत्ति वाला है, यह सोचो कि परलोक में कौन वैभव - विलासिता और पद व पुरस्कार वाला होगा। झूठी आशा में मत जियो, यहाँ का सब ठाठ यहीं रह जाएगा। सद्कर्म अंत तक साथ रहेंगे और वही परलोक में काम आयेंगे।

अपने विश्वास की रक्षा करो और उत्तम कर्म करते रहो। ईश्वर तुम्हें ऐसे स्थान पर रखेगा जहाँ प्रेम ही प्रेम होगा।

20. पाठ (सूरह ता. हा.)
(मक्का में उतरी कुल आयत 135 कुल रुकुअ 08)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


पवित्र क़ुरआन कृपा की किताब है। इसमें ऐसी कोई बात नहीं है जो दुर्भाग्य का कारण हो। यह तो अहोभाग्य का मार्ग बताने वाली किताब है। इसमें अविस्मरणीय सीख और ज्ञान हैं उनके लिए जो अच्छे परिणाम की अभिलाषा रखते हैं और बुरे परिणाम से डरते हैं ।

ईश्वर के समकक्ष कोई उपास्य) नहीं है, केवल ईश्वर की उपासना करो। ईश्वर के स्मरण हेतु की नमाज़ पढ़ो। प्रलय (क़यामत) आने वाली है, इसका प्रबंध करो। जो परलोक को मानते नहीं और तृष्णाओं की पूजा करते हैं वे तुम्हें नमाज़ से न रोक दें ।

हर विद्रोही और विरोधी के पास जाओ, उसे नम्रता पूर्वक समझाओ, उसके भीतर ईश्वर का भय जगाओ। बताओ कि जो सही मार्ग पर चलेगा उसके लिए सुरक्षा है और जो सत्य से मुँह मोड़ेगा उसके लिए कठोर यातना है। फ़िरऔनों (मिश्र का एक राजा) से मत डरो, केवल ईश्वर से डरो, ईश्वर तुम्हारे साथ है ।

ईश्वर के न्योते के लिए निकलो तो उससे प्रार्थना करो, “मेरे मालिक! मेरा हृदय खोल दे, मेरा कार्य सरल कर दे, मेरी जिव्हा की गांठ खोल दे, मेरी बात को समझ योग्य बना दे, मुझे इस मार्ग में प्रिय व सहायक उपलब्ध करवा दे।”

जादूगरों का विश्वास और उनकी भरोसा देखो। फ़िरऔन ने कहा कि तुम सबके हाथ-पाँव कटवाकर खजूर के तने में कीलों से ठुकवा दूंगा। जादूगरों ने कैसी हिम्मत से उत्तर दिया कि हमारे पास प्रकाशित प्रतीक आ गए हैं, अब हम उनके ऊपर तुझे बढ़ावा नहीं दे सकते। जो करना चाहे कर ले, जो कुछ करेगा इस संसार ही में तो करेगा, हम तो अपने मालिक पर विश्वास लाए। अब हमें बस इसकी चिंता है कि हमारे पाप की क्षमा हो जाए। हमें अपराधी बनकर ईश्वर के पास नहीं जाना है हमें तो अच्छा इंसान बनकर जाना है ।

इसराईल की संतान का इतिहास बड़ी सीख वाला इतिहास है। ईश्वर ने कैसे बुरे अत्याचारियों से उन्हें राहत दिलाई। फिर कैसी-कैसी सौगातों प्रदान की परंतु इस बूरेपन का क्या इलाज कि सब कुछ भूल कर बछड़े की पूजा करने लगे। जब ईश्वर का भय मन से निकल जाए तो व्यक्ति कितना अंधा हो जाता है और कैसी पतित्तता में गिर जाता है ।

ईश्वर ने कुरआन में हर प्रकार से अवज्ञा के बुरे परिणाम से सावधान किया है इसलिए कि तुम्हारे भीतर ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिंता उत्पन्न हो और तुम्हारा मोह दूर हो जाए। क़ुरआन पाक को इतमिनान से पढ़ो और दिल में ज़्यादा से ज़्यादा इल्म का शौक़ पैदा करो ।

ईश्वर ने आदम को मार्गदर्शन दिया था, वे इसे भूल गए और भूल कर बैठे। लेकिन आदम ने भूल का अनुभव होते ही क्षमा मांगी और ईश्वर ने उनकी याचना स्वीकार कर ली। उन्हें मार्गदर्शन व उच्य स्थान प्रदान किया। तुम भी हठधर्मी से बचो और याचना का याचना का मार्ग अपनाओ।

ईश्वर का मार्गदर्शन आ चुका है, अब जो ईश्वर के बताए हुए मार्ग पर चलेगा, दुर्भाग्य से सुरक्षित रहेगा और जो ईश्वर के मार्गदर्शन से मुँह मोड़ेगा उसके लिए जीवन अत्यंत संकरा (तंग) होगा और प्रलय के दिन उसे अंधा उठाया जाएगा, उसका परिणाम बहुत बुरा होगा ।

लोगों की बातों में न आओ, ईश्वर के मार्ग पर जमे रहो और हर समय ईश्वर की बड़ाई एवं महिमागान करो, इस तरह तुम्हें सच्ची प्रसन्नता प्राप्त होगी। लोगों को हमने सांसारिक जीवन की जो वैभव - विलासिता दे रखी है उसकी ओर आंख उठाकर न देखो। तुम्हारे मालिक ने तुम्हें जो सौगातें प्रदान की हैं वह अति उत्तम हैं और शेष रहने वाली है। अपने घर वालों को नमाज़ पढ़ने हेतु आतुर करो और स्वयं भी इसके पाबंद रहो। ईश्वर के कोप से बचोगे तो उत्तम परिणाम तक पहुंचोगे।

अध्याय (पारा-17)

21. पाठ (सूरह अल-अंबिया)
(मक्का में उतरी कुल आयत 112 कुल रुकुअ 07)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


जो लोग अत्याचार में बहुत आगे निकल जाते हैं, उन पर किसी सीख का असर नहीं होता है। वे इससे भी नहीं डरते कि हिसाब की घड़ी निकट आ चुकी है। वे पिछले समाजों के दर्दनाक इतिहास से भी सीख नहीं लेते। यह भी नहीं सोचते कि इतनी विशाल सृष्टि इसलिए नहीं बनाई गई है कि यहाँ सदैव अत्याचार की चक्की चलती रहे ।

जितनी जल्द हो सके झूठों की पंक्ति से निकल कर सत्य पंक्ति में आ जाओ। झूठ पर तो सत्य की ऐसी चोट लगेगी कि वह चकनाचूर हो जाएगा और उसका अस्तित्व मिट जाएगा। झूठों को अपने कुकर्मों का परिणाम ज़रूर भुगतना होगा ।

यमदूतों (फ़रिश्तों) की उपासना की स्थिति देखो, वे न घमंड करते हैं, न ईश्वर की पूजा से बचाव करते हैं, न पूजा से थकते हैं। रात-दिन उसकी महिमागान करते हैं और दम नहीं लेते। ईश्वर के समक्ष बढ़-बढ़ कर बोलते नहीं बस उसके आदेश का पालन करते हैं। वे किसी की सिफ़ारिश नहीं करते, बस उसी के लिए में प्रार्थना करते हैं जो ईश्वर का आज्ञाकारी होता है। वे स्वयं हर समय ईश्वर के भय से डरते रहते हैं ।

याद रखो हर जीव को मृत्यु का स्वाद चखना है। यहाँ जिसके जैसे भी स्थिति हैं, अच्छी हों या बुरी, सबकी परीक्षा हो रही है, सबको अल्लाह की ओर पलट कर जाना है। स्थिति से परिणाम की चिंता करो ।

इब्राहीम और इब्राहीम की सपूत संतान सृष्टि के अंत तक के लिए नमूना हैं। सदाचरण के पालक, लोगों के नायक (इमाम), ईश्वर के आदेशों की ओर बुलाने वाले, सदाचारी व्यवहार करने वाले नमाज़ और ज़कात के पाबंद, ईश्वर के पुजारी (इबादत गुजार)। उनके मार्ग पर चलो, ईश्वर अपनी दया की छाया में स्थान देगा ।

दाऊद और सुलैमान (ईश्वर के दूत) का जीवन कृतज्ञता का उत्तम प्रारूप (बेहतर नमूना) है। ईश्वर ने अत्यधिक और उत्तम प्रकार की सौगातें दीं, सृष्टि की बड़ी-बड़ी शक्तियों को उनके अधिकार में दे दिया। प्रसंशा की बात यह है कि सौगातों ने उनकी कृतज्ञता (शुक्रगुज़ारी) में वृद्धि की। लोग तो थोड़ी सी भले दिन (ख़ुशहाली) पाकर ईश्वर को भूल जाते हैं ।

अय्यूब से उपासना का पाठ सीखो। अत्यधिक कठिनाइयों में रहे परंतु केवल ईश्वर के होकर रहे और उसकी दया से आशा लगाए रहे। इसमाईल, इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल (तीनो ईश्वर के संदेश वाहक) से संयम व कृतज्ञता सीखो। उन सबने भलाई का मार्ग अपनाया और ईश्वर की दया में प्रवेशित हुए ।

यूनुस को अनुभव हुआ कि उनसे भूल हो गई, तो उन्होंने मछली के पेट के भीतर से ईश्वर को पुकारा और सच्चे मन से ईश्वर की ओर पलट आए। ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उन्हें छुटकारा दिया। जो सांसारिकता और परलोक की कठिनाइयों से छुटकारा पाना चाहता हो, वह सच्चे मन से अपने पापों की क्षमा मांगे और ईश्वर का विश्वासी दास (बंदा) बन जाए ।

ज़करिया (एक ईश दूत) की प्रार्थना और ईश्वर की स्वीकारोक्ति पर चिंतन करो । वास्तविकता यह है कि जो लोग भलाई के कामों में अग्रणी रहते हैं, ईश्वर को आशा और भय के साथ पुकारते हैं और उनके मन ईश्वर के आगे झुके रहते हैं, ईश्वर उनकी प्रार्थना इस प्रकार स्वीकार करता है कि वह सोच भी नहीं सकते।

नबियों (ईश दूतों) को अपना पथप्रदर्शक बनाओ, ईश्वर को अपना मालिक मानो और केवल उसी की उपासना करो, धर्म (दीन) को क्षत विक्षत मत करो और परलोक से डरो, अपने विश्वास (ईमान) की रक्षा करो और भलाइयां एकत्रित करो, संयम रखो तुम्हारा कोई काम नष्ट नहीं होगा और किसी अच्छे काम का अपमान नहीं होगा।

भले आदमी और उपासक बनो। ईश्वर का निर्णय है कि भूमि के उत्तराधिकारी ईश्वर के भले बंदे ही होंगे। रसूल (दूत) का सम्मान करो, ईश्वर ने रसूल (दूत) को मानव के लिए कृपा बनाकर भेजा है, तुम भी मानवों के लिए कृपा बन जाओ।

22. पाठ (सूरह अल-हज)
(मदीना में उतरी कुल आयत 78 कुल रुकुअ 10)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की रुष्टता से बचो। कुछ लोग गर्दन टेढ़ी करके ईश्वर के बारे में बहस करते हैं। उनके पास ना ज्ञान होता है न मार्गदर्शन और न प्रकाशित किताब, वे ईश्वर के मार्ग से भटकाना चाहते हैं। कुछ अन्य लोग हैं जो किनारे पर रह कर ईश्वर की दासता (बंदगी) करते हैं, यदि लाभ हुआ तो मान्यता (बंदगी) पर अडिग रहते हैं और कोई परीक्षा आई तो उल्टे पाँव पलट जाते हैं। तुम्हारे पास ज्ञान भी है, मार्गदर्शन भी है और प्रकाशित किताब भी है, सच्चे मन से विश्वास लाओ और ईश्वर को प्रसन्न करने वाले काम करो ।

ख़ाना काबा (मक्का में ईश्वर का घर) के निर्माण का उच्च उद्देश्य और उसका समकक्षता (शिर्क) से पवित्र इतिहास सदैव समक्ष रखो। ईश्वर ने जिन वस्तुओं के सम्मान हेतु सूचित (आगाह) कर दिया है, उनके सम्मान की ध्यान रखो। बुतों (मूर्तियों) की गंदगी से दूर रहो, झूठी बातों से बचाव करो, एकाग्रचित्त होकर ईश्वर की उपासना करो। समकक्षता (शिर्क) से दूर रहो, ईश्वर के बताए हुए पूजा के तरीक़ों का सम्मान करो, ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिंता करो। ईश्वर ने जो चैपाए तुम्हें खाद्यार्थ अनुमत किए हैं उन्हें (बलि) ज़िबह करते समय ईश्वर (अल्लाह) का नाम लो।

तुम्हारा उपास्य एक ईश्वर (अल्लाह) है। तुम उसके आज्ञाकारी बनो, उसके सामने विनम्रता से रहो। कभी तुम से अवज्ञा हो और तुम्हें ईश्वर की याद दिलाई जाए तो तुम्हारे मन काँप उठें। कठिनाई आए तो संयम का पहाड़ बन जाओ, नमाज़ पढ़ो और ईश्वर की दी हुई आजीविका में से उसके मार्ग में दान करो ।

बलि (कुरबानी) के ऊँटों को ईश्वर ने अपने प्रतीकों के रूप में मान्यता दी है। इन ऊँटों में तुम्हारे लिए बड़े लाभ हैं। ईश्वर का नाम लेकर बलि (क़ुरबान) करो। स्वयं भी खाओ और निर्धनों को भी खिलाओ और ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करो ।

बलि (क़ुरबानी) का मांस (गोश्त) और ख़ून ईश्वर के यहाँ नहीं पहुंचता, उसके यहाँ तो तुम्हारे मन का सदाचरण (परहेज़गारी) पहुँचता है, अतः सदाचरण से अपने जीवन को सजाओ। ईश्वर ने ये जानवर तुम्हारे लिए उत्पन्न किए हैं, उसने तुम को मार्गदर्शन की सौगात भी प्रदान की है, तुम अधिकाधिक उसकी बड़ाई का वर्णन करो। जीवन को उत्तम कामों से सजाओ ।

जिन लोगों पर अत्याचार किया गया और उन्हें बिना कारण घरों से निकाल दिया गया, केवल इस अपराध में कि वे कहते हैं हमारा मालिक ईश्वर (अल्लाह) है, उन लोगों पर से अब युद्ध न करने की पाबंदी उठा ली गई। अब वे अत्याचारियों से युद्ध कर सकते हैं। वे अत्याचारियों से युद्ध करेंगे तो ईश्वर की सहायता उनके साथ होगी ।

ईश्वर धरती की सत्ता प्रदान करे तो नमाज़ पढ़ो, ज़कात प्रदान करो, अच्छाई का आदेश दो और बुराई से रोको और अपने परिणाम को उत्तम बनाने का चिंतन करो ।

धरती पर चल - फिर कर पिछले समाजों का परिणाम देखो, इससे तुम्हारे मन को प्रकाश मिलेगा और तुम्हारे कानों को सुनने की शक्ति प्राप्त होगी। कितनी दुर्भाग्य की बात है कि आँखें तो देखती हों और मन अंधा हो ।

तुम भली प्रकार से सावधान करते रहो। उन्हें बताओ कि जो लोग विश्वास पर टिके रहेंगे और भलाई के काम करेंगे उनके लिए उत्तम परिणाम है। और जो ईश्वर के वाक्यों (आयतों) को नीचा दिखाने के प्रयास करेंगे उनके लिए नरक का दंड है ।

अपने मालिक की ओर बुलाते रहो और भरोसा रखो कि तुम सीधे मार्ग पर हो। लोग तुम से बहस करें तो कह दो कि सत्य बात से मुँह न फेरो, तुम जो कुछ कर रहे हो ईश्वर उससे सूचित है और वह प्रलय के दिन निर्णय करेगा। उस दिन के निर्णय से डरो ।

ऐ लोगो ! जो विश्वास लाए हो, रुकू करो, सज्दे करो और अपने मालिक की पूजा (बंदगी) करो। अच्छाइयों के आदी बनो और ईश्वर के मार्ग में इस प्रकार संघर्ष करो जिस तरह उसके मार्ग में संघर्ष करना चाहिए। उसने तुम्हें इस महान कार्य के लिए चुन लिया है। उसने पंथ में तुम पर कोई तंगी नहीं रखी है। अपने पितामह इब्राहीम के मार्ग पर रहो, उन्होंने तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी)(फ़रमाबरदार) रखा था। और क़ुरआन में भी तुम्हारा यही नाम रखा गया है, इस नाम का दायित्व पूर्ण करो। दूत (रसूल) तुम पर साक्षी है तुम लोगों पर दायित्व के साक्षी बन जाओ। नमाज़ पढ़ो, ज़कात दो और ईश्वर का चीर (दामन) दृढ़तापूर्वक थामे रहो । वही तुम्हारा संरक्षक है। वह कितना अच्छा संरक्षक और कितना अच्छा सहायताकर्ता है।

अध्याय (पारा-18)

23. पाठ (सूरह अल-मोमिनून)
(मक्का में उतरी कुल आयत 118 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

यदि तुम दोनों लोक की सफलता चाहते हो तो सच्चे विश्वासी बन जाओ। ख़ूब मन लगाकर नमाज़ें पढ़ा करो। झगड़ों और मन दुखाने वाली बातों से दूर रहो। अपने व्यक्तित्व को पवित्र से पवित्रतम बनाने के प्रयास करो। अपने गुप्तांगों की रक्षा करो (पति -पत्नी के अलावा अन्य कोई देख न सके)। जहाँ तक ईश्वर ने अनुमति दी है वहीं तक रहो उससे आगे मत बढ़ो । दूसरे के धन (अमानत) और समझौतों का ध्यान रखो। अपनी नमाज़ों की रक्षा करो। स्वर्ग की सौगातें तुम्हारी प्रतिक्षा कर रही हैं।

ईश्वर ने तुम्हें बड़े प्रेम से सृष्टि में भेजा है। तुम्हें उत्तम सूरत प्रदान की है। तुम्हारे रहने-सहने और खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था की है। वह तुम्हे तनिक भी नहीं भुला है, तुम भी उसे मत भुलाओ।

ईश्वर ने तुम्हें इस संसार में विलासिता व आराम की सामग्री दी है ताकि तुम्हारी परीक्षा ले। तुम इस धोखे में न रहो कि जीवन बस यहीं तक है। ईश्वर के समक्ष उपस्थित होने की तैयारी करो। उसकी पूजा (बंदगी) करो, उसके साथ समकक्षता (शिर्क) न करो और उसकी रुष्टता से बचने हेतु चिंतन करो। उससे घमंड न करो। भूतकाल में जो समाज अपने घमंड के कारण से नष्ट कर दिए गए, उनसे सीख प्राप्त करो।

ईश्वर की दी हुई सौगातें खाओ, भलाइयों के आदी बनो और मालिक (रब) की रुष्टता से बचने का चिंतन करो।

यदि ईश्वर ने तुम्हें धन और पुत्र दिए हैं तो यह न समझो कि ईश्वर तुम्हें अपनी सौगातें प्रदान कर रहा है। यह तो तुम्हारी परीक्षा के लिए तुम्हें दिया जा रहा है, ईश्वर की प्रसन्नता के सिंहासन व मुकुट तो वे लोग प्राप्त करते हैं जो अपने मालिक के भय से डरते रहते हैं, जो अपने मालिक के वाक्यों (आयतों) पर विश्वास रखते हैं, जो अपने मालिक के साथ समकक्षता (शिर्क) नहीं करते, जो अपने मालिक के मार्ग में दान करते हैं और वह भी इस स्थिति के साथ कि उनके मन काँपते रहते हैं कि उन्हें उसकी तरफ़ लौट कर जाना है।

ईश्वर का धन्यवाद करो कि उसने तुम्हें सुनने और देखने की क्षमताएं दीं और सोचने को मन व मस्तिष्क दिया। बुद्धि से काम लो और परलोक को मत नकारो, उसी ने तुम्हें जन्म दिया है और उसी के हाथ में मृत्यु और जीवन है। होश में आओ और देखो कि धरती और धरती की हर चीज़ ईश्वर की है। ईश्वर की रुष्टता से बचो जो सातों गगन का मालिक और उच्च गगन (अर्श-ए-अज़ीम) का मालिक (रब) है। किसी धोखे में न रहो हर चीज़ की नकेल उसी के हाथ में है और वही शरण देने वाला है, उसके समकक्ष में कोई  नहीं। उसके साथ किसी को मत मिलाओ (शरीक न करो), किसी की यह हस्ती है ही नहीं कि वह उसका साझी बन सके।

सत्य को नकारने वाले तुम्हारा विरोध करेंगे। और विरोध का बुरे से बुरा मार्ग अपनाएंगे, तुम अच्छाई का मार्ग अपनाओ, बुराई को अच्छाई से नष्ट करो और ईश्वर से प्रार्थना करते रहो कि वह राक्षस (शैतान) के उकसावे से तुम्हें सुक्षित रखे।

प्रलय के दिन न कोई संबंध काम आएगा, न कोई किसी को पूछेगा, जिसके कर्म भार वाले होंगे वही सफल होगा। झूठी आशाओं पर मत टिको। इसका चिंतन करो कि वहाँ तुम्हारे कर्म भार वाले रहें। साथ ही प्रार्थना करते रहो कि “मेरे मालिक मुझे क्षमा कर दे, और मुझ पर कृपा कर – तू बहुत कृपालु है।”

24. पाठ (सूरह अन-नूर) (प्रकाश का पाठ)
(मदीना में उतरी कुल आयत 64 कुल रुकुअ 09)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


ईश्वर और परलोक पर विश्वास रखो और अश्लीलता से दूर रहो अश्लीलता वर्जित (हराम) है और उसका कठोर दण्ड है। अश्लीलता का विश्वास से कोई मेल नहीं है।

पतिव्रता स्त्रियों पर दुराचरण का आरोप लगाना भी अति संगीन अपराध है। इस अपराध का भी अत्यंत कठोर दण्ड है। फिर भी जो लोग क्षमायाचना कर लें और स्वयं को ठीक (इस्लाह) कर लें तो वे ईश्वर को बहुत क्षमा करने वाला और अत्यंत कृपावान पाएंगे।

पत्नियां अपने सदाचरण की रक्षा करें और पति पत्नियों के संबंध में गलत सोच से बचें। पक्के भरोसे के बिना कोई आरोप न लगाएँ। पत्नियां दुराचरण का मार्ग अपनायेंगी तो उन पर ईश्वर का दंड होगा और पति ग़लत आरोप लगाएंगे तो उन पर ईश्वर की फटकर होगी।

पवित्र विश्वासी (मोमिन) स्त्रियों पर अगर कोई आरोप लगाए तो सबकी ज़िम्मेदारी है कि पूरी शक्ति से उठकर आरोप का खंडन किया जाए और ऐसे आरोपों को पलने - बढ़ने का अवसर न दें।

अपने समाज को बहुत साफ़ - सुथरा और पवित्र (पाकीज़ा) रखो। किसी को इसका अवसर न मिले कि वह तुम्हारे मध्य अश्लीलता फैलाने में सफल हो जाए। शर्म व हया को फैलाओ और अपने मध्य किसी को अश्लीलता का बीज मत बोने दो। ईश्वर की विशेष कृपा और उसकी विशेष दया है कि उसने अश्लीलता से तुम्हें बचाने के लिए विश्वास के दृढ़ किले की रक्षा की। इस किले की दीवारों में किसी को सेंध मत लगाने दो।

राक्षस (शैतान) के पद चिन्हों पर न चलो। राक्षस अश्लीलता और बुराई का मार्ग दिखाता है। ईश्वर ने अपनी विशेष कृपा से तुम्हें पवित्रता व उत्तमता का मार्ग दिखाया है, इस मार्ग पर दृढ़ता से जमे रहो। अच्छे लोगों को अच्छे नामों से याद करो। बुरे लोगो को बुरे नामों के हवाले करो। अच्छे लोगों को ईश्वर मोक्ष का मुकुट पहनाएगा।

दूसरों के घरों में जाने से पूर्व अपने आने की सूचना दे दो और घरवालों का अभिवादन (सलाम) करो। यही उत्तम मार्ग है। बिना अनुमति भीतर न जाओ, अनुमति न मिले तो वापस लौट जाओ। यही पवित्र कार्य है।

पुरुष अपनी दृष्टि (आंखें) नीची रखें और गुप्तांगों की रक्षा (हिफ़ाज़त) (नाभी से नीचे और पैर के टखने से ऊपर का भाग छुपाया जावे) करें। स्त्रियां अपनी आंखें नीची रखें और अपने गुप्तांगों (पूरे शरीर को ढंकना) की रक्षा करें और जहां तक हो सके अपने अंगों को छिपाएँ। यही विश्वास का मोल (तकाजा) है और इसी में दोनों के लिए पवित्रता (पाकीज़गी) है। ईमान वालो! ईश्वर की ओर रुख करो, सफलता के वचन तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

समाज में निकाह (विवाह की क्रिया जिस में परस्पर समझौता होता है) को बढ़ावा दो। जो स्त्रियां बिना पति की हैं या जो पुरुष बिना पत्नी के हैं उनके विवाह कराओ। निर्धनता को विवाह के मार्ग में रुकावट न बनने दो। धैर्य रखो ईश्वर कमाई में वृद्धि करेगा।

जिन लोगों के निकाह (विवाह) की व्यवस्था नहीं हो पा रही है वे अपने आप पर संयम रखें और दृढ़ता से सदाचरण अपनाएं। ईश्वर उनके लिए भी व्यवस्था करेगा।

जो दास स्वतंत्र होना चाहे उनके मार्ग में रुकावट न डालो। स्वतंत्रता प्राप्ति में उनकी सहायता करो। उन्हें स्वतंत्रता और इज़्ज़त वाला जीवन दिलाने हेतु ईश्वर का दिया हुआ धन ख़र्च करो।

दुराचरण को समाज में कमाई का माध्यम मत बनने दो। संसार में कुछ दिनों के धन हेतु दुराचरण का मार्ग न ख़ुद अपनाओ और न किसी और को इसके लिए बाध्य करो।

अपने मन में ईश्वर का प्रकाश बसाओ। उस प्रकाश का सम्मान करो। उसे जान से अधिक प्रिय रखो। ईश्वर का प्रकाश मन में बसाओगे तो पूरा जीवन प्रकाशित हो जाएगा और सम्पूर्ण सृष्टि प्रकाशित दिखाई देगी।

जिनके मनों में ईश्वर का प्रकाश होता है उन्हें ईश्वर की याद में आनंद मिलता है, वे उसके स्मरण से पूजाघर (मस्जिदें) आबाद करते हैं। सुबह - शाम ईश्वर का महिमागान करते हैं। सांसारिक व्यवसाय उन्हें ईश्वर के स्मरण, नमाज़ और ज़कात को नहीं भुलवा सकता है। वे परलोक के भय से काँपते रहते हैं और अपने जीवन को सद्कर्मों से सजाते हैं।

जब ईश्वर और उसके दूत (रसूल) की ओर निर्णय हेतु बुलाया जाए तो कहो हमने सुना और मान लिया। यही विश्वास का पालन है। ईश्वर और उसके दूत (रसूल) की बात मानो, ईश्वर से डरो, ईश्वर की रुष्टता से बचने का चिंतन करो सफलता तुम्हारे पांव चूमेगी।

विश्वास (ईमान) की रक्षा करो, अच्छे सदाचारी (नेक) कर्म करो, ईश्वर की दासता (बंदगी) करो और उसके साथ समकक्षता (शिर्क) न करो। ईश्वर तुम्हें सत्ता देगा, तुम्हारे इस पंथ (दीन) को समृद्धि देगा, जिसे उसने तुम्हारे लिए पसंद किया है। भय और संकट की स्थिति से मुक्ति देगा और शांति व सुरक्षा प्रदान करेगा। नमाज़ पढ़ी, ज़कात दो और दूत (रसूल) की बात मानो, ईश्वर की कृपा की छाया तुम पर रहेगी।

 25. पाठ (सुरह अल-फ़ुरक़ान)
(मक्का में उतरी कुल आयत 77 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

घमंड से दूर रहो। जब मन पर घमंड चढ़ता है, तो मानव ईश्वर के समक्ष उपस्थित होने से मना कर देता है। प्रलय (क़यामत) के दिन ऐसे लोगों के सारे कर्म धूल की तरह उड़ जाएंगे। अत्याचार के मार्ग पर मत चलो। राक्षस (शैतान) को अपना मित्र न बनाओ, अपनी भलाई चाहते हो, तो दूत (रसूल) का मार्ग अपनाओ, अन्यथा एक दिन आएगा तुम संशय में रहोगे और अपने दांतों से अपने हाथ काटोगे।

 अध्याय पारा - 19

क़ुरआन का अपमान न करो, अन्यथा प्रलय के दिवस दूत (पैग़म्बर) अपने मालिक (रब) के समक्ष तुम्हारे विरुद्ध वाद करेंगे। ईश्वर ने इस क़ुरआन में तुम्हारे मन के लिए दृढ़ता की सामग्री रखी है, इससे अपना संबंध सुदृढ़ करो, इससे तुम्हें शक्ति प्राप्त होगी। मना करने वालों की बातें न सुनो और इस क़ुरआन के माध्यम से उनसे संघर्ष करो।

दयालु (रहमान) के बंदों की की भांति जीवन गुज़ारो। वो धरती पर नर्म चाल चलते हैं। वो उलझने वालों से उलझते नहीं। उनकी रातें नमाजों से व्यतीत होती हैं। उन्हें सर्वाधिक चिंता यह होती है कि उनका मालिक उन्हें नरक के दंड से बचा ले। वाे दान करते हैं तो सही जगह दान करते हैं। वाे ईश्वर के साथ किसी और को नहीं पुकारते। वाे मानवीय जान का सम्मान करते हैं और कुकर्मों से दूर रहते हैं। वो झूठ के साक्षी नहीं बनते और अनर्थ बातों से बचते हैं। वो अपने मालिक की आयतों (वाक्यों) को श्रद्धापूर्वक सुनते हैं और उनसे प्रभावित होते हैं। उनकी अभिलाषा यह होती है कि उनकी पत्नियां और उनके बच्चे, उनकी आँखों की ठंडक बन जाएँ और उनका कारवां सदमांर्गियों का कारवां हो।

जो लोग पथभ्रष्ट हो रहे हैं, यदि वे इसी प्रकार चलते रहे तो उनके लिए कठोर दण्ड है। परंतु अभी भी उन के लिए क्षमायाचना का किवाड़ खुला हुआ है। वाे ईश्वर की ओर पलट आएं, विश्वास (ईमान) लाएँ और अच्छे काम करना शुरू कर दें। सही अर्थ में ईश्वर की ओर लौटना यही है कि बंदा क्षमायाचना करके अच्छे काम करना शुरू कर दे।

 26. पाठ (सुरह अश-शु'अरा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 227 कुल रुकुअ 11)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जिस प्रकार मूसा (ईश्वर की कृपा हो उन पर) फ़िरऔन (मिश्र के एक राजा) के पास गए थे, तुम भी अत्याचारियों के पास ईश्वर का संदेश लेकर जाओ, उन्हें समझाओ कि ईश्वर की रुष्टता से बचें। अत्याचारियों से डरो नहीं। भरोसा रखो, ईश्वर तुम्हारे साथ है।

जादूगर जब विश्वास लाए तो ऐसा सच्चा - पक्का विश्वास लाये कि क्षण भर में उनका संसार बदल गया। फ़िरऔन की जय-जयकार करने वाले और फ़िरऔन के तुच्छ पुरस्कारों पर घमंड करने वाले जादूगर, जब मानवों के मालिक पर विश्वास लाये, तो फ़िरऔन की स्थिति एक मच्छर से अधिक नहीं रही। उन्हें, उसकी किसी धमकी का भय नहीं रहा। उन पर तो केवल एक ही धुन सवार थी कि उनका मालिक उनके पाप क्षमा कर दे।

इब्राहीम (एक दूत). की भी प्राथमिक इच्छा यही थी कि ईश्वर प्रलय के दिन उनके पाप क्षमा कर दे। इब्राहीम के मन में बहुत उच्च इच्छाएं थीं। यह इच्छा कि ईश्वर सही समझ बूझ प्रदान कर दे। यह इच्छा कि आने वाली नस्लों में वह अच्छे नामों से याद किए जाएँ, उनके व्यक्तित्व से सृष्टि के रहने तक लोग प्रकाश प्राप्त करें, यह इच्छा कि ईश्वर उन्हें स्वर्ग का उत्तराधिकारी बनाए। यह इच्छा कि जब सब लोग उठाए जाएँ तो उन्हें दुख का मुँह न देखना पड़े। तुम भी ऐसी ही इच्छाएं अपने मन में पालो। 

प्रलय के दिन संपत्ति और पुत्र काम नहीं आएंगे। उस दिन सफल बस वही होगा जो ईश्वर के समक्ष सहृदयता के साथ उपस्थित होगा। उस दिन स्वर्ग स्वयं उनका स्वागत करेगी, जो संसार में ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिंता करते रहे।

दूतों (रसूलों) का इतिहास पढ़ो। सभी दूतों का एक ही बुलावा था, ईश्वर की रुष्टता से बचो और मेरी (दूत की) बात मान लो। सभी संदेश वाहक पूरे भरोसे के साथ कहते कि मैं ईमानदार दूत हूँ और कोई उनकी ईमानदारी पर उंगली नहीं उठा सकता। सारे दूत साफ़-साफ़ कहते कि मुझे तुम लोगों से कोई बदला नहीं चाहिये, मेरा बदला ईश्वर देगा। सभी दूत अपने समाज के लोगों को बुरे कामों के बुरे परिणाम से डराते और उन्हें प्रेम व सहृदयता से समझाते। 

दूतों के समाजों का परिणाम भी देखो। किस प्रकार उन्होंने अत्यंत ढिठाई से उन्हें झुठलाया, अपनी शक्ति के नशे में आकर सत्य को मना करते रहे और धरती में बिगाड़ फैलाते रहे। अंततः ईश्वर के दंड ने उन्हें नष्ट कर दिया।

सत्य बात स्वीकार करो, बहुसंख्यक का मुँह मत देखो। दूतों का इतिहास बताता है कि गत समय में जिन समाजों पर प्रकोप आया उनकी अधिकतर आबादी विश्वास (ईमान) नहीं लाई थी। दूतों ने कभी इस बात की परवाह नहीं की, वाे धर्म पर डटे रहे और लोगों को धर्म की ओर बुलाते रहे। 

ईश्वर के प्रकोप से डरो और ईश्वर के साथ किसी को उपास्य न बनाओ। अपने निकट संबंधियों को भी सावधान करो। जो लोग विश्वास लाएँ और पंथ पर टिके रहें उनके लिए अपने कंधे झुका दो। ईश्वर पर भरोसा रखो। जब तुम ईश्वर के लिए उठते हो और जब तुम झुकने (सजदा) करने वालों के मध्य क्रियाशील होते हो तो वह तुम्हें देख रहा होता है। 

जो लोग कवियों (शायरों) के पीछे चलते हैं, वे भटकाव में रहते हैं। हर वादी में भटकते हैं और उनकी कथनी व करनी में अंतर होता है। परंतु जो लोग दूत का समर्थन करते हैं वाे विश्वास की संपत्ति के धनी होते हैं। उनका जीवन अच्छे कामों से सुसज्जित होता है। वाे ईश्वर को बहुत याद करते हैं और उन पर अत्याचार किया जाता है, तो वाे अपने मार्ग पर डटे रहते हैं।

 27. पाठ (सुरह अन-नम्ल)
(मक्का में उतरी कुल आयत 93 कुल रुकुअ 07)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

पवित्र क़ुरआन की आयतों (वाक्यों) को ध्यान से पढ़ो।
उनमें विश्वास वालों के लिए मार्गदर्शन का सामान और बधाई का संदेश है। उनसे लाभ उठाना चाहते हो तो विश्वास लाओ, नमाज़ पढ़ो, ज़कात की व्यवस्था करो और परलोक पर भरोसा रखो। 

सुलेमान (एक दूत) को बस यह चिंता रहती कि ईश्वर की सौगातों का धन्यवाद प्रदान करने में कोई कमी न रह जाए। उन्हें यह धुन सवार रहती कि ऐसे अच्छे काम करें जो ईश्वर को भा जाएं। सिंहासन और मुकुट और धन - वैभव के होते हुए वह अपना वास्तविक अहो भाग्य यह समझते हैं कि ईश्वर उन्हें अपनी कृपा से अपने भले बंदों में सम्मिलित कर दे।

सुलैमान (एक दूत) हर सौगात पर ईश्वर का स्मरण करते और कहते कि "यह मेरे मालिक की कृपा है। वह मुझे जांचना चाहता है कि मैं कृतज्ञता करता हूँ या कृतघ्नता।" वास्तव में ईश्वर का बंदा वह है, जो धन और सत्ता के घमंड में जकड़ने के स्थान पर यह अनुभव करे कि यह सब कुछ उसके लिए एक परीक्षा है। 

मानव को क्या हो जाता है कि ईश्वर को छोड़कर उसके बनाए किसी देव/इंसान/जीव (मख़लूक़) को सजदा करते (सामने झुकते) हैं। वे ईश्वर को सजदा क्यों नहीं करते जो पूरी सृष्टि का रचयिता, मालिक और संचालक है। बात यह कि जब राक्षस (शैतान) बुरे कामों को सुंदर बनाकर दिखाता है तो राक्षस पक्षकार उसके झांसे में आ जाते हैं। राक्षस उन्हें सीधे मार्ग से रोक देता है, और वे जीवन भर पथभ्रष्टता में भटकते रहते हैं। 

सबा (एक देश) की महारानी को जैसे ही अनुभव हुआ कि वह समकक्षता (शिर्क) करके अत्याचार के मार्ग पर चल रही है, उसने तुरंत क्षमायाचना की और ईश्वर के समक्ष स्वयं को झुका दिया। 

समूद (एक दूत का नाम) के लोग भी अत्याचार के मार्ग पर थे। वे धरती में लड़ाई और झगड़ा फैलाते थे। उन्होंने दूत की बात नहीं सुनी, उल्टे, उनकी जान के शत्रु हो गए। ईश्वर ने उन्हें नष्ट करके रख दिया।

लूत (एक दूत का नाम) के समाज ने बुराई का मार्ग अपनाया। ईश्वर के दूत ने समझाया, तो दूत का उपहास उड़ाया, ईश्वर ने उन सब पर प्रकोप की आँधी भेज दी।

अध्याय (पारा - 20)

ईश्वर की निशानियों पर विश्वास लाओ। सारी सृष्टि में फैली हुई निशानियाँ पुकार रही हैं कि इस सृष्टि में कोई ईश्वर का साझी नहीं है। ईश्वर के साथ किसी को साझी न बनाओ। अच्छे काम करो और बुरे कामों से दूर रहो। 

भरोसा रखने वालों के लिए इस क़ुरआन में मार्गदर्शन ही मार्गदर्शन और कृपा ही कृपा है। पवित्र क़ुरआन यह भी बताता है कि मानव ने कहाँ-कहाँ सत्य बात से किनारा किया है। ईश्वर पर भरोसा करो और भरोसा रखो कि जब तक तुम क़ुरआन को थामे हुए हो, सही मार्ग पर हो। 
उस मालिक की उपासना करो जो मक्का शहर का मालिक है जिसने इस शहर को सम्मानित बनाया है और जो हर चीज़ का मालिक है। उसके आज्ञाकारी बन कर रहो। क़ुरआन सुनाते रहो। तुम्हारा काम लोगों को बुरे कामों के बुरे परिणाम से सावधान कर देना है। ईश्वर की बड़ाई करते रहो और उसकी निशानियों से आने वाली ध्वनि (आवाज) को ग़ौर से सुनो। ईश्वर तुम्हारे कामों से अनजान नहीं है, तुम भी उससे अनजान न रहो।

 28. पाठ (सुरह अल-क़सस)
(मक्का में उतरी कुल आयत 88 कुल रुकुअ 09)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


ईश्वर की धरती में रहते हुए अत्याचार न करो, झगड़ा न फैलाओ, मानव को दास न बनाओ और मानवों पर अत्याचार न करो। ईश्वर की दृष्टि में यह सब, बहुत जघन्य अपराध हैं। इस भूल में न रहो कि अत्याचार की चक्की सदा चलती रहेगी। फ़िरऔन और हामान (मिश्र के राजा) और उनके परिणाम से सीख प्राप्त करो, और अत्याचार का परित्याग करो। अन्यथा ईश्वर की मार इस प्रकार पड़ेगी कि तुम सोच भी नहीं सकते।

जिन लोगों को निर्बल और असहाय करके दासता और दबा हुआ जीवन जीने पर लाचार किया जा रहा है, वे ईश्वर की सहायता हेतु निराश न हों। वे दासता को अपना भाग्य समझकर स्वतंत्रता हेतु निराश न हो। ईश्वर से संबंध सुदृढ़ रखें। ईश्वर को स्वीकार होगा तो वे अवश्य दासता की निर्लज्जता से बाहर आएंगे और उन्हें धरती पर अधिकार और सम्मान का जीवन प्राप्त होगा।

जीवन को अच्छे कामों से सजाओ। जो लोग अपने जीवन में अच्छे-अच्छे काम करते हैं, ईश्वर उन्हें सूख बुझ और ज्ञान प्रदान करता है। 

जब कभी तुमसे कोई भूल हो जाए, तो समझ जाओ कि उसके पीछे राक्षस (शैतान) का हाथ है। वह तुम्हें ग़लती में डालकर अपनी दुश्मनी निकाल रहा है। दूसरों के साथ दुर्व्यवहार हो जाए तो यह समझो कि तुमने अपने साथ दुर्व्यवहार किया है। ग़लती का अनुभव होते ही ईश्वर से क्षमा की याचना करो। ईश्वर प्रदत्त धन और शक्ति से सत्य का साथ दो, कभी भी अपराधियों का साथ न दो। 

जीवन के हर मोड़ पर प्रार्थना करते रहो कि ईश्वर तुम्हें सही मार्ग पर अडिग रखे। जब किसी समस्या में फंस जाओ तो ईश्वर से भलाई की प्रार्थना करो। 

जो लोग ईश्वर की किताब को नकारते हैं और अपनी लालसा का समर्थन करते हैं, ये लोग अताताई का मार्ग अपनाते हैं और अपने आप को ईश्वर के मार्गदर्शन से वंचित कर लेते हैं। कुछ लोग ईश्वर की किताब को देखते ही पहचान लेते हैं कि यह उनके मालिक की ओर से आया मार्गदर्शन है। उनके मन में ईश्वर की आज्ञाकारिता पहले से होती है। वे अडिगता अपनाते हैं, बुराई का उपचार अच्छाई से करते हैं, और ईश्वर प्रदत्त रोजगार में से, ईश्वर के मार्ग में दान करते हैं। अनर्गल बातों से बचते हैं और अपने अच्छे कामों को नष्ट होने से बचाने की चिंता करते हैं।

मनुष्य का डर तुम्हें ईश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने से न रोक दे, ईश्वर की सृजनशीलता पर भरोसा रखो। देखो ईश्वर ने एक पूरे नगर को शांति का उपवन बना दिया और उसे फलों की मंडी बना दिया। यह भी याद रखो कि संसार में जो कुछ भी मिला है वह कुछ दिनों का है। परलोक में जो मिलने वाला है, वह इससे अत्यधिक उत्तम है और सदेव रहने वाला है। अतः ईश्वर की ओर मुंह करो, सहृदयता से विश्वास लाओ और सदाचरण करो, सफलत तुम्हारी प्रतिक्षा में है।

ईश्वर तुम्हें धन प्रदान करे तो इतराओ मत, घमंड न करो अपना परलोक सुधारने की चिंता करो। ईश्वर ने तुम पर उपकार किया है, तुम लोगों पर उपकार करो। धरती पर झगड़ा न फैलाओ। यह न समझो कि तुम्हें जो कुछ मिला है वह तुम्हारे स्वयं के सामर्थ्य से मिला है और यह भी न समझो कि तुम्हारे पास धन है, तो तुम ईश्वर की पकड़ से बच सकते हो। क़ारून (एक बड़ा धनवान) के परिणाम से सीख प्राप्त करो।  

धनवानों को देखकर धन की लालसा मन में उत्पन्न मत होने दो। विश्वास लाने और अच्छे कर्म करने वालों के लिए ईश्वर के पास जो कुछ है वह इससे कहीं अधिक उत्तम है। परलोक की प्रसन्नता चाहते हो तो धैर्य और संयम के साथ जीवन गुज़ारो।

परलोक का उत्तम परिणाम उनके लिए है, जो आजीवन ईश्वर के कोप से बचते रहें। धरती पर अपनी बड़ाई के स्वप्न न देखें और धरती पर बिगाड़ न फैलाएँ। नियमानुसार बात यह है कि जो सद्कर्म लेकर आएगा उसे सद्कर्मों का बदला मिलेगा और जो बुराई लेकर आएगा उसे बुराई का बदला मिलेगा।

तुम्हारे पास ईश्वर की किताब है। यह तुम्हारे मालिक की कृपा है, इसे सुदृढ़ता से थाम लो। मना करने वालों के सहायक न बनो। ऐसा न हो कि ये लोग तुम्हें, ईश्वर के वाक्यों (आयतों) से दूर कर दें। तुम लोगों को अपने मालिक की ओर बुलाते रहो और ईश्वर के साझि (शिर्क) करने वालों से कोई संबंध न रखो।

29. पाठ (सुरह अल-अनकबूत)
(मक्का में उतरी कुल आयत 69 कुल रुकुअ 07)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर से झूठी आशाएं न बाँधो, मोक्ष (निजात) के सरल मार्गों के चक्कर में न रहो। विश्वास का केवल दावा काफ़ी नहीं है। ईश्वर अवश्य परीक्षा लेगा कि कौन विश्वास में सच्चा है और कौन झूठा है। अपने विश्वास को सच्चा साबित करने की चिंता करो। यह न समझो कि बुरे काम करके ईश्वर की पकड़ से बच जाओगे। जो ग़लत अंदेशा करेगा वह बाद में पछतायेगा। 

जो ईश्वर से मुलाकात की आशा रखेगा वो उसके लिए तैयारी करेगा और जो परलोक के लिए तैयारी करेगा अपनी मेहनत का भरपूर बदला पाएगा। विश्वास की रक्षा करो और परमेश्वर के इच्छित सद्कर्म करो, ईश्वर तुमसे बुराइयों को दूर कर देगा और तुम्हारे उत्तम कर्मों का पुरस्कार देगा।

माँ बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि वे तुम पर दबाव डालें कि ईश्वर के साथ साझी (शिर्क) करो तो उनकी बात ना मानो। विश्वास पर अडिग रहो और अच्छे काम करते रहो, ईश्वर, तुम्हें अच्छे लोगों में सम्मिलित कर देगा।

ईश्वर पर विश्वास लाने के पश्चात उसके मार्ग पर अडिगता से जम जाओ। लोग अत्याचार करें तो संयम करो। याद रखो, सांसारिक की परीक्षाएं ईश्वर के प्रकोप के समक्ष कुछ भी नहीं। मना करने वालों (मुनाफिकों) का मार्ग न अपनाओ जो केवल सांसारिक लाभ हेतु विश्वास का दावा करते हैं। ईश्वर तुम्हारे मन के हाल का ज्ञाता है।

ईश्वर के अवज्ञाकारी के मार्ग पर ना चलो, ना उनके वचनों पर भरोसा करो, प्रलय के दिन कोई किसी के पापों का बोझ नहीं उठाएगा। उस दिन राक्षस और उनका समर्थन करने वाले सब अपने - अपने पापों के बोझ तले दबे होंगे। 

ईश्वर की उपासना करो, उसके कोप से बचो, वही खिलाने वाला है उसी से आजीविका माँगो। उसका धन्यवाद करो। उसकी कृपा से निराश न हो। उसके वाक्यों (आयतों) पर विश्वास लाओ और उससे भेंट पर भरोसा रखो। ईश्वर की सक्षमता में किसी की धमकी से ना डरो और विश्वास पर अडिग रहो।

दुष्कर्म से दूर रहो। लूटपाट न करो। अपनी समितियों (महफिलों) में बुरे काम न करो। धरती पर झगड़ा न फैलाओ। अत्याचार का मार्ग मत अपनाओ। ईश्वर के प्रकोप से डरो। 

बुद्धि से काम लो। ईश्वर को छोड़कर किसी और को संरक्षक न बनाओ। जिसको भी संरक्षक बनाओगे वह मकड़ी के जाल से भी अधिक दुर्बल प्रतीत होगा।

अध्याय (पारा – 21)

ईश्वर ने तुम्हारे पास किताब (क़ुरआन) भेजी है, उसे पढ़ो और पढ़ाओ और नमाज़ों का प्रबंध करो।

अश्लीलता और बुराई के कामों से दूर रहो। इसके लिए 
नमाज़ से सहायता प्राप्त करो। ईश्वर का स्मरण बहुत बड़ी चीज़ है। किताब वालों से अच्छी प्रकार से बातचीत करो। जो अत्याचार का मार्ग अपनाए उनसे दूरी रखो उन्हें बताओ कि हमारा और तुम्हारा मालिक एक है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं। हम उन किताबों पर भी विश्वास रखते हैं जो तुम्हारे पास आईं और इस किताब पर भी विश्वास रखते हैं जो हमारे पास आई है,और हम तुम्हें भी इस बात का बुलावा देते हैं।

विश्वासियों! केवल ईश्वर की उपासना करो। उसके मार्ग में क्रियाशील रहो। उसके पंथ पर डटे रहो और उसी पर भरोसा रखो। तुम्हारे मालिक की धरती बहुत फैली (कुशादा) है और स्वर्ग का ऐश्वर्य तुम्हारी प्रतीक्षा में है। 
अपने विश्वास पर अडिग रहो और अच्छे काम करते रहो।

ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करते रहो, वह तुम्हारे लिए 
बहुत से मार्ग खोल देगा। 

30. पाठ सुरह अर - रूम
(मक्का में उतरी कुल आयत 60 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जीवन उत्तम से उत्तम प्रकार से यापन करो, ईश्वर को अपने साथ पाओगे। विश्वास पर अडिग रहो, ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा। यह ईश्वर का वचन है। बुधिमानों और सचेतों हेतु ईश्वर की अनंत निशानियां हैं, परंतु जिन्हें अत्याचार का मार्ग पसंद है वे लालसा का समर्थन करते हैं और ज्ञान पर लालसा को प्राथमिकता देते हैं।

इस्लाम प्रकृति का पंथ (दीन ए फितरत) है। यही सीधा मार्ग है, तुम इस्लाम की ओर एकाग्रचित्त हो जाओ ईश्वर का ध्यान (लौ) लगाओ। उसकी नाराज़गी से बचने की चिंता करो। नमाज़ो का प्रबंध करो। समकक्षता (शिर्क) करने वालों से कोई संबंध न रखो, जिन्होंने अपने पंथ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और एक-एक टुकड़े को लेकर उसी में मग्न हो गए। जब ईश्वर उन्नति दे तो आपे से बाहर मत हो जाओ और तंगी लाये तो मायूसी में मत डूब जाओ। देखो, ईश्वर जिसे चाहता है अधिक (रिज़्क़) देता है और जिसे चाहता है नपी तुली आजीविका (रोज़ी) देता है। 

तुम, संयम ओ धन्यवाद का मार्ग अपनाओ। रिश्तेदरों के अधिकार पूर्ण करो। गरीब और असहाय लोगों को दान दो। सूद (ब्याज) से बचाव करो और ज़कात देने में प्रसन्नता अनुभव करो। ब्याज पर उधार देकर तुम लोगों से ब्याज तो ले लोगे परंतु ईश्वर के यहाँ कुछ नहीं पाओगे। जकात दोगे तो ईश्वर के यहाँ कई गुना पाओगे। सूखे (अकाल) और नमी (वर्षा) में जो कुछ बिगाड़ है उसे देख कर सीख प्राप्त करो। यह मानव के हाथों की कमाई है। बुरे कामों के बुरे नतीजे देखो और अपना ढंग ठीक करो।

समकक्षता (कुफ़्र) का मार्ग ना अपनाओ। सही और सीधे मार्ग की ओर एकाग्रचित्त हो जाओ। विश्वास की रक्षा करो और भलाइयों के आदी बनो। ईश्वर तुम्हें अपनी कृपा प्रदान करेगा।

हवाओं को देखो, ईश्वर ने अपनी कृपा तुम तक पहुंचाने हेतु कैसी - कैसी व्यवस्थाएं की हैं। उसकी कृपा प्राप्त करो और उसका धन्यवाद करो। पवित्र क़ुरआन में हर बात को अच्छी तरह समझा दिया गया है। तुम उस पर जमे रहो। विश्वास रखो कि ईश्वर का वचन पूरा होकर रहेगा। कमज़ोरी न दिखाओ कि भरोसा न करने वाले 
तुम्हें किसी भी तौर से (बे'वज़न) हल्का पाएँ। 

31. पाठ (सुरह लुकमान)
(मक्का में उतरी कुल आयत 34 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की किताब से संबंध जोड़ो। यह मार्गदर्शन भी है 
और कृपा भी। नमाज़ों की व्यवस्था करो और ज़कात दो। परलोक पर विश्वास रखो। अच्छाइयों के साथ अच्छा जीवन यापन करो। ईश्वर का मार्गदर्शन और सफलता तुम्हारे साथ होगी। 

कुछ लोग भटकावे में डाल देने वाली बातें करते हैं। वाे ईश्वर के मार्ग से भटकाना चाहते हैं, वाे ईश्वर की वाक्यों (आयतों) का उपहास उड़ाते हैं। उनके लिए कष्टदायक (रुसवाई) का प्रकोप है।

तुम विश्वास लाओ, अच्छे काम करो, स्वर्ग की सौगातें तुम्हारी प्रतिक्षा कर रही हैं। ईश्वर के कृतज्ञ बनो। यही सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता है। उसके साथ समकक्षता (शिर्क) न करो, यह सबसे बड़ा अपराध है। माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। ईश्वर का धन्यवाद करो और माँ-बाप के उपकार के ऋणी रहो। यदि वे दबाव डालें कि ईश्वर के साथ किसी को सम्मिलित (शरीक) ठहराओ 
तो उनके दबाव में मत आओ। फिर भी उनके साथ अच्छा बर्ताव करते रहो। ईश्वर वालों का मार्ग अपनाओ। 
ईश्वर हर चीज़ से का जानकर है और सब कुछ, उसी के वश (क़बज़ा ए क़ुदरत) में है। नमाज़ पढ़ो। भलाई का आदेश दो और बुराई से रोको। जो कठिनाई तुम्हें पहुँचे उस पर धैर्य करो।

सदासयता (अज़ीमत) (भलमानसी) के काम करने का शौक़ रखो, लोगों से अलगाव न करो, धरती पर अकड़ कर मत चलो, अकड़ना और घमंड ईश्वर को पसंद नहीं है। 

अपनी चाल अच्छी रखो और अनावश्यक आवाज़ ऊंची न करो। ईश्वर ने तुम्हें मानव बनाया है इसका ध्यान रखो। 
जो ईश्वर का आज्ञाकारी होऔर उसकी ओर एकाग्रचित्त हो और अच्छे कामों से जीवन यापन करे समझो उसने मज़बूत सहारा पकड़ लिया। उन लोगों के जैसे न बनो 
जो कठिनाई में होते हैं तो ईश्वर को पुकारते हैं और उसकी आज्ञाकारिता के सौ-सौ वादे करते हैं और कठिनाई टल जाती है तो सब कुछ भूल जाते हैं। 

तुम हर परिस्थिति में ईश्वर की नाराज़गी से बचो और उस दिन से डरते रहो जिस दिन कोई किसी के काम नहीं आयेगा।

32. पाठ सुरह अस सजदा
(मक्का में उतरी कुल आयत 30 कुल रुकुअ 03)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

प्रलय ज़रूर आएगी और ईश्वर का वचन पूरा होकर रहेगा। अतः सांसारिक जीवन से धोखा न खाओ और ना बहकाने वालों के धोखे में आओ। 

ईश्वर की वाक्यों (आयतों) पर सच्चे मन से जो लोग विश्वास रखते हैं, वाे, जब ईश्वर की वाक्य (आयतें) सुनते हैं तो सजदे में गिर पड़ते हैं। अपने मालिक की बड़ाई और महिमगन करते हैं और घमंड नहीं करते। वाे, उपासना के प्रेमी होते हैं, उनकी कमर बिछोनों पर नहीं टिकती। वे हर परिस्थिति में ईश्वर को पुकारते हैं और ईश्वर ने जो संपत्ति दी है उस में से दान करते हैं। 

उनके लिए ईश्वर ने आँखों की ऐसी ठंडक छिपा रखी है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। बुरे लोग और अच्छे लोग बराबर नहीं हो सकते। तुम विश्वास लाओ और अच्छे काम करो, ईश्वर की स्वर्ग तुम्हारी प्रतिक्षा में है। ईश्वर की नाराज़गी से बचो,अवज्ञाकारियो और दोगलों (मुनाफ़िक़ों) के चक्कर में मत पड़ो। ईश्वर के मार्गदर्शन अनुसार कर्म करो, ईश्वर पर भरोसा रखो, उससे अधिक भरोसेमंद और कौन हो सकता है ? 

ईश्वर ने संबंध बनाए हैं। उन संबंधों के समकक्ष तुम अपनी ओर से रिश्ते न बनाओ। पहले तुमसे जो भूलें हुई हैं वो क्षमा की जाती हैं। अब जान-बूझ कर दोबारा वही ग़लतियाँ मत करो। संदेश वाहक के अधिकार (हक़) पहचानो। वह तुम्हें हर-एक से अधिक प्रिय होने चाहिए। 
संदेश वाहकों की बीवियों का सम्मान करो और उन्हें अपनी माँ समझो। 
33. पाठ सुरह अल अहजाब
(मदीना में उतरी कुल आयत 73 कुल रुकुअ 09)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

कठिन परिस्थियों में जब पंथ (दीन) के शत्रु पंथ को मिटाने पर आमादा हों, ईश्वर के वचनों पर शक करना और उनसे भागने (फ़रार) के मार्ग ढूंढना दोगलों (मुनाफ़िक़ों) का ढंग रहा है। विश्वासियों (अहल ए ईमान) का ढंग यह है कि जब शत्रु के समूहों को देखते हैं तो कहते हैं कि ईश्वर और उसके दूत (रसूल( ने हमसे बिलकुल सच्चा वादा किया था। ऐसी कठिन परिस्थितियों में उनका विश्वास और अनुसरण का साहस और बढ़ जाता है। विश्वास वाले ईश्वर से सच्चा वादा करते हैं और तनिक भी दुर्बलता नहीं दिखाते।

सुन लो सच्चे लोगों को उनकी सच्चाई का भरपूर बदला मिलेगा।

अध्याय (पारा - 22)

विश्वास वालियो...! सांसारिक जीवन और उसकी तड़क भड़क से धोखा न खाओ। ईश्वर और उसके दूत का प्रेम और परलोक की इच्छा को अपने मन में बसाओ। अच्छे व्यक्तित्व वालियों के लिए ईश्वर के पास उत्तम बदला है। जो स्त्री अश्लीलता के काम करेगी ईश्वर उसे कठोर दण्ड देगा, और जो ईश्वर और उसके दूत की आज्ञाकारी होगी और अच्छे व्यक्तित्व वाली होगी उसके लिए दोगुना बदला है। 

विश्वास वालियो.! ईश्वर की रुष्टता से बचो। किसी अपरिचित पुरुष से बात करो तो ऐसे भाव भंगिमा में बात मत करो कि मन में कुछ संसय उत्पन्न न हो जाए। जब कहना हो, भली बात कहो। अपने घरों में रहो, गंवारपन से सुंदरता के दिखावे हेतु बाहर न निकलो। नमाज़ पड़ो और ज़कात दो। ईश्वर और उसके दूत की बात मानो। बुराइयों की गंदगी से दूर रहो और पवित्र स्वभाव बनाने की चिंता करो। ऐसी प्रिस्थितियां बनाओ कि तुम्हारे घरों में ईश्वर के वाक्यों (आयतों) और समर्थता की बातों की चर्चा हो।
 
पुरुष और स्त्रियां सभी अपने मालिक के आज्ञाकारी बनें, विश्वास पर डटे रहें, ईश्वर की बात मानें (इताअत करें), सत्य को अपना व्यवहार बनाएँ, कठिनाई और परीक्षा में अपने पंथ पर डटे रहें, ईश्वर के सामने मन से झुके रहें, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए दान करें, रोज़े रखें, अपने गुप्तांगों को छुपाएं और अधिकाधिक ईश्वर का गुणगान करें। 

ईश्वर और उसके दूत का निर्णय सामने आ जाए तो फिर किसी विश्वासी (मोमिन) पुरुष या किसी विश्वासी (मोमिन) स्त्री के लिए संभावना नहीं कि वह मनमानी करे। याद रखो ईश्वर और उसके दूत की अवज्ञा करना खुली पथभ्रष्टता है। ईश्वर को अत्यधिक याद करो, सुबह-शाम उसका गुणगान करो, उसका यह उपकार याद रखो कि उसने तुम पर कृपा की बारिश की और अँधेरों से निकाल कर उजाले में पहुँचा दिया।

तुम्हारे पास ईश्वर ने एक दूत भेजा, तुम्हें सत्य से अवगत कराने वाला, उपासना के अच्छे परिणाम की बधाई देने वाला और बुरे कर्मों के बुरे परिणाम से डराने वाला, ईश्वर की ओर बुलाने वाला और प्रकाशित दीपक बनकर प्रकाश दिखाने वाला। उस संदेश वाहक के साथी बनो, बधाईयां तुम्हारी प्रतिक्षा कर रही हैं। 

ईश्वर के अवज्ञाकारियों और नकारने (मुनाफिक) की बातें न सुनो। वाे दुख पहुंचाएं तो उन्हें अनदेखा करो और ईश्वर पर भरोसा रखो, यही सच्चे विश्वास वालों का मार्ग रहा है। अपनी पत्नियों के साथ इस तरह रहो कि उनकी आँखें ठंडी रहें, अकारण कोई दुखी न हो, उन सब को प्रसन्नता मिले हों। किसी को भी वंचित या भागीदारी नहीं होने का अनुभव न हो।

दूसरों के घर जाने के नियमों का ध्यान रखो। घरों में प्रवेश से पूर्व अनुमति मांगो, अनुमति मिलने पर ही प्रवेश करो। खाने के लिए बुलाया जाए, तो खाने के समय पर जाओ और खाना खाते ही वापस चल पड़ो, इतनी देर तक बैठ कर बातें न करो कि मेज़बान उकता जाए। घर के भीतर (ज़नानख़ाने) से कुछ माँगना हो तो पर्दे की ओट से माँगो। इसमें तुम्हारे मन की निर्मलता है और घर वालियों हेतु भी मन की निर्मलता है। कोई ऐसा व्यवहार न करो जिससे घर वालों या घर की स्त्रियों को दुख हो। इन सब बातों में अति सावधान रहो।

ईश्वर और यमदूत (फरिश्ते) संदेश वाहक पर कृपा भेजते हैं, तुम भी उन को अभिवादन (सलाम) और कृपा भेजो। 
जो लोग ईश्वर और उसके दूत को यातना पहुँचाते हैं और जो लोग विश्वासी स्त्री पुरषों को अनर्गल सताते हैं, उन सब पर ईश्वर की फटकार (लानत) बरसती है। 

विश्वास वालियो...! अपने घर से बाहर निकलो, तो अपने ऊपर अपनी चादर के घूँघट लटका लिया करो। इस तरह मनचलों की, मनचलेपन से सुरक्षित रहोगी। 

विश्वास वालो...! ईश्वर की रुष्टता से बचो। नपी-तुली अच्छी बात कहो और आजीवन ईश्वर और उसके दूत की बात मानो।
 
 34.पाठ (सुरह ए सबा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 54 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

दाऊद (एक दूत का नाम) और सुलेमान (एक दूत का नाम) को ईश्वर ने अत्यधिक चमत्कार प्रदान किए थे उन्हें मार्गदर्शन था कि अच्छे काम करो और ईश्वर का धन्यवाद करो। वे आजीवन ईश्वर से लौ लगाए रहे और उसके कृतज्ञ रहे। सबा (एक स्थान का नाम) वालों को भी ईश्वर ने अत्यधिक दिया था और कहा था कि उसका दिया हुआ ख़ूब खाओ-पियो और उसका धन्यवाद करते रहो। परंतु उन्होंने अत्याचार और कृतघ्नता का मार्ग अपनाया। ईश्वर ने उनसे सारी देन छीन लीं और उन्हें एक गुज़री हुई कहानी बनाकर रख दिया। तुम इन उदाहरणों से सीख लो और संयम करने वाले और धन्यवाद करने वाले बनो। 

तुम्हारे पास मार्गदर्शन की किताब आ गई है। उसका समर्थन करो, उसको छोड़कर अपने पूर्वजों के मार्ग (मूर्तिपूजा) पर मत चलो। आज तुम्हारे नायक दिन-रात एक करके तुम्हें बहकाने में लगे हैं और तुम आँखें बंद करके उनके पीछे भाग रहे हो। कल प्रलय के दिन ये मुकर जाएंगे और तुमसे कहेंगे कि हमने तुम्हें सीधे मार्ग से नहीं रोका, तुमने तो स्वयं अपराधियों वाला मार्ग अपनाया।

सांसारिक विलासिता एवं आराम तुम्हें परलोक न भुला दे। याद रखो कोई अपने धन और संतान से निकट नहीं होता है। ईश्वर के निकट वह होता है जो विश्वास लाये और अच्छे काम करे। 

 35. पाठ (सुरह ए फ़ातिर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 45 कुल रुकुअ 05)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


लोगों ! ईश्वर की बड़ाई करो, उसके उपकारों को याद करो, उसके दूत को झुठलाओ नहीं, उसका वचन पूरा होकर रहेगा। कहीं ऐसा न हो कि सांसारिक जीवन और संसार के धोखेबाज़ तुम्हें धोखे में डाल दें। देखो राक्षस (शैतान) तुम्हारा शत्रु है तुम उसे शत्रु ही समझो। 

जो नकारने (कुफ़्र) के मार्ग पर चलेगा वह कठोर दण्ड का भागी होगा। और जो विश्वास करेगा और अच्छे काम करेगा उसके लिए बड़े पुरस्कार हैं। दुर्भाग्यवान है वो जो आजीवन बुरे कामों को अच्छा समझकर करता रहा।

यदि तुम्हें सम्मान चाहिए तो याद रखो सम्मान ईश्वर के पास से मिलता है। ईश्वर से सम्मान चाहते हो तो उसके पास पवित्र बातें और अच्छे कर्म भेजो। 

ईश्वर को न देखते हुए उससे डरो, नमाजों पढ़ो, पवित्र विशेषता वाले बनो, किसी के उकसाने पर पाप का बोझ न उठाओ। याद रखो प्रलय के दिन कोई किसी का बोझ नहीं उठाएगा।
 
अशिक्षा के अंधेरे में न रहो, ज्ञान वाले बनो, ज्ञान से मन में ईश्वर का डर पैदा होता है। ईश्वर की किताब पढ़ो ,नमाज़ पढ़ो, खुले और छुपे ईश्वर का दिया ईश्वर के मार्ग में दान करो। यह ऐसा व्यापार है जिसमें कभी हानि नहीं है।

ईश्वर की किताब मिलने के बाद कुछ लोग इसे पूर्णतया अनदेखा कर देते हैं और इस तरह स्वयं, अपने ऊपर अत्याचार करते हैं। कुछ लोग भलाई का मार्ग अपनाते हैं और कुछ लोग भलाई की दौड़ में आगे रहते हैं। सबका परिणाम एकसा नहीं होगा। अब तुम अपने बारे में निर्णय कर लो। 

36. पाठ (सुरह या.सीन.)
(मक्का में उतरी कुल आयत 83 कुल रुकुअ 05)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


ईश्वर ने तुम्हारे पास क़ुरआन भेजा है। यह मार्गदर्शन का कोष है। जो लोग सीख पर ध्यान देते हैं और ईश्वर को न देखते हुए उससे डरते हैं वे इससे लाभ उठाते हैं। उनके लिए उत्तम परिणाम है।

ईश्वर के दूतों का मार्ग यह है कि झुठलाने वाले, झुठलाते रहें, धमकियाँ देने वाले, धमकियाँ देते रहें और आरोप लगाने वाले, आरोप लगाते रहें, वे अपने स्थान पर डटे रहते हैं और पूर्ण कर्तव्यप्रयणता और लगन के साथ ईश्वर का संदेश पहुंचाते रहते हैं। वे किसी से अपने परिश्रम और कार्य का बदला नहीं मांगते। उनका संदेश और उनका व्यवहार दोनों साक्ष्य देते हैं कि वे सीधे और सही मार्ग पर हैं।

अध्याय (पारा - 23)

बस्ती वाले विश्वासी (मोमिन) पुरुष से सीख प्राप्त करो। जिस व्यक्ति के मन में विश्वास का दीपक प्रकाशित हो जाती है वह आराम से नहीं बैठता, किसी दूरी की चिंता नहीं करता, वह अपने समाज को समझाने के लिए दौड़ पड़ता है। बुलावे के मार्ग में उसे अपने जीवन की चिंता नहीं रहती। लोग उसकी जान लेने पर उतारू होते हैं और वो मरते दम तक उन लोगों के मार्गदर्शन हेतु आतुर रहता है। 

ईश्वर ने तुम्हारे लिए हर ओर सोगातो के बाजोट (दस्तरख़्वान) बिछा दिये हैं, मन लगा कर खाओ - पियो और ईश्वर का धन्यवाद करो। ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिंता करो और उसके कारवां से डरते रहो, ईश्वर की दया तुम पर छाया करेगी। ईश्वर ने तुम्हें जो कुछ दिया है उसमें से उसके मार्ग में भी दान करो। राक्षस (शैतान) का समर्थन न करो बस ईश्वर की उपासना करो। यही सीधा और सही मार्ग है।  

 37. पाठ (सुरह -साफ़्फ़ात)
(मक्का में उतरी कुल आयत  182 कुल रुकुअ 07)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के विशेष बंदों में सम्मिलित होने का हौसला हो तो अपनी जीवन को अच्छे कामों से सजाओ। सच्चे विश्वासी (मोमिन) बनकर रहो, मन को हर बीमारी से बचा कर रखो, ईश्वर तुम्हें बहुत देगा। दूतों के इतिहास पढ़ो, ईश्वर ने उन्हें भिन्न - भिन्न प्रकार से प्रदान किया और कैसे-कैसे उनकी सहायता की। उनकी सहायता को अपनाओगे तो ईश्वर तुम्हें भी प्रदान करेगा। 

इब्राहीम और इस्माईल (पिता - पुत्र, दोनो संदेश वाहक) से आज्ञाकारिता के गुर सीखो। वृद्ध पिता को ईश्वर की ओर से संदेश मिला कि युवा इकलौते पुत्र की ईश्वर के नाम पर बलि (कुर्बान) कर दे, ईश्वर के आदेश के आगे दोनों ने सर झुका दिया। इब्राहीम ने बात मानी और इस्माईल ने संयम व साहस का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया। ईश्वर ने इस्माईल को बलि होने से बचा लिया और पिता - पुत्र को कैसा सम्मान दिया कि बलि की सुन्नत (संदेश वाहक के कार्य को अनुगामी द्वारा दोहराना) को प्रलय तक के लिए अनवरत कर दिया।

यमदूत (फ़रिश्ते) ईश्वर के अति आज्ञाकारी हैं। अपने दायित्वों को भली प्रकार पूर्ण करते हैं, ईश्वर के समक्ष पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं और रात-दिन उसका गुणगान करते हैं। यमदूतों (फ़रिश्तों) को ईश्वर का साझी (शिर्क) न बनाओ बल्कि इनसे (फ़रिश्तों) उपासना के गुर सीखो।

38. पाठ (सुरह साद)
(मक्का में उतरी कुल आयत 88 कुल रुकुअ 05)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

क़ुरआन सीख और पुनहस्मरण की किताब है। परंतु जो लोग घमंड और शत्रुता का शिकार हैं, वे इसका मना करते हैं और क़ुरआन के बारे में नाना प्रकार की बातें बनाते हैं। उनकी बातों पर संयम करो और ईश्वर से अपना संबंध सुदृढ़ करो।

ईश्वर के बंदे दाऊद (एक संदेश वाहक) को देखो, वे ईश्वर का कितना स्मरण करते थे। सुबह-शाम ईश्वर का गुणगान करते। ईश्वर ने पहाड़ों और पक्षियों को भी उनके साथ कर दिया था। वे सब भी, उनके साथ ईश्वर की महानता के गुण गाते थे और उनके साथ गुणगान किया करते। दाऊद को ज्यों ही अनुभव हुआ कि ईश्वर ने उन्हें परीक्षा में डाला है तुरंत सजदे में गिर गए, क्षमा के प्रत्यासी हुए और ईश्वर से अपना संबंध और दृढ़ कर लिया। 

ईश्वर यदि भूमि पर सत्ता प्रदान करे तो लोगों के मध्य न्याय का निर्णय करो, इच्छाओं के पीछे मत चलो, ईश्वर के मार्ग पर डटे रहो, इच्छाओं के पीछे इस मार्ग को खो न दो। 

परलोक के परिणाम को कभी ना भुलाओ। नभ और भूमि इन दोनों के मध्य जो कुछ है ईश्वर ने बिना उद्देश्य के नहीं बनाया है। यह संभव नहीं कि जो लोग विश्वास लाएँ और अच्छे काम करें वे उन लोगों के जैसे कर दिये जाएँ जो धरती पर झगड़ा फैलाते हैं। ऐसा भी नहीं हो सकता कि जो लोग ईश्वर की रुष्टता से बचने की हर समय चिंता करते हैं वे उनके जेसे कर दिये जाएँ जो बुराइयों और अवज्ञा में डूबे हुए हैं। अच्छा परिणाम चाहते हो तो अच्छा मार्ग अपनाओ।

क़ुरआन का आदर करो। यह, जीवन को बढ़ावे (बरकत) से भर देने वाली किताब है, इसकी वाक्यों (आयतों) पर ध्यान करो और इससे सीख और स्मरण प्राप्त करो। यही बुद्धि का लक्षण है। 

सुलैमान (एक दूत) भी उपासना और शालीनता का उत्तम उदाहरण थे। वह भी ईश्वर के प्रेम से भरे थे। उन्हें अच्छे और असली घोड़ों से प्रेम था, क्योंकि उन घोड़ों का सत्य पंथ (इस्लाम) के प्रचार में बड़ी भूमिका होती थी। ईश्वर ने उन्हें परीक्षा में डाला तो वो तुरंत ईश्वर के समक्ष सजदे में गिर पड़े। वह अत्यंत शालीनता के साथ उसकी दया और मोक्ष (मगफिरत) के प्रत्यासी हो गए। 

अयुब (एक दूत) भी उपासना और शालीनता का उत्तम उदाहरण थे। अत्यधिक कष्ट और अति अस्वस्थता में पड़े रहे परंतु संयम का चीर (दामन) हाथ से नहीं छोड़ा। बस ईश्वर के समक्ष रोते और गिड़गिड़ाते रहे। 

 39. पाठ (सुरह अज़-ज़ुमर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 75 कुल रुकुअ 08)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने अति सुव्यवस्था के संग यह किताब उतारी है। तुम ईश्वर की उपासना करो और केवल उसी की बात मानो। ईश्वर की अवज्ञा करके किसी की बात नहीं माननी चाहिए। किसी भी उद्देश्य से किसी दूसरे को माध्यम न बनाओ। किसी दूसरे की उपासना तुम्हें ईश्वर से निकट नहीं कर सकती। 

यदि तुम अवज्ञा (कुफ़्र) का रास्ता अपनाते हो तो ईश्वर तुम पर निर्भर नहीं है, ईश्वर अपने बंदों हेतु अवज्ञा (कुफ़्र) को नापसंद करता है, और यदि तुम धन्यवादी बनते हो तो प्रसन्न हो जाओ ईश्वर को तुम्हारा धन्यवादी होना पसंद है। 

ईश्वर को वह व्यक्ति पसंद है,जो उसकी आज्ञाकारिता के भाव से भरा रहता है, उसके समक्ष रातों में पहरों खड़ा रहता है, सजदे में पड़ा रहता है, परलोक की सफलता हेतु चिंतित रहता है, और अपने मालिक की दया का प्रत्यासी होता है। 

ईश्वर की किताब से ज्ञान और सीख प्राप्त करो। सोचो...! क्या ज्ञान से दूर रहने वाले लोग ज्ञानियों के बराबर हो सकते हैं...? ईश्वर की किताब से सीखो। जो लोग सीखते हैं वही बुद्धिमान हैं।

अपने मालिक की रुष्टता से बचो। भलाई करो, भलाई का बदला इस संसार में भी अच्छा मिलेगा। सत्य पंथ के मार्ग पर संयम करो ईश्वर की धरती फैली हुई है। ईश्वर के यहाँ संयम करने वालों के लिए बड़ा पुरस्कार है। 

ईश्वर की उपासना करो और केवल उसी की बात मानो, उसके आज्ञाकारी रहो, आने वाला दिन बहुत डरावना होगा। उस दिन के प्रकोप से डरो। उस प्रकोप का डर तुम्हें अपने मालिक की अवज्ञा से बहुत दूर रखे। कोई किसी की भी उपासना कर ले पर तुम सिर्फ़, ईश्वर की उपासना करो और केवल ईश्वर की बात मानो। ईश्वर की रुष्टता से बचते हुए पूरा जीवन गुज़ारो। ताग़ुत (एक देवता) की उपासना को अपने लिए नाशक समझो और केवल ईश्वर से ध्यान लगाओ। बात गंभीरता से सुनो और अच्छी बात का समर्थन करो। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम सही मार्ग पर हो और तुम ही बुद्धिमान हो। 

अल्लाह ने जिसकी छाती सत्य पंथ (इस्लाम) के लिए खोल दी उसे अपने मालिक की प्रसन्नता प्राप्त हो गई। ईश्वर के स्मरण से अपने मन को भरे रखो। जो मन ईश्वर के स्मरण से ख़ाली होते हैं वह कठोर हो जाते हैं। फिर उन पर मार्गदर्शन के किवाड़ बंद हो जाते हैं और असफलता और दुर्भाग्य उनका भाग्य हो जाता है।

ईश्वर ने उत्तम वार्तालाप (कलाम) अवतरित किया है जिससे उसे उत्तरोत्तर पढ़ो, यह ईश्वर की ध्वनि है। इसे सुनकर उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने मालिक से डरते हैं, फिर उनके तन और उनके मन, नर्म होकर ईश्वर के स्मरण की ओर झुक जाते हैं। 

अत्याचार से अलगाव करो। इसी जीवन में ईश्वर के प्रकोप से बचने का प्रबंध कर लो, अन्यथा प्रलय के दिन एक बुरे प्रकोप का सामना होगा जिससे तुम्हारा मुख झुलस कर रह जाएगा। 

ईश्वर ने क़ुरआन में भांति - भांति से समझाया है। इस क़ुरआन से सीख प्राप्त करो, इस में कोई कमी नहीं है। इसके माध्यम से तुम अपने भीतर की कमी को दूर करो और ईश्वर की रुष्टता से बचने की चिता करो। इसी में तुम्हारी भलाई है।

अध्याय (पारा - 24)

यदि तुम, आजीवन पाप करते रहे और अपनी स्वयं पर अत्याचार करते रहे, तब भी अपने मालिक की कृपा से निराश न हो, ईश्वर तो सारे पाप क्षमा कर देता है। अब से ईश्वर की ओर लौट आओ और उसके आज्ञाकारी बन जाओ।

तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे पास उत्तम किताब भेजी है उसे अपना लो। बस देर न करो अन्यथा जब ईश्वर का प्रकोप आ जाएगा तो तुम्हारा पछताना काम नहीं आएगा। तुम ईश्वर के सम्मान में बड़ी भूल कर चुके उसकी वाक्यों (आयतों) का बहुत उपहास उड़ा चुके, इसके अलावा क्षमा याचना के किवाड़ खुले हुए हैं। घमंड और मना करने का मार्ग छोड़ दो, सही मार्ग अपनाओ। ईश्वर के रुष्टता से बचो और जीवन को अच्छे कामों से सजाओ।

ईश्वर को पहचानो। ईश्वर के शत्रु तुम्हें बहुत उकसायेंगे कि ईश्वर को छोड़कर दूसरों की उपासना करो। तुम उनके चक्कर में न आओ, केवल ईश्वर की उपासना करो और उसके कृतज्ञ बनो। साझी (शिर्क) करोगे तो तुम्हारे सारे काम व्यर्थ हो जाएंगे और तुम घाटे में रहोगे।

उस दिन से डरो जब घमंड और मना करने वालों को नरक की ओर भेजा जाएगा, और जो ईश्वर की रुष्टता से बचते रहे और अच्छे काम करते रहे, उन्हें सम्मान व पुरस्कार के साथ, स्वर्ग की ओर ले जाया जाएगा।

40. पाठ (सुरह अल-मोमिन)
(मक्का में उतरी कुल आयत 85 कुल रुकुअ 09)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

विश्वास लाओ, क्षमायाचना करो, ईश्वर के बताए हुए मार्ग पर चलो, यमदूत (फ़रिश्ते) तुम्हारे लिए मोक्ष (मगफिरत) की प्रार्थना करेंगे। वे प्रार्थना करेंगे कि ऐ जगदीश (रब्बे करीम)! उन्हें नरक के दंड से बचा ले और उन्हें स्वर्ग में स्थान दे। और इस बात के प्रयास करो कि तुम्हारी पत्नियां, तुम्हारे जोड़े और तुम्हारी संतान भी भले बन जाएँ। वे भले होंगे तो यमदूत (फ़रिश्ते) उनके लिए भी प्रार्थना करेंगे कि वे स्वर्ग में तुम्हारे साथ रहें।

फ़िरऔन (मिश्र का राजा) के परिणाम से सीखो। फ़िरऔन स्वयं पथभ्रष्ट हुआ और अपने पूरे समाज को पथभ्रष्ट किया और यह कह कर पथभ्रष्ट किया कि मैं तुम्हें सीधा मार्ग दिखा रहा हूँ। प्रलय के दिन, नरक में फ़िरऔनों को भी डाला जाएगा और फ़िरऔनों के पीछे चलने वालों को भी डाला जाएगा। उस दिन, बड़े बड़े नेता (नायक) अपने पीछे चलने वालों के कुछ काम नहीं आएंगे। जिसे उस दिन के पछतावे से बचना हो वह आज ही होश में आ जाए। वह आज ही से संदेश वाहकों (रसूलों) के मार्ग पर चल निकले और ईश्वर की प्रकाशित वाक्यों (आयतों) के उजाले में जीवन व्यतित करें।

फ़िरऔन की राजसभा में वीर विश्वासी (मर्द-ए-मोमिन) ने सत्य की घोषणा की। उसके साहस व निडरता में, उनके लिए बड़ी सीख है, जो अपने व्यक्तिगत लाभ को सत्य पर प्राथमिकता देते हैं। वो फ़िरऔन के परिवार का था लेकिन उसने ना अपने परिवार का ध्यान किया और ना अपने जीवन की चिंता की। पूरी निडरता के साथ सत्य का समर्थन किया और फ़िरऔन का विरोध किया। उसके प्रत्येक शब्द से अपने समाज के लिए, अथाह प्रेम भलाई और चिंतन टपकता है। सत्य पंथ (दीन) बुलावा देने वालों के लिए उस वीर विश्वासी (मर्द-ए-मोमिन) की वार्ता में उत्तम मार्गदर्शन है। 

पिछले समाजों के परिणाम से सीखो। संसार में उनका जो परिणाम हुआ उससे भी डरो और उस परिणाम से भी डरो जो परलोक में सामने आने वाला है। जब तुम्हारे पास कोई बहाना नहीं है तो ईश्वर की प्रकाशित वाक्यों (आयतों) के संबंध में अत्यधिक बहस न करो। घमंड का का मार्ग ना अपनाओ, अन्यथा तुम्हारे मन पर भटके हुए की मुहर लग जाएगी।

यह सांसारिक जीवन कुछ दिनों का है, परलोक का जीवन है। परलोक की तैयारी करो, बुरे कामों से दूर रहो, ईश्वर पर विश्वास लाओ और अच्छे काम करो। ईश्वर स्वर्ग में प्रवेशित करेगा और अत्यधिक सौगातें प्रदान करेगा। तुम उन चीजों की उपासना क्यों करते हो जिनसे प्रार्थना करने का ना लोक में कोई लाभ है और ना परलोक में। तुम तो उसकी उपासना करो जो सारी सारी सृष्टि का मालिक है।

सत्य पंथ (दीन) पर टिके रहो, भरोसा रखो ईश्वर का वचन पूरा होकर रहेगा। अपने पापों की क्षमा मांगो और सुबह-शाम अपने मालिक की बड़ाई व महिमागन करो। जो लोग तुम से ईश्वर की वाक्यों (आयतों) के बारे में अनर्गल बहस करते हैं, उनके मन में घमंड समाया हुआ है। तुम ईश्वर का संरक्षण मांगते रहो कि वह उनके बहकावे से सुरक्षित रखे। 

ईश्वर को पुकारो, वह तुम्हारी पुकार अवश्य सुनेगा। घमंड में आकर उसकी उपासना से मुँह न मोड़ो, ईश्वर ने तुम्हें बड़ी सोगतें प्रदान की है, उसका धन्यवाद करो। उसकी निशानियों से उसके बड़प्पन का कयास करो, उसी को पुकारो, केवल उसी की उपासना करो, उसी की बड़ाई करो। तुम्हारे पास ईश्वर की निशानियाँ आ गई हैं, तुम उसे छोड़कर किसी और को न पुकारो। बस उसके आज्ञाकारी बन जाओ जो सभी मानवों का मालिक है। 

41.पाठ (सुरह हा० मीम० अस-सजदा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 54 कुल रुकुअ 06)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

तुम्हारा मालिक बस एक ही है, उसी की ओर अपना मुंह रखो और उसी से अपने पापों की क्षमा माँगो। साझी (शिर्क) से अत्यधिक दूर रहो, जो लोग साझी (शिर्क) करते हैं, ज़कात नहीं देते और परलोक का मना करते हैं, उनके लिए कष्ट है। विश्वास पर डटे रहो और अच्छे काम करते रहो, ईश्वर तुम्हें ऐसी सौगातों देगा जो कभी समाप्त नहीं होगी। 

शक्ति के घमंड में आकर ईश्वर को मत नकारो, वह तो अंबर और धरती का बनाने वाला है। आद और समूद (आद व समूद एक समय के प्रसिद्ध नायक) को अपनी शक्ति का घमंड हो गया था। वे भूल गए कि जिसने उन्हें जन्म दिया वह उनसे अधिक शक्तिशाली है। अंततः ईश्वर के प्रकोप ने उन सब को मिटा दिया, केवल वे लोग बचे जो विश्वास रखते थे और ईश्वर की रुष्टता से बचते थे।

कुछ करने से पहले उसका परिणाम अवश्य सोच लो। उस दिन से डरो जब तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी त्वचा सब तुम्हारे कामों का साक्ष्य देंगी। आज तुम्हारे बुरे साथी, तुम्हारे हर काम को अच्छा बनाकर दिखा रहे हैं, उनसे धोखा मत खाओ।

कहो हमारा मालिक ईश्वर है और फिर डटे रहो। तुम्हें स्वर्ग की बधाई देने हेतु अंबर से यमदूत (फ़रिश्ते) उतरेंगे, तुम हर दुख व डर से सुरक्षित रहोगे। संसार में लोग तुम्हारे शत्रु हो जाएँ तो चिंता मत करो। यमदूत (फ़रिश्ते) संसार में भी तुम्हारे साथी हैं, परलोक में भी तुम्हारे साथी रहेंगे। ईश्वर की ओर बुलाते रहो, अच्छे काम करो और मालिक के आज्ञाकारी रहो, यही सबसे अच्छी बात है। 

बुराई का उपचार अच्छाई से करो, इस प्रकार तुम शत्रुओं के मन जीत लोगे। यह बड़ा उच्च पद है, हर कोई यहाँ तक नहीं पहुँच पाता। इस पद तक पहुँचने का सामर्थ्य हो तो धैर्य का साथ लो और ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह तुम्हारा भाग्य खोल दे। यदि राक्षस (शैतान) तुम्हारे मन में कोई उकसाहट उत्पन्न करे तो ईश्वर की शरण माँगो। राक्षस (शैतान) कभी नहीं चाहेगा कि तुम उस ऊँचे पद तक पहुँचो।

सूर्य और चंद्रमा उपास्य नहीं हैं, यह तो ईश्वर के प्रतीक हैं। इनको सजदा न करो अपितु इन्हे देखकर उनके रचनाकार (खालिक) के सामर्थ्य को समझो। ईश्वर को सजदा करो जो तुम्हे भी जन्म देने वाला है और सूर्य चंद्रमा को भी उत्पन्न करने वाला है। उपासना केवल ईश्वर की करो, और यदि तुम पर घमंड सवार है अपने भाग्य पर शोक जताओ। जो लोग ईश्वर के पास हैं वे तो सुबह-शाम उसका गुणगान करते हैं और किसी प्रकार से भी नहीं उकताते। 

यह क़ुरआन विश्वास रखने वालों के लिए मार्गदर्शन और इलाज है। अब जो अच्छे काम करेगा वह अपने लिए करेगा और जो बुरे काम करेगा वह उसका परिणाम स्वयं भुगतेगा। ईश्वर बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।

अध्याय (पारा - 25)

हर स्थिति में ईश्वर के कृतज्ञ बनकर रहो। ईश्वर जिस परिस्थिति में रखे, प्रसन्न एवं संतुष्ट। रहो। कृतघ्न लोगों की स्थिति यह होती है कि सदेव उन्नति चाहते हैं, यदि कभी हाथ की तंगी आ जाए तो मायूस हो जाते हैं। ईश्वर उन्नति प्रदान करता है तो समझते हैं कि यह उनका जन्मजात अधिकार था। फिर इस धोखे में रहते हैं कि मृत्यु के पश्चात उठाए गए तो उस स्थिति में भी वे प्रसन्न ही रहेंगे। ईश्वर उन्नति देता है तो ईश्वर से मुँह मोड़ लेते हैं और कठिनाई आ जाती है, तो उससे प्रार्थनाएं करने लगते हैं। 

 42. पाठ (सुरह अश-शूरा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 53 कुल रुकुअ 05)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तुम्हें वह पंथ से प्रदान किया है जो सारे संदेश वाहकों (नबियों) का पंथ रहा है, इस पंथ (दीन) पर डटे रहो और इसे लेकर, समूहों में ना बंटो। इसी पंथ की ओर लोगों को बुलाओ और इसी पंथ पर स्वयं भी डटे रहो। ईश्वर की किताब पर विश्वास रखो और लोगों के मध्य सही बात का समर्थन करो। व्यर्थ बहस करने वालों से न उलझो और अपने संघर्ष की गति तीव्र कर दो। 

बुद्धिमता यह है परलोक में अच्छी फ़सल काटने के लिए दुनिया में अच्छी खेती करो। परलोक की खेती चाहोगे, तो ईश्वर तुम्हारी सांसारिक खेती में वृद्धि करेगा। और सांसारिक खेती चाहोगे, तो संसार में चाहें कुछ मिल जाए, पर परलोक में कुछ नहीं मिलेगा। 

ईश्वर अपने बंदों की क्षमायाचना स्वीकार करता है और बुराइयों से बचा रहता है और तुम्हारे प्रत्येक कृत्य को जानता है। ईश्वर की पुकार पर उपस्थित हूं (लब्बैक) कहो, विश्वास लाओ और अच्छे काम करो। ईश्वर तुम्हें अत्यधिक देगा।

यहाँ तुम्हें जो कुछ मिला है वह अस्थायी और नष्ट होने वाला) है। जो ईश्वर के यहाँ मिलने वाला है वह उससे उत्तम और सदैव रहने वाला है। यह उन लोगों को मिलेगा जो विश्वास पर डटे रहें, अपने मालिक पर भरोसा रखें, पाप और दुराचरण के कामों से दूर रहें, क्रोध आए तो क्षमा कर दें, हर काम में अपने मालिक की मर्ज़ी को समक्ष रखें, नमाज़ पढ़ें, आपसी विवाद, परस्पर बैठ कर हल करें, ईश्वर के दिये हुए धन में से दान करें और उन पर कोई अत्याचार करे तो वह अपने विश्वास पर डटे रहें।

कोई तुम्हें कठिनाई में डाले तो बस उतनी ही कठिनाई तुम उसे पहुँचा सकते हो जितनी उसने पहुँचाई है, परंतु जो क्षमा कर दे और सुधार के प्रयास करे वह ईश्वर के यहाँ बदले का अधिकारी होगा। जो अत्याचार का प्रतिशोध ले वह आलोचना का भागी नहीं है। आलोचना के भागी तो वो लोग हैं जो लोगों पर अत्याचार करते हैं और धरती पर झगड़ा फैलाते हैं। 

याद रखो ईश्वर अत्याचारियों से घृणा करता है और अत्याचारियों हेतु कठोर दण्ड है। जो धैर्य का धारण करे और क्षमा का मार्ग अपनाए तो यह अत्यंत साहसिक कार्य है। 

43. पाठ (सूरह अज़-ज़ुख़रुफ़)
(मक्का में उतरी कुल आयत 89 कुल रुकुअ 07)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तुम्हारे रहने-सहने हेतु धरती पर उत्तम व्यवस्थाएं की हैं और इन्हीं व्यवस्थाओं में आने वाले जीवन की निशानियाँ भी रख दी हैं। तुम ईश्वर की सौगातों को याद करो और उसकी बड़ाई व गुणगान करो, यह बात कभी न भूलो कि तुम्हें ईश्वर की ओर लौट कर जाना है। 

ईश्वर ने संसार में धन संपत्ति की उपलब्धता इस सूझ से प्रदान किया है कि आजीविका चलती रहे। इस धन संपत्ति की उपलब्धता से किसी धोखे का शिकार न हो जाओ। यह उपलब्धता तुम्हारे मालिक ने स्वयं की है और बस तुच्छ सासारिक जीवन हेतु है। वास्तविक वस्तु तो तुम्हारे मालिक की दया है, जो दुनिया के सारे कोषों से उत्तम है, यदि परलोक में ईश्वर की दया चाहते हो, तो उसकी रुष्टता से बचने का प्रयास करो।

ईश्वर को याद करते रहो। यदि ईश्वर को भूल गए, तो तुम पर राक्षस (शैतान) चढ़ जाएंगे, वे तुम्हें सही मार्ग से भटका देंगे और तुम आजीवन इसी धोखे में रहोगे कि तुम सही मार्ग पर चल रहे हो। राक्षस (शैतान) को मित्र न बनाओ, उसकी मित्रता अत्यंत घातक है, उसकी मित्रता पर पछताओगे। 

विरोध की आंधी कितनी भी भयंकर क्यों ना हो तुम ईश्वर की किताब को दृढ़ता से थामे रहो, भरोसा रखो तुम सीधे मार्ग पर हो। इस किताब से स्वयं भी सीख प्राप्त करो और अन्यों को भी बताते रहो। यह कभी न भूलो कि ईश्वर के यहाँ इसके बारे में तुम सभी से पूछा जायेगा।

कुकर्मों से घृणा करो। जो समाज बुराइयों में पड़ जाते हैं रक्षा (शैतान) के लिए उन्हें बुद्धू बनाना सरल हो जाता है। फ़िरऔन (मिश्र का एक राजा) का समाज दुर्गुणों में डूबा हुआ था और फ़िरऔन ने इन्हें सरलता से बुद्धू बना लिया और वाे सब फ़िरऔन के अनुगामी हो गए। उन्होंने ईश्वर को रूठा दिया तो ईश्वर ने उन सबको नष्ट कर दिया और बाद में आने वालों हेतु सीख का माध्यम बना दिया।

ईश्वर की रुष्टता से बचो। जो लोग भटक गए हैं उन्हें अपना मित्र न बनाओ। ईश्वर की वाक्यों (आयतों) पर विश्वास लाओ, और ईश्वर के आज्ञाकारी बन जाओ। स्वर्ग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। ऐसी स्वर्ग का उत्तराधिकारी बनना है तो अच्छे काम करो, जिनसे तुम्हारा मालिक प्रसन्न हो जाए। 

44. पाठ (सुरह अद-दुख़ान)
(मक्का में उतरी कुल आयत 59 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

क़ुरआन ऐसी किताब है जिसमें जीवन के लिए हर प्रकार का मार्गदर्शन सम्मिलित है। इसे एक पवित्र रात में उतारा गया है। यह तुम्हारे मालिक की विशेष कृपा है। इस किताब पर विश्वास ले आओ। इस किताब से अगर तुमने सीख प्राप्त नहीं की तो पछताओगे।
धरती और आकाश ईश्वर ने व्यर्थ में उत्पन्न नहीं किए हैं। यह अपनी समस्त निशानियों के साथ परलोक की सूचना दे रहे हैं। परलोक के कोप से बचने की तैयारी करो, तुम्हारा आज का वैभव उस दिन कुछ काम नहीं आयेगा। 
ईश्वर ने क़ुरआन को सरल किताब बनाया है, इससे लाभ उठाना सबके लिए सरल है। इससे सीखो और ईश्वर की रुष्टता से बचते हुए जीवन यापन करो। परलोक का जीवन प्रसन्नता का जीवन होगा।

45. पाठ (अल-जासिया)
(मक्का में उतरी कुल आयत 37 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तो समुद्र को भी तुम्हारी सेवा पर लगाया हुआ है। उसकी सौगातों का आनंद लो और उसका धन्यवाद करो। ईश्वर ने आकाश व धरती के समस्त पदार्थों को तुम्हारी सेवा में लगा दिया है, उसकी निशानियों पर ध्यान करो। विश्वास पर डटे रहो और उन लोगों से बचाव करो जो ईश्वर के प्रकोप से नहीं डरते। 
 
इस्राईल के समाज से सीख प्राप्त करो। ईश्वर ने उन्हें किताब दी, समझ दी, संदेश वाहक (नबूवत) दिए, प्रकाशित बातें बताईं और इसके पश्चात सम्पूर्ण मानवों पर श्रेष्ठता प्रदान की। परंतु जानकारी होते हुए भी केवल आपसी ज़िद और हठधर्मीता के कारण वो सत्य के विरोधी हो गए। ईश्वर ने, तुम्हें भी जीवन व्यतित करने का मार्ग  दिया है, इसे अपनाओ और किसी अनजान की अभिलाषाओं के पीछे न चलो। याद रखो, ईश्वर उनका मित्र बनता है जो ईश्वर की रुष्टता से बचते हैं। 

बुरे काम करने वाले उन लोगों की तरह नहीं हो सकते जो विश्वास लाये और अच्छे काम करते रहे। आकाश व धरती और उनके मध्य की किसी भी वस्तु को बिना अनावश्यक मत समझो। इनका एक उद्देश्य यह भी है कि सभी मानवों की परीक्षा हो, हर किसी को उसकी कमाई का बदला दिया जाए। 
 
ऐसे लोगों को देखकर सीख लो जिन्होंने अपने मन के मते अनुसार उपास्य (खुदा) बना रखे हैं। जानकारी रखते हुए भी ये पथभ्रष्टता में पड़े हुए हैं, उनके कान सुनते नहीं, उनके मन सोचते नहीं और उनकी आँखों पर पर्दा पड़ा हुआ है। उन्होंने मार्गदर्शन के सभी किवाड़ अपने ऊपर बंद कर लिए हैं।

विश्वास पर डटे रहो और अच्छे काम करो,  सफलता तुम्हारी  प्रतीक्षा कर रही है। जो लोग बुराइयों से घिरे हैं और जो ईश्वर की (वाक्यों) आयतों का उपहास बनाते हैं, और जो अपने मालिक से भेंट को भूले हुए हैं, और जो सांसारिक धोखे में पड़े हैं, इन सबका ठिकाना, नरक है। ईश्वर की बड़ाई करो और उसकी बड़ाई की चर्चा करो। वह आकाश का भी मालिक है और पाताल का भी मालिक है और सम्पूर्ण मानवों का मालिक है।

अध्याय  (पारा – 26)
46 पाठ (सुरह अल अहकाफ)
(मक्का में उतरी कुल आयत 35 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सच्चे मन से कहो हमारा मालिक ईश्वर(अल्लाह) है, फिर उस पर जमे रहो और आजीवन अच्छे काम करो।

ईश्वर ने यह किताब (क़ुरआन) भेजी है ,ताकि अत्याचार करने वालों को उनके बुरे परिणाम से सावधान कर दे और अच्छे काम करने वालों को अच्छे  परिणाम की बधाई दे।

अपने माँ-बाप के साथ अच्छी प्रकार से रहो। तुम्हारे मालिक ने तुम पर और तुम्हारे माता पिता पर अनंत उपकार किए हैं, उन उपकारों का धन्यवाद करो और ऐसे अच्छे काम करो जो ईश्वर को पसंद आएं। 

अपनी संतान का अच्छी प्रकार से लालन - पालन करो कि वह भी भलाई का मार्ग अपनाए, ईश्वर को क्षण भर के लिए भी मत भूलो और उसके आज्ञाकारी बनो।

ईश्वर से प्रार्थना भी करते रहो कि वह तुम्हें भलाई की शक्ति दे और तुम्हारी भली इच्छाएं पूरी करे।

47. पाठ सुरह मोहम्मद 
(मक्का में उतरी कुल आयत 38 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ए नबी ...!पंथ (दीन) पर अडिग रहो जिस प्रकार साहसी और 
उच्च गुणों वाले दूत (रसूल) अडिग रहे और सभी लोगों तक उनके मालिक का संदेश पहुँचाओ।

जो लोग सत्य को मना करते हैं और ईश्वर के मार्ग से रोकते हैं यदि उनसे तुम्हारी मुठभेड़ हो जाए तो जम कर सामना करो। इसे ईश्वर की ओर से अपने लिए परीक्षा समझो। तुम ईश्वर की सहायता करोगे तो ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा और तुम्हारे पैर जमाएगा। 

याद रखो, ईश्वर विश्वास वालों का सहारा है और सत्य का मना करने वालों का कोई सहारा नहीं। सत्य को मना करने वालों को जानवरो की तरह चरने-चुगने और मस्ती करने दो। 

तुम विश्वास के दिये जलाओ और अच्छे काम किए जाओ। वे बुरे कामों में ही मग्न हैं और तुम प्रकाश में सीधे मार्ग पर चल रहे हो। दोनों का परिणाम एक नहीं हो सकता। 

जो लोग लालसाओं का समर्थन करते हैं, ईश्वर उनके मनों पर मुहर लगा देता है और जो सही मार्ग पर चलते हैं,  ईश्वर उन्हें और अधिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

48. पाठ (सुरह अल फतह)
(मदीना में उतरी कुल आयत 29 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ए नबी ...!ईश्वर का अनुसरण करो और सत्य की घोषणा का ऐलान करते रहो और जब निर्णायक वक़्त आ जाए तो ईश्वर से प्रेम और वफादारी का साक्ष्य दो।

दोगलेपन (मुनाफ़िक़त) से बचो। जिन के मनों में दोगलेपन की बीमारी होती है, वे ईश्वर के मार्ग में 
तन मन और धन के परित्याग के बजाए भागने के मार्ग ढूंढते हैं। धरती पर बिगाड़ फैलाने और संबंधों का अनादर करने में उन्हें कोई शर्म नहीं होती। उनके हृदय पर ताले पड़े हुए हैं, अतः वे क़ुरआन से सीख प्राप्त नहीं करते। राक्षस (शैतान) ने उनको बुरी तरह धोखे में डाल रखा है। उन उन्हें मार्गदर्शन प्राप्त हो गया फिर भी वे उल्टे पाँव फिर गए। 

वे ईश्वर को ग़ुस्सा दिलाने वाले काम करते हैं, ईश्वर को प्रसन्न करने की उनको कोई चिंता नहीं। याद रखो ईश्वर तुम्हारी परीक्षा लेगा जिससे अच्छी तरह यह स्पष्ट हो जाए कि वास्तविक योद्धा (मुजाहिद)और अडिग रहने वाले कौन हैं ?

49 पाठ (सुरह अल हजुरात)
(मदीना में उतरी कुल आयत 18 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर और उसके दूत का अनुसरण करते रहो और अपने अच्छे कामों को नष्ट होने से बचाओ। शत्रुओं के समक्ष कमज़ोरी न दिखाओ, दब कर, सत्य के विरुद्ध समझौता न करो, ईश्वर तुम्हें अवश्य विजय प्रदान करेगा। ईश्वर तुम्हारे साथ है। 

सांसारिक जीवन तो बस खेल-तमाशा है। सांसारिक स्वाद को अपना लक्ष्य न बनाओ, विश्वास पर डटे रहो 
और ईश्वर की नाराज़गी से बचते रहो। 

तुमसे ईश्वर के मार्ग में दान करने को कहा जाए 
तो बढ़-चढ़ कर दान करो और उसके मार्ग में कंजूसी न करो। ईश्वर का बिना शर्त अनुसरण करो और उसके किसी भी आदेश से मुँह न मोड़ो। 

ईश्वर ने तुम्हारे ऊपर अपनी कृपा की है और तुम्हारे पास अपना दूत भेजा, ईश्वर की इस महान देन (फ़ज़ल) का सम्मान करो, ईश्वर और उसके संदेश वाहक पर विश्वास लाओ। हर अवसर पर संदेश वाहक की सहायता करो,
उस पर अपना जीवन न्यौछावर करते रहो और सुबह-शाम उसके गुणगान करो। 

50. पाठ (सुरह काफ़)
(मक्का में उतरी कुल आयत 45 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर और उसके दूत से किए हुए वचन (अहद) को पूरा करो, ईश्वर तुमसे किए हुए वचन (अहद) को पूरा करेगा लाभ हानि का मालिक ईश्वर है, उसकी इच्छा के बिना
कुछ नहीं हो सकता। 

अपने धन और अपनी संतान के मध्य रहते हुए ईश्वर के आह्वान पर में हाज़िर हूँ (लाबैक) कहो।

ईश्वर और उसके दूत का अनुसरण करो उसके प्रत्येक आदेश को पूर्ण करो, चाहें वह कैसी ही ख़तरनाक मुहिम पर जाने का आदेश दें। 

अवज्ञा करने वाले अपने मन मे अनपढ़ों (जाहिली) का घमंड रखते हैं और उसी का दिखावा (मुज़ाहिरा) करते हैं। तुम अपने आप को पवित्रता (तकवा) का पाबंद रखो, ऐसा कोई काम न करो जिससे ईश्वर नाराज़ हो जाए। 

ईश्वर के दूत और उनके साथियों का मार्ग (तर्ज़) अपनाओ। वे अवज्ञाकारियों हेतु कठोर होते और आपस में एक-दूसरे के लिए नर्म होते, ईश्वर की कृपा और उसकी प्रसन्नता के खोजी (तलबगार) होते, रुकू और सजदों में मन की शांति (क़रार) पाते, उनके विश्वास के शक्तिकरण (मजबूती) और ऊंचाई (बुलंदी) देखकर 
ईश्वर के अवज्ञाकरियों के मन जलते।  तुम भी अपने विश्वाए में अडिग रहो और बढ़-चढ़ कर अच्छे कामों में भाग लो।

ईश्वर और उसके दूत की बात के सामने अपनी बात न चलाओ। ईश्वर की नाराज़गी से बचो। ईश्वर के दूत का सम्मान (एहतिराम) करो।  ईश्वर के दूत के समक्ष (मुकाबले) में अपनी राय पर ज़िद न करो। विश्वास को सबसे अधिक प्रिय रखो और उसे अपने मन की सांसारिकता को सौंप दो।
 
अशिक्षा (जहल) से, बुरी बातों से और ईश्वर की अवज्ञा से अति घृणा करो। मानव जीवन का आदर करो। ऐसा कोई क़दम जिसमें किसी प्राण जाने का संदेह हो, पूर्ण जांच और पूरी परख के बिना भरोसा ना करो और बिना भरोसे के लोगों की सूचना पर कान न धरो।

विश्वास का दायित्व (तक़ाज़ा) यह है कि आपस में लड़ाई हो जाए तो समझौता (सुलह) कराने के प्रयास करो। कोई (पक्ष) अत्याचार (ज़्यादती) पर टिका रहे (इसरार करे) तो उसे सीधे मार्ग पर लाओ। जब समझौता (सुलह) कराओ तो न्याय व विधि के साथ कराओ। हर विश्वासी (मोमिन) को अपना भाई समझो और भाइयों में समझौता कराओ। उनके संबंध में ईश्वर की नाराज़गी से बचो और उसकी दया के प्रत्यासी (उम्मीदवार) रहो। 

ऐसी बात न कहो जिससे तुम्हारे भाई को दुख (तकलीफ़) पहुँचे। न मज़ाक़ उड़ाओ, न ताना (तंज़) करो और न बुरे नामों (अल्क़ाब) से पुकारो। अपने भाई के आत्मसम्मान (इज़्ज़त-ए-नफ़्स) का ध्यान रखो।

वहम (बद'गुमानी) से दूर रहो। बेकार खोजबीन (तजस्'सुस) न करो।किसी की चुगली (ग़ीबत) न करो ऐसी हर बुरी बात से बचाव (परहेज़) करो।

याद रखो ईश्वर के निकट अधिक सम्मानित वह है जो ईश्वर की नाराज़गी से बचता हो। विश्वास का केवल बोल कर (ज़ुबानी दावा) न करो, ईश्वर और उसके दूत का
अनुसरण करके दिखाओ।

सच्चे विश्वासी (अहले ईमान) विश्वास पर डटे रहते हैं। हर भ्रम (शक ओ शुबहे) से बचे रहते हैं और अवसर पाते ही
तन मन धन (जान ओ माल) से ईश्वर के मार्ग में संघर्ष (जद्दोजहद) करते हैं। विश्वास जताने की चीज़ नहीं। विश्वास की सौगात (नेमत) पर ईश्वर का धन्यवाद करो। 

परलोक से अनभिज्ञ (ग़ाफ़िल) न रहो। उस दिन उन सब लोगों को नरक में झोंका जाएगा जो सांसारिक जीवन में 
कृतघ्न, शत्रुता में अंधे, भलाई को रोकने वाले, नियम (पाबन्दियों) को तोड़ने वाले और ईश्वर के वचनों में शक करने वाले थे।

वे लोग (बंदे) जो ईश्वर की नाराज़गी से बचते हुए जीवन यापन करते रहे, ईश्वर की ओर बार-बार पलटते रहे, नियमों (पाबंदियों) का ध्यान करते रहे, ईश्वर को न देखते हुए उससे डरते रहे, और प्रलय के दिन ईश्वर से लौ लगाने वाला मन लेकर उपस्थित हुए, उनके सम्मान हेतु स्वर्ग
स्वयं उनका स्वागत करेगी।

परलोक को झुठलाने वालों की बातों पर धैर्य करो, और दिन-रात अपने मालिक की बड़ाई व महिमागान (तस्बीह) करो और जो ईश्वर की धमकियों से डरे उन्हें इस क़ुरआन के जरिये जगाते रहो।

देखो हवाएँ साक्ष्य (गवाही) दे रही हैं कि प्रलय आएगी और हिसाब व किताब होगा, उस की ओर से छलावे (गाफिल) न रहो, अन्यथा आग में तपाऐ जाओगे। 

51. पाठ (सुरह अज़ ज़ारियात)
(मक्का में उतरी कुल आयत 60 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

स्वर्ग में तो वे लोग रहेंगे, जो ईश्वर की नाराज़गी से बचते हों, अच्छे से अच्छे काम करते हों, रात-रात भर जाग कर उपासना (इबादतें) करते हों, रात (सहर) के समय
ईश्वर से मोक्ष (मग़'फ़िरत) मांगते करते हों, अपने धन को असहायों (मोहताजों) और निर्धनों (मिसकीनों) पर दान करते हों और ईश्वर की निशानियों पर ध्यान करके भरोसे के धन से धनी (मालामाल) रहते हों।

अध्याय (पारा - 27)

गत समाजों के परिणाम से और धरती व आकाश की निशानियों से सीख प्राप्त करो। संदेश वाहक नबी जब सावधान करें तो सतर्क हो कर ईश्वर की ओर दौड़ो। ईश्वर के साथ किसी और को उपासना में सम्मिलित (शरीक) न करो। लोगों को स्मरण कराते रहो, स्मरण से विश्वास वाले लाभ उठाते हैं। तुम्हारे अस्तित्व का उद्देश्य ईश्वर की सम्पूर्ण उपासना है, अतः ईश्वर की उपासना में आलस न करो।

52. पाठ (सुरह अत-तूर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 49 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

अल्लाह की रुष्टता से बचो। विश्वास पर टिके रहो और अच्छे काम करो। अपनी संतान का पालन इस प्रकार से करो कि वे विश्वास पर टिके रहें और अच्छे काम करें।

ईश्वर स्वर्ग में तुम सबको इकट्ठा कर देगा और तुम्हारे कर्म का पूरा-पूरा बदला देगा। अपने बाल-बच्चों में रहते हुए परलोक को ना भूल जाओ, बुरे परिणाम से डरो।

जो विरोधी और अत्याचारी हैं वे तुम्हें झुठलाएँगे और तुम्हारे विरुद्ध चालें चलेंगे, तुम अपने काम में लगे रहो, उनके कृत्यों पर धैर्य धरो और अपने मालिक के निर्णय का सम्मान करो, तुम बराबर ईश्वर की दृष्टि में हो। ईश्वर से लौ लगाओ और रातों में उठकर ईश्वर की बड़ाई व महिमागान करो।

 53. पाठ (सुरह अन-नज्म)
(मक्का में उतरी कुल आयत 62 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

गुमान के पीछे न भागो, सत्य के प्रकाश में जीवन यापन करो। प्रलय तुम्हारे सर पर है, आलस्य व नशे से बाहर आ जाओ, ईश्वर के समक्ष सजदे करो और केवल उसकी उपासना करो।

ईश्वर का क़ानून दो-टूक है। जो लोग बुराई करेंगे उन्हें बुराई का बदला मिलेगा। और जो लोग अच्छे से अच्छे काम करेंगे अल्लाह उन्हें उत्तम कामों का बदला देगा। ईश्वर का यह क़ानून याद रखो और पाप व अश्लीलता के कामों से दूर रहो। कभी किसी बुराई में पाँव पड़ जाए तो ईश्वर से क्षमायाचना करो।

अपने भलेपन और पवित्रता के दावे न करो, अपने कामकाज पर ध्यान रखो। ईश्वर जानता है किस-किस ने उसकी रुष्टता से बचते हुए जीवन यापन करो, याद रखो कोई किसी के पापों का बोझ नहीं उठाएगा। हर व्यक्ति के लिए वही कुछ होगा जो उसने किया होगा। उस दिन सबके कृत्य सामने आ जायेंगे और फिर हर किसी को उसके कृत्यों के अनुसार बदला मिलेगा।

54. पाठ (सुरह अल-क़मर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 65 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने क़ुरआन को बहुत सरल बनाया है, इसे पढ़ो और इससे सीख प्राप्त करो। इसमें भूतकाल की कहानीयां हैं, उनसे सीख प्राप्त करो और देखो इस का डरावा कैसा होता है और उसका प्रकोप कैसे आता है। जिन समाजों ने ईश्वर के वाक्य (आयतों) को झुठलाया और अपराध का मार्ग अपनाया तो ईश्वर ने उन्हें कठोरता से पकड़ा। परलोक का दंड और पकड़ कठोरतम होगी। याद रखो, दंड का नियम सभी अपराधियों हेतु एक ही है, किसी समाज को मना करने (कुफ़्र) और बुराई के मार्ग पर चलने की विशेष छूट नहीं मिली है। सबके सभी कृत्य संधारित (रिकॉर्ड) में सुरक्षित हो रही है। जो लोग ईश्वर की रुष्टता से बचते हुए जीवन यापन करेंगे वे स्वर्ग और स्वर्ग की नहरों में रहेंगे। 

 55. पाठ (सुरह अर-रहमान)
(मदीना में उतरी कुल आयत 78 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर दयावान है, उसकी कृपा से स्वयं को वंचित न करो। उसने क़ुरआन सिखाया है, तुम क़ुरआन सीखो। उसने बोलने की शक्ति दी है, तुम सत्य का साक्ष्य दो। सृष्टि का प्रत्येक जीव उसके समक्ष सजदा कर रहे है, तुम भी उसी को सजदा करो। उसने तुला बनाई है, तुम नाप-तौल में कमी न करो। न्याय के साथ ठीक-ठीक तौलो और वज़न में कमी न करो। ईश्वर के सृष्टि में आश्चर्य ही आश्चर्य हैं, इन आश्चर्यों के होते हुए उसके दूतों (रसूल) को न झुठलाओ। उन आश्चर्यों को देख कर अपना विश्वास ताज़ा करो। 

जिन्होंने अत्याचार का मार्ग अपनाया है, वे मुँह के बल नरक में फेंक दिये जाएंगे, ईश्वर की पकड़ से कोई नहीं भाग सकेगा। जो लोग अपने मालिक के समक्ष उपस्थिति से डरते रहे, उनके लिए उत्तम स्वर्ग होंगी। अच्छे काम करने वालों का अच्छा परिणाम होगा, न्याय की ताखडी की यही मांग (तकाजा) है। अपने मल के गुण गाओ, वह बड़े मान वाला और बड़ी सौगातें देने वाला है।

 56.पाठ (सुरह अल-वाक़िआ)
(मक्का में उतरी कुल आयत 96 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के यहाँ मानवों के तीन समूह होंगे। दाएँ ओर वाले लोग (असहाबुल यमीन), बाएँ ओर वाले लोग (असहाबुश्शिमाल) और सबसे आगे बढ़ जाने वाले लोग (साबिक़ीन)। निर्णय करो कि तुम्हें किस समूह में रहना है। यदि अग्रिम पंक्ति (साबिक़ीन) के समूह में रहना है तो उसके लिए तुम्हें आगे बढ़ना होगा। क्योंकि आगे बढ़ने वाले ही आगे रहने के भागी होंगे और वही लोग ईश्वर के निकट होंगे।

बाईं ओर वाले लोग (असहाबुश्शिमाल) संपन्नता में रह कर पाप पर पाप करते रहे। परलोक को झुठलाते रहे और पथभ्रष्टता में गिरते रहे। ना इश्वा की पहचानों से सीखा ना ईश्वर की सोगातों पर कृतज्ञ हुए। ईश्वर की किताब को झुठलाते हुए यह भी नहीं सोचा कि उन्हें आजीविका (रिज्क) देने वाला केवल ईश्वर है। 

सुन लो, हर समूहों के परिणाम की घोषणा अभी से हो चुकी है। सदमार्गियो हेतु राहत व शांति और वैभव व विलासिता के उद्यान हैं। दाईं ओर के लोगों (असहाबुल यमीन) हेतु सुरक्षा (सलामियाँ) और बधाईयां (मुबारकबादियाँ) हैं। बाईं ओर वाले लोगों (असहाबुश्शिमाल) हेतु खौलता हुआ गरम पानी और फिर दहकती हुई आग है।

57. पाठ (सुरह अल-हदीद)
(मक्का में उतरी कुल आयत 29 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

इस सृष्टि का बनाने वाला (खालिक) मालिक और हाकिम (राजा) ईश्वर है।हर पदार्थ उसकी बड़ाई व महिमागान कर रहे है। तुम भी ईश्वर और उसके दूत (रसूल) पर विश्वास लाओ और जो कुछ उसने दिया है उसमें से उसके मार्ग में दान करो। ईश्वर को प्रसन्नतापूर्वक उधार दोगे तो उसे तुम्हारे लिए बहुत बढ़ाएगा और बड़े पुरस्कार प्रदान करेगा।

जब विश्वासी स्त्री - पुरुष प्रकाश (नूर) के साथ सम्मान व पुरस्कारों के साथ स्वर्ग में प्रवेशित हो रहे होंगे, उस समय मना करने वालों (मुनाफ़िक़ों) को पीछे रोक दिया जायेगा और कहा जाएगा कि तुमने अपने दुख स्वयं आमंत्रित किए हैं। आजीवन असमंजस में रहे, नाना प्रकार के विरोध (इख़्तेलाफ़ात) उत्पन्न करते रहे, झूठी इच्छाओं में जीते रहे और धोखेबाज (फ़रेबी शैतान) के धोखे में कैद (गिरफ़्तार) रहे। अब तुम विश्वास वालों के साथ रहने के योग्य नहीं रहे।

अपने मन की परीक्षा करते रहो, प्रयास करो कि तुम्हारे मन ईश्वर की सीख और किताब के समक्ष झुके रहें। उन लोगों के जैसे न हो जाओ जो ईश्वर की किताब मिलने के बाद भी ईश्वर की अवज्ञा करते रहे और उनके मन कठोर होते चले गए।
 
संसार से क्या मन लगाना...इस संसार की वास्तविकता यदि उदाहरण से समझना हो तो लहलहाती हुई फ़सलों को देखो पीली होने (पकने) के बाद पृथक - पृथक होते हुए देखो। 

मन में यह इच्छा रखो कि ईश्वर मोक्ष (मग़फ़िरत) प्रदान करे और वह स्वर्ग दे दे, जिसका क्षेत्रफल (लंबाई-चौड़ाई) धरती व आकाश के समान होगी और फ़िर दौड़ लगाओ उसे प्राप्त करने के लिए और पूरी शक्ति से, मन से, विश्वास के दायित्व पूरे करते रहो।

सांसारिक सुख और वैभव को अपने जीवन का उद्देश्य न बनाओ। जो तुम्हारे हाथ से जाती रहे उस पर दुख न करो और जो देन तुम्हें मिल जाए उस पर आपे से बाहर न हो जाओ। ईश्वर अकड़ने और इतराने वालों को पसंद नहीं करता है। ईश्वर के मार्ग में कंजूसी न करो और न कंजूसी का माहौल बनाओ। याद रखो जो ईश्वर के आदेश से विरोध केरेगा वह स्वयं अपने भाग्य को रोएगा।

ईश्वर ने दूत (रसूल) भेजे और उनके साथ किताब भी भेजी। तुला भी उतारी और लोहा भी उतारा ताकि तुम, न्याय पर डटे रहो और ईश्वर को न देखते हुए भी ईश्वर और उसके संदेश वाहकों (रसूलों) की सहायता करो। संदेश वाहकों (रसूलों) के आने के बाद मार्गदर्शन का मार्ग अपनाओ और बुराइयों से दूर रहो। दूत (रसूलों) के मार्ग पर चलो और अपने भीतर मिलाप और प्रेम उत्पन्न करो। ईश्वर की प्रसन्नता के प्रतिक्षक बनो, और उसके दायित्व पूर्ण करो।

ईश्वर का अनुसरण करके उसकी रुष्टता से बचो और उसके संदेश वाहक (रसूल) पर विश्वास लाओ। ईश्वर तुम्हें मोक्ष (मग़फ़िरत) प्रदान करेगा, तुम्हें दोगुना कृपा से प्रदान करेगा और तुम्हें प्रकाश देगा जिससे तुम्हारे मार्ग प्रकाशित हो जायेंगे। ईश्वर बड़ी कृपा वाला है उसकी कृपा के पात्र रहो।

अध्याय (पारा - 28)
58. पाठ (सुरह अल मुजादला)
(मदीना में उतरी कुल आयत 22 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के बनाये हुए संबंधों का सम्मान करो। पत्नी को माँ कह देने से वह माँ नहीं हो जाती, ऐसी बेहकावे की बातें मस्तिष्क से निकालो। ऐसी झूठी बातों का विश्वास (ईमान) से कोई जोड़ नहीं। याद रखो ईश्वर की सीमाओं को तोड़ना इन्कार (कुफ़्र) है और इन सीमाओं का सम्मान करना विश्वास की पहचान है।

ईश्वर तुम्हारी कानों में बात करने की गतिविधियों से पूर्णतया भीज्ञ रहता है। पापों के लिए गुपचुप बात करना अपराध है, और भलाई के लिए गुपचुप बात करना भला है। कानाबाती के संबंध में सावधान रहो, यह राक्षस (शैतान) का विशेष हथियार है। वह इसके माध्यम से विश्वासियों (मोमिनों) के मनों को दुख पहुंचाना चाहता है।राक्षस (शैतानों) के शिकार होने से बचने के लिए ईश्वर का सहारा लो।  

सभा (मजलिस) की व्यवस्थाओं (तक़ाज़ों) को समझो, और इसके नियमों (आदाब) का ध्यान रखो। जब इकठ्ठा (कुशादगी) होने का अवसर हो तो इकठ्ठे हो जाओ, जब उठ जाने का अवसर हो तो उठ जाओ। ईश्वर ने मार्गदर्शन दे कर तुम पर कृपा की है, तुम नमाज़ों का प्रबंध करो, ज़कात दो और ईश्वर और उसके दूत (रसूल) का अनुसरण करो।

विश्वास (ईमान) के दायित्व पूरे करो और उन लोगों से मित्रता न रखो जो ईश्वर और उसके दूत (रसूल) के विरोधी हों, चाहें वो तुम्हारे पिता हों, या पुत्र हों, या भाई हों या परिवार के दूसरे लोग हों। यह तुम्हारे विश्वास की परीक्षा है। विश्वास में सच्चे साबित होगे तो ईश्वर के दल में सम्मिलित हो जाओगे। 

राक्षस (शैतान) के दल में हानि रहने वाली है और ईश्वर के दल में सफलता रहने वाली है। तुम ईश्वर के दल को छोड़कर राक्षस के दल में सम्मिलित न हो जाना। 

59. पाठ (सुरह अल-हश्र)
(मदीना में उतरी कुल आयत 24 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।


सच्चे मन से विश्वास लाओ। सच्चे विश्वास वाले ईश्वर के लिए अपना घर बार और संपति, सब कुछ छोड़ देना स्वीकार कर लेते हैं। वाे हर प्रकार का घाटा उठा कर ईश्वर के मार्ग (दीन) के लिए क्रियाशील रहते हैं। वाे केवल ईश्वर की प्रसन्नता चाहते हैं। 

सच्चे विश्वासी (मोमिन) विश्वास वालों से प्रेम करते हैं, उनकी हर प्रकार सहायता करते हैं और उनके लिए अपने मन खुले रखते हैं, अपनी आवश्यकताओं को पीछे करके उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं, और अपनी लालच (खुदगर्जी) के शिकार से सुरक्षित रहने के प्रयास करते हैं। सच्चे विश्वास वाले अपने मन में विश्वास वालों के लिए प्रेम और सम्मान रखते हैं, उनके लिए मन में तनिक भी जलन (कीना) नहीं आने देते।

ईश्वर की नाराज़गी से बचो और आने वाले दिन के लिए तैयारी करो। ईश्वर को भूलकर बुराई के मार्ग पर चलोगे तो ख़ुद अपने आप को भूल जाओगे। इस क़ुरआन के गौरव को समझो। यह ईश्वर की वाणी (कलाम( है, यदि यह किसी पहाड़ पर उतारा जाता तो पहाड़ ईश्वर के डर से फट जाता।

सभी अच्छे नाम ईश्वर के लिए हैं, उन अच्छे नामों से उसका गुणगान करो। आकाश व धरती की हर वस्तु उसके गुणगान कर रही है तुम भी उसके गुणगान करने वालों में सम्मिलित हो जाओ।

60. पाठ (सूरह अल-मुमतहिना)
(मदीना में उतरी कुल आयत 13 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के शत्रुओं को अपना शत्रु समझो, उन्हें अपना शत्रु न बनाओ। ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करने वाले और ईश्वर की प्रसन्नता चाहने वाले ईश्वर के शत्रुओं से मित्रता नहीं करते।

इब्राहीम (एक नबी) और उनके साथियों को अपने लिए प्रतिक बनाओ। उन्होंने अपने समाज से स्पष्ट कह दिया कि हमें, तुमसे और तुम्हारे देवताओं से कोई लगाव हैं और यह अलगाव उस समय तक समाप्त नहीं हो सकता जब तक कि तुम एक ईश्वर पर विश्वास न करने लग जाओ।

जिन लोगों ने तुमसे शत्रुता वाला बर्ताव नहीं किया है, उनसे तुम अच्छा बर्ताव करो और उनके साथ न्याय करो और जो तुम से कठोर शत्रुता रखते हैं उनकी मित्रता के चक्कर में न पड़ो, वे अत्याचारी हैं और जो उनसे मित्रता करेगा, वह अपने ऊपर अत्याचार करेगा।

विश्वासी स्त्रियां (मोमिन औरतें) स्थानांतरण (हिजरत) कर के तुम्हारे पास आएं तो उन्हें शरण दो, उन्हें ईश्वर के अवज्ञाकारियों की ओर ना लौटाओ। उनके विवाह का अपने यहाँ प्रबंध करो। ईश्वर की नाराज़गी से बचो और उसके हर आदेश को पूर्णतः स्वीकार करो।

विश्वास में प्रवेश करते हुए निश्चय करो कि समकक्षता (कुफ्र) की हर गंदगी से स्वयं को पवित्र कर लोगे और कभी इस गंदगी में न पड़ोगे। विश्वास लाने वाली स्त्रियां इस बात का निश्चय करें कि वे ईश्वर के साथ किसी को सम्मिलित (शरीक) नहीं ठहराएँगी, चोरी नहीं करेंगी, ज़िना नहीं करेंगी, अपनी संतान की हत्या नहीं करेंगी, किसी पर लांछन नहीं लगाएंगी और किसी भी भले काम में तुम्हारी अवज्ञा नहीं करेंगी। तो उन्हें अपने संग में शामिल कर लो और उनके लिए ईश्वर से मोक्ष (मग़फ़िरत) की प्रार्थना करो। ईश्वर बहुत कृपालु है।

61.पाठ (सुरह अस सफ्फ़)
(मदीना में उतरी कुल आयत 14 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जो वचन करो वह पूरा करके दिखाओ। ईश्वर के मार्ग में युद्ध आवश्यक हो तो सीसा पिलाई हुई दीवार बन जाओ। यहूदियों व ईसाइयों की तरह ऐसा व्यवहार न अपनाओ जिससे दूत को कठिनाई हो और पंथ (दीन) को नुक़सान पहुंचे।

ऐसा व्यापार जो दोनों लोक में लाभ दे सके। सच्चे मन से विश्वास लाओ ईश्वर के मार्ग में तन मन और धन से संघर्ष करो। अल्लाह के सहायक बन जाओ, जिस तरह ईसा की पुकार पर हवारियों ने कहा हम ईश्वर के सहायक हैं।

62. पाठ (सुरह अल-जुमुआ)
(मदीना में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर का उपकार मानो, यदि ईश्वर संदेश वाहक ना भेजता तो तुम खुली हुई पथभ्रष्टता में पड़े होते। क़ुरआन का उच्चारण करो, ईश्वर की किताब और निर्णायक का समर्थन करो, अपने व्यक्तित्व को संवारो। जिन्हें तौरात दी गई उन्होंने उसका उपहास किया। *तम्हें क़ुरआन का साथी (हामिल) बनाया गया है, तुम इसके संबंध में यहूदियों का मार्ग न अपनाओ

ईश्वर के पास तुम्हारे लिए जो कुछ है वह संसार के झोड़ (फ़ितनों) और यहां के व्यापार से कहीं उत्तम है, ईश्वर की पुकार सुनकर सांसारिक काम रोक दो। संसार के कामों के लिए ईश्वर की पुकार की अनदेखी न करो। ईश्वर का स्मरण अधिकाधिक करो, यही सफलता का मार्ग है।

63. पाठ (सुरह अल-मुनाफ़िक़ून)
(मदीना में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

दोगले (मुनाफ़िक़) तुम्हारे वास्तविक शत्रु हैं, उनसे सावधान रहो, यह पक्के झूठे हैं, उनकी सोगंधो का भरोसा न करो। ये ईश्वर के मार्ग से रोकते हैं और बुरे काम करते हैं। उनकी बातों से प्रभावित न हो, उनके दिखावी पहनावे से प्रभावित न हो, यह तुम्हारे किसी काम के नहीं।

तुम्हारा धन और संतान तुम्हें ईश्वर का स्मरण ना भुला दें, यदि ऐसा हुआ तो बड़े घाटे में रहोगे। ईश्वर प्रदत्त धन में से ईश्वर मार्ग में दान करो और भले लोगों के मार्ग पर चलो। अभी धन भी है और भला बनने का अवसर भी है। बाद में इच्छा करोगे, ना धन रहेगा और न अवसर रहेगा।

64. पाठ (सुरह अत-तग़ाबुन)
(मदीना में उतरी कुल आयत 18 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

विश्वास लाओ ईश्वर पर, उसके संदेश वाहक पर और उसके प्रकाश पर, जो ईश्वर ने उतारा है और उस दिन से डरो जो वास्तविक लाभ हानि का दिन होगा। यदि लाभ चाहते हो तो विश्वास पर डटे रहो, अच्छे काम करो, ईश्वर और उसके दूत (रसूल) अनुसार करो, ईश्वर के किसी आदेश का विरोध न करो और उसी एक ईश्वर पर भरोसा रखो।

अपने साथ पत्नी और बच्चों के विश्वास की भी चिंता करते रहो। सावधान रहो, राक्षस (शैतान(, अपनी शत्रुता निकालने के लिए उन्हें, तुम्हारे विरुद्ध उपयोग में ले सकता है। अपने धन और अपनी संतान को बड़ी परीक्षा समझो, इस परीक्षा में सफल हो गए तो ईश्वर के पास बड़ा बदला पाओगे। ईश्वर की नाराज़गी से बचने का सभी प्रकार से प्रयास करो, ईश्वर का अनुसरण करो, उसके दिए धन में से दान करो, इंद्रियां (नफ़्स) बड़ी लालची होती है, उसके शिकार से स्वयं को बचाओ।

 65. पाठ (सुरह अत-तलाक़)
(मदीना में उतरी कुल आयत 12 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

संबंध विच्छेद (तलाक़) के अवसर पर ईश्वर की इच्छा का ध्यान रखो। पत्नियों को रखना हो तो भली प्रकार से रखो, और छोड़ना हो तो भली प्रकार से छोड़ो। ईश्वर की नाराज़गी से बचते हुए जीवन यापन करो। ईश्वर तुम्हारे लिए मार्ग निकालेगा, तुम्हें इस प्रकार आजीविका देगा कि तुम सोच भी नहीं सकते, तुम्हारे लिए सरलता उत्पन्न करेगा, तुम्हारे सारे पाप धो देगा और तुम्हें बड़ा बदला देगा।

 66. पाठ (सुरह अत-तहरीम)
(मदीना में उतरी कुल आयत 22 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के निकट अच्छी स्त्रियां वे हैं, जो उसकी आज्ञाकारिणी हों, विश्वास की संपत्ति की धनी हों, पवित्रता वाली हों, और रोज़ा नमाज़ पसंद करती हों। अच्छी स्त्री वह हैं जो अपने आप को इस स्तर पर लाने के प्रयास करे।

नरक की आग से स्वयं भी बचो और अपने घर वालों को भी बचाओ। ईश्वर की ओर पूर्ण तन्मयता सहित लौट आओ। चिंता करो कि प्रलय के दिन ईश्वर तुम्हें सफलता का प्रकाश (नूर ए कामिल) प्रदान करे और तुम्हारी मुक्ति प्रदान कर दे।

सीख प्राप्त करो नूह (एक दूत) की पत्नी और लूत (एक दूत) की पत्नी से, दोनों ईश्वर के भले बन्दों की पत्नियां थीं, परंतु उन्होंने अपने पतियों के साथ धोखा किया। उनके पति उनके कुछ काम नहीं आये और वे नरक के हवाले कर दी गईं।

विश्वासियों हेतु उदाहरण है फ़िरऔन की पत्नी जो कठोर अत्याचार व यातना के बाद भी विश्वास पर डटी रही। फ़िरऔन के कुकर्मों को रोकने से उसने असमर्थता जताई और ईश्वर से अपना संबंध जोड़ लिया, फ़िरऔन के महल और ऐश्वर्य को ठुकरा दिया और उसने अपने मालिक से प्रार्थना कि, ऐ मेरे मालिक...! अपने पास स्वर्ग में मेरे लिए एक घर बना दे।

इस प्रकार विश्वास वालों (अहले ईमान) के लिए प्रतीक है इमरान (एक दूत) की पुत्री मरियम (एक स्त्री का नाम), उसने अपनी लाज और सम्मान को हृदय व जीवन से निकट रखा, अपने मालिक की सभी बातों को सच माना और आजीवन उसी की होकर रही।

अध्याय (पारा – 29)

67. पाठ सुरह अल मुल्क 
(मक्का में उतरी कुल आयत 30 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

बढ़ावा (बरकत) चाहते हो तो ईश्वर से चाहो। उसकी विशेषता बढ़ावे (बरकत) वाली है, हर चीज़ का मालिक ईश्वर है।

उसने जीवन और मृत्यु इसलिए बनाया है ताकि तुम्हारी जांच करे कि तुम में से कौन अच्छे काम करने वाला है।

राक्षस (शैतानों) के लिए नरक का दंड है और राक्षस (शैतान) के समर्थन में जो लोग भी मालिक की बातों का मना (इन्कार) करें उनके लिए भी नरक का दंड है। 

जो लोग ईश्वर को न देखते हुए भी उससे डरते हैं उनके लिए पापों की क्षमा और बड़ा पुरस्कार है। ईश्वर से डरो, 
वह खुली और ढकी सब बातें जानता है। 

68. पाठ (सुरह अल कलम)
(मक्का में उतरी कुल आयत 52 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सौगंध है कलम की और उस चीज की जिससे लिखने वाले लिख रहे हैं।
यदि अत्याचार करोगे और सत्य बात ठुकराओगे तो स्वयं हानि उठाओगे।  याद रखो, जो सर उठाकर और देखभाल कर ठीक सीधे मार्ग चल रहा हो वह उसकी तरह नहीं हो सकता जो सर झुकाए जिधर मुंह हो उधर चल पड़े। 

ईश्वर ने तुम्हें सुनने और देखने की क्षमता दी है और मन भी दिया है उनसे काम लो और उनकी अनादर न करो।

ईश्वर अत्यंत कृपालु है, उस पर विश्वास लाओ, उसी पर भरोसा रखो। ईश्वर की नाराज़गी से बचो, उसके आज्ञाकारी बन जाओ। 

जो लोग ईश्वर की वाक्यों (आयतों) को झुठलाते हैं, झूठी सोगन्धें खाते हैं, अपमान करना पसंद करते हैं, इशारेबाज़ हैं, व्यक्तित्व (किरदार) से ख़ाली हैं, कंजूस हैं, सीमाओं को लांघ जाते हैं, दूसरों का हक़ मारते हैं, कठोर हृदय हैं और संतान और धन के घमंड में पड़े हैं, ऐसे लोगों से दूर रहो।

69 पाठ (सुरह अल हक्का)
(मक्का में उतरी कुल आयत 52 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जो होना है वो हो कर रहेगा।
परलोक के प्रकोप से डरो, पिछले समाजों के परिणामों से सीख लो और ईश्वर की किताब से सीख प्राप्त करो। 
ईश्वर की सीख से वही लाभ उठाते हैं जिसे ईश्वर की नाराज़गी से बचने की चिंता हो। अपना ढंग ठीक कर लो। यह अति घोर प्रकोप है, उनके लिए जो ईश्वर पर विश्वास नहीं रखते, ग़रीबों को भोजन कराने हेतु लालायित नहीं रहते और हर समय पाप के चक्कर में रहते हैं।

70. पाठ (सुरह अल मआरिज़)
मक्का में उतरी कुल आयत 44 कुल रुकुअ 02
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

मांगने वालों ने प्रकोप मांगा है वो प्रकोप जो आकर रहेगा।
प्रलय की प्रचंडता से डरो। इस दिन प्रत्येक अपराधी चाहेगा कि उसके बेटे, उसकी पत्नी, उसके भाई और उसके परिजन सब, उसके स्थान पर नरक में डाल दिये जाएँ और वह बच जाए।

बड़े सम्मान के साथ स्वर्ग में वे लोग रहेंगे जो लगातार नमाज़ें पढ़ते हैं, अपने धन में से असहायों और वंचितों के प्रति दायित्व पूर्ण करते हैं, हिसाब के दिन को सत्य मानते हैं,अपने मालिक के प्रकोप से डरते हैं, अपने गुप्तांगों (शर्मगाहों) की रक्षा करते हैं, सीमाओं का ध्यान रखते हैं, अपनी देनदारियों और अपने वचन पूर्ण करने का ध्यान रखते हैं, अपना साक्ष्य (गवाही) देते हैं और अपनी नमाजों के दायित्व पूरे करते हैं।

दूत (नबी) तुम्हारा भला चाहने वाला है, वह तुम्हें बुरे परिणाम से सावधान करता है। दूत (नबी) की बात मानो ईश्वर की उपासना करो और उसकी नाराज़गी से बचो।

सत्य स्वीकार करने हेतु सदैव तैयार रहो। ज़िद और हठधर्मीता में अंधे न हो जाओ। 

71. पाठ (सुरह अल नुह)
(मक्का में उतरी कुल आयत 28 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

हमने नूह को उसके समाज के समक्ष मार्गदर्शन हेतु भेजा जो आने वाले खतरनाक प्रकोप से आगाह कर दे।
नूह (एक दूत) को देखो, रात-दिन लोगों को पुकारते रहे।
सार्वजनिक घोषणा कर के भी पुकारा और व्यक्तिगत मिलकर भी समझाया, हर प्रकार से समझाया कि अपने मालिक से पापों की क्षमा मांगो, वह तुम्हें बहुत प्रदान करेगा। परंतु लोगो की हठधर्मीता देखो कि संदेश वाहक के बुलावे से भागते, कानों में उँगलियाँ दे लेते और कपड़े लपेट लेते। संदेश वाहक (नबी) की अवज्ञा करते और राक्षस (शैतानों) का अंधा अनुसरण करते। दूत (नबी) के विरुद्ध चाले चलते और लोगो में भ्रम फैलाते।

72. पाठ (सुरह अल जिन्न)
(मक्का में उतरी कुल आयत 28 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ए नबी ..! कहो मेरी तरफ वही (ईश्वर का संदेश यमदूत (फरिश्ते) के माध्यम से) भेजी गई है जिसे जिन्नो के एक समूह ने सुना और अपने समाज को जा कर बताया कि सही मार्ग दर्शन वाली किताब आ गई है।
मालिक के आज्ञाकारी बंदे बनो। यह तुम्हारे जीवन का 
सबसे अच्छा निर्णय होगा, सीधे मार्ग पर चलो, ईश्वर अपनी कृपा प्रदान करेगा

ईश्वर की सीख से मुँह न मोड़ो अन्यथा ईश्वर कठोर दण्ड देगा। मस्जिदें ईश्वर के लिए हैं उसके साथ किसी और को मत पुकारो। ईश्वर का संदेश स्वयं भी सुनो और दूसरों को भी सुनाओ।

73 पाठ (सुरह अल मुज्जम्मिल)
(मक्का में उतरी कुल आयत 20 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

 ओढ़ लपेट कर सोने वाले...
रात में उठकर ईश्वर की उपासना करो,  ठहर-ठहर कर क़ुरआन का वाचन (तिलावत) करो, तुम्हारे ऊपर बड़ा दायित्व आने वाला है। 

दिन में पंथ (दीन) हेतु दौड़-धूप करो और रात में 
लंबा (तवील) ठहराव (क़याम) करो, रात का समय रोने-गिड़गिड़ाने के लिए बहुत सही होता है।

अपने मालिक के नाम का ख़ूब स्मरण करो उसकी ओर एकाग्रचित्त हो जाओ। उसी को अपना तारणहार (कारसाज) समझो,लोगों की बातों पर धैर्य करो और सुंदरता से उनसे बच निकलो। ईश्वर की कृपाओं को याद करो, अत्यधिक क़ुरआन पढ़ो, नमाज़ पर डटे रहो और ज़कात दो, ईश्वर को प्रसन्नता पूर्वक उधार दो और ईश्वर से क्षमा मांगते रहो।

74. पाठ (सुरह अल मुद्दस्सर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 56 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ए ओढ़ लपेटकर लेटनेवाले ....
उठो, लोगों को सावधान करो, अपने मालिक की बड़ाई बताओ, अपने चीर (दामन) को पवित्र (पाक) रखो, उदासी (मायूसी) से दूर रहो, बुलावे (दावत) का संघर्ष अनवरत रखो, अपने मालिक के मार्ग में अडिग रहो। 

प्रलय के दिन की चिंता करो, वह बहुत कठोर दिन होगा।
परलोक की चिंता करो, नरक में वे अपराधी लोग डाले जाएंगे जो नमाज़ नहीं पढ़ते, भूखों को भोजन नहीं देते,
अनर्गल (बेसिर-पैर की) बातें बनाते हैं, हिसाब के दिन को झुठलाते हैं, सीख पर कान नहीं धरते हैं और परलोक की पूछताछ से डरते नहीं। ईश्वर की किताब सीख और स्मृति की किताब है, इससे लाभ उठाओ। 

ईश्वर से संबंध जोड़ो, ईश्वर ही इस योग्य है कि उसकी नाराज़गी से बचा जाए और वही इस योग्य है कि जो उसकी नाराज़गी से बचा उसको वह क्षमा कर दे।

75. पाठ (सूरह अल कियामह)
(मक्का में उतरी कुल आयत 40 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

न हीं, मैं कसम खाता हूं कयामत के दिन की और न हीं मैं कसम खाता हूं पथभ्रष्ट करने वाली इंद्रियों की.....
प्रलय के दिन की चिता करो,तुम्हारी अंतरत्तमा (ज़मीर) कुछ कहे (मलामत) तो उसकी आवाज़ पर कान धरो, बुराइयों का ध्यान आए तो स्वयं अपने आप पर शर्म करो। तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम क्या कर रहे हो। फिर बहाने ढूंढ कर ख़ुद को धोखा न दो। 

76. पाठ (सुरह अद दहर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 31 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

संसार में एक समय ऐसा भी गुजरा है जब मानव कोई महत्वपूर्ण जीव नहीं था...
उस दिन से डरो जब भागने का कोई रास्ता नहीं होगा
और सारा किया-धरा सामने आ जाएगा।

क्यों ? ईश्वर के वचन को झुठलाते हो, नमाज़ नहीं पढ़ते हो, ईश्वर के मार्गदर्शन से मुँह मोड़ते हो। अपने लिए लालसाओ का प्रबंधन तो तुम स्वयं कर रहे हो।  यदि तुम यह समझे बैठे हो कि तुम से हिसाब नहीं लिया जाएगा और तुम्हें यूँ ही छोड़ दिया जाएगा तो तुम बड़े धोखे में हो।

ईश्वर ने सीधा मार्ग दिखा दिया है, ईश्वर के इस उपकार का सम्मान करो और कृतघ्नता (ना शुक्रि) न करो। 

वफ़ादारी के स्तर पर पहुँचने की कोशिश करो। ईश्वर के वफ़ादार बंदे अपने दायित्व पूरे करते हैं। प्रलय के डरावने दिन से डरते हैं, अपना रुचिकर (पसंदीदा) भोजन भूखों, अनाथों, और कैदियों को खिलाते हैं, और केवल ईश्वर की प्रसन्नता के लिए खिलाते हैं। भलाई (नेकी) के काम करते हुए भी प्रलय के भय से काँपते रहते हैं।
पंथ (दीन) पर दृढ़तापूर्वक (इस्तिक़ामत) के साथ डटे रहते हैं और ईश्वर के मार्ग में ख़ूब दौड़धूप करते हैं ईश्वर के यहाँ उनकी दौड़धूप की अनदेखी नहीं होगी। 

ईश्वर ने यह क़ुरआन बड़े प्रबंधन (एहतिमाम) से उतारा है, इसका सम्मान करो। पंथ (दीन) पर डटे रहो और किसी बुरे और कृतघ्न (नाशुक्रे) की बात को भाव न दो। 


सुबह-शाम अपने मालिक को याद करो, रात में उसके सामने सजदे करो और देर रात तक उसकी बड़ाई (हम्द) व महिमागान (तस्बीह) करो। 

77. पाठ (सूरह अल मुरसलात)
(मक्का में उतरी कुल आयत  50 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सौगंध है उन हवाओं की जो स्थान - स्थान पर भेजी जाती है, तूफान बन कर बादलों को उठाती हैं और फाड़ डालती हैं...
यह कोई बुद्धिमानी नहीं है कि अपनी सभी कामनाएं (दिलचस्पियाँ) इसी संसार में समाप्त (मर्कूज़) कर दो 
और आने वाले दिन को एकदम भुला दो जो अत्यंत कठोर दिन होगा।

ईश्वर की यह किताब उत्तम सीख है, इससे लाभ उठाओ 
और अपने मालिक का मार्ग अपनाओ।

अल्लाह की दया (रहमत) के प्रत्यासी (तलबगार) बनो
और अत्याचार के मार्ग से बहुत दूर रहो। ईश्वर की किताब को झुठलाना और अपराधियों के मार्ग पर चलना खुला विनाश का मार्ग है।

ईश्वर की नाराज़गी से बचो और उसको प्रसन्न करने वाले अच्छे से अच्छे काम करो।  कभी न ख़त्म होने वाली खुशियाँ तुम्हारी प्रतिक्षा कर रही हैं।

अध्याय - पारा - 30

 78. पाठ (सूरह अन-नबा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 40 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की नाराज़गी से बचते हुए जीवन यापन करो, सफलता शालिनो (परहेज़गारों) के लिए है। झगड़े (सरकशी) न करो, नरक झगड़ालुनों (सरकशों) की घात में है। प्रलय का दिन तो आकर रहेगा, उसके लिए पूरी तैयारी करो और यहाँ रहते हुए अपने मालिक के पास अपना अच्छा ठिकाना बना लो।

79. पाठ (सूरह अन-नाज़िआत)
(मक्का में उतरी कुल आयत  46 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के सामने सबकी पेशी यक़ीनी है, उस पेशी से डरो। स्वयं को ठीक (इस्लाह) करो, ख़ुद को लालसाओं के पीछे चलने से रोको, सांसारिक जीवन को परलोक की सफलता का ज़ीना समझो, परलोक के लिए ख़ूब दौड़-धूप कर लो। मन में ईश्वर का डर होगा तो सीख भी प्राप्त होगी और ज्ञान भी और अगर घमंड करोगे तो फ़िरऔन की तरह दूसरों के लिए उदाहरण की चीज़ बन जाओगे। 

80. पाठ (सूरह अ-ब-स)
(मक्का में उतरी कुल आयत  42 कुल रुकुअ 02)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

उस  अंधे व्यक्ति से सीख लो जो शौक़ और आतुरता (बेताबी) के पंखों से उड़ता, ईश्वर के संदेश वाहक (मोहम्मद,सल्ल.) के पास आया ताकि आप (सल्ल.) से प्रकाश प्राप्त हासिल करे आप (मोहम्मद सल्ल.) से ईश्वर की वाणी (कलाम) सुने। ईश्वर की किताब सीख और पुनः स्मरण की किताब है, जो इससे अलगाव दिखाएगा उसे इस किताब से कुछ नहीं मिलेगा और जो इससे सच्चे मन से सीख लेना चाहेगा, उसे इतना मिलेगा कि वह धनी (मलामाल) हो जाएगा।

समय का कोई ठिकाना नहीं...! अभी अवसर है, होश में आ जाओ...! ईमान लाओ और बुराइयों से मुक्ति (तौबा) करो, अन्यथा आने वाला दिन ऐसा भयानक होगा कि आदमी अपने भाई, अपने माँ-बाप, अपनी पत्नी और अपनी संतान से भी दूर हो जाएगा।

81.पाठ (सूरह अत-तकवीर)
(मक्का में उतरी कुल आयत  29 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की किताब मानव जाति के लिए सिख और मार्गदर्शन की किताब है। यमदूत (फ़रिश्तों) के सम्मानित (मुअज़्ज़िज़) मुखिया (सरदार) ने इसे संदेश वाहक (नबी सल्ल.) तक पहुंचाया है। इस किताब का सम्मान करो और इधर-उधर भटकते न फिरो। अगर सही और सीधा मार्ग चाहते हो तो यह किताब (क़ुरआन) तुम्हारे लिए काफ़ी है। 

82. पाठ (सूरह अल-इनफ़ितार)
(मक्का में उतरी कुल आयत  19 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

अपने मालिक के बारें में किसी धोखे में न रहो। प्रलय के दिन तुम्हें सब पता चल जाएगा कि तुमने इस जीवन में क्या बोया-काटा है। ईश्वर के सम्मानित (मुअज़्ज़िज़) यमदूत (फ़रिश्ते) तुम्हारी निगरानी कर रहे हैं, और तुम्हारी हर बात और हर काम लिख रहे हैं। बुराइयों से बचो और अपने मालिक के वफ़ादार बंदे बनो। हिसाब के दिन को झुठलाने के बजाए उसके लिए तैयारी करो। उस दिन कोई किसी के काम नहीं आयेगा।

83. पाठ (सूरह अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन)
(मक्का में उतरी कुल आयत  36 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जिन लोगों ने यह ठान लिया है कि वे अपराधी और मना करने वाले (काफ़िर) ही रहेंगे, जो हिसाब के दिन को झुठलाते हैं, जो अत्याचार करते हैं, जो दूसरों के अधिकार (हक) मारते हैं, जो नाप-तौल में कमी करते हैं और जो ढिठाई से बुरे काम करते हैं, ऐसे लोगों की हर गतिविधि (हरकत) लिखी जा रही है और वे अपने हर काम की उत्तरदाई होंगे।

जो बंदे ईश्वर के वफ़ादार और कृतज्ञ होंगे, वाे ईश्वर की निकटता (कुर्ब) पाएंगे, वाे वहाँ राहत और सम्मान के महलों में रहेंगे। प्रतियोगिता (कंपटीशन) करने वालों को इस मैदान में प्रतियोगिता करनी चाहिए।

84. पाठ (सूरह अल-इनशिक़ाक़)
(मक्का में उतरी कुल आयत  25 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

तुम्हारी सारे कर्म (मेहनत व मशक़्क़त) तुम्हारे मालिक के पास पहुँच रहे है और तुम्हें उसके परिणाम का सामना भी करना है। क्या तुम्हें यह पसंद है कि अभी तो अपने घर वालों में ख़ुश रहो और हिसाब के दिन नरक में डाले जाओ ? या यह पसंद है कि उस दिन तुम्हारा आसान हिसाब हो और तुम अपने घर वालों के पास प्रसन्नता पूर्वक लौट कर जाओ? ईमान पर डटे रहो और अच्छे काम करो, ईश्वर तुम्हें ऐसे असमाप्य पुरस्कारो से पुरस्कृत करेगा।

85. पाठ (सूरह  अल-बुरूज)
(मक्का में उतरी कुल आयत  22 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जो लोग ईश्वर पर ईमान रखने वाले स्त्री - पुरषों को सता रहे हैं वे नरक में जलने के लिए तैयार रहें, ईश्वर के निकट यह अति घृणित कृत्य है। ऐसे अपराधी यदि अपने कृत्यों से अभी क्षमायाचना कर लेते हैं तो ईश्वर उन्हें क्षमा कर देगा। ईश्वर के जो बंदे परीक्षाओं के बाद भी विश्वास पर अडिग रहें और अच्छे काम करते रहें उनके लिए बड़ी सुंदर सफलता है। 

86.पाठ (सूरह अत-तारिक़)
(मक्का में उतरी कुल आयत 17 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के विरुद्ध चालें चलने वाले होश में आ जाएँ। ईश्वर उन्हें मोहलत दे रहा है, वह किसी धोखे में न रहें। प्रलय के दिन सारे भेद खुल जाएंगे। उस दिन किसी का ज़ोर नहीं चलेगा। प्रलय की सूचना कोई हँसी-मज़ाक़ की बात नहीं है, यह बहुत अवशायल बात है। अतः सावधान हो जाओ और यह समझ लो कि तुम्हारी निगरानी हो रही है और हर चीज़ लिखी की जा रही है।

87.पाठ (सूरह अल-आला)
(मक्का में उतरी कुल आयत 19 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

जिसके मन में ईश्वर का डर होता है वह दूत (रसूल) की सीख से लाभ उठाता है। जिसे सफलता की इच्छा होती है वह अपने आप को बनाता-संवारता है, ईश्वर के नाम को याद करता है और नमाज़ों का प्रबंधन करता है और जो सांसारिक जीवन को सब कुछ समझता है, वह ईश्वर की सीख से मुँह मोड़ता है और अपना भाग्य स्वयं बिगाड़ता है।

88 पाठ (सूरह अल-ग़ाशियह)
(मक्का में उतरी कुल आयत 26 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

संसार में परिश्रम तो सब करते हैं, तुम वह परिश्रम करो जो तुम्हें प्रसन्नता का संदेश दे और तुम्हारी उदासी और बर्बादी का कारण न बने। दूत (रसूल) की सीख ध्यान से सुनो। तुम्हें ईश्वर की ओर लौट आना है और अपने किए का हिसाब देना है।

89.पाठ (सूरह अल-फ़ज्र)
(मक्का में उतरी कुल आयत 30 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर जिस हाल में रखे संतुष्ट रहो, अनाथों का ध्यान रखो, भूखों को भोजन कराओ, दूसरों का धन हड़प न करो, धन के प्रेम में अंधे न हो जाओ, अभी अवसर है ईश्वर की सीख स्वीकार कर लो और आने वाले जीवन के लिए कुछ कर लो। भली प्रकार से तैयारी कर लोगे तो संसार से प्रसन्नता व संतुष्टि के साथ जाओगे और ईश्वर तुमसे प्रसन्न होगा। ईश्वर के स्वर्ग में मान व सम्मान के साथ प्रवेश होगा और ईश्वर के भले बंदों का संग मिलेगा। 
90. पाठ (सूरह अल-बलद)
(मक्का में उतरी कुल आयत 20 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तुम्हें उच्चता (बुलंदी) की ओर जाने वाले मार्ग भी बता दिये और उस मार्ग की घाटियों से भी अवगत कर दिया। आगे बढ़ो, घाटियों से गुज़रो और ऊंचाइयों की ओर पलायन करो। दासों को स्वतंत्र करो, कुनबे के अनाथों और असहाय भूखों को भोजन कराओ,  विश्वास पर डटे रहो, धैर्य व समझदारी से काम लो और हमदर्दी व दुख सहने की आदत के सीख सार्वजनिक करो।

91.पाठ (सूरह अश-शम्स)
(मक्का में उतरी कुल आयत 15 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने इस सुंदर सृष्टि के भीतर तुम्हें अत्यंत उच्च पद प्रदान किया है। उसने यह भी बता दिया है कि बुराई क्या है ? और पवित्रता (परहेजगारी) क्या है ? जो अपने व्यक्तित्व को संवारेगा, उसके सर पर सफलता का मुकुट रखा जाएगा और जो अपने व्यक्तित्व को बुराइयों से प्रदूषित करेगा वह असफल व अभागा होगा।

92.पाठ (सूरह अल-लैल)
(मक्का में उतरी कुल आयत 23 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

लोगों की पसंद (दिलचस्पियां) और क्रियाशीलता पृथक -  पृथक होती हैं। कोई ईश्वर के मार्ग में दान करता है, उसकी नाराज़गी से बचता है और उसके वचनों पर भरोसा रखता है और कोई कंजूसी करता है, ईश्वर से अलगाव प्रदर्शित करता है और ईश्वर के वचनों को झुठलाता है। अपने को संवारने और अपनी निकटता बनाने की चिंता करो, ईश्वर के मार्ग में धन दान करो और ईश्वर की प्रसन्नता को अपने जीवन का उद्देश्य बनाओ। 

93. पाठ (सूरह अज़-ज़ुहा)
(मक्का में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर की सहायता और उसकी कृपा से मायूस न हो। ईश्वर के अति उपकारों को याद करो और उनका दायित्व पूर्ण करो, अनाथों को दबाओ नहीं, असहाय भिखारियों को झिड़को नहीं और अपने मालिक की महान कृपा ( फ़ज़्ल-ए-अज़ी) का ख़ूब चर्चा करो।

94. पाठ (सूरह अलम-नशरह)
(मक्का में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सबसे बड़ी भाग्यशालिता यह है कि छाती मार्गदर्शन हेतु खुल जाए, पीठ से बोझ उतर जाए और ईश्वर के निकट पद  उच्य हो जाए। कठिनाइयों से घबराओ नहीं, कठिनाई एक होती है। इस कठिनाई से निकलने के किवाड़ कई होते हैं। अपना संघर्ष जारी रखो।पंथ (दीन) के संघर्ष से राहत मिले तो अपने मालिक के समक्ष खड़े हो जाओ।

95.पाठ (सूरह अत-तीन)
(मक्का में उतरी कुल आयत 08 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तुम्हें अत्यधिक कठोर बनावट) पर बनाया और उत्तम क्षमताऐं प्रदान की। तुम नीचे (पस्ती) में गिरना पसंद न करो। विश्वास पर डटे रहो और भलाई से अपना जीवन सजाओ।

96.पाठ (सूरह अल-अलक़)
(मक्का में उतरी कुल आयत 19 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने पढ़ना-लिखना सिखाया तो उसकी किताब पढ़ो।ईश्वर ने ज्ञान की कुंजी प्रदान की तो सीधे मार्ग का ज्ञान प्राप्त करो। इंसानों में ऐसे अभागे भी हैं जो अत्याचार करते हैं, जो ईश्वर की ख़ुदाई को चुनौती देते हैं, ईश्वर की उपासना से रोकते हैं, उसे झुठलाते और उसकी अवज्ञा करते हैं। तुम ऐसे अत्याचारियों की न सुनो, मार्गदर्शन पर डटे रहो, ईश्वर की नाराज़गी से बचो, सज्दा व क़याम (नमाज में ठहराव) का प्रबंधन करो और ईश्वर की निकटता प्राप्त करो।

97. पाठ (सूरह अल-क़द्र)
(मक्का में उतरी कुल आयत 05 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

पवित्र क़ुरआन की महानता को पहचानो। यह भलाई व बढ़ावे (बरकत) की किताब है, जिस रात में यह अवतरित की गई वह हज़ार महीनों से बढ़कर है। यह किताब सुरक्षा का संदेश है, जिस रात में यह अवतरित हुई वह रात भी सुरक्षा (सलामती) की रात थी।

98.पाठ (सूरह अल-बैय्यिनह)
(मदीना में उतरी कुल आयत 40 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

अपने मालिक से डरो, ईश्वर की उपासना करो और एकाग्रचित्त होकर केवल उसका अनुसरण करो, नमाज़ों का प्रबंधन करो, ज़कात देते रहो, विश्वास की रक्षा करो, ईश्वर तुमसे प्रसन्न होगा और तुम्हें प्रसन्नता से धनी करेगा।

99.  पाठ (सूरह अल-ज़िलज़ाल)
(मदीना में उतरी कुल आयत 08 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

प्रलय का दिन बड़ा भयानक होगा। उस दिन की भयंकरता को मत भूलो। रेत जितनी भलाई का अवसर हाथ से न जाने दो और रेत जितनी बुराई के निकट न जाओ।

100..पाठ (सूरह अल-आदियात)
(मक्का में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

परलोक की चिंता करो,  सांसारिक प्रेम में परलोक को न भुलाओ।

101.पाठ (सूरह अल-क़ारिआ)
(मक्का में उतरी कुल आयत 11 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

प्रलय के आगमन की ध्वनि को सुनो और प्रयास करो कि तुम्हारे कर्मों की तुला अधिक भारी रहे। तुम्हारे आलस्य से तुम्हारी तुला हल्की न रह जाए।

102.पाठ (सूरह अत-तकासुर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 40 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सांसारिक सामग्री बढ़ाने की दौड़ में इस तरह सक्रिय न हो जाओ और यहाँ के नाम और वैभव में इस तरह न डूब जाओ कि परलोक को भूल जाओ।

103. पाठ (सूरह अल-अस्त्र)
(मक्का में उतरी कुल आयत 03 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

विश्वास पर अडिग रहो, अच्छे काम करो, आपस में एक-दूसरे को सत्य बात की और धैर्य व सुझबुझ की नसीहत करते रहो, बड़े लाभ में रहोगे अन्यथा बड़ी हानि में पड़ जाओगे।

104.पाठ (सूरह अल-हु-म-ज़ह)
(मक्का में उतरी कुल आयत 09 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

सांसारिक धन गिनने में परलोक को न भूल जाओ और तिजोरियां भरते हुए व्यहवाहरिक मूल्यों से ख़ाली मत हो जाओ।

105.पाठ (सूरह अल-फ़ील)
(मक्का में उतरी कुल आयत 05 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर के विरुद्ध चालें न चलो।हाथी वालों के परिणाम से सीख लो। देखते-देखते ईश्वर ने उन्हें ऐसा बना दिया जैसे जानवरों के खाने का सूखा चारा।

106. पाठ (सूरह अल क़ुरैश)
(मक्का में उतरी कुल आयत 04 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

काबा (मक्का में ईश्वर का घर) के मालिक की बंदगी करो, वही रोजगार (खाद्य) दे कर भूख मिटाता है और वही शांति देकर भय से बचाता है।

107. पाठ (सूरह अल-माऊन)
(मक्का में उतरी कुल आयत 07 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

उनके मार्ग से बचो जो हिसाब के दिन को झुठलाते हैं, अनाथों को धक्का देते हैं, भूखों को भोजन नहीं करवाते, नमाज़ों को भूल गए हैं और किसी की थोड़ी सी भी सहायता में के भागीदार नहीं होते।

108.पाठ (सूरह अल-कौसर)
(मक्का में उतरी कुल आयत 03 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर ने तुम्हें भलाई व बढ़ावे (बरकत) (कौसर एक पेय होगा जो स्वर्ग में पीने हेतु मिलेगा) के झरने देने का निर्णय कर लिया है। तुम केवल अपने मालिक की उपासना करो और उसी के लिए परित्याग (क़ुरबानी) करो।

109.पाठ (सूरह अल-काफ़िरून)
(मक्का में उतरी कुल आयत 06 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर का इनकार (कुफ्र) करने वालों से स्पष्ट अस्ंबंधता की घोषणा कर दो, समकक्षता (शिर्क) के साथ किसी तरह का समझौता न करो।

110. पाठ (सूरह अन नस्र)
(मदीना में उतरी कुल आयत 03 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

ईश्वर जीत (फ़तह) प्रदान करे तो उसका धन्यवाद करो। लगातार से उसकी बड़ाई महिमागान करो और उसकी कृपा व क्षमा ढूंढो (तलब) करो।

111. पाठ (सूरह अल-लहब)
(मक्का में उतरी कुल आयत 05 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

धन के घमण्ड में अबू लहब (मोहम्मद साहब के चाचा) और उसकी पत्नी ने मिलकर ईश्वर से शत्रुता की। उनका धन उनके कुछ काम नहीं आया। वह संसार व परलोक में अभागे (नामुराद) हुए।

112. पाठ (सूरह अल-इख़लास)
(मक्का में उतरी कुल आयत 04 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

विश्वास लाओ आकाश के मालिक पर, जो सर्व सृष्टा है उसकी एकेश्वर (वहदानियत) का साक्ष्य दो और उसकी शरण में रहो। 

113. पाठ ( सुरह अल-फ़लक़)
(मक्का में उतरी कुल आयत 05 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

पूरे संसार के हर प्रकार के शर और राक्षसों (शैतानों) के बहकावे (वस'वसों) से बचने के लिए उसकी शरण तलाश करो।

114. पाठ (सुरह अन-नास)
(मक्का में उतरी कुल आयत 06 कुल रुकुअ 01)
ईश्वर के नाम से प्रारंभ जो अत्यधिक कृपालु और दयावान है।

मानव और देवो (जिन्नों) के राक्षस (शैतानों) से सावधान रहो और उनके हटकंडों (वसवशों) से बचने के लिए ईश्वर की शरण में आ जाओ। 
पूरे संसार के हर प्रकार के शर और राक्षसों (शैतानों) के बहकावे (वस'वसों) से बचने के लिए उसकी शरण तलाश करो।

वर्तमान में मुसलमान और ईमान -
जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हुसैन असकरी ने इस्लामिक देशों के मुस्लिम होने पर शोध किया, राज्य और समाज के नियमों का पालन करने  के विषय पर पाया कि जो लोग अपने दैनिक जीवन में इस्लामी नियमों का पालन करते हैं, वे मुस्लिम देश नहीं हैं, इस्लाम का सर्वाधिक पालन  क्रमशः न्यूज़ीलैंड, लक्ज़मबर्ग, आयरलैंड, आइसलैंड, फ़िनलैंड, डेनमार्क छठे और और सातवें स्थान पर कनाडा हैं।
मलेशिया 38वें, कुवैत 48वें, बहरीन 64वें और सऊदी अरब 131वें स्थान पर है। ग्लोबल इकोनॉमी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में, बांग्लादेश का स्थान सउदी 132 हैं।
शोध के अनुसार मुसलमान नमाज़, रोज़ा, सुन्नत, कुरान, हदीस, हिजाब, दाढ़ी, पहनावे को लेकर बहुत सावधान रहते हैं लेकिन सरकारी, सामाजिक और पेशेवर जीवन में इस्लाम के नियमों का पालन नहीं करते।
मुसलमान दुनिया में किसी और देश से ज़्यादा धार्मिक उपदेश सुनते हैं, लेकिन कोई भी मुस्लिम देश दुनिया का सबसे अच्छा देश नहीं बन पाया। लेकिन पिछले साठ सालों में मुसलमानों ने शुक्रवार का उपदेश कम से कम 3000 बार सुना है।
उल्लेखनीय रूप से, एक गैर-यहूदी चीनी व्यापारी ने कहा, मुस्लिम व्यापारी हमारे पास नंबर दो नकली चीजें बनाने का ऑर्डर लेकर आते हैं और कहते हैं कि फलां-फलां मशहूर कंपनी का लेबल लगाओ। बाद में, जब मैंने उनसे हमारे साथ खाने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा, "यह हलाल नहीं है, इसलिए मैं इसे नहीं खाऊंगा।" तो क्या नकली सामान बेचना हलाल है?
एक जापानी नव मुसलमान ने कहा, मैं पश्चिमी देशों में गैर-मुसलमानों को इस्लाम के नियमों का पालन करते हुए देखता हूँ, और पूर्वी देशों में मैं इस्लाम को तो देखता हूँ, लेकिन मुसलमानों को नहीं। अल्हम्दुलिल्लाह, मैंने इस्लाम और मुसलमानों के बीच अंतर जानते हुए पहले ही अल्लाह के धर्म को स्वीकार कर लिया है।
इस्लाम केवल प्रार्थना और उपवास नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है तथा दूसरों के साथ व्यवहार और भाईचारे का विषय है।
जो व्यक्ति उपवास करके नमाज़ पढ़ता है और उसके माथे पर निशान है, वह अल्लाह की नज़र में पाखंडी हो सकता है।
पैगंबर (PBUH) ने कहा, "असली सर्वहारा और खाली लोग वे हैं जो क़यामत के दिन उपवास, नमाज़, कई हज, दान देकर प्रकट होंगे, लेकिन भ्रष्टाचार, धन हड़पने, दूसरों को अधिकार न देने और लोगों पर अत्याचार करने के कारण खाली हाथ नरक में जाएंगे।"
इस्लाम के दो भाग हैं, एक ईमान की सार्वजनिक घोषणा, जिसे 'ईमान' कहते हैं, और दूसरा ईमान का विषय है 'एहसान', जो न्यायोचित सामाजिक मानदंडों का पालन करके प्राप्त किया जाता है। यदि दोनों का एक साथ पालन न किया जाए तो इस्लाम अधूरा रह जाता है, जो कि प्रत्येक मुस्लिम देश में हो रहा है।
धार्मिक निषेधों का पालन करना व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है और यह अल्लाह और बंदे के बीच का मामला है। लेकिन सामाजिक मानदंडों का पालन करना एक बंदे और दूसरे बंदे के बीच का मामला है। दूसरे शब्दों में, अगर मुसलमान अपने जीवन में इस्लामी सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, तो मुस्लिम समाज भ्रष्ट हो जाएगा।
लॉर्ड बर्नार्ड शॉ ने एक बार कहा था, "इस्लाम सबसे अच्छा धर्म है और मुसलमान सबसे बुरे अनुयायी हैं।"

मेरा मानना है कि मुसलमान इस्लाम का दिखावा अधिक करते हैं और इस्लामिक नियमों का पालन कम।

जिगर चूरूवी
शमशेर भालू खान
डॉ. मुहिउद्दीन ग़ाज़ी एवं तय्यब अहमद द्वारा किए गए उर्दू तर्जुमे का सरल हिंदी अनुवाद।
9587243963

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