ताओ धर्म
लाओत्से को लाओ-सू/लाओ-सी के नाम से भी जाना जाता है। लाओ चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक उपदेशक, लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी विचारधाराओं पर आधारित धर्म को ताओ धर्म कहते हैं। उन्हें ईश्वर तुल्य माना जाता है।
लाओ-सू छठी शताब्दी ईसा पूर्व में झोऊ राजवंश काल के दार्शनिक हैं। इनके कान अन्य लोगों की अपेक्षा बड़े थे और बड़े कान वाले लोगों को बुद्धिजीवी माना जाता है। लाओत्से को बड़े कानों वाला ली भी कहा जाता है।
लाओत्से लगभग नब्बे वर्ष जीवित रहे।
शब्द ताओ एक ही नाम के चीनी वर्णमाला के वर्ण से आता है। शब्द का अर्थ है मार्ग या पथ से है।
ताओ और बौद्ध धर्म को मिंग राजवंश काल में राजकीय धर्म घोषित किया गया।
ताओवाद चीन का मूल दर्शन है जो चीनी भाषा के दाओ (ताओ) शब्द से बना है जिसका अर्थ है मार्ग, सद्भाव से रहना। वह मार्ग जिसे सभी पदार्थों का स्रोत माना जाता है। इसकी उत्पत्ति चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में लाओजी और झुआंग झोउ द्वारा की गई। ताओवाद के प्रमुख घटक दाओ (मार्ग) और अमरता हैं साथ ही प्रकृति में संतुलन पर जोर दिया गया है। चरम सीमाओं पर कम जोर दिया जाता है और इसके बजाय चीजों के बीच अन्योन्याश्रय पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यहां अंधेरा (यिन) और उजाला (यांग) दोनो का महत्व बताया गया है। ताओवाद धर्म नहीं ब्रह्माण्ड के प्रवाह या प्राकृतिक व्यवस्था के पीछे कार्यरत् शक्ति के सिद्धांतों से सम्बन्धित दर्शन है, जो सभी वस्तुओं को संतुलित और क्रम में रखता है। ताओ को अस्तित्व और अस्तित्व-हीनता का स्रोत माना जाता है। इसे ब्रह्माण्ड के यिन और यांग दर्शन भी कहा जा सकता है। जो स्वयं को अच्छे और बुरे की समान शक्तियों के रूप में व्यक्त कर सकते हैं।
देवी - देवता -
सर्वोच्च देवी और देवता यिन (अंधकार) और यांग (प्रकाश) हैं। देवताओं की पूजा के लिये कर्मकाण्ड किये जाते हैं। ताओ धर्म के कुछ अनुयायी बहुदेववाद (कई देवताओं में विश्वास करना) में विश्वास करते हैं, कुछ पूर्वजों की पूजा करते हैं। राज्य में वाणिज्य के विकास के साथ, विभिन्न उद्योगों के विकास हेतु राज वंश के देवताओं की पूजा की जाती थी। स्याही बनाने वाले कारखाने के लोग वेनचांग दीजुन, लोहार ताइशांग लाओजुन, चोर और वेश्याएँ गुआन झोंग और शि कियान की पूजा करते थे।
ताइवादी दर्शन -
दाओवादी दर्शन का आधार वु वेई का विचार है , जिसे अक्सर गैर-कार्रवाई के रूप में अनुवादित किया जाता है। व्यवहार में, यह होने लेकिन अभिनय न करने की एक बीच की स्थिति को संदर्भित करता है। यह अवधारणा कन्फ्यूशीवाद के एक विचार के साथ मिलती होती है। कांफ्युशियसवाद का मानना था कि एक पूर्ण संत बिना कार्रवाई किए शासन कर सकता है। दाओवाद मानता है कि कोई भी चरम कार्रवाई समान चरम की जवाबी कार्रवाई शुरू कर सकती है, और इसलिए सरकार अत्याचारी और अन्यायपूर्ण हो सकती है भले ही अच्छे इरादों से शुरू की गई हो।
"सत्य सदैव सुन्दर नहीं होता, और न ही सुन्दर शब्द सत्य होते हैं।"
लाओजी, दाओदेजिंग (ताओवादी पुजारी/शमन)
दाओशी (बिखरे हुए या फैले हुए ताओवादी) या हुओजू दाओशी (ताओवादी जो घर पर रहते हैं) के रूप में भी जाना जाता है, पुजारी हैं जो शादी कर सकते हैं और पुरोहित कार्यालय के अलावा अन्य नौकरियां कर सकते हैं; वे आबादी के बीच रहते हैं और स्थानीय मंदिरों और समुदायों के लिए आम चीनी धर्म के भीतर ताओवादी अनुष्ठान करते हैं। यहां पशु बलि दी जाती है।
चीन में ताओवाद -
ताओवाद (या दाओवाद) एक धर्म है, जिनके अनुयायी अधिकत्तर सुदूर पूर्वी देशों जैसे चीन, मलेशिया, कोरिया, जापान, वियतनाम और सिंगापुर में पाए जाते हैं। वर्तमान अनुमान यह है कि दस करोड़ से अधिक लोग ताओवाद के विभिन्न रूपों का पालन करते हैं, जिनमें से 20 से 30 करोड़ चीन की मुख्य भूमि पर हैं। यह बहुत ही अधिक उल्लेखनीय बात है, क्योंकि मुख्य भूमि चीन साम्यवादी राष्ट्र है और धर्म के कई रूपों के होने की मनाही करता है।
चीन की लगभग 30% आबादी 30% ताओवादी है। चीन से निकली ज़्यादातर चीज़ें, जैसे चीनी व्यंजन, चीनी रसायनविद्या, चीनी कुंग-फ़ू, फेंग शुई, चीनी दवाएँ, आदि किसी न किसी रूप से ताओ धर्म से सम्बन्धित रही हैं। क्योंकि ताओ धर्म एक संगठित धर्म नहीं है जीवन दर्शन है। चीनी ताओवादी संघ एक क्वानज़ेन संस्थान के रूप में शुरू हुआ, और बीजिंग के व्हाइट क्लाउड मंदिर में स्थिर रहा, क्वानज़ेन संप्रदायों के मुख्यालय के रूप में कार्य करता है, सन 1990 के बाद से इसने झेंगयी शाखा के संजू दोशी के लिए पंजीकर शुरू कर दिया, जो क्वानज़ेन भिक्षुओं की तुलना में अधिक संख्या में हैं। चीनी ताओवादी संघ के पास 1990 के दशक के मध्य में पहले से ही 20,000 पंजीकृत संजू दोशी थे, जबकि उसी वर्ष अपंजीकृत सहित झेंगयी पुजारियों की संख्या लगभग 200,000 थी। झेंगयी संजू दोशी को संप्रदाय के अन्य पुजारियों द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है और ऐतिहासिक रूप से दिव्य मास्टर द्वारा औपचारिक पथ प्रदर्शन प्राप्त होता है। 63वें दिव्य मास्टर झांग एनपू 1940 के दशक में चीनी गृहयुद्ध के दौरान ताइवान भाग गए। ताओवाद, पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों रूपों में, 1990 के दशक से मजबूत संप्रदाय बन कर उभर रहा है, और तटीय प्रांतों के धार्मिक जीवन पर हावी है।
ताओवाद का मिशन प्रकृति में होने वाली और आकाश के पृथ्वी से अलग होने के बाद उत्पन्न होने वाली शिथिलता को ठीक करना है।
वू कहलाने वाली महिला शमन और शी कहलाने वाले पुरुष शमन आत्माओं की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं, प्राकृतिक विकृतियों को ठीक करते हैं, सपनों और भविष्यवाणी को परिभाषित करने की कला के आधार पर भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं।
सन 1980 से औद्योगीकरण के बाद दुनिया को सामंजस्यपूर्ण बनाने के साधन के रूप में चीनी धर्म में शमनवाद की मान्यता बढ़ी। शमनवाद को कई विद्वान सभ्यता के उद्भव की नींव के रूप में देखते हैं, और शमन को लोगों के शिक्षक और आत्मा के रूप में देखते हैं। सन 1988 में जिलिन शहर में शैमानिक अध्ययन के लिए चीनी सोसायटी की स्थापना की गई।
पूजा पद्धति -
ताओ धर्म पंचाँग में पूजा अनुष्ठान छुट्टियों के समय होते हैं। देवताओं या पूर्वजों की आत्माओं की प्रसन्नता हेतु बलि दी जाती है। बलि के अन्य रूपों में कागज के नोटों को जलाया जाता है। ताओ धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं कि आत्मा संसार में भौतिक गुणों को पुन: एक दिवगंत पूर्वज के उपयोग के लिए प्राप्त कर लेगी। ताई ची चूआन और बगुआ झांग जैसे कई मार्शल आर्ट पूजा के रूप हैं। ताओवादी पुजारियों से यह भी अपेक्षा की जाती थी कि वे लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के भूत-प्रेत भगाने, वर्षा लाने के अनुष्ठान करें और बीमारी से मुक्ति दिलवाएं। थंडर मैजिक ग्रंथों में ऐसी प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है कि कौन से अनुष्ठान हेतु कब और किस वस्तु की आवश्यकता है और उन्हें कहाँ रखना है। इस धर्म में ताबीज बांधने की प्रथा भी है। पुजारियों की नियुक्ति परीक्षा ले कर की जाती थी और इनकी ग्रेडिंग की जाती थी। पुजारी को विशेष संरक्षण के साथ कड़े कानूनों का भी पालन करना पड़ता था। परीक्षा में स्थानीय आरक्षण,अधिकतम - न्यूनतम आयु आदि का प्रावधान था। पुजारी महिला या पुरुष दोनों ही होते थे।
धर्म ग्रंथ
धर्म ग्रंथ ताओ रचित ताओ ते चिंग और जुआंग सी हैं। असल में पहले ताओ एक धर्म नहीं बल्कि एक दर्शन और जीवनशैली था। यहां बौद्ध धर्म पहुंचने के बाद ताओ ने बौद्धों की कई धारणाएं सम्मिलित की कर वज्रयान संप्रदाय के रूप में आगे बढ़ाया। बौद्ध धर्म और ताओ धर्म में अहिंसात्मक संघर्ष भी होता रहा है। अब कई चीनी बौद्ध तथा ताओ दोनों धर्मों को एक मानते है।
ताओ ते चिंग या दाओ दे जिंग प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक लाओ त्सू द्वारा रचित एक धर्म ग्रन्थ है जो ताओ धर्म का मुख्य ग्रन्थ भी माना जाता है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार लाओ त्सू चीन के झोऊ राजवंश काल में सरकारी अभिलेखि (सिरिश्तेदार या रिकॉर्ड-कीपर) थे और उन्होंने इस ग्रन्थ को छठी सदी ईसा पूर्व में लिखा। शाब्दिक अर्थ में दाओ (मार्ग) और दे (गुण/शक्ति), जिंग (शास्त्रीय/प्राचीन) अर्थात् शक्ति का प्राचीन मार्ग। ताओ ते चिंग ग्रन्थ का सबसे पहला वाक्य है जिस मार्ग के बारे में बात की जा सके वह अनादि मार्ग नहीं है। पूरे ग्रन्थ में बार-बार मार्ग शब्द का प्रयोग होता है। धार्मिक, दार्शनिक, नैतिक या राजनैतिक समीक्षा के अनुसार ताओ में जिस मार्ग की बातें होती हैं वह सत्य, धर्म और पूरे ब्रह्माण्ड के अस्तित्व का को पहचाने का मार्ग है।
शमशेर भालू खान
9587243963
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